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क्या आपको लगता है की काश आप ज्यादा स्मार्ट होते? या शायद आप चाहते हैं की और लोग सोचें की आप कितने स्मार्ट हैं? ये कर पाना पहली कोशिश से ज्यादा आसान लगता होगा, पर चाहे आप वाकई अपनी बुद्धिमता बढ़ाना चाहते हैं, या ज्यादा बुद्धिमान दिखने का फायदा उठाना चाहते हों, कुछ ऐसे मज़बूत कदम हैं जिनसे आप अपना उद्देश्य पूर्ण कर सकते हैं |

विधि 1
विधि 1 का 2:

अपनी बुद्धिमता (intellect) को असरदार प्रकार से बढ़ाना

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  1. पहले लोग सोचते थे की बुद्धिमानी एक स्थिर वस्तु है, और उसे किसी भी कोशिश से भी बढ़ाया नहीं जा सकता है | लेकिन मोजूदा समय के सबूतों से पता चलता है की ये शायद सच नहीं है; शायद कोई कम बुद्धिमान व्यक्ति कभी जीनियस नहीं बन सकता है, पर ये संभव है की वह कोशिश कर अपनी बुद्धिमानी को कुछ हद तक मज़बूत कर सकता है | [१] ये प्रक्रिया नए शब्द सीखने जैसा आसान नहीं, लेकिन अपने आस पास की दुनिया के साथ ज्यादा गहरायी और सोच के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए समय और मेहनत दोनों लगती है |
  2. लोग सबसे ज्यादा तब सीखते हैं जब वह अपने विषय को लेकर मन में संजीदा होते हैं | [२] अगर आप किसी को लेकर मन में बहुत पैशनेट हैं, तो आप उसे ज्यादा गहरायी से समझ सकते हैं; यही एक प्रकार से केद्रित और निरंतर खोज करने की इच्छा ही बुद्धिमता को बढाती है | असली बुद्धिमता का मतलब है कई सारे विषयों के उपरी ज्ञान के बजाय सिर्फ कुछ विषयों को गहरायी से समझना | [३] क्या अल्बर्ट आइंस्टीन फिजिक्स (Physics), एंथ्रोपोलॉजी (Anthropology), लिंग्विस्टिक्स (Linguistics), जियोलॉजी (Geology), पशु व्यवहार (animal behaviour) और साहित्य (literary criticism) सभी में बराबर निपुण थे? बिलकुल नहीं | सभी विषयों में प्रांगण होने की कोशिश करना मतलब एक को भी सीख नहीं पाना; अगर आप सब चीज़ों को थोड़ा थोड़ा करके सीखेंगे, तो वाकई में आप अंत में कुछ भी नहीं सीख पाएंगे |
  3. अगर आपको तकलीफ नहीं हो रही है, तो इसका मतलब आप अपने को सही से प्रेरित नहीं कर रहे हैं | सीखना पीड़ादायक नहीं होना चाहिए | हाँ लेकिन, उससे आपको अंत में ख़ुशी मिलनी चाहिए, जो की बिना मेहनत के तो नहीं हो पायेगा | अपने को नए विचार सीखने के लिए और नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करें | [४]
  4. इसे “मेटाकॉग्निशन (metacognition),” भी कहते हैं और ये कुछ ऐसा है जिसमें बुद्धिमान व्यक्ति अपनी क़ाबलियत ज़ाहिर करते हैं | मेटाकॉग्निशन आपको ये जानने में मदद करता है की आप कैसे सीख सकते हैं, और कैसे आप इन तरीकों को एक मौके से दूसरे में प्रयोग कर सकते हैं | उदाहरण के तौर पर, अगर आप ये समझ गए की जब आप खुद पढ़ते हैं, तो ज्यादा असरदार रूप से पढ़ पाते हैं, तो आपको ये पता चल जायेगा की फाइनल एग्जाम के लिए आपको किसी स्टडी ग्रुप का हाथ थमने की ज़रुरत नहीं है | [५]
  5. कई बार लोग भूल जाते हैं की दिमाग भी किसी और शरीर के हिस्से की तरह ही हैं | जिस तरह आपकी त्वचा नहाने की वजह से और आपके फेफड़े धूम्रपान नहीं करके स्वस्थ रहते हैं, एक शारीरिक रूप से सचेत दिमाग भी नज़रंदाज़ किये गए दिमाग से ज्यादा बेहतर काम करता है | आपको ये देख कर हैरानी होगी की अगर आप अच्छी मात्रा में नींद और व्यायाम करेंगे, और फल और सब्जी पर्याप्त मात्रा में खायेंगे तो आप जानकारी को बहुत अच्छे तरीके से संचालित कर पाते हैं | [६]
