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प्रत्येक व्यक्ति, लगातार, यह जाने के लिए संघर्ष करता रहता है कि वह वास्तव में क्या है। अक्सर जब लोग ख़ुद को डिफ़ाइन करते हैं, तब या तो निगेटिव पर फोकस करते हैं या यह देखते हैं कि दूसरों की तुलना में वे कैसे हैं। आपके सिवा कोई दूसरा यह डिफ़ाइन नहीं कर सकता कि आप वास्तव में क्या हैं, मगर इस आर्टिकल में कुछ ऐसी सलाहें दी गई हैं जिनकी सहायता से आप यह जान सकते हैं कि ख़ुद को डिफ़ाइन करने के लिए स्वयं को कैसे देखा जाये और किस तरह से उस नज़रिये को पॉज़िटिव बनाया जाये।

विधि 1
विधि 1 का 2:

अपनी पहचान खोजना

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  1. सेल्फ़-नॉलेज (Self-knowledge), खास तौर पर नॉन-जजमेंटल सेल्फ़-नॉलेज, ख़ुद को डिफ़ाइन करने में मदद करने वाली एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्किल है। आप ख़ुद को एक व्यक्ति के रूप में डिफ़ाइन कर सकें, इसके लिए पहले आपको यह समझना होगा कि वह क्या है जिसके कारण आप चलते रहते हैं और आपके विचार प्रोसेसेज़ क्या हैं।
    • माइंडफुलनेस का अर्थ होता है कि आप जो भी सोच रहे हैं, उस पर ध्यान देना और अपने विचारों के पैटर्न को ऑब्ज़र्व करना। जैसे कि, आप एहसास कर सकते हैं कि आपकी टेंडेंसी यह महसूस करने की है कि लोगों को आपके विचारों की परवाह नहीं है, और आपकी राय का कोई महत्व नहीं है। यह पहचान लेने से कि यह आपके विचार हैं, और वे विचार आपको परेशान करने लगें, उसके पहले ही उनको पकड़ लेने से, आपको अपनी पहचान के महत्वपूर्ण हिस्सों को साथ रख कर, चीज़ों को संपूर्णता में देखने में मदद मिल सकती हैं।
    • जब आप अपने विचार प्रोसेसेज़ तथा पैटर्न्स पर ध्यान देना शुरू कर देते हैं, तब आपको अटेंटिव नॉन-जजमेंट (attentive non-judgment) प्रैक्टिस करने की ज़रूरत पड़ेगी। इसका अर्थ है कि आपको अपने विचारों के पैटर्न के संबंध में जागरूक रहना होगा और उनको स्वीकार करना होगा, मगर आपको उनके कारण स्वयं को तकलीफ़ नहीं देनी होगी। विचार पैटर्न और प्रोसेसेज़ निगेटिव भी हो सकते हैं। उन पर ध्यान दे कर, आप उनको अपने दिमाग़ से एलिमिनेट कर सकते हैं।
  2. जब एक बार आप इस पर ध्यान देने लगते हैं कि आप अपने बारे में और दुनिया के संबंध में किस तरह सोचते हैं, तब खास तौर से उन तरीकों पर ध्यान दीजिये जिनसे आप ख़ुद को पहचानते हैं। देखिये कि आप अपनी पहचान बनाने के लिए किन ग्रुप्स तथा कम्युनिटीज़ का इस्तेमाल करते हैं। इन सबसे आपको यह पता चलता है कि आप ख़ुद को कैसे देखते हैं, और यह सब आपको यह बताता है कि आप किसको, ख़ुद को डिफ़ाइन करने दे रहे हैं। [1]
    • उदाहरण के लिए, धर्म, राष्ट्रीयता, सेक्सुयल पहचान, जैसी चीज़ों को देखिये और यह समझिए कि क्या आप इन चीज़ों को ख़ुद कर डिफ़ाइन करने दे रहे हैं।
    • उन भूमिकाओं की ओर देखिये, जिन्हें आप निभाते हैं, जैसे कि आपका जॉब, परिवार में आपकी पोज़ीशन (माता, पिता, बहन, भाई), आपका रोमांटिक स्टेटस (अकेले, जोड़े में, आदि)।
  3. विचार प्रोसेसेज़ तथा सेल्फ़-डेफ़िनिशन्स को लिख डालिए: अपने विचार प्रोसेसेज़ और डेफ़िनिशन्स, तथा वे कैसे यह तय करते हैं कि आप कैसे व्यवहार करते हैं और आप कौन हैं, को देखने में महारत पाने के लिए जब भी आप उनकी पहचान करें, उसी समय उनको एक नोटबुक में लिख डालिए। इससे आप यह देख पाएंगे कि आप ख़ुद को किस तरह कंसीडर करते हैं और इसके कारण निगेटिव असोसिएशन्स को एलिमिनेट करना भी आसान हो जाएगा।
    • किसी क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक से बात करने से और उसके इलाज से स्वयं के होने और अपने विचारों के पैटर्न का खुलासा करने में बहुत सहायता मिल सकती है। इससे आपको अपने विचारों के दूसरे निगेटिव पक्षों से डील करने में भी सहायता मिलेगी।
विधि 2
विधि 2 का 2:

अपनी सेल्फ़ डेफ़िनिशन बनाना

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  1. उनको रिकॉर्ड करने से और उन पर ध्यान देने से आपको उनको छोड़ने में सहायता मिलेगी। उनको खुल कर बाहर आने देने से, आप पर और आपके दिमाग़ पर उनके नियंत्रण में ढील आने में भी सहायता मिल सकती है। [2]
    • ख़ुद को निगेटिव तरह से सीमाबद्ध मत कर लीजिये। सेल्फ़ की डेफ़िनिशन एक्शन को तय करती है। तो, उदाहरण के लिए आप ख़ुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में डिफ़ाइन करते हैं जिसके रोमांटिक संबंध ख़राब रहे हैं, तब तो आपने अच्छे रोमांटिक संबंध की संभावना ही खो दी है। यह एक ऐसी कहानी है जो आप ख़ुद को सुनाते हैं, और फिर चूंकि आप उस कहानी पर विश्वास करने लगते हैं, इसलिए आप उसी प्रकार बिहेव करेंगे जिससे कि वह कहानी सच हो जाये।
  2. आप नहीं चाहेंगे कि बाह्य फ़ोर्सेज के आधार पर आपको डिफ़ाइन किया जाये, क्योंकि बाह्य फ़ोर्सेज तो अस्थिर होते हैं और उनमें लगातार परिवर्तन होता रहता है। अपनी सेल्फ़-डेफ़िनिशन को कोर वैल्यूज़ के आधार पर बनाने से आपके पास एक स्थाई सेल्फ़-डेफ़िनिशन होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • अगर आप उसे उन वैल्यूज़ के आधार पर बनाएँगे, जो आपके कोर में हैं, जैसे कंपैशन, साहस, तथा इंटीग्रिटी, तब आप अपनी पहचान नहीं गंवायेंगे।
    • इन वैल्यूज़ की एक लिस्ट बना कर उसको लिख डालिए, उसके बाद सोच विचार कर, और जान बूझ कर, उनको अपने दैनिक जीवन में एक्ट करिए। इसलिए अगर साहस आपकी कोर वैल्यूज़ में से एक है, तब अगर बस स्टॉप पर किसी को परेशान किया जा रहा हो, तब उसके लिए खड़े हो जाइए, या अगर ईमानदारी आपकी कोर वैल्यूज़ में से एक है तब अपने पिताजी के पास जा कर स्वीकार कर लीजिये, कि उनकी प्रिय घड़ी आपसे खो गई थी। अगर कंपैशन को उस सूची में जगह मिली है, तब होमलेस शेल्टर में वोलंटियर के रूप में कुछ समय बिताइए।
  3. इसका यह अर्थ नहीं है कि आपके जीवन में जो निगेटिव घटनाएँ और एक्शन्स हुये हैं आप उनको स्वीकार ही नहीं करेंगे। वे भी आपका उतना ही हिस्सा हैं जितना पॉज़िटिव, मगर वे आपको डिफ़ाइन नहीं करते। [3]
    • इसका अर्थ यह है कि आप बाह्य परिस्थितियों को अपनी पहचान पर हावी होने का मौका नहीं देते हैं। यह पहचान अंदर से आती है, उन कोर वैल्यूज़ से, जिनको आपने पहले ही अपनी पहचान के लिए महत्वपूर्ण होने के लिए आइडेंटिफ़ाई कर लिया है।
    • जान लीजिये कि जीवन के निगेटिव अनुभवों ने आपको ज्ञान दिया है। जैसे कि, अगर आपको रोमांस में निगेटिव अनुभव हुआ है, तब उन अनुभवों से सीखिये। आप किस तरह के व्यक्ति होना चाहते हैं, इस संबंध में उन अनुभवों ने आपको क्या सिखाया है?

सलाह

  • कभी भी यह मत भूलिएगा कि आपके सिवा कोई दूसरा आपको डिफ़ाइन नहीं कर सकता है। हमेशा, केवल आप ही होंगे जो यह तय कर सकेगा कि वास्तव में आप कौन हैं।
  • अपने साथ ईमानदार रहिए, मगर बहुत अधिक क्रिटिकल मत हो जाइयेगा। इसका अर्थ यह है कि स्वयं से कभी मत कहिए: "मैं बदसूरत हूँ," या "मैं मूर्ख हूँ।"

चेतावनी

  • दूसरों से अपनी तुलना मत करिए, आप नहीं कर सकते हैं, यह उनके और आपके, दोनों के लिए अनुचित होगा, क्योंकि आपके फ़र्क बैकग्राउंड हैं, फ़र्क असुरक्षाएँ हैं, जीवन से और स्वयं से भी फ़र्क अपेक्षाएँ हैं। दो लोगों की तुलना करने का अर्थ होता है कि इन सभी चीज़ों को प्रोडक्ट्स के रूप में लेना और देखना कि उनमें से कौन बेहतर है।
  • ख़ुद को किसी भी कैटेगरी में यह सोच कर मत रख लीजिये, कि आपको वहाँ पर होना ही चाहिए।

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