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जीवन आत्मसुधार का एक सतत श्रम है और इसके कारण कुछ फोकस किये गये वर्ग क्षेत्र अधिक शिक्षित बन रहे हैं और कार्यस्थल की श्रेणी में बढ़ोतरी हो रही है | कभी-कभी हम खुद के साथ और अपने चारों ओर के लोगों के साथ किये जाने वाले व्यवहार को सुधारना भूल जाते हैं | कुछ हासिल करने की भीड़ में, महत्वकांक्षाओं और स्वार्थ के कारण “बेहतर” बनाने का उपाय खो सकता है | अपनी आत्मा और अपने व्यवहार को स्वयं और दूसरों के प्रति बेहतर बनाने की यात्रा यहाँ से शुरू होती है।

विधि 1
विधि 1 का 3:

शुरुआत करें

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  1. “बेहतर इंसान बनना” एक प्रक्रिया है जिसमे शायद आपकी बांकी बची हुई सारी जिन्दगी लग जाएगी | यह कोई एक विशेष लम्हा नहीं है जिसमे आप सब कुछ एक साथ पा लें और आगे वृद्धि के लिए कोई जगह न बचे | बदलाव की प्रक्रिया और वृद्धि के लिए खुद को खोलें जिससे आपको लचीलापन या नम्यता विकसित करने में मदद मिलेगी और प्रत्येक स्थिति में आप जिस प्रकार के इंसान बनाना चाहते हैं उसकी कुंजी नम्यता ही है | [१]
  2. अपने मूल्यों को पहचानें | जब तक आपके पास अपने मूल्यों की ठोस समझ है तब तक सबसे अच्छे इंटेंनशन कही नहीं खो सकते | [३] ”मूल्य” आपके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं | ये मूल विश्वास हैं जो आपको एक व्यक्ति के रूप में आकार देते हैं और जीवन जीना सिखाते हैं | [४] अपने मूल्यों को प्रतिबिंबित करने से आप जान पाएंगे कि वास्तव में आपके लिए क्या ज़रूरी है |
    • उदाहरण के लिए, “एक अच्छे अभिभावक होना” या “दोस्तों के साथ समय बिताना” मूल्य हो सकते हैं | ये वो चीज़ें हैं जो आपके को सबसे अच्छे भावों को परिभाषित करने में मदद करती हैं |
    • “अनुरूपता का महत्व समझें | अपने व्यवहार को अपने मूल्यों के साथ पंक्तिबद्ध करें | उदाहरण के लिए, अगर आपके लिए “दोस्तों के साथ समय बिताना” महत्वपूर्ण है, लेकिन सामाजिकता निभाने के समय पर आप हमेशा काम को प्राथमिकता देते हैं तो यह अनुरूपता का महत्व नहीं है | अनुरूपता के महत्व से रहित व्यवहार के कारण आप असंतुष्ट, नाख़ुश और ग्लानि अनुभव कर सकते हैं | [५]
  3. हमारी पहचान हमेशा हमारे चारों ओर के लोगों के द्वारा आकार लेती है | [६] उदाहरण के लिए, मनोवाज्ञानिक अद्ध्यनों में बार-बार सिद्ध किया गया है कि लोग बहुत कम उम्र में पक्षपात करना या पूर्वधारणा को सीखना शुरू कर देते हैं | [७] इस प्रकार के सीखे गये व्यवहार और विश्वास से हमारे खुद को समझने अपने चारों ओर के लोगों को समझने का रास्ता प्रभावित होता है | आपके खुद के बारे में आने वाले अपने विचारों को समझें जिससे आपको बेकार के विचारों को संशोधित करने में मदद मिल सकती है और उनमे से जो सही लगें उन्हें आत्मसात करें |
    • हम दूसरों से भी सीख सकते हैं कि बड़े समूहों जैसे जाति या लिंग पर आधारित समूहों से खुद को किस तरह जोड़ें | ये हमारी खुद की पहचान के आवश्यक तत्व बन सकते हैं | [८]
  4. देखें कि तनाव के समय आप किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं, नुकसान से किस तरह निपटते हैं, अपना गुस्सा किस तरह संभालते हैं, अपने प्रियजनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं | आगे कैसे बढ़ें, ये जानने से पहले ये समझें कि अभी आप कैसे हैं |
    • एक बार आप अपने व्यवहार को प्रतिबिंबित करें | इससे आप जैसे बनाना चाहते हैं वैसे बदलाव लाने के बेहतर विचार पा सकते हैं |
  5. संभव हो तो विशिष्ट बनने की कोशिश करें | “मैं एक अच्छा दोस्त बनना पसंद करूँगा” कहने के बजाय इसे अलग अलग हिस्सों में बाँट दें |
