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इमोशनल इंटेलिजेंस (EQ) आपकी अपनी भावनाओं तक पहुँचने की वह क्षमता है, जिससे कि आप अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। अपनी भावनाओं को निकट रख आप अपने मानसिक तनावों को नियंत्रण में रख सकते हैं और लोगों के साथ प्रभावशाली संबंध बना सकते हैं, अर्थात वे दो कौशल बढ़ सकते हैं जो कि आपके जीवन को व्यक्तिगत रूप से और व्यावसायिक रूप से परिवर्धित कर सकते हैं। IQ की तरह नहीं, जो कि सारे जीवन एक जैसा ही बना रहता है, EQ को समय के साथ विकसित और पैना किया जा सकता है। अपनी इमोशनल इंटेलिजेंस को विकसित करने के तरीकों को जानने और उसे शीघ्र बढ़ाने के लिए पहले चरण से देखना शुरू कीजिये।

विधि 1
विधि 1 का 3:

अपनी भावनाओं में झांकना

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  1. घटनाओं के संबंध में अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नोट करिए: आप के लिए, जो कुछ भी दिन भर में होता है, उसके कारण उत्पन्न हुई भावनाओं को किनारे रख पाना सरल कार्य होता है। मगर समय निकाल कर अपने अनुभवों से उत्पन्न भावनाओं को स्वीकार करना, आपके EQ में अभिवृद्धि के लिए आवश्यक है। यदि आप अपनी भावनाओं की उपेक्षा करते हैं, तो आप वास्तव में उस सूचना की उपेक्षा कर रहे होते हैं, जिसका अत्याधिक प्रभाव आपके मनोभावों पर और आपके व्यवहार पर पड़ता है। अपनी भावनाओं पर अधिक ध्यान देना शुरू करिए और उन्हें अपने अनुभवों से जोड़ने पर भी। [१]
    • जैसे कि, मान लीजिये कि आप अपने काम पर हैं और आपकी बातों को एक मीटिंग में ठुकरा दिया जाता है। जब यह होता है, तब क्या भावनाएँ उत्पन्न होती हैं? दूसरी ओर, जब अच्छे काम के लिए आपकी प्रशंसा होती है तब आपको कैसा लगता है? अपनी भावनाओं को नामित करने के अभ्यास से, जैसे कि दुख, परेशानी, प्रसन्नता, संतुष्टि या कोई भी अन्य, आपका EQ तुरंत ही बढ़ना शुरू हो जाएगा।
    • दिन के किसी भी निश्चित समय पर अपनी भावनाओं को झांक कर देखने की आदत डाल लीजिये। जागते ही आपकी प्रथम भावनाएँ क्या होती हैं? और सोने जाने से पहले, अंतिम?
  2. अपनी भावनाओं के भौतिक लक्षणों की उपेक्षा करने के स्थान पर, उन पर ध्यान देना प्रारंभ करिए। हमारा शरीर और विचार अलग अलग नहीं हैं; वे एक दूसरे को गहराई से प्रभावित करते हैं। अपनी भावनाओं के शारीरिक संकेतों को समझ पाने से आप अपना EQ बढ़ा सकते हैं। [२] जैसे कि:
    • तनाव, पेट में गांठ जैसा लगता है, सीने में जकड़न होती है और सांस तेज़ चलने लगती है।
    • दुख से लग सकता है कि जैसे नींद से उठने पर हाथ पैर शिथिल हो गए हों।
    • खुशी या प्रसन्नता से लग सकता है, जैसे पेट में हलचल हो, दिल की धड़कन बढ़ जाये या ऊर्जा का आधिक्य हो जाये।
  3. देखिये कि आपकी भावनायेँ और व्यवहार कैसे एक दूसरे से जुड़े हुये हैं। जब आपकी भावनाएँ ज़ोर मारती हैं, तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है? यूं ही बिना सोचे, स्वाभाविक प्रतिक्रिया करने के स्थान पर, अपनी दिन प्रतिदिन की परिस्थितियों की घटनाओं के संबंध में, अपनी प्रतिक्रियाओं को ज़रा ध्यान से देखिये। जितना अधिक आप अपने प्रत्युत्पन्न व्यवहार को समझ पाएंगे, उतना ही अधिक आपका EQ होगा, और जो भी आप जानते हैं, उसका उपयोग आप अपने भविष्य के व्यवहार को बदलने के लिए लगा पाएंगे। यह कुछ उदाहरण हैं आपके व्यवहार और उसके पीछे क्या है:
    • परेशान या असुरक्षित महसूस करने के कारण आप बातचीत से अलग हो जाते हैं और स्वयं को परिस्थिति से अलग कर लेते हैं।
    • नाराज़गी के कारण आप आवाज़ ऊंची कर लेते हैं या पैर पटकते हुये वहाँ से चले जाते हैं।
    • पूरी तरह से हार जाने की भावना होने पर आप भयभीत हो सकते हैं, क्या कर रहे हैं, यह भूल सकते हैं या रो देते हैं।
