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आलसी होने का संकेतार्थ हमेशा नकारात्मक ही लगाया जाता है, मगर कभी आपने रुक कर यह सोचा है कि ऐसा क्यों? क्या यह इसलिए कि उन तनावग्रस्त, काम के बोझ से दबे, काम के नशेड़ियों को लगता है कि यदि वे एक मिनट, कुछ भी नहीं करने के लिए रुकेंगे – हाय रे! – तब दुनिया में उथल पुथल हो जाएगी? या इसलिए कि आपका धर्म आपसे कहता है कि आलस्य पाप है? या इस लिए कि यह, बारंबार बताए गए उन सात भयानक पापों (निष्क्रियता) में से एक है जिसे आपके जन्म से ही “नहीं करना है” की श्रेणी में डाल कर आपके मस्तिष्क में भर दिया गया है? अब वह समय आ गया है जब कि एक कदम पीछे हट कर, आलस्य पर एक नज़र डाल कर देखना है कि वह वो नहीं है, जो उसे दिखाया जाता है। वास्तव में कभी कभी आलसी होना ख़ुशी, आराम और यहाँ तक कि सफलता की भी राह हो सकता है।

विधि 1
विधि 1 का 2:

पूर्वाग्रहों को व्यवस्थित करना

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  1. आपकी पृष्ठभूमि और विश्वासों के आधार पर “आलसी होने” का अर्थ बदल सकता है, परंतु अंततोगत्वा, यह एक ऐसा शब्द है जिसके नकारात्मक अर्थ इस मामले में निकाले जाते हैं कि कोई अपनी पूरी ताकत नहीं लगा रहा है या पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर रहा है जबकि दूसरे लोग अक्सर वैसा कर रहे होते हैं; यह ऐसा भी इंगित करता हुआ लगता है कि व्यक्ति अपनी हालत या जीवन स्तर सुधारने के लिए कुछ विशेष नहीं करता है। मगर, आलसी को एक दूसरे नज़रिये से देखने के बारे में क्या विचार है? ये हैं उसके कुछ तरीके:
    • क्यों न आलस्य का अर्थ यह निकाला जाये कि आपका मस्तिष्क और शरीर आराम चाहता है? अनेक लोग कम तनावग्रस्त, अधिक खुश और अपने शरीर की वास्तविक गति से लयबद्ध हो सकते हैं यदि वे शरीर और दिमाग की कभी कभार “थोड़ा आलसी हो जाने” की मांग को मान लें।
    • आलस्य का अर्थ है कि शायद आप किसी मामूली और रोज़मर्रा की चीज़ से थक चुके हैं। और किसने कहा है कि हमें मामूली और रोज़मर्रा की ज़िंदगी से प्यार करना चाहिए? ठीक है कि हमें अपने पास जो कुछ भी है और जो लोग भी हमारे आस पास हैं उनके लिए आभारी होना चाहिए, मगर इसको नीरस दिनचर्या तक खींच कर नहीं ले जाना चाहिए!
    • आलस्य का अर्थ है कि आपके अंदर, आपको क्या करना “चाहिए” और आप क्या करना चाहते हैं, के बीच में एक संघर्ष चल रहा है। संभव है कि वे “चाहिए” आपके ऊपर बाहरी दबाव से थोपे गए हों।
    • आलस्य का अर्थ यह है कि दूसरे व्यक्ति वो कार्य नहीं कर रहे हैं जो आप उनसे कराना चाहते हैं या इसका विपरीत हो रहा है। तब अनिवार्य रूप से यह आलस्य नहीं है; यह नियंत्रण का विवाद तो हो सकता हैं (चालाकी से दूसरों से काम करवाना) या अभिव्यक्त करने की योग्यता में कमी, और इस व्यवहार को आलस्य का नाम देना सिर्फ़ एक आसान बहाना है।
    • आलस्य का अर्थ है कि आपके ध्यान में ऐसा कुछ है, जो वास्तव में आरामदायक है। जैसे कि कुछ नहीं, बिल्कुल कुछ नहीं, यहाँ तक कि गंदे बर्तनों का ढेर... बिना धोये। यदि यह अनियमित रूप से एकाएक होने वाले घटना है, तब भी क्या यह इतनी बुरी है? और नई आई हुयी ताज़गी और अच्छा लगने बारे में क्या खयाल है?