    • अविष्कारक और उद्यमी स्टीव जॉब्स ने एक बार कहा था कि वो खुद से रोज़ सुबह एक सवाल करते थे:”अगर आज मेरी जिंदगी का आख़िरी दिन हुआ तो आज में जो करना चाहता हूँ वो करूँ?” अगर जबाव “हाँ” नहीं मिलता था तो वे बदलाव करने का निर्णय लेते थे | यह सवाल आपके लिए भी मददगार साबित हो सकता है | [९]
    • अपने विचारों में यथोचित बदलाव लायें | उदाहरण के लिए, अगर आप प्राकृतिक रूप से अन्तर्मुखी व्यक्ति हैं तो, खुद को ”एक बेहतर इंसान ”के रूप में परिभाषित करना प्रभावी या इसके अनुरूप महत्वयुक्त नहीं होगा | बल्कि आपको अपने बदलाव, कुछ अच्छी चीज़ें हासिल करने के लिए करना चाहिए और इस तरह आपको खुद के बारे में और अधिक जानना चाहिए: “नये लोगों का अभिवादन करने का अभ्यास करना चाहिए |”
  6. अगर इससे मदद मिल सके तो एक पेपर के टुकड़े पर इन्हें लिखें या बेहतर होगा कि एक पत्रिका शुरू करें | इससे आपके आत्मविश्लेषी पक्ष खुलेंगे और एक उद्देश्य दृष्टिकोण के द्वारा आप खुद को बेहतर समझ पाएंगे | [१०]
    • जर्नलिंग की ज़रूरत एक सक्रिय और प्रतिबिंबित गतिविधि का होना है | साधारण तरीके से लिखे गये विभिन्न विचार बहुत मददगार साबित नहीं होते | इसकी बजाय, आपने किस स्थिति का सामना किया, उस समय आपके क्या विचार रहे, आपने किस तरह की प्रतिक्रिया दी, इसके बारे में बाद में आपको कैसा अनुभव हुआ और आप इसको अलग तरीके से करने के बारे में क्या सोचते हैं, इसके बारे में लिखें | [११]
    • शुरुआत करने के लिए यहाँ आपसे कुछ सवाल पूछे गये हैं: क्या अपने प्रिय के साथ अपने ख़ास रिश्ते को आप सुधारना पसंद करेंगे? क्या आप अधिक परोपकारी बनाना पसंद करेंगे? क्या आप पर्यावरण के लिए कुछ ज्यादा करना चाहेंगे? क्या आप एक बेहतर साथी बनाना सीखना चाहते हैं |
  7. शोध बताते हैं कि आप अपने लक्ष्यों को पा सकते हैं अगर वो नकारात्मक (जिसे आप बंद करना चाहें) होने के बजाय “सकारात्मक” (जो आप करना चाहें) हों | [१२] अपने लक्ष्यों का नकारात्मक ढांचा बनाने से आप ख़ुद अनुमान लगाने लगेंगे या अपनी प्रगति पर ग्लानि अनुभव करने लगेंगे | अपने उन लक्ष्यों के बारे में सोचें जिनकी ओर आप काम करना चाहते हैं बजाय जिनसे आप भागना चाहते हों |
    • उदाहरण के लिये, आप अधिक आभारी बनना चाहते हैं तो इसे सकारात्मक तरीके से फ्रेम करें; “मैं उन लोगों का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने मेरी मदद की |” पुराने व्यवहार पर अनुमान लगाकर इसे फ्रेम करने से बचें, जैसे “मैं आभार प्रकट करना बंद करना चाहता हूँ |”
  8. रोल मॉडल प्रेरणा के महान स्त्रोत होते हैं और उनकी कहानियां हमे मुश्किल समय में मज़बूत बनती हैं | एक धार्मिक मूर्ती, राजनीतिज्ञ या कलाकार या आप जिसे पसंद करते हैं उसका चुनाव अपने रोल मॉडल के रूप में कर सकते हैं |
    • अक्सर जिन्हें हम रोल मॉडल के तौर पर जानते हैं उनका प्रयोग अधिक मददगार होता है |अगर आपकी जिससे बात भी न होती हो ऐसे व्यक्ति पर अपने व्यवहार को सिर्फ मॉडल बनाते हैं तो इससे आसानी से उनका विकृत नजरिया विकसित होगा और यह खुद के बारे में अस्वस्थकर सोच को बढ़ा सकता है | [१३]
    • रोल मॉडल दुनियां को बदलने वाले नहीं होते | महात्मा गाँधी और मदर टेरेसा अतुलनीय प्रेरणा स्त्रोत हैं लेकिन केवल यही वो लोग नहीं हैं जिनके व्यवहार से आप सीख ले सकते हैं, अक्सर छोटे-छोटे रोजमर्रा के व्यवहार और सोचने के तरीके से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं | उदाहरण के लिए, अगर आपकी नौकरानी हमेशा खुश दिखाई देती हो तो उससे इसका कारण पूछें | पूछें कि वह अपने जीवन के बारे में क्या सोचती है | आपको आश्चर्य हो सकता है कि उससे पूछने मात्र से आप कितना कुछ सीख सकते हैं |
