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संतोषजनक और आनंददायक जीवन सुनिश्चित करने के लिए पॉजिटिव एटिट्यूड आवश्यक होते हैं। पॉजिटिव एटिट्यूड बनाने से आपको सकारात्मक भावनाओं का अनुभव होने पर, उनको पहचान पाना और अनुभव करना सरल हो जाएगा। इसके साथ ही आप नकारात्मक भावनाओं को भी उत्पन्न होने के साथ ही पुनर्गठित करने लगेंगे। स्वयं के लिए समय निकाल पाना और रिश्तों का विकास कर पाना पॉजिटिव एटिट्यूड के महत्वपूर्ण भाग होते हैं।

विधि 1
विधि 1 का 5:

पॉजिटिव एटिट्यूड के महत्व को समझना

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  1. जान लीजिये कि पॉजिटिव एटिट्यूडव नेगेटिव फीलिंग्स को घटायेंगे: पॉजिटिव एटिट्यूड के होने से, आपको पॉजिटिव फीलिंग्स के ढेर सारे अनुभव प्राप्त करने में सहायता मिलती है। ये वे पल होते हैं जब आप नकारात्मक भावनाओं के बोझ से दबे नहीं होते हैं। सकारात्मक मनोभाव आपको जीवन में और अधिक संतोष तथा आनंद प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इनके कारण आप नकारात्मक अनुभवों से और भी जल्दी उबर सकते हैं।
  2. सकारात्मक सोच और शारीरिक स्वास्थ्य में संबंध पहचानिए: शोध से यह पता चला है कि तनाव और अन्य नकारात्मक भावनाएँ हृदय के कोरोनरी रोगों जैसी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण हो सकती हैं। [१] [२] नकारात्मक भावनाओं के स्थान पर सकारात्मक भावनाओं को लाने से आपका सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुधर सकता है।
    • सकारात्मक मनोभाव बीमारी की ओर बढ़ते हुये आपके कदमों की गति को कम भी कर सकते हैं। यह इसलिए होता है, क्योंकि सकारात्मक भावनाएँ नकारात्मक भावनाओं के बढ़ाव की मीयाद को कम कर देती हैं। [३]
  3. सकारात्मकता, सृजनात्मकता और मनोयोग में संबंध स्थापित करिए: शारीरिक लाभ के साथ सकारात्मक मनोभावनाओं से “विस्तृत, लचीला संज्ञानात्मक संगठन तथा असमान वस्तुओं के एकीकरण की क्षमता” प्राप्त होती है। [४] इन प्रभावों का संबंध न्यूरल डोपमिन (neural dopamine) के स्तरों से होता है, [५] जिससे आपका मनोयोग, आपकी सृजनात्मकता और सीखने की क्षमता बढ़ती है। सकारात्मक मनोभाव किसी व्यक्ति की कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता को भी बढ़ाते हैं। [६] [७] [८]
  4. सकारात्मक मनोभावों की संरचना और उनको बनाए रखने से आपको पीड़ा और हानि जैसी जीवन की नकारात्मक घटनाओं के प्रति अधिक लचीला बनने में सहायता मिलती है।
    • वे लोग जो प्रियजन की मृत्यु के अनुभव के दौरान सकारात्मक भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं, उनकी पृवृत्ति, स्वस्थ, दीर्घ कालीन योजनाएँ बनाने की होती है। उद्देश्य और लक्ष्य होने के परिणामस्वरूप, प्रियजन की मृत्यु के लगभग एक साल बाद, आम तौर पर ठीक ठाक होने की भावना आ जाती है। [९]
    • भावनात्मक लचीलेपन और तनाव की प्रतिक्रियाओं से संबन्धित एक प्रयोग में सहभागियों को एक तनावपूर्ण कार्य सम्पूर्ण करने के लिए दिया गया था। परिणामों से यह पता चला कि सभी सहभागी, चाहे वे प्राकृतिक रूप से कितने भी लचीले क्यों न हों, कार्य के प्रति तनावग्रस्त थे। परंतु अधिक लचीले सहभागी, कम लचीले सहभागियों की अपेक्षा जल्दी ही शांत स्थिति में वापस लौट पाये। [१०]
विधि 2
विधि 2 का 5:

आत्म-चिंतन के लिए समय निकालना

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  1. सकारात्मक मनोभाव बनाने के संबंध में ऐसे ही सोचिए जैसे कि आप शक्ति निर्माण या फ़िटनेस को विकसित करने के संबंध में विचार करते हैं। यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए सतत प्रयास की आवश्यकता होती है।
  2. अपने सबसे मज़बूत गुणों को पहचानिए और उनको विकसित करिए: अधिक सकारात्मक अनुभवों को उत्पन्न करने में सहायता के लिए अपनी क्षमताओं पर ध्यान केन्द्रित करिए। परिणामस्वरूप इससे कठिनाइयों का सामना करना सरल हो जायगा।
    • ऐसी चीज़ें, जिन्हें करने में आपको आनंद आता है या जिन्हें करने में आप कुशल हैं, उनकी सूची बनाइये। इनमें से कुछ चीजों को नियमित रूप से करने का प्रयास करिए। इससे आपके सकारात्मक अनुभवों की पूंजी बनेगी।
  3. अध्ययनों से पता चला है कि आत्म चिंतन, स्कूल तथा कार्य क्षेत्र में सीखने और सिखाने का प्रभावी उपकरण हो सकता है। [११] [१२] आत्म चिंतन का उपयोग सकारात्मक मनोभाव विकसित करने में सहायता के लिए भी किया जा सकता है। भावनाओं और विचारों को लिख लेने से आपको अपने व्यवहार और प्रतिक्रियाओं को पहचान पाने में मदद मिलती है।
    • शुरू में तो आत्म चिंतन को लिखना विचित्र या अजीब लग सकता है। परंतु समय और अभ्यास के साथ, आप अपने लेखन में कुछ व्यावहारिक और भावनात्मक पैटर्न पहचान सकते हैं। इससे आपको उन क्षेत्रों को पहचान पाने में सहायता मिलेगी जो आपके और आपके लक्ष्यों के बीच आते हैं।
  4. दिन भर में हुई सकारात्मक चीजों के संबंध में लिखिए: अपने दिन का पुनरीक्षण कीजिये और उसमें सकारात्मक चीज़ें पहचानिए। इनमें वे चीज़ें सम्मिलित हो सकती हैं जिनसे आप खुश, गौरवान्वित, चकित, आभारी, शांत, संतुष्ट, प्रसन्न या आपमें कोई भी अन्य सकारात्मक भावना उत्पन्न हुई हो।
    • जैसे कि अपनी प्रातःकाल की दिनचर्या की याद करिए और कुछ समय उन पलों का ध्यान करने में लगाइए जिनमें आपको शांति या प्रसन्नता मिली हो। इसें सुबह के रास्ते पर देखा हुआ कोई दृश्य हो सकता है, या कॉफी की पहली चुस्की से मिलने वाली खुशी या कोई मज़ेदार बातचीत।
    • विशेष समय निकाल कर उन पलों पर ध्यान केन्द्रित करिए जहां पर आप स्वयं पर गौरवान्वित हुये हों या किसी और के आभारी। ये छोटी चीज़ें हो सकती हैं, जैसे कि अपने साथी द्वारा बिस्तर ठीक कर दिये जाने का आभार। आप अपने द्वारा किसी कार्य के पूरा किए जाने पर गर्व कर सकते हैं या स्वयं ही अपने लिए तय की गई किसी चुनौती को पूरा कर लेने पर।
    • आप पाएंगे कि दिन भर के सकारात्मक पलों के चिंतन से शुरुआत करने से आपको सहायता मिलेगी। सकारात्मक भावों का पुनरानुभाव करने से आपको अपने दृष्टिकोण को नकारात्मक क्षणों के संबंध में समायोजित करने में सहायता मिलेगी।
  5. उन पलों के बारे में लिखिए जब आपको नकारात्मक भाव आए हों: अपने दिन के उन पलों को पहचानिए जब आपने नकारात्मक भावों का अनुभव किया हो। इसमें अपराध बोध, शर्म, परेशानी, उलझन, निराशा, भय या विरक्ति शामिल हो सकते हैं। क्या इनमें से कोई भी विचार अतिशय प्रतीत होते हैं? शायद आप इसलिए शर्मिंदा हैं क्योंकि आपने अपने बॉस पर कॉफी गिरा दी थी। क्या आपको लगता है कि आप इस कारण अपनी नौकरी खो देंगे और फिर आपको कभी काम नहीं मिलेगा? दिन प्रतिदिन की घटनाओं के प्रति अतिशय प्रतिक्रियाएँ आपके अधिक सकारात्मक और उत्पादक विचारों को अवरुद्ध कर सकती हैं।