  2. सोचिए कि कैसे आपका आलसीपन आपको कम से कम काम करने की ओर ला सकता है: कम परिश्रम कर कार्य पूरा करना कबसे पाप हो गया है? क्या आप चीज़ों को सदैव कठिन तरीक़े से ही करना पसंद करते हैं? यदि हाँ, तब क्यों? यदि कम परिश्रम करके वही परिणाम पाये जा सकते हैं, तब क्यों न उसी राह को अपनाकर अपने आलसीपन की आवाज़ को सुन लिया जाये? नैतिकतावादी उत्तर देने से पहले वास्तविकता के बारे में सोच लीजिये: दुनिया की समस्त तकनीकी प्रगति आलस्य का ही परिणाम है। ज़रा इन चीज़ों पर ध्यान दीजिये।
    • हम पैदल चलने के स्थान पर कार चलाते हैं क्योंकि हमें पैदल चलने में आलस्य आता है। हम अपने कपड़े वाशिंग मशीन में धोते हैं क्योंकि आलस्य के कारण हम रगड़ने की मेहनत से बचना चाहते हैं। हम कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि आलस्य के कारण हम सबकुछ हाथ से नहीं लिखना चाहते (इसके अलावा टाइपिंग जल्दी हो जाती है, इसलिए काम भी जल्दी हो जाता है, और हम जल्दी आराम भी कर पाते हैं)।
    • आलस्य के बारे में एक अच्छी बात यह है कि कम शक्ति, कम ऊर्जा और कम समय लगाकर किसी चीज़ को बेहतर तरीक़े से करने में बुराई नहीं है। तब भी उन पारंपरिक चुनौतियों को स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें आप तब महसूस करेंगे जब आप कभी कभार आलस्य की सकारात्मकता को मान लेंगे।
  3. सोचिए कि आपके सदैव काम करने या व्यस्त रहने से किसे, क्या लाभ मिलता है: हर बार जब आप यह शिकायत करते हैं कि आपका कार्य आपकी आत्मा तक को खा जाता है तथा अपने जीवन को घड़ी की सुइयों के अनुसार चलाते हैं, आप वास्तव में यह शिकायत कर रहे हैं कि आपको ठहरने का समय ही नहीं मिलता। सामान्य तौर पर कहा जा सकता है कि, वाणिज्य के लिए आलसी लोगों का विचार अच्छा नहीं है तथा वे लोग जो अपना पूरा दम नहीं लगा रहे होते हैं, उनके लिए "ठलुआ", "किसी काम का नहीं", "बेकार", तथा "समय बर्बाद करने वाले" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। हम लगातार यह सोचते रहते हैं कि कहीं कोई हमें ऐसा लेबल न दे दे, वह भी तब जब हमारी यह हिम्मत होती है कि काम की अधिकता होने पर हम दूसरों को आलसी कह बैठते हैं।
    • और तब जबकि एक भली भांति आराम किया हुआ कर्मचारी वास्तव में अधिक उत्पादक तथा प्रसन्न होता है, उस समय विडम्बना यह होती है कि अधिकांश लोग आवश्यकता से अधिक देर तक काम इसलिए करते हैं क्योंकि उनका ध्यान, तात्कालिक परिस्थिति में, उत्पादक होने के स्थान पर, व्यस्त दिखने पर ही रहता है।
    • अंततः, एक ऐसे समाज में जहां वर्क-लाइफ़ बैलेंस को प्रेरित किया जाता हो और जिन्हें पता हो कि सीमाएं क्या हैं, उत्पादकता कम नहीं होती है, बल्कि बढ़ ही जाने की संभावना रहती है।
  4. जान लीजिये कि कार्य से दूर बिताया गया समय, आपकी ऊर्जा एवं आत्मा को नवीकृत कर सकता है: आलस्य के "पाप" को "परिश्रम" का "सद्गुण" ही मिटा सकता है। कुछ लोगों के लिए किसी काम को उत्साह एवं निर्विवाद विश्वास के साथ परिश्रम से करने का अर्थ, देर तक काम करके अधिक पैसा कमाना और दूसरों को प्रभावित करना ही रह गया है। परंतु सब लोग दुनिया को ऐसे नहीं देखते हैं: वास्तव में डेनिश लोग सप्ताह में 37 घंटे काम करते हैं और पाते हैं कि उनकी अधिकांश आय करों में ही चली जाती है (जिसके बदले में उन्हें उत्तम सामाजिक लाभ प्राप्त होते हैं), तथा औसतन उन्हें 6 सप्ताहों की छुट्टियाँ होती हैं, [१] तब भी वे लगातार विश्व के सबसे प्रसन्न राष्ट्रों में से एक माने जाते हैं।
    • अनेक लोगों के लिए, काम से दूर अतिरिक्त समय, जो उस काम को करने के लिए व्यतीत किया जाता है जिसमें आनंद मिलता है, इस बात की स्वीकृति होता है कि बिना आनंद लिए हर समय काम करते रहने से जीवन दूभर हो जाता है। संभवतः परिश्रम को आलस्य से यह सीखना होगा कि शरीर और मस्तिष्क को विश्राम मिलने से उसमें नवीकृत शक्ति और प्रेरणा आ जाती है।
    • आलस्य के भी उसी प्रकार अनेक भेद होते हैं, जैसे कि परिश्रम के - दोनों ही, न तो पूरी तरह से अच्छे हैं और न ही बुरे तथा एक सीमा के अंतर्गत दोनों ही ठीक हैं। यह हठ, कि एक अच्छा है और एक बुरा, अत्यंत एकपक्षीय बात है तथा इससे आपको विश्राम के पल मिलने का सुअवसर छिन जाता है।