    • इसका मतलब यह नहीं है कि आप दूसरों की कहानियों में प्रेरणा नहीं ढूंढ सकते | किसी ऐसे इंसान को ढूंढें जिसकी कहानी आपकी मदद कर सकती हो, विशेषरूप से, अगर आपकी जिंदगी में बहुत सारे रोल मॉडल न हो |
    • प्रख्यात खगोलविज्ञानी नील डीग्रास्स टायसन ने आप रोल मॉडल जिसके जैसे बनाना चाहते हैं, के प्राचीन विचार के विरुद्ध तर्क रखा | इसकी बजाय उन्होंने सलाह दी कि आप जांचें कि आप जहाँ से पाना चाहते हैं, उसे उन लोगों ने कैसे पाया है | वे कौन सि किताबें पढ़ते हैं? वे कौन सा रास्ता चुनते हैं? उन लोगों ने वह सब कैसे पाया है जो आप पाना चाहते हैं? ये सवाल खुद से पूछें और जबाब ढूंढें | इससे किसी ओर की नक़ल करने की कोशिश करने की बजाय आपको अपना रास्ता बनाने में मदद मिलेगी | [१४]
विधि 2
विधि 2 का 3:

सहानुभूति का अभ्यास करें

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  1. दूसरों को प्यार करना सीखने से पहले खुद को प्यार करना सीखें | यह बेकार की कोई चीज़ नहीं है बल्कि आत्म-अवशोषित प्रेम है, यह प्रेम आप जैसे हैं वैसे ही रूप में आपको स्वीकार करता है, दक्षता की गहरी जानकारी देता है और इससे आप खुद का मूल्य समझने लगते हैं | खुद को दयालु और सहनुभूतिशील इंसान के रूप में याद रखें और सोचें कि आप सुयोग्य हैं |
    • खुद के नज़रिए की बजाय एक पूरी तरह से प्रेममय और मित्रतापूर्ण नज़रिए के द्वारा अपने अनुभवों के बारे में लिखने की कोशिश करें | अध्ययनों के अनुसार, इस प्रकार की दूरी रखने से आपके नकारात्मक भावों को दूर करने में मदद मिलती है बजाय उन्हें दबाने या अनदेखा करने के | अपनी भावनाओं को पहचानना आत्मसंयम का मुख्य भाग है | हम जितने दयालु खुद के लिए होते हैं उतने दूसरों के लिए नहीं होते, इसलिए खुद को भी अपने प्रिय लोगों के समान स्वीकारता दें | [१५]
    • पूरे दिन में से कुछ लम्हें खुद के आत्म-सहानुभूति के लिए भी दें, विशेषरूप से जब आप कुछ बुरा अनुभव करते हैं | उदाहरण के लिए, अगर आप वास्तव में किसी प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहे हों और आप खुद को परखने लगें या आप खुद एक एंग्जायटी अटैक में काम करें | इसकी बजाय सबसे पहले माइंड फुल्नेस का प्रयोग करके अपने तनाव को जानें: ”अभी मैं बहुत तनाव अनुभव कर रहा हूँ”| उसके बाद समझें की प्रत्येक व्यक्ति समय समय पर ऐसा अनुभव करता है:”मैं ऐसा अकेला नहीं हूँ” | अंत में खुद को एक सहनुभूतिभरा स्पर्श दें, जैसे अपना हाथ अपने दिल पर रखें | खुद के लिए सकारात्मक बातें दोहराएँ: ”मैं मज़बूत बनना सीख सकता हूँ | मैं धैर्य रखना सीख सकता हूँ | मैं खुद को स्वीकारना सीख सकता हूँ” | [१६]
  2. अपनी प्रतिभा और सबसे अच्छे गुणों की प्रशंसा के लिए समय निकालें, चाहे वे शारीरिक हों या आंतरिक | आप खुद के प्रति अधिक विरोधी होते हैं लेकिन दूसरों के प्रति भी प्रतिकूल बनें | [१७]
    • स्वयं के बारे में नकारात्मक विचार आने पर मिलने वाले अनुभवों का रिकॉर्ड रखकर इस काम की शुरुआत करें | नोट करें कि आपके विचार क्या थे और उन विचारों के परिणाम क्या थे |
    • उदाहरण के लिए, आप एक प्रवेश की रचना कर सकते हैं जो इस तरह लगेगी: “आज मैं जिम गया था | मैं चारों ओर से पतले लोगों से घिरा था और ख़ुद को मोटा अनुभव कर रहा था | मैं खुद से नाराज़ था और जिम आने पर शर्म महसूस कर रहा था | यहाँ तक कि मैं अपनी कसरत भी पूरी नहीं करना चाहता था |”
    • अब, इन विचारों की एक तर्कसंगत प्रतिक्रिया खोजें | यह काम कठिन हो सकता है लेकिन शांति, कठोर सत्य और लॉजिक के साथ लगातार अपनी नकारात्मक स्व-वार्ता को चुनौती देने से आप अपनी सोच को बदल सकते हैं |
