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धार्मिक दृष्टी से हिन्दू और बौद्ध धर्म में पूजनीय कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है | यह हार्डी एक्वेटिक प्लांट दक्षिणी एशिया और ऑस्ट्रेलिया का मूलनिवासी है लेकिन सही कंडीशन्स के अंदर लगभग किसी भी टेम्परेचर वाले क्लाइमेट में ये ग्रो कर सकते हैं | आप लोटस या कमल को सीड या ट्यूबर से ग्रो कर सकते हैं लेकिन आमतौर पर पहली साल में इनमे कोई फूल नहीं लगेंगे | [१]

विधि 1
विधि 1 का 3:

सीड से ग्रो करें

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  1. एक स्टैण्डर्ड मेटल फाइल का इस्तेमाल करें और कठोर सीड के ऊपरी हिस्से को खरोंचें जिससे क्रीम कलर का कोर दिखाई देने लगे | कोर के किसी भी हिस्से को न छीलें अन्यथा लोटस ग्रो नहीं करेगा | केवल आउटर केस की फाइलिंग करने से पानी कोर के अंदर तक जाता है | [२]
    • अगर आपके पास मेटल फाइल नहीं है तो आप किसी चाकू का भी इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर सीड्स को कंक्रीट से रगड़ सकते हैं | ध्यान रखें कि सीड्स को बहुत ज्यादा नहीं खुरचना है |
  2. एक गिलास या ट्रांसपेरेंट प्लास्टिक कंटेनर का इस्तेमाल करें जिससे सीड्स से अंकुरण होने पर आप देख सकें | कंटेनर को 75 से 80 डिग्री फेरेनहाइट (24 से 27 डिग्री सेल्सियस) टेम्परेचर पर डीक्लोरीनेटेड वाटर से भर दें | [३]
    • एक दिन पानी में भिगोने के बाद सीड्स तली में बैठ जायेंगे और अपने ओरिजिनल साइज़ से लगभग दोगुने फूल जायेंगे | जो बीज ऊपर तैरते हैं, वे इनफर्टाइल होते हैं | ऊपर तैरने वाले सीड्स को हटा दें अन्यथा वे पानी के ऊपर बादलों की तरह छा जायेंगे |
    • जब तक बीज अंकुरित होना शुरू न कर दें तब तक रोज़ पानी बदलें | जब पानी बदलने के लिए अंकुरों को हटायें तब स्प्राउट्स को सावधानी से ट्रीट करें क्योंकि ये बहुत नाज़ुक होते हैं |
  3. एक 11 से 19 लीटर के कंटेनर में 6 इंच (15 सेंटीमीटर) की गहरे तक मिट्टी भरें: इस साइज़ के कंटेनर यंग लोटस को ग्रो करने के लिए काफी जगह प्रदान करते हैं | अंकुरों को बेहतर गर्माहट देने के लिए एक ब्लैक प्लास्टिक की बाल्टी हीट को बरक़रार रखेगी | [४]
    • आदर्श रूप से, मिट्टी में दो भाग क्ले या चकनी मिट्टी और एक भाग रिवर सैंड या बालू होनी चाहिए | अगर आप हाउस प्लांट्स के लिए टॉपसोइल के रूप में कमर्शियल पॉटिंग सोइल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो जैसे ही आप अपने टब को पानी में डुबायेंगे, यह साथ पर तैरने लगेगी | [५]
    • ध्यान रखें कि इस्तेमाल किये जाने वाले कंटेनर में कोई भी ड्रेनेज होल न हो | प्लांट ड्रेनेज होल की ओर झुक सकते हैं और इसमें से बाहर की ओर ग्रो करना शुरू कर सकते हैं जिसके कारण प्लांट अच्छी तरह से ग्रो नहीं कर पाते |
  4. जब अंकुर 6 इंच (15 सेंटीमीटर) लम्बे हो जाएँ तब पानी से उन्हें हटा दें: पानी में डुबाने के बाद 4 या 5 दिनों में अंकुर आना शुरू हो जायेंगे | लेकिन, अगर आप इन्हें जल्दी ही पॉटिंग कंटेनर में ट्रान्सफर कर देंगे तो ये ग्रो नहीं कर पाएंगे | [६]
    • अगर आप काफी लम्बे समय तक इंतज़ार करते हैं तो अंकुरों में से पत्तियां ग्रो होने लगेंगी | आप इन्हें भी प्लांट कर सकते हैं, सिर्फ पत्तियों मिट्टी से बाहर निकालते समय सावधानी रखनी होती है | [७]
  5. अंकुरित सीड्स को मिट्टी में लगभग 4 इंच (10 सेंटीमीटर) तक गहरे में दबाएँ: आपको मिट्टी में सीड्स दफनाना नहीं है | इन्हें केवल टॉप पर सेट करें और फिर इन्हें सिक्योर करने के लिए इनके ऊपर थोड़ी सी मिट्टी की लेयर डालना है | इनमे से अपने आप रूट्स निकलने लगेंगी | [८]
    • हर बीज को थोड़े वज़न के साथ लंगर डालने के लिए उनके बॉटम के चारों ओर थोड़ी-थोड़ी मॉडलिंग क्ले लपेटना भी एक बेहतरीन उपाय होता है | जब आप कंटेनर को पोंड (तालाब) में डालते हैं तब बिना लंगर वाले बीज मिट्टी से बाहर निकलकर पानी की सतह पर तैर सकते हैं |
  6. लोटस एक एक्वेटिक प्लांट है इसलिए मिट्टी के ऊपर हमेशा कम से कम 2 से 4 इंच (5.1 से 10.2 सेंटीमीटर) पानी होना चाहिए | अगर आपके पास लम्बा प्लांट है तो गहराई से पानी कम से कम 18 इंच (46 सेंटीमीटर) ऊपर तक होना चाहिए | बौने लोटस को 2 से 12 इंच (5.1 से 30.5 सेंटीमीटर) तक गहराई वाले पानी की जरूरत होती है | [९]
    • पानी का टेम्परेचर कम से कम 70 डिग्री फेरनहाइट (21 डिग्री सेल्सियस) होना चाहिए | अगर आप काफी ठन्डे क्लाइमेट में रहते हैं तो उथला (कम) पानी लोटस को एक्स्ट्रा गर्माहट देगा |
    • पहले साल में सीड्स से लोटस बहुत कम हो ग्रो कर पाते हैं | पहले साल में फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल भी कम ही करना चाहिए | इस समय में लोटस को एनवायरनमेंट में अनुकूलित होने के लिए छोड़ देना चाहिए |
विधि 2
विधि 2 का 3:

ट्यूबर से ग्रो करना

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  1. आप लोटस ट्यूबर को ऑनलाइन या लोकल नर्सरी या गार्डन सेंटर से खरीद सकते हैं | शिपिंग की कठिनाइयों के कारण ये बसंत के अंत में सुप्तावस्था (डोर्मेन्सी) टूटने के बाद आमतौर पर उपलब्ध नहीं होते | लेकिन, आप लोकली उगाये गये प्लांट्स से कुछ ट्यूबर खरीद सकते हैं | [१०]
    • दुर्लभ हाइब्रिड्स को ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है | अगर आपके घर के नज़दीक कोई वाटर गार्डनिंग सोसाइटी हो तो उनसे सिफारिश के लिए कहें | कुछ सोसाइटीज खुद भी प्लांट्स बेचती हैं | [११]
  2. एक कटोरे में 75 से 87 डिग्री फेरनहाइट (24 से 31 डिग्री सेल्सियस) टेम्परेचर वाले पानी में ट्यूबर को तैरने दें: ट्यूबर को पानी की साथ पर कोमलता से रखें | कटोरे को किसी गर्म जगह के नज़दीक रखें जैसे धूप वाली खिड़की के पास, लेकिन सीधी धूप में न रखें | [१२]
    • अगर आप लोटस को पोंड में डालने की प्लानिंग कर रहे हैं तो पोंड के पानी का ही इस्तेमाल करें (जब तक यह पानी काफी गर्म हो)| हर 3 से 7 दिन में पानी बदलते रहें या फिर पानी धुंधला दिखाई देने पर बदलें |
  3. एक 3 से 4 फीट (0.91 से 1.22 मीटर) डायमीटर वाले गोल कंटेनर का इस्तेमाल करें: अगर सेट ढीला हो जाता है तो लोटस उस सारे एरिया में ग्रो करेंगे जहाँ उन्हें प्लांट किया गया है | आपका कंटेनर लोटस को इसमें नियंत्रित रखेगा और पूरे पोंड पर हावी होने से रोकेगा | [१३]
    • डीप कंटेनर में कंटेनर के टॉप तक लोटस के पहुँचने और पोंड में फैलने के चांसेज कम हो जाते हैं | राउंड कंटेनर्स लोटस को कॉर्नर्स में जाम होने से बचाते हैं अन्यथा इसके कारण प्लांट मर सकता है या फिर उसकी ग्रोथ रुक सकती है |
  4. लोटस के ल्लिये एक अच्छे पॉटिंग मीडियम के तौर पर सोइल मिक्सचर में लगभग 60 प्रतिशत क्ले और 40 प्रतिशत बालू (रिवर सैंड) होनी चाहिए | मिट्टी के ऊपरी सिरे और कंटेनर की रिम (बाहरी किनारे) के बीच लगभग 3 से 4 इंच (7.6 से 10.2 सेंटीमीटर) हिस्सा खाली छोड़ दें | [१४]
    • आप मिट्टी के टॉप से 2 से 3 इंच (5.1 से 7.6 सेंटीमीटर) की गहराई पर बालू की सेपरेट लेयर के साथ संशोधित मिट्टी का इस्तेमाल कर सकते हैं | ध्यान रखें कि सैंड लेयर के टॉप और कंटेनर की रिम के बीच पर्याप्त जगह हो |
  5. ट्यूबर को सैंड में हलके से लगायें और फिर पत्थर से इसे सावधानीपूर्वक दबाएँ जिससे यह रूट्स बनने से पहले ही पानी की सतह पर तैरे नहीं | [१५]
    • ट्यूबर को मिट्टी में पूरा न गाढें अन्यथा यह सड जायेगा | ध्यान दें कि यह केवल सरफेस पर ही लगा रहे |
  6. कंटेनर को पोंड की सरफेस से 6 से 12 इंच (15 से 30 सेंटीमीटर) नीचे रखें: लोटस के लिए कोई ऐसी धूप वाली जगह चुनें जहाँ पानी बहे नहीं और लोटस को ग्रो होने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके | जब ट्यूबर उस जगह में सिक्योर हो जाये तब आप इसे लोटस को प्लांट करने के लिए अपनी चुनी हुई लोकेशन पर लगा सकते हैं | [१६]
    • पोंड में लगाने के बाद, ट्यूबर प्लांट्स खुद ही सोइल मिक्सचर में नीचे की ओर मुड़ने लगते हैं और रूट्स ग्रो होने लगती हैं |
विधि 3
विधि 3 का 3:

लोटस की देखभाल करें

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  1. पानी का तापमान कम से कम 70 डिग्री फेरेनहाइट तक मेन्टेन रखें: एक्टिव ग्रोथ की शुरुआत तभी होती है जब सरफेस वाटर इस तापमान तक पहुँच जाता है | लोटस को पूरी क्षमता से ग्रो करने के लिए गर्म पानी की जरूरत होती है | आदर्श रूप से, हवा का तापमान कम से कम 70 डिग्री तक होना चाहिए | [१७]
    • लोटस से 70 डिग्री फेरनहाइट (21 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा टेम्परेचर वाले पानी में कुछ ही दिनों में पत्तियां निकलना शुरू हो जाएँगी | 80 डिग्री फेरनहाइट (27 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा तापमान के पानी में 3 से 4 सप्ताह के बाद ही फूल खिलने लगते हैं |
    • हर दूसरे दिन पानी का तापमान चेक करते रहें | अगर आप बहुत ठन्डे क्लाइमेट में रहते हैं तो सही तापमान को मेन्टेन करने के लिए आपको एक हीटर की जरूरत हो सकती है | [१८]
  2. लोटस प्लांट्स तेज़ धूप में पनपते हैं और इन्हें हर दिन कम से कम 5 से ६ घंटे डायरेक्ट सनलाइट की जरूरत होती है | अगर आपका पोंड आंशिक रूप से छाया में है तो धूप को रोकने वाले आस-पास के पत्तों को हटाना या छांटना पड़ सकता है | [१९]
    • भारत में आमतौर पर लोटस में जून के अंत से अगस्त में मध्य तक फूल लगते है | फूल सुबह-सुबह खिलना शुरू होते हैं और दोपहर मध्य तक बंद होना शुरू हो जाते हैं | व्यक्तिगत रूप से ये 3 से 5 दिन तक खिले रहते हैं और उसके बाद गिर जाते हैं | एक्टिव ग्रोथ के बांकी पूरे महीने में यही प्रोसेस रिपीट होताइ रहती है |
  3. मुरझाये हुए फूलों और पीले-डैमेज पत्तों को छांटकर हटा दें: अगर लोटस पूरे पोंड पर फैलना शुरू कर दे तो आप नयी ग्रोथ को भी काट-छांट सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि जब तक लोटस को बसंत में फिर से पॉट में नहीं लगाया जायेगा तब तक ये फिर से ग्रो कर सकते हैं | [२०]
    • पानी के लेवल से नीचे वाले लीफ स्टेम या फ्लावर को न काटें | रूट्स और ट्यूबर ऑक्सीजन के लिए स्टेम्स का इस्तेमाल करते हैं | [२१]
  4. लोटस को फर्टिलाइज करने के लिए पोंड टैब्स का इस्तेमाल करें: पोंड टेबलेट्स विशेषरूप से एक्वेटिक प्लांट्स के लिए बनाये गये फ़र्टिलाइज़र होते हैं | इसे फ़र्टिलाइज करने से पहले तब तक इंतज़ार करें जब तक ट्यूबर से कम से कम 6 पत्तियां न निकल आयें और फ़र्टिलाइज़र को सीधे ट्यूबर के ऊपर न डालें | [२२]
    • छोटे लोटस वाली वेरायटीज में केवल 2 टेबलेट्स की जरूरत होती है जबकि बड़ी वेरायटीज में 4 से ज्यादा की जरूरत होती है | हर 3 से 4 सप्ताह में फ़र्टिलाइज़र डालें और इसे जुलाई के मध्य में डालना बंद करें | अगर आप लोटस में इस दौरान भी लगातार फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल करते रहेंगे तो वो डोर्मेन्सी (सुषुप्तावस्था) के लिए तैयार नहीं हो पायेगा |