  5. आलस्य कैसे करें यह तो बिलकुल सरल बात है (ऐसा ही होना चाहिए)। प्रारम्भ में तो यह असत्य सा ही लग सकता है कि कम काम करने से (जिसे आलस्य भी कहा जाता है) आप अधिक उत्पादक हो सकते हैं। यहाँ पर हो यह रहा है कि आपकी "उत्पादकता" की परिभाषा ही बदली जा रही है। यदि आप उत्पादकता को केवल "अधिक कुछ करना", "अधिक कुछ करवाना", या शायद अति की परिस्थिति में "कुछ नहीं करते हुये पकड़े नहीं जाना" है, तब शायद आलसी होने की बात आपको अजीब लगेगी।
    • वहीं दूसरी ओर, यदि आपकी "उत्पादकता" की परिभाषा के अनुसार निर्धारित समय सीमा में यथासंभव अधिकतम कार्य (या कुछ भी) निपटाना है, यथासंभव दिये गए समय और प्रयास के मापदण्डों के अंतर्गत, अधिकतम प्रभावी होना है, तब कम काम करना या आलसी होना, वास्तव में उत्पादक होने का सर्वोत्तम तरीक़ा है।
    • विचार करिए: आप सारे दिन पागलों की तरह काम करके थोड़ी सी उपलब्धि पाते हैं विशेषकर तब जब उसको चिरस्थायी मापदण्डों के अनुसार देखा जाये।
    • या फिर आप प्रति घंटे थोड़ा सा ऐसा कुछ कर सकते हैं जो ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य हों जिनसे वास्तविक उपलब्धियां हों। दूसरे उदाहरण में हालांकि आपने किया कुछ कम है परंतु आपके द्वारा लगाया गया समय महत्त्वपूर्ण होता है। इस बिन्दु पर अपनी कार्यप्रणाली पर ध्यान से नज़र दौड़ाइए और ईमानदारी से बताइये कि क्या आपका आधा काम "उत्पादक होने" के स्थान पर "व्यस्त दिखने" का नहीं है।
  6. यह जानने के लिए ठहरिए कि कब आप उत्पादक नहीं रह जाते हैं: हो सकता है कि आपका पूर्वाग्रह यह हो कि जब आप अपनी डेस्क पर बैठे हैं, तब उसका अर्थ है कि आप काम कर रहे हैं, या यदि आप पहले से साफ़ मेज़ को पोंछ रहे हैं तब आप घर का काम कर रहे हैं। हालांकि यदि आप आलसी होना चाहते हैं तब आपको यह पहचान पाने में सक्षम होना चाहिए कि कब आप कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं और तब आगे बढ़ जाना चाहिए। इससे आप आवश्यक कार्य के लिए ऊर्जा बचा सकेंगे और इस प्रक्रिया में अधिक आलसी भी हो सकेंगे।
    • यदि आपने कार्य पर दी गई परियोजना को पूरा कर लिया है और केवल इसलिए बैठे हैं कि वह अच्छा लगेगा, तब या तो ऐसा कुछ कार्य मांगिए जो उत्पादक हो या घर जाइए। अपनी डेस्क पर बैठकर ई मेल देखते हुये व्यस्त दिखने से न तो आपको और न ही कार्यालय में किसी को लाभ होने वाला है।
    • मान लीजिये कि आप एक उपन्यास लिखने वाले हैं। अपने कंप्यूटर के सामने बैठ कर पहले दो घंटों में शायद आपने कुछ अच्छा लिखा भी हो, परंतु अब आपको कुछ भी विचार नहीं आ रहे हैं। यदि आपको लगता है कि आपके पास काम जारी रखने के लिए न तो शक्ति है और न ही प्रेरणा, तब स्क्रीन की तरफ़ घूरना बंद करिए और काम को अगले दिन तक के लिए छोड़कर हट जाइए।
  7. जान लीजिये कि लोगों के साथ अच्छा समय बिताना ठीक है: हर समय, एक साथ अनेक काम या यथासंभव अधिकतम काम करना ही उचित नहीं है। यदि आपकी पत्नी, घनिष्ठ मित्र, रिश्तेदार, या नए परिचित आपके साथ कुछ समय बिताना चाहते हैं, तो इस भावना को खुले दिल से स्वीकार करिए। न तो अपने मित्र से यह पूछिए कि क्या वह आपके साथ किराना ख़रीदने जाना चाहती है और न ही परिवार के साथ बिताए जाने वाली शाम को कार्यालय के ईमेल भेजिये: इसके स्थान पर केवल लोगों के साथ समय बिताने का आनंद उठाइये चाहे इसके कारण आप धेला भर भी काम न कर पाएँ।
    • लोगों के साथ समय बिताने से आपके संबंध सुधरेंगे, आप प्रसन्न होंगे, और आपको जो भी काम आप कर रहे हैं, उससे हटकर खुलने का मौक़ा मिलेगा।
    • थोड़ा सा आनंद ले लेने से स्वयं से निराश मत होइए: यह आपके लिए अच्छा है!
  8. हालांकि सुनियोजित होना अच्छी बात है और कार्य करने की भावना होना भी, परंतु यदि आप अधिक आलसी होना चाहते हैं तब आप अपने सम्पूर्ण जीवन के प्रत्येक पल की योजना नहीं बना सकते हैं। मीटिंगों का शेड्यूल बनाना, किसी कार्य को समय सीमा के अंदर पूरा करने की योजना बनाना या अपनी सामाजिक गतिविधियों को कुछ सप्ताह पहले ही योजना बद्ध कर लेना अच्छा है परंतु यदि योजना बनाने से, आने वाली अनजानी आपत्तियों के कारण आप अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं, तब आपको एक क़दम पीछे हटकर अपनी नियंत्रण की आवश्यकताओं से छुटकारा पाना होगा।
    • यदि आपको लगता है कि पागलों की तरह से योजना बनाने से आप तनाव में आ जाते हैं, तब यह समय इस बात को समझने का है कि शेड्यूल में कुछ अनजानी चीज़ों के होने में कोई हानि नहीं है। इससे आपको थोड़ा आराम मिल सकता है और हाँ, इससे आपको थोड़ा आलसी होना भी ठीक लग सकता है!