    • उदाहरण के लिए, ऊपर दी गयी स्थिति से मिली तर्कसंगत प्रतिक्रिया कुछ इस तरह होगी: “मैं अपने शरीर और स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जिम जाता हूँ | यह खुद पर रहम करने और देखभाल करने का काम हैं | मैं खुद की देखभाल करने में शर्म महसूस क्यों करूँ | हर इंसान का शरीर अलग होता है और मेरा शरीर भी किसी और के जैसा नहीं दिख सकता | जो लोग जिम में बहुत फिट दिख रहे हैं वे मुझसे भी ज्यादा लम्बे समय से जिम में कसरत कर रहे हैं | उनके पास कुछ अच्छे जीन हो सकते हैं | अगर कोई मेरी बनावट के आधार पर जांचे तो क्या सच में मुझे उनकी राय की परवाह करनी चाहिए ? या मुझे उन लोगों का मूल्य समझना चाहिए जो खुद की देखभाल करने के मेरे काम को प्रोत्साहित करते हैं ? [१८]
    • अक्सर आत्म-आलोचना “चाहिए” के रूप में होती है जैसे, “मुझे एक फैंसी कार चाहिए” या “मुझे इसी नाप के कपड़े पहनना चाहिए”| जब हम खुद की तुलना दूसरों के द्वारा तय किये हुए मानकों से करने लगते हैं तब हम शर्म और अप्रसन्नता को ख़त्म कर सकते हैं | आप खुद के लिए जो चाहते हैं उसे जानें और दूसरों के द्वारा कहे जाने वाले “होना चाहिए” को खारिज़ करें | [१९]
  3. कभी-कभी हम खुद से और अपने जीवन से संतुष्ट हो सकते हैं | नीरस दिनचर्या हमें व्यवहार के प्रतिक्रियाशील या अलगाव पैटर्न्स में अटकाए रख सकती है और आपको एहसास हुए बिना ही आपके अन्दर बेकार की आदतें और व्यवहार विकसित हो सकते हैं | [२०]
    • उदाहरण के लिए, अगर आपको अपनी ज़िन्दगी में पहले कभी किसी के द्वारा पीड़ा पहुंची थी तो आप सीमाओं का निर्माण करने की इच्छा रखेंगे जिससे अन्य लोगों से दूरी बनाये रख सकें | ये सीमाएं आपको फिर से पीड़ा पहुँचने से दूर रख सकती हैं लेकिन सबसे ख़ास बात यह है कि ये आपको संभवतः ख़ुशी का अनुभव दे सकती हैं |
    • नयी दिनचर्या के साथ प्रयोग करें जैसे सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना या नये दोस्त खोजना आपकी उन क्षमताओं को खोजने का एक अच्छा जरिया साबित हो सकते हैं जिनसे आप अनजान हैं | ये आपको दूसरों के साथ रिश्ते बनाने और आपके मनोभावों के बारे में नई चीज़ें जानने में मदद कर सकती है | [२१]
    • अपनी आदतों को तोड़ने के रास्ते ढूँढने से भी आप विभिन्न प्रकार के लोगों के संपर्क में आ सकते हैं जो जीवन के प्रति आपके नज़रिए को बदल सकते हैं | शोध बताते हैं कि बेकार के मनोविकार जैसे पक्षपात या डर, अक्सर किसी की संस्कृति या नज़रिए के अनुभव से सुधर सकते हैं | [२२] आप वो खोजेंगें जिसे आप दूसरों से सीख सकें और शायद दूसरे लोग भी आपसे सीख सकते हैं |
  4. ये भाव जीवन के प्राकृतिक भाग हैं लेकिन अगर आप दूसरों पर लगातार गुस्सा या ईर्ष्या अनुभव करते हैं तो आपको खुश रहने का समय बहुत मुश्किल से मिलेगा | आप जिस प्रकार के इंसान बनाना चाहते हैं उसके लिए आत्मसंयम को विकसित करके दूसरों के व्यवहार और इच्छाओं को स्वीकारना एक ज़रूरी कदम है |
    • गुस्सा अक्सर तब आता है जब हम ये सोच लेते हैं कि गलत चीज़ें हमारे साथ “नहीं होना चाहिए”| अगर कोई चीज़ हमारे सोचे अनुसार न हो रही हो तो हम गुस्सा हो जाते हैं | हमेशा अपनी अपेक्षाओं के अनुसार काम न करने वाली चीज़ों की भी प्रशंसा करने की नम्यता को विकसित करें इससे आपको अपना गुस्सा कम करने में मदद मिलेगी | [२३]
    • जीवन में उन चीज़ों पर फोकास करें जिनको आप नियंत्रित कर सकते हों और जिस पर आपका नियंत्रण नहीं है उसकी चिंता कम करें | याद रखें आप अपने कर्मों पर नियंत्रण रख सकते हैं, उनके परिणाम पर नहीं | अनियंत्रित परिणामों को नियंत्रित करने के बजाय अपने कर्मों पर फोकस करें | इससे आपको शांत रहने में मदद मिलेगी और चीज़ों के समय समय पर ख़राब होने पर भी कम गुस्सा अनुभव करेंगे | [२४]