    • अगर आप सीड से लोटस ग्रो कर रहे हैं तो पहले साल में फ़र्टिलाइज़र न डालें |
  5. पेस्ट्स (नुकसान पहुंचाने वाले कीटों) पर नज़र रखें: हालाँकि पेट्स आपकी जियोग्राफिक लोकेशन के आधार पर अलग-अलग होते हैं लेकिन एफिड्स और केटरपिलर्स लोटस की पत्तियों पर खासतौर पर आकर्षित होते हैं | पत्तियों पर डायरेक्टली थोड़े से पाउडर वाले पेस्टिसाइड डालने से लोटस प्लांट को इन पेस्ट्स से बचाया जा सकता है | [२३]
    • तरल पेस्टिसाइड्स के साथ ही आर्गेनिक पेस्टिसाइड्स में भी ऑयल्स और डिटर्जेंट होते हैं जो लोटस को डैमेज कर सकते हैं |
  6. लोटस प्लांट्स विंटर्स में तब तक पोंड्स में रह सकते हैं जब तक नार्थ एरियाज में पोंड इतने गहरे हों कि वे ट्यूबर पर बर्फ न जमने दें | ट्यूबर कम से कम फ्रॉस्ट लाइन से नीचे होने चाहिए और इसकी गहराई भिन्नता इस बात पर निर्भर करती है कि आप रहते कहाँ हैं | [२४]
    • अगर पोंड अपेक्षाकृत उथला है तो आप कंटेनर को बाहर निकाल सकते हैं और बसंत आने तक इसे किसी गेराज या बेसमेंट में छोड़ सकते हैं | जमीन के ऊपर रखे पॉट्स में ट्यूबर को गर्म बनाये रखने के लिए चारों ओर मुलच (mulch-घांस-पतवार) डालें |
  7. बसंत ऋतू के शुरुआत में जब नयी ग्रोथ के पहले चिन्ह दिखाई दें तब लोटस को फ्रेश मिट्टी दें और इसे वापस ओरिजिनल कंटेनर (जब तक कंटेनर डैमेज न हो) में वापस रखें | इसे पहले के समान गहराई वाले पानी में फिर से रखें | [२५]
    • अगर एक साल पहले लोटस पूरे पोंड में फ़ैल चुका हो तो कंटेनर में क्रैक्स चेक करें | अगर लोटस रिम के ऊपर तक ग्रो कर चुका है तो लोटस को बेहतर रूप से होल्ड करने के लिए आपको एक बड़े कंटेनर की जरूरत हो सकती है |

सलाह

  • अगर आप केमिकल फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से बचना चाहते हैं तो समुद्री सिवार (सी केल्प) या फिश मील या मछलियों के चूर्ण से बने आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र आजमायें |
  • लोटस ट्यूबर बहुत नाज़ुक होता है | इसे सावधानी से पकड़ें और इसकी पॉइंटेड टिप (ट्यूबर की "आँख") को टूटने न दें | अगर ट्यूबर की आँख डैमेज हो जाएगी तो लोटस ग्रो नहीं करेगा | [२६]
  • लोटस फ्लावर्स, सीड्स, नयी पत्तियां और स्टेम खाने योग्य होते हैं लेकिन इनके कारण साइकेडेलिक (मादक) इफेक्ट्स हो सकते हैं | [२७]
  • लोटस सीड्स कई हजारों सालों तक जीवक्षम (वायेबल) होते हैं | [२८]

विकीहाउ के बारे में

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