    • साथ ही, यदि आप प्रत्येक पल की योजना नहीं भी बनाते हैं तब भी आप कुछ अनपेक्षित स्वाभाविक आनंद उठा सकते हैं जिससे आपको तनाव रहित होने में और आगे आने वाले काम के लिए तैयार होने के लिए सहायता मिल सकती है।
विधि 2
विधि 2 का 2:

कार्यवाही करना

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  1. यदि आप आलसी हैं, तब तो विकल्प सीधा है। कम काम करिए। परंतु करिए चतुराई से: आलसी व्यक्ति जब कुछ करते हैं तो प्रत्येक क्षण का उपयोग करते हैं। यदि कार्यवाही का कोई अर्थ नहीं है, समय कम नहीं होने वाला है और आपको छुटकारा जल्दी नहीं मिलेगा, तब या तो उसे करिए मत, या यह पता लगाइये कि कैसे उसे इस प्रकार किया जा सकता है, जिससे कि समय कम लगे और कार्य करने की पीड़ा आपको कम काम करने दे। ऐसा करने की ये कुछ विधियाँ हैं:
    • कम ईमेल भेजिये परंतु जिन्हें भेजिये उन्हें महत्त्वपूर्ण बना दीजिये। ऐसा करने का अतिरिक्त लाभ यह होगा, कि लोग आपके भेजे गए पत्रों पर ध्यान देंगे और उनको उस समय भेजे गए ईमेल्स से अधिक महत्त्व देंगे जो आपने अ) जो आपने मात्र अपने बचाव को ध्यान में रख कर लिखे हों तथा आ) जो आपने यह साबित करने को लिखे हों कि आप काम कर रहे हैं।
    • अपने माथे पर यह संदेश लिख लीजिये (ठीक है केवल एक पोस्ट-इट नोट पर लिखिये और कहीं प्रत्यक्ष स्थान पर लगा लीजिये): आलस्य का अर्थ यह नहीं है कि थोड़ा ही अधिक है; आलस्य का अर्थ है कि थोड़ा ही बेहतर है।
  2. पिछली बार कब आपने खुले में बैठकर अपने आस पास के सौन्दर्य को ध्यान से देखा था? यदि उत्तर है "जब मैं बच्चा था" या "कभी नहीं," तब प्रकृति दर्शन का समय आ चुका है। यदि आपको बाहर जाना पसंद नहीं भी है, तब भी कुछ समय, किसी सुंदर खेत, झील, सागर तट, वन, बगीचे, या पर्वत शृंखला में बिताने से आपको आराम मिलेगा और आपका मस्तिष्क एवं शरीर फिर से युवा हो जाएगा।
    • अपने साथ एक मित्र, थोड़ा पढ़ने का सामान, कुछ अल्पाहार, या कुछ भी ऐसा लाइये जिससे आपको आराम करने में मदद मिल सके। ऐसा कुछ मत लाइये जो आपके काम के लिए हो और न ही अनेक काम एक साथ करने का प्रयास करिए। बिना कुछ अधिक किए संतुष्ट रहिए।
  3. स्वयं को सप्ताहांत में पड़े रहने की अनुमति दीजिये: निद्रा के बारे में अनेक शोधों के आधार पर यह सुझाव दिया गया है कि नियमित निद्रा पैटर्न्स को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है, इसलिए निद्रा की आदतों में एकाएक परिवर्तन करने का सुझाव नहीं दिया जाता है। परंतु, पड़े रहना सोने के बारे में नहीं है। वह "है" बिस्तर में रहना और स्वयं में व्यस्त रहना। अच्छी पुस्तक पढ़िये, बिस्तर में ही नाश्ता करिए, बिस्तर पर चित्र बनाइये या बिस्तर में पड़े हुये मज़े लेते हुये जो मन में आए वैसा ही कुछ भी करिए।
    • पालतू पशुओं को तथा बच्चों को अपने साथ पड़े रहने के लिए निमंत्रित करिए; पहली बात तो यह है कि पालतू पशु सही समय पर प्राकृतिक रूप से आलसी हो सकते हैं, और दूसरी बात यह है, कि आप छोटे बच्चों को यह नहीं सिखा सकते हैं कि आराम करना संपूर्णता और स्वस्थ रहने का महत्त्वपूर्ण भाग है।
    • कुछ मित्रों को फ़ोन करिए और हाल चाल पूछिए।
    • यदि पूरे दिन बिस्तर में पड़े रहने से आपको बहुत सुस्ती छा रही हो, तब आप खुली हवा में थोड़ी देर घूम सकते हैं। परंतु, इससे अधिक कुछ मत करिए।
  4. कम ख़रीदारी करने से आपको अधिक आनंददायक चीज़ें, जैसे मित्रों, पति/पत्नी, या बच्चों, या सागर तट पर घूमने के लिए अधिक समय मिलेगा। एक सूची बनाइये, योजना बनाइये और ख़रीदारी, केवल आवश्यकता होने पर ही करिए। और कम ख़र्च करने का मतलब है कि आप कम चीज़ें लेंगे, अतः जब आपके पास कम चीज़ें होंगी तब इसका अर्थ है कि आपको उनका रख रखाव एवं सफ़ाई भी कम करनी होगी, तथा बिना कबाड़ इकट्ठा किए बेहतर आर्थिक स्थिति में होंगे। आलस्य के बारे में अब क्या ख़याल है?