  5. माफ़ी से शारीरिक स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं | शिकायती बनने और पुरानी का ग़लतियों को याद करते रहने से आपका ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट बढ़ सकते हैं जबकि माफ़ करने का अभ्यास करने से आपके शरीर का तनाव कम हो सकता है | [२५] इसके अलावा भी कई लाभ मिलते हैं | दूसरों को माफ़ करना दुनियां में सबसे मुश्किल चीज़ है | [२६] [२७]
    • उन ग़लतियों के बारे में सोचें जिन्हें आप माफ़ करना चाहते हैं |
    • उन अनुभवों को सीख रुपी लेंस से प्रतिबिंबित करें | सीखें कि आप किस प्रकार से चीज़ों को अलग ढंग से कर सकते हैं, लोग इसे किस प्रकार करते हैं, आप इस अनुभव से भविष्य के लिए सीख किस प्रकार ले सकते हैं | एक पीड़ादायक अनुभव को एक शिक्षाप्रद अनुभव में परिवर्तित करें जिससे आपको चोट की भावना से बाहर आने में मदद मिलेगी |
    • दूसरे लोगों से बात करें | आरोप न लगायें क्योंकि इससे दूसरे लोग अपना बचाव करेंगे | इसकी बजाय, अपनी भावनाओं को दर्शाने के लिए “मैं” शब्द का प्रयोग करें और अपने साथ शेयर करने के लिए उनसे कहें | [२८]
    • न्याय से अधिक मूल्य शांति का रखें | न्याय का भाव होना ही वह कारण है जिससे माफ़ करना बहुत कठिन बन सकता है | जो इंसान गलत होगा उसके लिए आप कभी नहीं सोच पाएंगे कि उनसे क्या मिलेगा बल्कि आपका गुस्सा बना रहेगा और चोट अंततः आपको ही पहुंचेगी | माफ़ी को किसी विशेष काम या नतीजे पर प्रासंगिक न बनायें | [२९]
    • याद रखें माफ़ी मुक्ति नहीं है | गलत फिर भी होता है और आप माफ़ी देकर इससे मुक्त होने का बहाना नहीं बना सकते |
  6. आभार प्रकट करना भावनाओं से अधिक होता है, यह एक सक्रिय अभ्यास है | “आभार या कृतज्ञता के रवैये” का अभ्यास करें जो आपको ज्यादा सकारात्मक, खुश, और स्वस्थ इंसान बनाएगा | [३०] किसी इंसान को उसकी चोट से उबरने में सहायता करके, रिश्तों को मजबूती देकर और दूसरों के प्रति दया दिखाकर कृतज्ञता को दर्शाया जा सकता है | [३१] [३२] [३३]
    • एक आभार पत्रिका रखें | ऐसी चीज़ों का रिकॉर्ड रखें जिनके लिए आपने आभार अनुभव किया हो | ये छोटे-छोटे हो सकते हैं जैसे सुबह की धूप या एक कप स्वादिष्ट कॉफ़ी | इन्हें नापना असंभव हो सकता है जैसे साथी का प्यार या दोस्ती | इन चीज़ों पर ध्यान दें और रिकॉर्ड रखें जिससे आप इनका संग्रह कर पायें और बाद में इन्हें याद कर सकें | [३४]
    • आश्चर्यों का स्वाद लें | कुछ अप्रत्याशित या सरप्राइजिंग चीज़ आप पर सांसारिक चीज़ों की अपेक्षा ज्यादा प्रभाव डाल सकती है | ये भी छोटे हो सकते हैं जैसे नोट करें जब आपके साथी ने आपके लिए कोई डिश बनाई हो या महीनेभर से आप जिस दोस्त से न मिले हों उसका सन्देश मिले |
    • अपनी एहसानमंदी दूसरों के साथ शेयर करें | अगर आप दूसरों के साथ शेयर करते हैं तो संभवतः आप सकारात्मक चीज़ों को ज्यादा याद रख पाते हैं | शेयरिंग किसी का दिन चमकाने में भी लाभकारी हो सकती है | [३५]
  7. अन्य जानवरों के समान इंसान भी अपने चारों ओर उपस्थित लोगों के साथ सामाजिक रिश्तों का निर्माण करता है | [३६] बचपन में हम सीखते हैं कि लोगों को कैसे “पढ़ें” और उनके व्यवहारों की नक़ल करें | हम इसमें फिट होने के लिए, जो हम चाहते हैं या जिसकी हमे ज़रूरत है उसे पाने के लिए और दूसरों से जुड़ाव अनुभव करने के लिए ऐसा करते हैं | [३७] हालाँकि सहानुभूति, दूसरों के व्यवहारों के प्रति समायोजन और उनकी भावनाओं को अनुभव करने में समर्थ होने से कहीं ज्यादा होती है | इसमें जीवन का सामना उसी तरह करने कल्पना की जाती है जैसे वे करते हैं, जैसा वो सोचते हैं वैसा ही सोचा जाता है, और जैसा वो अनुभव करते हैं वैसा ही अनुभव किया जाता है | [३८] सहानुभूति विकसित करने से आप दूसरे लोगों की भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनेंगे, दूसरों से जुड़ना सीखेंगे और ख़ुद को कम अकेला अनुभव करेंगे | साथ ही इससे आप स्वयं के लिए जैसा व्यवहार चाहते हैं वैसा व्यवहार दूसरों के साथ करने में आपको मदद मिलेगी |