  6. इससे आपका दिमाग भाषाओँ को समझने के लिए अर्थों के प्रयोग से जुड़े नए तरीके ढूँढेगा जिससे आप की समझ और सोच दोनों बहुत बेहतर होगी | उस भाषा के बारे में सोचने से आप अपनी पहली भाषा की समझ को सुधार पाएंगे, और नए शब्द सीखने से आपकी याददाश्त भी सुधरेगी | [७]
  7. ऐसा करना आपके दिमाग की कोगनिटिव प्रोसेसिंग (cognitive processing) की क्षमता में बढ़त लाता है और आपको नयी जानकारी पाने और बांटने में और सक्षम बनाने के तरीके सिखाता है | इससे आपकी याददाश्त अच्छी होती है, तनाव कम होता है, जो की दिमागी बढ़त को रोकने में बहुत बढ़ा योगदान देता है | [८]
  8. वैसे तो आस पास हो रही घटनाओं से खुद को अवगत रखना आपकी बुद्धिमानी को शायद नहीं बढाए, लेकिन फिर भी एक जागरूक, बुद्धिमान व्यक्ति ही अपने आस पास के माहौल से ताल मेल बिठाना चाहता है | नए विचार आने के मतलब है पुराने पर भी काम करना, इसलिए इस दुनिया की समस्याओं को समझना और ये जानना की लोग उसका हल कैसे निकाल रहे हैं हमेशा समझदारी का काम होता है | याद रखें की सभी समाचार के सोत्र अपनी राय भी पेश करते हैं; तो इसलिए कई स्थानों से उस समाचार को प्राप्त करें, और किसी भी बात को इसलिए सच नहीं मान लें क्योंकि वह समाचार पत्र में लिखी गयी थी |
  9. हमें जितनी आसानी से जानकारी मिलती है उसने हमारे जीवन को बहुत आसान तो बना दिया है लेकिन उतना ही हमारी बेफ्कूफियों को बढ़ा दिया है | उदहारण के तौर पर जिस तरह 2000 के दशक में जन्मे (मिल्लेनिअल) व्यक्ति के दिमाग एक मैप को पढ़ते और समझते हैं वो जिस प्रकार उनके माँ बाप उसको समझते हैं उससे बहुत कमज़ोर है | ऐसा इसलिए क्योंकि ये मिल्लेनिअलस जीपीएस की मदद से रास्ता ढूंढते हैं, जबकि उनसे पहले की पीड़ी रास्ता ढूँढने के लिए एटलस का इस्तेमाल करती | उसी तरह, अगर नहीं याद आ रहा है की एक शब्द का क्या अर्थ है, तो इनमें से कई लोग बैठ कर ध्यान से याद करने के बजाय तुरंत गूगल कर लेंगे | अपने दिमाग की जानकारी को याद करने की क्षमता को बढ़ाने के बजाय, वह बिना सोचे कम मेहनत करके जवाब पाने की कोशिश करते हैं | अपने फ़ोन पर कम और दिमाग पर ज्यादा निर्भर होने की कोशिश करें | [९]
  10. नए विचारों को सिर्फ इसलिए नहीं त्याग दें क्योंकि वह अलग हैं, आप भ्रमित हो रहे हैं, आपको डर लग रहा है, या वो आपकी दुनिया के बारे में सोचने के तरीके को भ्रमित या बदलना चाहता है- इंसानी दिमाग की दो विपरीत विचारों को एक ही साथ समझने की कोशिश को 'कोगनिटिव डीस्सोनांस (Cognitive Dissonance)' कहते हैं | अपने विचारों में परिवर्तन लाने के लिए तैयार रहे | अपनी गलती को मान लेने की क़ाबलियत ही एक बढ़िया दिमाग की पहचान है |
  11. जागरूक होना और बेखबर होना एक बात नहीं है; असल में बुद्धिमान लोग हमेशा सवाल पूछते हैं | बिलकुल वैसे जैसे कोई भी समझदार औरत ये जानती है की उसे सब कुछ नहीं मालूम | जब आप कोई नयी कला सीखना शुरू करते हैं, तो शुरू में आप उसमें अच्छे नहीं होंगे | ये स्वाभाविक है | अगर आप शुरू में किसी काम में बार बार गलती कर रहे हैं, बाद में आप उसमें बेहतर हो ही जायेंगे | अपने ज्ञान में मोजूद इन कमियों को अपनी खोज और बढ़त हासिल करने की क्षमता को बढ़ाने का रास्ता समझें |
विधि 2
विधि 2 का 2:

ज्यादा बुद्धिमान दिखना

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  1. नए शब्द सीखना कोई बहुत बढ़ा काम नहीं है, लेकिन कुछ प्रभावी शब्दों और ग्रामर के हेर फेर से आप अपने को बुद्धिमान दिखा सकते हैं | एक शब्द एक दिन (one word a day) सीखने वाला एप्प डाउनलोड कर लें, या बस कुछ फ़्लैश कार्ड बना लें | अपनी बातचीत में मोजूद कुछ आम ग्रामर की गलतियों की पहचान कर उन्हें सुधारे | आप अपनी बातचीत में ऐसे साहित्यिक कहावतों का प्रयोग कर सकते हैं जिनसे आप अकल्मन्द दिखें | याद रखें की प्रभावी शब्दों का प्रभाव तब पड़ता है जब आप उनका सही प्रयोग करें-मसलन "जक्स्टापोजीशन(juxtaposition)" कह देने से कोई फायदा नहीं होगा अगर आपको उसका मतलब या सही उच्चारण नहीं मालूम है |
  2. जिस तरह से अगर कोई बार बार ये कहे की वो भेदभाव नहीं करता है तो लोग सोचने लगते हैं की वह ऐसा करता होगा, अगर आप सब को अपनी अकलमंदी दिखा कर प्रभावित करने की कोशिश करते रहेंगे, तो लोग सोच में पड़ जायेंगे | इसके बजाय अगर आप विनम्र और कम बातचीत करने वाले बनेंगे, तो लोग सोचेंगे की आप किसी गहरी सोच में डूबे हैं | ऐसा करने का एक अच्छा मौका तब मिलता है जब कोई एक समूह में हो रही बातचीत के दौरान गलत बात कहता है | अगर आप एक दम से बीच में कूद कर उसे सही करने लग जायेंगे तो लोग आपको बुद्धिमान के बजाय अधम समझेंगे | इसके बजाय उन्हें ये काम करने दें – उस समय शांत रहे, कही हुई बात को समझें, और जब बात बिगडती लगे तब, उसे आगे बढाएं | इससे ऐसा लगेगा की आपको ऐसे अजीब सी बात का जवाब देने का कोई तरीका नहीं नज़र आया था और इसलिए उस व्यक्ति को बेईज्ज़ती से बचाने के लिए आप चुप हो गए |
  3. लोग स्वाभाविक तौर पर ये मानते हैं की अगर आप सही से कपड़े पहनते हैं और अच्छे तरीके से बात करते हैं तो आप उन लोगों से ज्यादा बुद्धिमान हैं जो रुक रुक के बात करते हैं | आप चाहें तो चश्मा पहनने की भी सोच सकते हैं | ये वैसे तो बेवकूफाना लगता है, पर जब लोगों को ये दिखाना है की आप बुद्धिमान हैं, तो दो से चार आँखें ज्यादा कारगर साबित होती हैं | [१०]
  4. फिर से बेवकूफाना लगेगा, और शायद है भी लेकिन ऐसे सबूत मिले हैं की खुद को सिद्दार्थ रॉय कपूर के बजाय सिद्दार्थ आर कपूर पेश करने से आप और लोगों को बुद्धिमान लगेंगे | [११] अगर आप इस बात का फायदा उठाना चाहते हैं, तो एक अक्षर जोड़ दें, क्योंकि ये ऐसे ही काम करता है | [१२]

विकीहाउ के बारे में

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