    • जैसे कि, यदि आप महीने में केवल एक या दो बार किराने की बड़ी ख़रीदारी करने की योजना बनाते हैं, तब इससे आप बहुत समय बचा लेंगे और आपको आलसी होने के लिए अधिक समय मिल जाएगा।
    • आप अपने परिवार के सदस्यों से भी अपने लिए ख़रीदारी करने का अनुरोध कर सकते हैं, या फिर इसे ऑन लाइन भी कर सकते हैं।
  5. अपने अंतर के व्यस्त व्यक्ति को किनारे रख दीजिये: व्यस्तता एक आदत है (अक्सर निर्विवाद), परंतु सफलता की राह नहीं है। हर समय व्यस्त रहने और दिखने की आवश्यकता आपकी उत्पादकता को नाटकीय रूप से कम कर देगी क्योंकि आपका ध्यान व्यस्तता पर केन्द्रित रहेगा, न कि उपलब्धि पर। बहुत सी चीज़ों को करने के लिए भागते रहने के स्थान पर, थोड़ा धीमे हो जाइए। कम काम करिए और एक शांत तथा स्थिर जीवन व्यतीत करिए। बिना कुछ किए बैठने में संतोष प्राप्त करिए। थोड़ा आराम करिए। मुस्कुराइए और प्रसन्न रहिए।
    • अपनी “कार्य सूची” को ध्यान से, यह देखने के लिए देखिये कि उनमें से कौन से काम करना वास्तव में आवश्यक है। कुछ चीज़ें कर भी लीजिये मगर व्यर्थ ही तनाव में मत आ जाइए या उसी को अपना पूरा समय मत ले लेने दीजिये।
  6. कम कपड़ों, कम कारों, कम सामान और ऐसी किसी भी वस्तु पर कम स्वामित्व रखिए जिसे मरम्मत, समय, ध्यान या परिश्रम की आवश्यकता हो। प्रयास करिए कि आप जिन कपड़ों को अब नहीं पहनते हैं, उन्हें दान कर दें, अपनी रसोई की अलमारियों को साफ कर दीजिये, अपनी सामाजिक व्यस्तताओं को कम कर दीजिये और यथा संभव अपने जीवन को सरल बनाइये। हालांकि, ऐसा लगेगा कि इसमें पहले कुछ अधिक परिश्रम लग रहा है, परंतु इससे आपको बाद में आलस्य के लिए काफी समय मिल जाएगा।
    • स्वयं से पूछिये कि क्या आपने बहुत सारी गतिविधियों के लिए स्वयं को नामांकित कर लिया है, अनेक मित्रों की स्वेच्छा से सहायता करने का निर्णय कर लिया है, ढेर सारे जटिल भोज बनाने के लिए कह दिया है या इतना काम खुद पर ओढ़ लिया है कि आपको आलस्य के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा है। देखिये कि आप किस में कमी कर सकते हैं ताकि आपको आराम करने और कुछ भी नहीं करने के लिए समय मिल जाये।
  7. यह कोई छल नहीं है; इसका अर्थ है कि सही आदमी को सही काम करने देना। यदि वे चाहते हैं, ख़ुश हैं और अपने काम में बहुत निपुण हैं तब उन्हें करने के लिए छोड़ ही दीजिये। हममें से अनेक लोगों को किसी दूसरे को करने देने में तब भी अपराध बोध होने लगता है, जबकि उस व्यक्ति ने यह स्पष्ट कर दिया हो कि उसके लिए स्वयं करना ही सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि हमे तो मदद करने की मजबूरी होती है; कभी कभी तो हमारी सहायता रुकावट होती है, और कभी उसे घमंड माना जाता है और उसे स्वागत के योग्य भी नहीं समझा जाता है।
    • जो प्रबंधकीय पदों पर हों, उन्हें अपने कर्मचारियों पर, बच्चों पर, स्वयं सेवकों की निपुणता पर विश्वास होना चाहिए तथा उनका अति प्रबंधन या अति नियंत्रण नहीं करना चाहिए।
    • कम प्रबंधन से कर्मचारियों, बच्चों, और स्वयं सेवकों को स्वतन्त्रता मिलती है, अपनी सृजनात्मकता जाँचने का अवसर मिलता है, स्वयं कुछ सीखने का अवसर मिलता है और प्रयास करने तथा असफल होने के लिए मौका मिलता है।
    • आप जितना ही कम करेंगे, दूसरों को यह जानने का, कि उसे किया कैसे जाता है, अधिक अवसर प्राप्त होता है। आप निर्देशन कर सकते है और प्रशिक्षण दे सकते हैं परंतु हस्तक्षेप मत करिए।
    • सफाई, खाना पकाने का काम, प्रबंधन और कचरा हटाने के काम को बाँट लेना ही सबसे अच्छा है। अधिकांश लोगों को यह सब काम अंदर से थका देने वाले लगते हैं, तब इनको इसलिए बाँट लीजिये कि कम से कम आप साथ तो रहेंगे, कुछ मज़ेदार करने की दिशा में प्रगति तो होगी। यह बहुत संभव है कि घरेलू काम आलस्य के विरोध का मूल स्त्रोत हों!
