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हिन्दू और/या बौद्ध धारणा के अनुसार, चक्र (Spiritual Chakras) हमारे शरीर में ऊर्जा के विशाल (तब भी सीमित) कुंड होते हैं, जो हमारे मनोवैज्ञानिक गुणों को नियंत्रित करते हैं। मुख्य चक्रों की संख्या कुल मिलाकर सात बताई गई है; चार शरीर के ऊपरी भाग में, जो हमारे मानसिक गुणों को नियंत्रित करते हैं और तीन शरीर के निचले भाग में, जो हमारे सहज वृत्ति (instinctual) गुणों को नियंत्रित करते हैं। इनके नाम हैं:

मूलाधार (root) चक्र। स्वाधिष्ठान (sacral) चक्र। मणिपुर (solar plexus) चक्र। अनाहत (heart) चक्र। विशुद्धि (throat) चक्र। आज्ञा (third eye) चक्र। सहस्रार (crown) चक्र।बुद्धिस्ट/हिन्दू शिक्षा के अनुसार, सभी चक्रों को मानव के भलाई में योगदान करना चाहिए। हमारी सहज वृत्ति हमारे भावनाओं और विचारों के शक्तियों से सम्बद्ध हो जाएगी। आमतौर पर हमारे कुछ चक्र पूरी तरह से खुले हुए नहीं होते हैं (जिसका अर्थ है कि वे आपके जन्म के समय जैसे ही कार्य करते हैं), लेकिन कुछ अतिसक्रिय होते हैं अथवा लगभग बंद होते हैं। यदि चक्रों को संतुलित न किया जाए तो स्वयं के साथ शांति स्थापित नहीं हो सकती है।

चक्रों की अनुभूति प्राप्त करने की कला को जानने के लिए और साथ ही उन्हें खोलने के लिए डिज़ाइन की गई एक विश्वसनीय तकनीक के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें (How to Open Your Spiritual Chakras)।