    • अध्ययन दर्शाते हैं कि कम्पैशन मैडिटेशन या दयाभाव ध्यान आपके दिमाग के भावनात्मक गतिविधियों को संचालित करने वाले हिस्से को उत्तेजित कर सकता है | इससे आपको तनाव कम महसूस होगा और अधिक स्थिरता मिलेगी | [३९] माइंडफुल मैडिटेशन से भी यही प्रभाव पड़ता है लेकिन यह सहानुभूति को विकसित करने में थोडा कम लाभकारी है | [४०]
    • शोध के अनुसार, अन्य लोग किस तरह जीवन का सामना करते हैं, इसकी सक्रिय कल्पना करने से आप सहनुभूति को बढ़ा सकते हैं | [४१] बल्कि उपन्यास पढ़ने से भी आप दूसरों के नज़रिए को ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं | [४२]
    • जहाँ तक संभव हो निर्णयों को स्थगित करें | शोध बताते हैं कि हम उन लोगों के साथ कम सहानुभूति रखते हैं जिनके बारे में सोचा जाता है कि वो अपनी स्थिति के लिए खुद जिम्मेदार हैं, जैसे “जो लोग जिस चीज़ के लायक होते हैं उन्हें वही मिलता है” | आप लोगों की जिन परिस्थितियों और इतिहास को नहीं जानते उसे मान्यता दें | [४३]
    • विभिन्न प्रकार के लोगों की तलाश करें | अध्ययन दर्शाते हैं कि किसी की संस्कृति और विश्वास के अनावरण से आपको उनके प्रति सहानुभूति रखने में मदद मिलती है | [४४] जो लोग आपसे भिन्न सोच और व्यवहार रखते हैं उन लोगों तक अपनी पहुँच बढ़ाने से आप एक जैसे निर्णय कम लेंगें और पूर्वधारणा बनाने से बचेंगे |
  8. हम सारहीन चीज़ों के प्रति वास्तविक आभार अनुभव करने से बहुत दूर रहते हैं जैसे प्यार की अनुभूति को महसूस करना या दया का भाव अनुभव करना | बल्कि, अधिक वस्तुओं के लिए अक्सर प्रयास करना वास्तव में एक चिन्ह है जो दर्शाता है कि आप अपनी कोई गहरी ज़रूरत को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं | [४५] [४६] [४७]
    • शोध बताते हैं कि भौतिकवादी लोग अक्सर अपने सहकर्मियों की तुलना में “कम” खुश रहते हैं | | [४८] ये लोग अपनी पूरी जिंदगी में कम ख़ुशी अनुभव करते हैं और नकारात्मक भाव जैसे डर और उदासी को ज्यादा अनुभव करते हैं | [४९]
  9. प्रत्येक व्यक्ति लाखों रुपये अपनी किसी पसंदीदा दानी संस्था में दान करने में समर्थ नहीं होता लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप ज़रूरतमंद लोगों की थोड़ी सी भी मदद न करें | दूसरों की मदद करने से न सिर्फ उन्हें लाभ पहुंचता है बल्कि यह आपको भी लाभान्वित करता है | शोध दर्शाते हैं कि परोपकारी लोग अधिक खुश रहते हैं और दूसरों के लिए अच्छे काम करके एक एंडोर्फिन बूस्ट जिसे हेल्पर्स हाई कहा जाता है, को अनुभव करते हैं | [५०]
    • स्वयंसेवक बनें | अपना सप्ताह टीवी के सामने बैठकर बिताने की बजाय बेघर लोगों की मदद करके बिताएं | दूसरों की सेवा से आप खुद को उनसे अधिक जुड़ा हुआ अनुभव करेंगे और खुद को पृथक व्यक्ति की अपेक्षा समाज के एक हिस्से के रूप में अनुभव करने में मदद मिलेगी | [५१]
    • प्रतिदिन बिना सोचे समझे दयालुता के कर्म करने का अभ्यास करें | इसमें कुछ छोटे छोटे काम किये जा सकते हैं, जैसे वृद्ध व्यक्ति का सामन उठाने में उनकी मदद करना या ड्राइविंग करते समय किसी को सही रास्ता बताना | आप इस तरह के काम जितने ज्यादा करेंगें उतना ही आप अनुभव करेंगे कि दूरसों की मदद करना कितना तृप्तिदायक होता है | इससे अंततः आपको स्वार्थपरता से बाहर निकलने में मदद मिलेगी |