    • दूसरों को काम सौंपिए और विश्वास रखिए। काम बांटने से हल्का हो जाता है। ज़िम्मेदारियों को, चाहे वह काम हो, स्थानीय चर्च का उत्सव हो, या विकी की कोई बड़ी सी मीटिंग हो, उसको एक टीम या समूह की तरह से आपस में बाँट कर सभी को घर जल्दी जाने का अवसर दीजिये।
  8. अपनी सहायता की सीमाएं निर्धारित किए बिना लगातार ऑनलाइन सूचनाओं का आदान प्रदान, आनंददायक या उत्पादक कार्य होने के स्थान पर समय अपव्ययकारी काम हो सकता है। बातचीत कम करिए और स्वयं को आलस्य के लिए स्थान प्रदान करिए। कम बातें करिए, कम समझाइए, कम चिल्लाइये, कम बहस करिए, कम ई मेल भेजिये, कम संदेश भेजिये और कम जांच करिए। यदि आप यह करने का प्रयास कर सकते हैं, तब आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि कितनी जल्दी आप अधिक “आलसी” और सहज महसूस करने लगेंगे।
    • हम एक ऐसे विश्व में रह रहे हैं जहां अधिकांश लोगों को या तो यह पता नहीं है या वे जानना नहीं चाहते हैं कि कहाँ पर सूचनाओं को लेने देने की सीमा निर्धारित करनी चाहिए, यहाँ तक कि उन्हें यह एक ऐसा उबाऊ काम, तथा दायित्व, लगता है जिसे नहीं किए जाने पर एक विचित्र अपराध बोध होता है या उससे अलग होने पर उन्हें लगता है कि वे दूसरों का अपमान कर रहे हैं। हालांकि इस तरह की अधिकांश बातचीत और कुछ नहीं बल्कि बक-बक होती है, जिसे कोई भी ध्यान से नहीं सुनता। यह केवल शोर है।
    • अपने जीवन में शांति आने दीजिये। अपने मस्तिष्क में स्थिरता आने दीजिये। स्वयं को अपने ऑनलाइन सोशल मीडिया तथा टेक्स्ट भेजने के “दायित्वों” के संबंध में आलसी हो जाने दीजिये।
    • हर ईमेल को महत्त्वपूर्ण बनने दीजिये। तुरंत संदेश, आवश्यकता होने पर ही भेजिये।
    • फोन, ट्विटर, ब्लैकबेरी, ऐंड्रोइड, तथा आई फोन पर कम समय व्यतीत करिए, और अधिक समय ... व्यक्तियों के साथ, स्वयं के साथ, अपनी प्रिय पुस्तक के साथ, और वर्तमान में व्यतीत करिए।
  9. यह काम जैसा लगता है! वास्तविकता यह है कि अनेक चीज़ों को तुरंत कर लेने से बाद में अधिक परिश्रम करने से बचा जा सकता है। एक पक्के आलसी और कम काम करने वाले ने तो बहुत पहले ही यह जान लिया होगा कि अधिकांश वास्तविक काम, काम को शुरू में ठीक ढंग से न किए जाने से ही शुरू होता है। वह कहावत याद है न, “उचित समय पर ही कार्य कर लेना बेहतर है”। यहाँ कुछ ऐसी विधियाँ दी जा रही हैं जिनसे काम को पहली बार में ही सही ढंग से किया जा सकता है:
    • जल्दी से अच्छे प्रथम प्रारूप लिखना सीखिये। यह अभ्यास से संभव है।
    • ड्रायर से निकालते या रस्सी से उतारते समय ही कपड़ों को तह कर लीजिये। अब वे तुरंत रखे जाने के लिए तैयार हैं और उनमें उससे कहीं कम सिकुड़नें होंगी जितनी कि उनको यदि कई दिनों तक ड्रायर या कपड़ों की टोकरी में छोड़ दिये जाने पर पड़तीं।
    • पहली बार में ही घर को सही तरह से रंगिए। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तब आप घटिया काम को ठीक करने में कई घंटे लगा देंगे। ईमारतों के नवीकरण या बनाने के काम में भी बिलकुल यही सिद्धान्त लागू होता है; पहले ही काम सही ढंग से करिए तब आपको बाद में मरम्मत या ठीक करने का काम बहुत कम करना होगा।
    • जैसे ही आपके ईमेल आयें, उन्हें पढ़िये और उनपर कार्यवाही करिए। जब आप उनको “बाद में निपटाने” के लिए छोड़ देते हैं, तब वह इतना बड़ा काम हो जाता है जिसका आप सामना भी नहीं करना चाहते, तब आपको बुरा लगता है और लगता है कि आप उस दलदल में धंस रहे हैं। यदि वह आपके ध्यान देने योग्य बिकुल ही नहीं है, तब उसे मिटा दीजिये; जिनका तुरंत जवाब देना है, दे दीजिये। जिन ईमेल्स का जवाब आप तुरंत नहीं देना चाहते हैं उनका परिमाण 5% से नीचे ही रखिए, और इसका कारण भी बहुत अच्छा ही होना चाहिए (जैसे कि सही जवाब का न मिलना, या गुस्से में जवाब न देना)।
    • मौसमी या उत्सवी उपहार समय से पहले ही ख़रीद लीजिये। आपको कम हड़बड़ी होगी और आपको परेशानी भी कम होगी; आलसी व्यक्ति को हड़बड़ी से बचने का समय रहता है।