  4. आपकी सभी भावनाएँ सही हैं, यहाँ तक कि नकारात्मक भावनाएँ भी। यदि आप अपनी भावनाओं का आकलन करेंगे, तब आप अपनी महसूस कर पाने की क्षमता को अवरुद्ध कर बैठेंगे, और तब भावनाओं के सकारात्मक उपयोग को और भी कठिन बना देंगे। इसको ऐसे सोचिए: आपकी प्रत्येक भावना आपके विश्व में होने वाली किसी न किसी चीज़ से सम्बद्ध नई जानकारी होती है। इस जानकारी के बिना, आप को पता ही नहीं चलेगा कि कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए। इसीलिए, भावना होने की क्षमता, एक प्रकार की इंटेलिजेंस होती है।
    • शुरू में यह कठिन होता है, मगर छोटे छोटे नकारात्मक भावों को उभरने का अवसर दीजिये और जो भी हो रहा है, उससे उन्हें सम्बद्ध करिए। जैसे कि, यदि आप तीव्र ईर्ष्या का अनुभव करते हैं, तब वह भावना आपकी परिस्थिति के संबंध में क्या बता रही है?
    • सकारात्मक भावनाओं को भी पूरी तरह से अनुभव करिए। अपनी खुशी या संतुष्टि को, जो भी आपके चारों ओर हो रहा है, उससे जोड़िए, ताकि आप अक्सर वैसा ही महसूस कर सकें।
  5. अपने भावनात्मक इतिहास में पैटर्न पर ध्यान दीजिये: यह अपनी भावनाओं के संबंध में और कैसे वे आपके अन्य अनुभवों से जुड़ी हैं, इसे सीखने का दूसरा तरीका है। जब आपमें भावनाओं की जोरदार लहर उठे, तब स्वयं से पूछिये कि पिछली बार कब आपने ऐसा महसूस किया था। और उसके पहले, बाद में, और उसके दौरान क्या क्या हुआ था।
    • जब आप पैटर्न समझ लेते हैं, तब आप का नियंत्रण अपने व्यवहार पर बढ़ जाता है। देखिये, कि पहले आपने वैसी ही परिस्थिति का सामना कैसे किया था, और अगली बार आप कैसे उसका सामना करना चाहेंगे।
    • अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की या आप दिन प्रतिदिन कैसा महसूस करते हैं, इसकी एक डायरी बनाइये, ताकि आप स्पष्ट रूप से देख सकें कि आपकी अभिवृत्ति किस प्रकार की प्रतिक्रिया करने की है।
  6. आपकी भावनाएँ क्या होंगी इस पर तो आपका नियंत्रण नहीं होता है, लेकिन आप अपनी दुनिया में होने वाली चीज़ों से जुड़े रह सकते हैं। इस जानकारी के बिना, आप अपने आप को किसी अँधेरे में पाएंगे कि कैसे पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया की जाए। इसीलिए आपकी भावनाओं को महसूस करने की क्षमता बुद्धिमत्ता का एक रूप है।
    • यह पहली बार में कठिन है, लेकिन नकारात्मक भावनाओं को सतह देने और उन्हें जो हो रहा है उससे जोड़ने का अभ्यास करें। उदाहरण के लिए, यदि आप कड़वा ईर्ष्या महसूस करते हैं, तो वह भाव आपकी स्थिति के बारे में क्या बता रहा है?
    • पूरी तरह से सकारात्मक भावनाओं का भी अनुभव करते हैं। अपने आस-पास क्या हो रहा है, इसके लिए अपनी खुशी या संतुष्टि को कनेक्ट करें, ताकि आप सीख सकें कि अधिक बार कैसे महसूस किया जाए।
  7. आपकी भावनाएँ क्या होंगी इस पर तो आपका नियंत्रण नहीं होता है, मगर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी यह आप निर्धारित कर सकते हैं। यदि आप आदतन क्रोध में फट पड़ते हों या ठेस लगने पर स्वयं को सबसे अलग थलग कर लेते हों, तब सोचिए कि आप इसके अलावा क्या प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। स्वयं को भावनाओं के बोझ से दबा डालने के स्थान पर, यह तय करिए कि अगली बार जब भावनाओं का ज्वार उठेगा, तब आप कैसा व्यवहार करेंगे।
    • जब आपके जीवन में कुछ नकारात्मक घटित होता है, तब कुछ क्षण ठहर कर अपनी भावनाओं का जाएज़ा लीजिये। कुछ लोग कहते हैं कि अभी उनके ऊपर से दुख की या क्रोध की एक लहर गुज़र कर गई है। जब एक बार वह लहर गुज़र जाती है, तब यह निर्णय लीजिये कि आप कैसा व्यवहार करना चाहते हैं। अपनी भावनाओं को दबाने के स्थान पर उनको प्रदर्शित कर दीजिये या हार मान लेने के स्थान पर फिर से प्रयास शुरू करिए।
    • पलायनवादी आदतों की ओर मत मुड़ जाइए। बुरी भावनाओं को पूरी तरह से सतह तक आने देना उतना सरल नहीं है और बहुत से लोग पीड़ा को सुन्न कर देने के लिए बहुत अधिक पीना, टी वी देखना या अन्य उसी प्रकार की आदतें पाल लेते हैं। ऐसा अक्सर करने से, EQ नीचे आना शुरू हो जाएगा।
विधि 2
विधि 2 का 3:

दूसरों के साथ सम्बद्ध हो जाइए

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  1. जब बात इमोशनल इंटेलिजेंस की हो तब खुला दिमाग और मनमोहन साथ साथ होते हैं। बुद्धि का छोटापन सामान्यतः कम EQ का संकेत होता है। जब आपका मस्तिष्क समझदारी और आंतरिक विचारशीलता के कारण खुला होता है, तब संघर्षों का सामना शांति और आत्मविश्वास के साथ करना, आसान हो जाता है। आप, स्वयं को सामाजिक रूप से अधिक चेतन पाएंगे और नई संभावनाएँ भी आपके सामने आएंगी। अपने EQ के इस पक्ष को मजबूत करने के लिए इन पर विचार करिए:
    • रेडियो या टी वी पर वाद विवाद सुनिए। तर्क के दोनों पक्षों पर विचार करिए और उन सूक्ष्मताओं पर ध्यान दीजिये जिन का गहन निरीक्षण करने की आवश्यकता है।
    • जब कोई दूसरा व्यक्ति भावनात्मक रूप से आपके जैसी प्रतिक्रिया नहीं देता है, तब विचार करिए कि ऐसा क्यों है, और उसको उनके दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करिए।
  2. समानुभूति का अर्थ है, यह समझ पाना कि दूसरे कैसा महसूस कर रहे हैं और उनकी भावनाओं को उनके साथ बांटना। [३] सक्रिय श्रोता होने से और लोगों की बात ध्यान से सुनने से आपको उनकी भावनाओं को समझने में सहायता मिलेगी। जब आप उस सूचना का इस्तेमाल अपने निर्णयों को और सम्बन्धों को सुधारने में करते हैं, तब यह इमोशनल इंटेलिजेंस का लक्षण होता है।
    • समानुभूति में सुधार के लिए, दूसरे व्यक्ति के जूते पहन कर तो देखिये। सोचिए कि यदि आप उनकी परिस्थिति में होते तो आपको कैसा लगता। सक्रिय रूप से विचार करिए कि उनके अनुभवों से गुजरना, कैसा लगेगा और सहायता और परवाह करने से कैसे उनकी परेशानियाँ कम हो सकती हैं।
    • जब आप किसी को भावनाओं के ज्वार में देखिये, तब स्वयं से पूछिये, “उन्हीं परिस्थितियों में मेरी प्रतिक्रिया क्या होती?”
    • लोगों की बातों में वास्तव में रुचि रखिए ताकि आप संवेदनापूर्ण ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें। अपने विचारों को भटकने देने के स्थान पर, प्रश्न पूछिये, और जो वे कह रहे हैं उसका संक्षिप्तीकरण करिए ताकि आप बातचीत में शामिल दिखें।
  3. लोगों के चेहरे को पढ़ कर तथा उनके अन्य हाव भावों को देख कर उनकी बात के छुपे हुये मतलब निकालने को और उनकी वास्तविक भावनाओं को जान लेने को, महत्व दीजिये। अक्सर, लोग जो कहते हैं, उनके चेहरे को देखने से पता चल जाता है कि उसका अर्थ वही नहीं है। प्रयास करिए कि आप की पर्यवेक्षण की क्षमताएँ बढ़ें और लोगों के भावों के सम्प्रेषण के छुपे तरीकों को भी आप पहचान सकें।
    • यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं कि आपमें चेहरे को पढ़ पाने की उतनी क्षमता है, तब यह जानने के लिए, कि सुधार की गुंजाइश कहाँ पर है, यह एक क्विज ले कर देखिये। [४]
    • व्यक्ति के बात करने के लहजे से भी पता चल जाता है। ऊंची आवाज़ से पता चल जाता है कि व्यक्ति परेशान है।
  4. जहां तक EQ का प्रश्न है, दूसरों की भावनाओं को समझ पाना केवल आधी लड़ाई जीतने का बराबर है; आपको यह भी समझना है कि दूसरों पर आपका असर क्या पड़ रहा है। आप लोगों को परेशान, खुश या नाराज कर देते हैं? जब आप कमरे में घुसते हैं तो वहाँ चल रही बातचीत को क्या होता है?
    • सोचिए कि आपको किन पैटर्न में परिवर्तन की आवश्यकता होगी। यदि आप अपने परिजनों से जल्दी ही झगड़ पड़ते हैं, आपकी गर्लफ्रेंड आपसे बातचीत के दौरान अक्सर रो पड़ती है, या जब आप आस पास होते हैं तब लोग आम तौर पर चुप ही रहते हैं, तब तो शायद आपको अपने नज़रिये में परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि लोगों पर आपका बेहतर भावनात्मक असर पड़ सके।
    • विश्वसनीय मित्रों और परिजनों से पूछिये कि आपके भावनात्मक प्रभाव के बारे में उनके क्या विचार हैं। आपको शायद दूसरों पर पड़ने वाले अपने प्रभावों को पहचान पाने में कठिनाई हो सकती है, मगर वे आपकी सहायता कर सकते हैं।
  5. यदि आप कहते तो हैं कि आप ठीक हैं, मगर आपके त्योरीयां चढ़ी होती हैं, तब तो आप ईमानदारी से सम्प्रेषण नहीं कर रहे हैं। अपनी भावनाओं के खुले प्रदर्शन का अभ्यास करिए, ताकि लोग आपको अच्छी तरह से समझ सकें। जब आप परेशान हों, तब लोगों को बताइये, और साथ ही अपनी खुशी और प्रसन्नता भी उनके साथ बाँटिए।
    • ”स्वयं ही बने रहना” आपको जानने में दूसरे लोगों की सहायता करता है, और वे आप पर तब और भी अधिक विश्वास करते हैं जब वे जान जाते हैं कि आप हैं कौन।
    • मगर यह समझ लीजिये कि इसकी भी एक सीमा है: अपनी भावनाओं पर इतना नियंत्रण रखिए, कि उनसे किसी को ठेस न पहुंचे।
विधि 3
विधि 3 का 3:

EQ के व्यावहारिक उपयोग

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  1. [५] जीवन में मानसिक रूप से सक्षम होना महत्वपूर्ण है, मगर भावनात्मक रूप से चतुर होना भी उतना ही आवश्यक है। उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस होने से संबंध बेहतर हो सकते हैं और कार्य के अवसर भी अच्छे मिल सकते हैं। इमोशनल इंटेलिजेंस के चार मूल तत्व हैं, जो जीवन को संतुलित बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसे पढ़िये और देखिये कि आपमें कहाँ सुधार की संभावनाएँ हैं, और तब उस क्षेत्र में अपना कौशल बढ़ाने के लिए अभ्यास करिए: [६]
    • स्वयं के संबंध में जागरूकता: अपनी भावनाओं को, जैसी भी हैं, पहचान पाना और उनके मूल कारणों को समझ पाना। स्वयं के संबंध में जागरूकता का अर्थ है अपनी मजबूती और अपनी सीमाओं की जानकारी होना।
    • आत्म प्रबंधन: आत्म संतुष्टि को विलंबित करने की क्षमता, अपनी आवश्यकताओं को दूसरों के साथ संतुलित करना, और स्वयं के प्रयास से आवेग पर नियंत्रण कर पाना। आत्म प्रबंधन का अर्थ है परिवर्तन का सामना कर पाना और फिर उसके लिए प्रतिबद्धता।
    • सामाजिक चेतना: दूसरों के मनोभावों और चिंताओं से एकताल होने की क्षमता, तथा साथ ही सामाजिक संकेतों को समझ कर उनके अनुसार अपने को ढाल लेने कि क्षमता। सामाजिक रूप से सचेत होने का अर्थ है कि किसी भी समूह में अथवा व्यवस्थापन के संदर्भ में सत्ता की गतिशीलता को समझ पाना।
    • संबंध प्रबंधन: लोगों के साथ अच्छे संबंध बना पाना, संघर्ष प्रबंधन, लोगों को प्रेरित एवं प्रभावित करना और स्पष्ट सम्प्रेषण।
  2. तनाव बहुत बढ़िया शब्द है जो कि अनेक मनोभावों के कारण उत्पन्न भारी भरकम भावनाओं के लिए उपयोग किया जाता है। जीवन में कठिन परिस्थितियों की भरमार होती है, सम्बन्धों के टूटने से ले कर नौकरी छूटने तक। इनके बीच में अनेक तनाव बढ़ाने वाले कारण होते हैं, जो कि दैनिक जीवन को, जितना वह है, उससे कहीं अधिक, चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। यदि आप बहुत तनाव में हैं, तब तो जैसे आप चाहते हैं, वैसे व्यवहार कर पाना कठिन हो जाता है। तनाव से छुटकारा पाने की बढ़िया योजना EQ के सभी पक्षों को सुधार देती है।
    • तनाव के कारणों का पता लगाइये, और यह भी कि उनमें आराम कैसे मिल सकता है। तनाव से आराम दिलाने के तरीकों की सूची बनाइये, जैसे मित्र के साथ रहना या बाग में टहलना, और फिर उसका भली भांति उपयोग करिए।