  1. यदि आप चक्रों को खोल रहे हैं तो समझ लें कि अतिसक्रिय चक्रों को कम सक्रिय करने के प्रयास की कोई आवश्यकता नहीं है: वे मात्र बंद चक्रों की निष्क्रियता से उत्पन्न कमी को पूरा करते हैं। एक बार जब सारे चक्र खुल जात हैं तब ऊर्जा बराबर हो जाती है और संतुलित हो जाती है।
  2. यह चक्र भौतिक रूप से भिज्ञ (physically aware) होने और अधिकांश स्थितियों में सहज महसूस करने पर आधारित है। इसके खुल जाने के बाद, आपको स्वयं को सुसंतुलित (well-balanced) और समझदार, स्थिर और सुरक्षित महसूस करना चाहिए। आप अकारण ही अपने आस-पास के लोगों पर अविश्वास नहीं करते हैं। आप, जो भी घटित हो रहा है उसमें स्वयं को उपस्थित और अपने भौतिक शरीर से अत्यधिक जुड़े हुए, महसूस करते हैं। यदि यह कम सक्रिय है: आप भयभीत या नर्वस रहते हैं और आसानी से अपने को अवांछनीय समझने लगते हैं। यदि यह अतिसक्रिय है: आप भौतिकवादी और लोभी हो सकते हैं। आपको ऐसा लगता है जैसे कि आपको सुरक्षित होना चाहिए और किसी भी परिवर्तन के लिए आप अवांछनीय हैं।
  3. यह चक्र भावनाओं और कामुकता पर कार्य करता है। यदि यह खुला है: भावना स्वतन्त्रता के साथ मुक्त हो जाती है और, आपके बिना अति-भावुक हुए, व्यक्त हो जाती है। आपके आत्मीयता के द्वार खुल जाएंगे और आप अनुरागी तथा बहिर्गामी हो सकते हैं। आपको कामुकता पर आधारित कोई समस्या भी नहीं रहती है। यदि यह कम सक्रिय है: आप भावहीन या आवेगहीन होते हैं और किसी से भी नहीं खुलते हैं। यदि यह अतिसक्रिय है: आप हर समय संवेदनशील और भावुक होते हैं। आप अत्यधिक कामुक भी हो सकते हैं।
  4. यह चक्र आत्मविश्वास को परिवेष्टित करता है खास कर तब, जब आप एक समूह में हों। जब यह खुला रहता है तो आपको नियंत्रण में होना महसूस होना चाहिए तथा अपने अंदर गौरव होने की अच्छी अनुभूति होनी चाहिए। यदि यह कम सक्रिय है: आप निष्क्रिय और अनिर्णायक होते हैं। आप बार-बार भयभीत हो सकते हैं और यह आपको कोई प्रतिफल भी नहीं देता है। यदि यह अतिसक्रिय है: आप अभिमानी और आक्रामक होते हैं।
  5. यह चक्र प्रेम, परवाह करने तथा लाड़-प्यार के बारे में सब कुछ है। जब यह खुला रहता है तब हमेशा सौहार्दपूर्ण रिश्तों में कार्य करते हुए आप दयालु और मित्रवत प्रतीत होते हैं। यदि यह कम सक्रिय है: आप सर्द-मिज़ाज और अमैत्रीपूर्ण होते हैं। यदि यह अतिसक्रिय है: आप लोगों के प्रति इतने “स्नेही” होते हैं कि आप उनका दम ही घोंट देते हैं और इसके कारण आप स्वार्थी की तरह समझे जा सकते हैं।
  6. यह चक्र आत्म-अभिव्यक्ति तथा सम्प्रेषण पर आधारित है। जब चक्र खुला रहता है तो आत्म-अभिव्यक्ति आसान हो जाती है और कला, इसे करने का एक उत्तम मार्ग प्रतीत होने लगता है। यदि यह कम सक्रिय है: आप ज्यादा नहीं बोलते हैं जिसके कारण आपको शर्मीला मान लिया जाता है। यदि आप अक्सर झूठ बोलते हैं तो ये चक्र अवरुद्ध हो सकता है। यदि यह अतिसक्रिय है: आप इतना अधिक बोलने लगते हैं कि बहुत सारे लोगों को चिढ़ हो जाती है। आप एक काफ़ी खराब श्रोता भी हो सकते हैं।
  7. अपने नाम के अनुरूप, यह चक्र अंतर्दृष्टि पर कार्य करता है। जब खुला रहता है तब आपके पास उत्तम अतींद्रिय दृष्टि होती है और आप बहुत अधिक स्वप्न देखने लगते हैं। यदि यह कम सक्रिय है: आप अन्य लोगों पर, आपके लिए सोचने के लिए, निर्भर बन जाते हैं। धारणाओं पर बार-बार भरोसा करने के कारण आप अधिकांशतः असपष्ट भी होते हैं। यदि यह अतिसक्रिय है: आप दिन भर कल्पना की दुनिया में रहते हैं। इसकी चरम सीमा पर आप बारंबार दिवास्वप्न या मतिभ्रम के भी शिकार हो सकते हैं।
  8. यह सातवाँ और सबसे अधिक आत्मिक चक्र है। यह चक्र बुद्धिमत्ता तथा ब्रह्मांड से एकीकृत होने को परिवेष्टित करता है। जब यह चक्र खुला रहता है तब आपके टु-डू लिस्ट (To Do list) में से पक्षपात लुप्त हो जाता है और आप संसार तथा उससे अपने संबंध के बारे में अधिक भिज्ञ प्रतीत होते हैं। यदि यह कम सक्रिय है: आप अधिक आध्यात्मिक नहीं होते हैं और अपने विचारों में काफ़ी अड़ियल हो सकते हैं। यदि यह अतिसक्रिय है: आप चीजों को हर समय बुद्धिसंगत करते हैं। आध्यात्मिकता सबसे पहले आपके मस्तिष्क में आती हुई प्रतीत होती है और यदि आप वास्तव में अतिसक्रिय हैं तो आप अपने शारीरिक आवश्यकताओं (भोजन, जल, आश्रय) की भी उपेक्षा कर सकते हैं।

सलाह

  • यदि आप एक नौसिखिया हैं तो आवश्यकता से अधिक मेडिटेशन करने का प्रयास न करें।
  • प्रतिदिन मेडिटेशन करने का प्रयास करें भले ही आपके पास ज्यादा समय न हो, इसे उतने ही देर तक करें जितनी आपकी इच्छा हो।
  • ”आज्ञा चक्र” को सक्रिय करते समय उस स्थान पर गोलाई में चारों ओर हल्के से रगड़ें जहां पर आज्ञा चक्र निकलता है।
  • किसी शांत और गरम स्थान पर बैठें, इस एक्सर्साइज़ को आप वैसा ही समझें जैसे कि एक मेडिटेशन। गर्मियों में, आप किसी मैदान या बागीचे में बैठ सकते हैं। जाड़ों में किसी गरम कमरे का प्रयोग करें जहां ध्यान न भटक सके। यदि आपके पास एक वाष्पकक्ष (sauna) हो (यद्यपि यह बहुत कम लोगों के पास होता है), तो यह बैठने, अपने को शांत करने और निर्विचारिता के लिए एक उत्तम स्थान होता है।

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