  10. आलसी व्यक्ति शिकायत नहीं करते; पहली बात तो यह कि इसमें बहुत शक्ति व्यय होती है और दूसरी यह कि शिकायतों का स्रोत तो अन्याय की भावना, किसी चीज़ का न मिलना या थकान की भावना होती है। कम शिकायत तथा आलोचना करने से, मस्तिष्क को सृजनात्मकता तथा परिस्थितियों के लिए चतुर प्रतिक्रियाएँ देने का समय और क्षमता मिल जाती है, इसका कारण है कि शिकायतों पर ध्यान केन्द्रित करने के स्थान पर, मस्तिष्क समस्याओं के अधिक उत्पादक समाधान खोजने और समाधानों पर केन्द्रित रहता है।
    • सभी लोग कभी न कभी कराहते और आलोचना करते हैं। बस इसको आदत न बनने दीजिये और इसको पकड़ने का प्रयास करने की आदत डाल लीजिये और स्वयं को यह भी याद दिलाते रहिए कि यह आपकी कितनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहा है और कैसे आप उस समय का अधिक उत्पादक उपयोग कर आराम करने का और जो कुछ भी आपको परेशान कर रहा है उससे दूर जाने का प्रयास कर सकते हैं।
    • यदि आपके पास शिकायत करने का कोई महत्त्वपूर्ण कारण है, तब आप कराहने के स्थान पर कुछ रचनात्मक कर सकते हैं जैसे कि स्थानीय प्रतिनिधि को पत्र लिख सकते हैं या विरोध में एक बड़ा सा पोस्टर पेंट कर सकते है जिसे लेकर आप आरामदेह गद्दी पर बैठकर आप प्रदर्शन कर सकते हैं।
    • संवेदना, स्वीकृति, प्रेम, तथा समझदारी विकसित करिए। ये शिकायत के विष को नष्ट करती हैं।
    • तबाही की कल्पना करने से बचिए। वह कभी नहीं होगी और यदि होती भी है तो, क्या आपके चिंता करने से कुछ ठीक हो सकता है? शायद इतना ही हो सकता है कि आप सही साबित हो जाएँ और अपनी उंगली हिलाते हुये कह सकें “मैंने आपसे पहले ही कहा था”, परंतु भविष्य से निबटने के लिए परेशान होने के स्थान पर अन्य बेहतर तरीके भी हैं।
    • प्रवाह के साथ चलना सीखिये, सुअवसरों को खोजते रहिए, चीज़ों के स्वाभाविक ढंग को पहचानिए, और उस पल में जो भी करने की आवश्यकता हो वही करिए। आप परिणामों को तो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं परंतु यदि आप सहजता से काम करना सीख लेते हैं और घटनाओं के लिए स्वयं को रचनात्मक ढंग से तैयार कर लेते हैं (जैसे कि आपातकालीन किट को सही जगह रख लेते हैं), तब आप परिणामों से अपने ऊपर पड़ने वाले प्रभाव को बदल सकते हैं।
  11. कभी कभार, चीज़ों को फ़र्क ढंग से करिए। जानबूझ कर पूरे कपड़े पहने हुये ही सोफ़े पर सो जाइए (इसलिए नहीं कि आप इतना थके हैं कि हिल भी नहीं सकते)। अपने बच्चों के साथ मिलकर कंबलों से एक टेंट बनाइये और उसमें घिसट कर घुसिए तथा एक ढेर बनाकर सो जाइए। घास पर लेटिए और आकाश में बादलों या तारों को देखते देखते झपकी लेने लगिए। यदि आपका मन न करे तो रविवार को कपड़े पहन कर तैयार मत होइए; यह चिंता मत करिए कि पड़ोसी क्या सोचेंगे।
    • प्रवाह के साथ चलते जाइए। चीज़ों को बस होने दीजिये। ठहरिए और अपने बगैर भी चीज़ों को होने दीजिये।
    • चीज़ों के साथ ज़बर्दस्ती मत करिए। उस पानी की तरह रहिए जो सबसे कम प्रतिरोध वाली राह ढूँढता है और बढ़ते समय सभी सतहों को समतल करता जाता है।
    • जीवन के ऐसे बिन्दुओं को ढूंढिए जिनपर दबाव दिया जा सकता है न कि दीवार ही ढकेलते रहिए। खोजिए कि कहाँ सबसे कम दबाव लगाने से राह मिल सकती है। इसमें चतुराई की आवश्यकता है, यह कोई ज़िम्मेदारियों से भागने वाली बात नहीं है।
  12. यदि आपने दिन भर कठिन परिश्रम किया है, या आपका मन है कि बैठ कर कुछ न करें, तब यह गर्व से करिए। चाहे बाहर बरामदे में बैठिए, टेलीविज़न के सामने बैठिए, या जहां कहीं भी आपको सर्वाधिक आराम मिले, अपने पैर ऊपर करिए, पीछे टेक लगाइये, और कुछ नहीं करने की अनुभूति का आनंद लीजिये। बाद में की जाने वाली चीज़ों के संबंध में मत सोचिए और न ही यह चिंता करिए कि आपका आकलन कैसे किया जा रहा होगा; या तो किसी ऐसी चीज़ के बारे में सोचिए जिस पर आप मुस्कुरा सकें या कुछ मत सोचिए।
    • आलस्य को साथ पसंद है। यदि आपका कोई ऐसा घनिष्ठ मित्र है जो कि आपकी तरह पैर ऊपर करके बैठे रहने के अलावा कुछ और नहीं करना चाहता है, उसे निमंत्रित करिए और आप दोनों साथ साथ आलस्य कर सकते हैं।
    • वहाँ पर बैठे बैठे आप अपना प्रिय संगीत सुन सकते हैं, बिल्ली को सहला सकते हैं, आइसक्रीम खा सकते हैं, या जो भी आप करना चाहें कर सकते हैं।