    • शोध बताते हैं कि “इसे आगे खेलने का“सिद्धांत वास्तव में मौजूद है | परोपकार के कर्म एक इंसान से दुसरे इंसान तक फैलते जाते हैं | आपकी दयालुता और उदारता का छोटा सा प्रदर्शन किसी को वही कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है और इससे कोई दूसरा भी प्रेरित हो सकता है और इस तरह यह क्रम आगे जारी रह सकता है | [५२]
  10. आपके व्यवहार से दूसरों पर पड़ने वाले प्रभाव को नोटिस करें: हम अपना ज्यादातर समय खुद के व्यवहार पर फोकस करने में निकाल देते हैं और हमारे व्यवहार से दूसरों पर पड़ने वाले प्रभाव को नोटिस करने के लिए कोई समय नहीं देते | यह एक मनोवैज्ञानिक सुरक्षात्मक प्रक्रिया का एक हिस्सा है जो दूसरों के साथ पारस्परिक विचार-विमर्श को नियंत्रित करने में मदद करता है | [५३] अगर प्रत्येक व्यक्ति आपको एक ही तरह की प्रतिक्रिया दे तो आपको इसकी आदत पड़ जाएगी जो आपके लिए लाभकारी नहीं होगी | इसलिए अपनी सुरक्षात्मक प्रक्रिया के द्वारा वृद्धि का मार्ग अपनाएं |
    • उदाहरण के लिए, जानें कि दूसरे आपको कैसी प्रतिक्रिया देते हैं | क्या वो आपके द्वारा कही गयी किसी बात से आसानी से आहत हो जाते हैं? ऐसा हो सकता है बशर्ते हर व्यक्ति जिसे आप जानते हैं, अतिसंवेदनशील हो कदाचित ऐसा न भी हो | आपको दूसरों को पीछे छोडकर खुद को बेहतर अनुभव कराने के लिए एक सुरक्षात्मक प्रक्रिया को विकसित करना होगा | दूसरों के साथ बातचीत करने के विभिन्न रास्तों को अपनाएं जिससे वे पहले की तरह आहत या चोटिल प्रतिक्रिया न दे सकें |
    • आप दूसरों से किस तरह बातचीत करते हैं उस पर गौर फरमाएं | विभिन्न पैटर्न्स को आजमायें और तय करें कि उनमे से कौन से पैटर्न्स लाभकारी हैं और कौन से नहीं | अपने व्यवहार को और अधिक नम्य और अनुकूलनीय बनाकर आप अधिक बेहतर इंसान बन सकते हैं और अपने चारों ओर उपस्थित लोगों के बीच में रहकर इसका बेहतर अभ्यास कर सकते हैं | [५४]
विधि 3
विधि 3 का 3:

सही रास्ता चुनें

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  1. हर इंसान में कुछ न कुछ योग्यता ज़रूर होती है जिसमे उसे महारत हासिल होती है और उसे करने में आनंद आता है | अगर आप ये सोचते हैं कि आपके अंदर कोई योग्यता नहीं है तो शायद आप अपनी योग्यता को खोज नहीं पाए हैं | कभी-कभी जिद्दी बनना भी होता है जिससे आप अपने लिए कोई एक चीज़ चुनने से पहले कई चीज़ों को आज़मा सकें |
    • एक प्रकार के लोग एक ही तरह की गतिविधियों के प्रति आकर्षित हो सकते हैं | उदाहरण के लिए, एड्रेनालाईन नशेड़ी दोनों पक्षों में एक सामान होने के कारण नशा नहीं छोड़ सकते, एक बुनाई क्लब की धीमी गति होना लेकिन कुछ लोग होते हैं जो दूसरी गातिविधियों को छोड़ने में आनंद प्राप्त करते हैं | यह आपको तय करना है कि वो कौन लोग हैं जिन्हें आपके पास रहने में आनंद मिलता है और जो आपको यह खोजने में मदद कर सकें कि आप आपको किस चीज़ में आनंद आएगा |
    • धैर्य रखें | परिवर्तन एक ही बार में नहीं होते, उसके लिए अभ्यास और समय की ज़रूरत होती है | पुराने रूटीन को तोड़ना और नये लोगों से मिलना या नयी गतिविधियों से रूबरू होना कठिन हो सकता है, विशेषरूप से तब जब आप व्यस्त हों परन्तु व्यस्त तो सभी रहते हैं इसलिए परसिस्टेंट बने रहना एक मुख्य बात है |
    • आपको जिसमे आनंद मिलता हो उस क्लास में शामिल हों या एक नया उपकरण उठायें या कोई नया खेल चुनें | इससे न सिर्फ आप कुछ नया सीखेंगे बल्कि ऐसे लोगों से भी मिल सकेंगे जिन्हें भी वही सीखें में आनंद मिलता है जिसे आप सीख रहे हैं | कुछ नया सीखने की कोशिश भी आपको अपने कम्फर्ट जोन से सुरक्षित और सही रूप में बाहर धकेलने का जरिया बन सकती है |