    • यदि आवश्यक हो तो सहायता प्राप्त करिए। यदि आपका तनाव अकेले निबटने के विचार से बहुत भारी भरकम लगें तो, किसी चिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की सहायता लीजिये जो कि आपको उसका सामना करने के लिए साधन उपलब्ध करवा सकता है (और इस प्रक्रिया में आपका EQ बढ़ाने में आपकी मदद कर सकता है)।
  3. [७] जब आप आशावादी होते हैं, तब जीवन में, और दिन प्रतिदिन की वस्तुओं में सौन्दर्य देख पाना और उस भावना को अपने आस पास वालों में फैला पाना सरल होता है। आशावादिता का परिणाम होता है भावनात्मक सुख और बढ़े हुये सुअवसर – लोग आशावादी व्यक्ति के इर्द गिर्द रहना चाहते हैं और यही उन्हें आपकी ओर आकृष्ट करता है, उन सभी संभावनाओं के साथ जो कि बढ़े हुये संबंध आपके लिए लाते हैं।
    • नकारात्मकता लोगों को लचीलेपन के स्थान पर, क्या कुछ गड़बड़ हो सकता है, इस पर ही ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रेरित करती है।
    • उच्च EQ वाले व्यक्ति जानते हैं कि स्वयं को और अन्य लोगों को सुरक्षित एवं प्रसन्न महसूस कराने के लिए मज़ाक और हास्य का प्रयोग कैसे किया जाये। कठिन समय को निकालने के लिए हास्य का प्रयोग करिए।

सलाह

  • मायूस मत होइए – सदैव याद रखिए कि लगातार प्रयासों तथा खुलेपन और अपनी आदतों को बदलने के लिए तैयार होने से, इमोशनल इंटेलिजेंस में, चाहे वह कितनी भी नीचे या ऊंची क्यों न हो, अभिवृद्धि संभव है।
  • यदि आपका EQ उच्च है तब ऐसे कामों के संबंध में विचार करिए, जिनमें नियमित रूप से लोगों से बातचीत करने की आवश्यकता हो तथा ऐसे काम भी जिनमें अन्य लोगों से संबंध रखने और बनाने की आवश्यकता पड़ती हो।
  • इमोशनल इंटेलिजेंस अपनी भावनाओं पर नियंत्रण से अधिक भी कुछ है। यह है स्वयं पर नियंत्रण।
  • कुछ चीजों का विश्लेषण अन्य चीजों से अधिक करने की आवश्यकता हो सकती है।

चेतावनी

  • उच्च IQ होना उच्च EQ सुनिश्चित नहीं करता है।
  • खुले दिमाग का होने का यह अर्थ धर्मांधता, उत्पीड़न या जातिसंहार को भी समान मूल्य देना नहीं है। इसका अर्थ है, यह समझ पाना कि कोई किसी विशेष प्रकार के लोगों से इतना भयभीत क्यों है कि उन्हें समाप्त ही कर देने की आवश्यकता महसूस कर रहा है।

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