सलाह

  • प्रति सप्ताह एक बार आलसी बनने का विचार करिए। शायद आपका रविवार, शायद कोई दोपहर या शाम। इसको केवल अपने लिए समय बना लीजिये, शांत रहने के लिए, और “किसी भी चीज़” का प्रत्युत्तर नहीं देने के लिए, चाहे शुरू में इसके कारण कितना भी अपराध बोध क्यों न हो। समय के साथ आप इस स्थान को बढ़ा लेंगे और इसके कारण जीवन में आने वाले संतुलन के लिए इसकी भरपूर रक्षा करेंगे।
  • सदैव आलसी रहने की भी एक क़ीमत है परंतु तब जब आप काम करने में चतुराई का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
  • अनेक शिकारी तथा एकत्र करने वाली जनजातियों में ऐसे पैटर्न देखे गए हैं, जहां पर जीवन की मूल आवश्यकताओं की संपूर्णता के लिए कम से कम कार्य करना होता है। चीज़ों को मूल आवश्यकताओं तक घटा लेने से समय की अवमुक्ति में बहुत लाभ होता है जिससे आप उन गतिविधियों को कर सकते हैं और उनपर विचार कर सकते हैं जिन्हें आपको करना चाहिए।
  • जिन चीज़ों को करने में आपको आनंद आता है उन्हें करने से आलस्य टूटता नहीं है। यदि आपको ऑनलाइन सामाजिकता तथा चिड़ियों और नावों के नमूनों के बारे में बात करने में आनंद आता है तब यह काम के प्रति नशा नहीं है। अलग अलग लोगों के आराम करने के तरीके फ़र्क होते हैं। नृत्य करना भी उतना ही आरामदेह हो सकता है जितना बैठे रहना। यह आपकी मानसिक स्थिति होती है – क्योंकि यहाँ पर करने में आनंद आता है न कि परिणामों की चिंता करने में।

चेतावनी

  • कुछ लोग जन्मजात “परेशान” होते हैं जिन्हें स्वयं व्यस्त रहने की तथा दूसरे लोगों की व्यस्त न रहने की आदत की आलोचना करते रहने की आवश्यकता होती है। ऐसे लोगों के लिए व्यस्त रहना एक आदत है और एक नैतिक निर्णय। आप शायद अधिकांश दिनों में ऐसे लोगों से दूर ही रहना पसंद करेंगे।
  • आलस्य को गंदगी का समकक्ष मत समझिए अन्यथा कॉकरोच आपके नए साथी हो जाएँगे। कभी कभार की बदबूदार तौलिएँ या बिना धुले बर्तन ठीक हैं; परेशानी तब होगी जब आप रसोई का द्वार इसलिए बंद रखते हैं ताकि गंदे बर्तनों की बदबू वहाँ से बाहर न निकले क्योंकि तब आपकी स्वच्छता तथा स्वयं की देखभाल की एक प्रमुख समस्या है न कि उपलब्ध समय में कम से कम काम करने की...
  • स्वयं को कुछ नहीं करने के लिए दंडित मत करिए; इसकी तो अनुमति है! यदि यह आवश्यक ही है तब इसको एक नया नाम दीजिये “आत्म उद्धार”, परंतु यह मत सोचिए कि कम काम करने के लिए और जीवन से कुछ अधिक प्राप्त करने के लिए आपको क्षमा याचना की आवश्यकता है।
  • यदि आप वर्षों तक किसी चित्रकारी जैसे शौक के साथ खेलते रहे हैं, तब आप कुशलता के ऐसे बिन्दु पर पहुँच सकते हैं जहां पर लोग यह अपेक्षा करने लगते हैं कि आप व्यावसायिक हो जाएँ। स्वयं से गंभीरता से पूछिये कि क्या आप उसे कार्य के रूप में चुनना चाहते हैं और जीवन में उसका स्थान परिवर्तित करना चाहते हैं। यदि आप किसी, सपना बन गए शौक को जीविका का साधन बना कर अपने कैरियर में परिवर्तन करना चाहते हैं, तब यह महत्वपूर्ण है कि आप उसके स्थान पर कोई नया शौक पाल लें जिसके साथ आप बिना उसके बढ़िया ही होने के परिणाम की चिंता किए, खेल सकें! हालांकि अपनी कृतियों और शौक को केवल उतना ही बेच पाना जिससे उनकी लागत निकाल आए, बजट के हिसाब से काफी है, और इससे जीवन भी सहज बना रहता है।
  • दूसरे लोगों द्वारा अपने लिए काम करवाने हेतु चालाकी या ब्लैकमेल करने से बचिए।यह आलस्य नहीं है, यह चालाकी और ब्लैकमेल है, जिससे आप दूसरों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। और जैसा कि सभी नियंत्रित करने वाली चीज़ों के बारे में सत्य है, यह एक ऐसी गतिविधि है जिसकी योजना बनाने और जिसके क्रियान्वयन में बहुत सारी ऊर्जा लगती है। इसलिए यह किसी आलसी व्यक्ति का काम नहीं है और यह घटिया कर्म भी है।

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रेफरेन्स

  1. Dan Buettner, Thrive: Finding Happiness the Blue Zones Way , p. 70, (2010), ISBN 978-1-4262-0515-6

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