  2. अगर अपना पूरा जीवन ऐसा काम करने में निकाल देते हैं जिसे आप नापसंद करते हैं तो आप खुश नहीं रहेंगे और तब इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा की आपने कितने पैसे कमाये | हम सभी इतने भाग्यशाली तो नहीं होते कि अपने पसंदीदा शौक को अपनी कमाई का जरिया बना सकें लेकिन खुद को ख़ुशी देने के लिए कुछ समय निकलकर अपने लिए कुछ करना बहुत अहमियत रखता है |
    • ऐसी चीज़ें करें जो आपके लिए अर्थपूर्ण हों, इससे आप खुद को ज्यादा खुश और संतुष्ट अनुभव करेंगे | रचनात्मक क्रियाकलाप जैसे कला और संगीत से आप अपनी भावनाओं और विचारों को स्वस्थ रूप से व्यक्त कर सकते हैं | [५५]
    • यह एक अफ़वाह है कि जो लोग अपने जीवन में सबसे ज्यादा सफल होते हैं वो एक बुध्दि वाले होते हैं, वे अपने लक्ष्य के अलावा और कुछ नहीं देखते, जहाँ तक कि खुद के लिए भी समय नहीं निकलते | दुर्भाग्यवश, यह जिंदगी जीने का बहुत ही अस्वाथ्य्कर तरीका है | खुद को जीवन के किसी एक मार्ग की ओर इतना ज्यादा फोकस करने की कोशिश न करें कि अन्य चीज़ों को भूल ही जाएँ | [५६]
    • अगर आप काफी समय से अपने काम से खुश नहीं हैं तो इसका कारण जानें | हो सकता है कि कुछ बदलाव करके आपके अनुभवों में बदलाव लाया जा सकता हो | अगर आपके नाख़ुश होने का कारण यह है कि आप अनुभव करते हैं कि आपकी नौकरी अर्थपूर्ण नहीं हैं या आपके महत्व की नहीं है तो काम की कोई और लाइन खोजें | [५७]
  3. ज़िन्दगी में काम और खेल के बीच में संतुलन होना चाहिए | केवल एक ही चीज़ पर फोकस करें अन्यथा दूसरी ओर अंततः स्थिर और नीरस दिनचर्या की ओर ही अग्रसर होंगे | मनुष्य सकारात्मक परिणाम के प्रति बहुत जल्दी सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं | इसी कारण हम सकारात्मक अनुभव के प्रति असंवेदनशील बन जाते हैं, विशेषरूप से तब जब यही हमारा एकमात्र अनुभव हो | [५८]
    • शोध बताते हैं कि जब तक हम अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर नहीं निकलते तब तक उत्पादक नहीं हो सकते | [५९] नये अनुभवों को खोज निकलना और दूसरों से बातचीत करना बहुत अहमियत रखता है, भले ही इसमें थोडा डर लगे तो भी ऐसा करें क्योंकि इससे आपको ज्यादा सफलता मिल सकती है |
    • हमारी इच्छा असुविधा और कष्ट से बचे रहने की होती है क्योंकि इनसे हमरे अंदर लचीलापन या नम्यता नहीं आ सकती है | हालाँकि शोध दर्शाते हैं कि गले लगाते ही भेद्यता अर्थात् कुछ गलत होने की सम्भावना, जीवनभर सामना करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | [६०]
    • शुरुआत करने के लिए माइंडफुल्नेस मैडिटेशन एक अच्छी जगह साबित हो सकती है | माइंड फुल्नेस का लक्ष्य है बार-बार आने वाले किसी भी तरह के ऐसे विचारों के पैटर्न्स के प्रति सचेत बने रहना जिनसे आत्मजागरण और आत्मस्वीकृति मिल सकती हो | कोई एक क्लास ढूंढें या कोई ऐसा शोध करें जिससे आप जान पायें कि कौन सी तकनीक आपके लिए सबसे अच्छी है | [६१]

सलाह

  • दूसरों का सम्मान करें |
  • वास्तविक बने रहें, तभी लोग आपको नोटिस करेंगे कि आप वास्तव में कौन हैं |
  • घर से बाहर निकलने से पहले हर सुबह आईने में स्वयं को देखें और स्वयं की प्रशंसा करें, यह प्रशंसा किसी भी चीज़ की हो सकती है बल्कि “यह जीन्स सुन्दर है” कहना भी काम कर सकता है | इससे आपको आत्मबल मिलेगा और जब आप गली से गुजरेंगे तब अच्छा महसूस करेंगे |
  • अगर आप किसी के प्रति गलत हैं तो इसे स्वीकारें |
  • यह सीखने में कई साल लग सकते हैं कि आत्मसचेत कैसे बनें और आपके जीवन के उस हिस्से को कैसे पहचानें जिसे आप सुधारना चाहते हैं इसलिए अपना पर्याप्त समय लें |
  • स्वयं को और अन्य लोगों को दूसरा मौका देने की कोशिश करें |
  • आप जैसा व्यवहार अपने लिए चाहते हैं वैसा ही व्यवहार दूसरों के लिए रखें |

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