  6. नकारात्मक क्षणों का सकारात्मक जैसा पुनर्गठन करिए: अपनी नकारात्मक क्षणों की सूची देखिये। कुछ समय लगाकर इन पलों का पुनर्गठन ऐसे करने का प्रयास करिए ताकि आप इन अनुभवों से सकारात्मक (या कम से कम निष्पक्ष) भावनाएँ प्राप्त कर सकें।
    • जैसे कि, यदि आपको घर वापस आते समय सड़क पर लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा है तब दूसरे चालक की नीयत को उसकी इमानदार भूल समझने का प्रयास करिए। यदि आप दिन में हुई किसी घटना के लिए शर्मिंदा हैं, तो उसके बारे में ऐसे सोचिए कि वह कितनी मामूली और हास्यास्पद घटना थी। चाहे आपका बॉस कॉफी गिरने के कारण आपसे रुष्ट ही क्यों न हो, भूलें तो हो ही जाती हैं। यदि आप भाग्यशाली होंगे तब तो आपका बॉस भी उसे हंसी में ही उड़ा देगा।
    • यदि आप छोटी मोटी गलतियों को जीवन में फेर बदल वाले अनुभवों जैसा नहीं समझेंगे, तब आप परिस्थितियों का सामना बेहतर तरीके से कर पाएंगे। कॉफी वाली परिस्थिति का सामना करने का एक तरीका तो यह है कि आप पहले अपनी वास्तविक चिंता अपने बॉस से व्यक्त करिए और निश्चिंत हो जाइए कि आपने उन्हें जलाया नहीं है। तब फिर, आप लंच के दौरान उसे एक नई कमीज़ खरीद कर देने की, या दाग वाली कमीज़ को ड्राइ-क्लीन कराने की पेशकश करिए।
  7. बढ़ी हुई सामना-करने-की-क्षमता से समय के साथ सकारात्मक भावनाओं में भी वृद्धि होती है। [१३] सकारात्मक भावनाओं से आपको जो लाभ प्राप्त होते हैं वे स्थायी होते हैं। जितने समय तक आप प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, ये उससे कहीं अधिक समय तक कायम रहती हैं। आप बाद में और विभिन्न भावनात्मक स्थितियों में इस “प्रसन्नता की पूंजी” का उपयोग कर सकते हैं।
    • यदि आपको लगता है कि सकारात्मक भावनात्मक अनुभवों के निर्माण में आपको समस्याएँ आ रही हैं तब भी चिंता मत करिए। आपके पास अतीत की जो यादें हैं आप उनसे भी “प्रसन्नता की पूंजी” का निर्माण कर सकते हैं।
  8. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सभी लोग जीवन की छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करते हैं, और आप अकेले ही नहीं हैं। अतिशय प्रतिक्रियाओं के पुनर्गठन के अनुसार समायोजन एवं उसको स्वीकार करने के लिए अभ्यास और साथ ही समय की आवश्यकता पड़ती है। परंतु अभ्यास से, छोटी मोटी चीजों को जाने दे पाना संभव हो पाता है। आप बड़े मसलों को विवेकपूर्ण ढंग से देख पाएंगे और समझ पाएंगे कि वे सीखने के सुअवसर हैं।
  9. आपके “अंदर का आलोचक” सकारात्मक मनोभाव बनाने की प्रगति को बाधित कर सकता है। [१४]
    • जैसे कि, आपके अंदर के आलोचक ने आपको कॉफी गिराने पर शायद मूर्ख कहा होगा। आपके अंदर का आलोचक, हर समय आपको नीचा दिखाता है और आपके साथ दुष्टता भी करता है। सोचिए कि कब कब वह अंदर का आलोचक आपसे इस प्रकार की बातें कहता है। जब आपका आंतरिक आलोचक सामने आता होगा तब आपकी पैठ उन परिस्थितियों और समय के संबंध में और भी बढ़ जाएगी।
    • साथ ही आप अपने अंदर के आलोचक को तथा विचार करने के अन्य नकारात्मक तरीकों को चुनौती देना भी प्रारम्भ कर सकते हैं। सकारात्मक मनोभावों को विकसित करने का यह एक महत्वपूर्ण भाग है।
विधि 3
विधि 3 का 5:

अपने लिए समय निकालना

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  1. जिसे करने में आनंद आता हो या जिसको करने से आपको खुशी मिलती हो, वह करके अपने लिए समय निकालिए। [१५] अपने लिए समय निकाल पाना कठिन होता है और विशेषकर तब, जबकि आप ऐसे व्यक्ति हों जिसके लिए दूसरे लोग ही सर्वोपरि होते हैं। यह और भी चुनौतीपूर्ण तब हो जाता है जब आपके जीवन की कुछ विशेष परिस्थितियाँ हों, जैसे कि घर पर छोटे बच्चे हों या किसी रोगी की तीमारदारी करनी हो। परंतु सदैव ही “दूसरों की मदद करने से पहले अपना ऑक्सिजन मास्क ठीक से लगाना मत भूलिए।“ आप सबसे बढ़िया तरीके से देखभाल तभी कर पाएंगे जबकि आप स्वयं सबसे बढ़िया हाल में होंगे।
    • यदि आपको संगीत सुनना अच्छा लगता है, तब संगीत सुनिए। यदि पुस्तकें पढ़ना पसंद है तब, समय निकालकर किसी शांत वातावरण में पढ़िये। सुंदर दृश्य देखिये, स्वयं को किसी संग्रहालय में ले जाइए, या कोई ऐसी मूवी देखिये जिसमें आपको आनंद आए।
    • जिन चीजों को करने से खुशी मिलती है, उनको करते समय क्रियाशील रहिए। यह सकारात्मकता पर केन्द्रित रहने का एक बढ़िया तरीका है।
  2. संतोष के पलों के संबंध में विचार करने के लिए समय निकालिए: कोई भी आपके द्वारा किए जा रहे दिन के या स्वयं के पुनरीक्षण को देख नहीं रहा है और न ही उसका मूल्यांकन कर रहा है, इसलिए अख्खड़ दिखने की चिंता मत करिए। किसी चीज़ का आनन्द लेने के लिए, आवश्यक नहीं है कि आप उसमें माहिर हों या आप उससे दूसरों को खुश कर सकें।
    • यदि आपको खाना पकाना भली भांति आता है, तब स्वयं से यह स्वीकार करिए कि आप प्रतिभासम्पन्न खाना बनाने वाले हैं। इसी प्रकार से यदि आपको गाना गाना अच्छा लगता है इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके लिए आपको चमत्कारी गायक होना ही चाहिए।
    • जीवन में संतोष, गर्व, संतुष्टि और प्रसन्नता के पलों को और उन गतिविधियों को देखना, जिनसे यह पल मिले हों यह सुनिश्चित करने का एक अच्छा तरीका है कि आप भविष्य में भी उनको दोहरा सकें।
  3. आप दूसरे लोगों जैसे नहीं हैं, इसलिए दूसरों के मानदंडों से स्वयं का आकलन करने का कोई कारण ही नहीं है। आपको उन चीज़ों में आनंद आ सकता है जिनमें दूसरों को नहीं आता है। आपके जीवन में सफलता का क्या अर्थ है, आपको इसका निर्णय करने की "अनुमति" है। [१६]
  4. स्वयं के बारे में आपके विचार, दूसरों के बारे में आपके विचारों से उसे प्रकार से बहुत भिन्न होते हैं, जैसे कि विश्वप्रसिद्ध कला एक फ़ुट दूर से देखने और 20 फ़ुट दूर से देखने में बहुत अंतर होता है। यह जान लीजिये कि किसी और की जो छवि आप देखते हैं, शायद वह बनी हुई ऐसी छवि होती है जो कि वह व्यक्ति प्रदर्शित करना चाहता है। छवि शायद वास्तविकता को केवल कुछ अंशों तक ही प्रतिबिम्बित करती है। स्वयं की, दूसरे लोगों से तुलना करना तथा दूसरों के मतानुसार आत्ममूल्यांकन करना छोड़ दीजिये। इससे आपको दूसरे लोगों के व्यवहार के संबंध में व्यक्तिपरक निर्णय लेने में कमी हो जाएगी।
    • जैसे कि, यदि किसी मिलने जुलने वाले से कोई नकारात्मक बातचीत हो जाती है, तब इसका अर्थ यह मत समझ लीजिये कि वे आपको नापसंद करते हैं। बल्कि यह मान लीजिये कि आप दोनों के बीच कोई गलतफहमी हो गई है या आपके परिचित को शायद कोई और ही चीज़ परेशान कर रही है।
विधि 4
विधि 4 का 5:

संबंध विकसित करना

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  1. चाहे आप स्वयं को "अंतर्मुखी" समझते हों या ऐसा व्यक्ति जो अकेले रह कर ही शक्ति उत्पन्न कर सकता है, और बहुत से मित्रों की आवश्यकता न भी महसूस करते हों, संबंध, मानव अनुभवों के महत्वपूर्ण भाग होते हैं। मैत्री और आपसी संबंध, स्त्री पुरुष, एवं अन्य सभी प्रकार के व्यक्तित्वों के लिए समर्थन, पुष्टीकरण एवं शक्ति का स्त्रोत होते हैं। अपने जीवन में परिजनों और मित्रों से स्वस्थ संबंध बनाए रखिए।
    • शोध से यह पता चला है कि ऐसे व्यक्तियों से बातचीत करके जिनकी आप परवाह करते हैं और जिनसे आपको समर्थक प्रतिक्रियाएँ मिलती हैं, आपके मनोभाव तुरंत ही सुधर जाते हैं। [१७]
  2. जब आप नए लोगों से मिलते हैं तब उनमें से पहचानिए कि किनके आसपास रहने से आपको अच्छा लगता है। इन लोगों के साथ संबंध विकसित करिए। ये लोग आपके इर्द गिर्द समर्थकों का समूह बढ़ायेंगे और सकारात्मक मनोभाव बनाने में मदद करेंगे।
  3. अपनी भावनाओं के संबंध में किसी मित्र से बातें करिए: यदि आपको स्वयं सकारात्मक भावनात्मक अनुभव उत्पन्न करने में कठिनाई हो रही हो तब किसी मित्र से सहारा मांगिए। आपको ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आपको अपनी नकारात्मक भावनाओं को दफना ही देना है। इसके स्थान पर उनके संबंध में किसी मित्र से बातें करने से आपको उनको सुलझाने में और प्रसन्न भावनाओं के लिए स्थान बनाने में सहायता मिलती है।
विधि 5
विधि 5 का 5:

तनावपूर्ण परिस्थितियों से निबटना

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  1. तनावपूर्ण परिस्थितियों को सकारात्मक मोड़ दीजिये: तनावपूर्ण परिस्थिति को सकारात्मक रूप देने का अर्थ है कि स्थिति को ले कर एक नया ही मोड़ दे देना। [१८]
    • उदाहरण के लिए, यदि आपके पास काम की लंबी चौड़ी सूची हो, तब उसकी ओर देख कर यह कहने के स्थान पर कि, "इतना सब तो मुझसे हो ही नहीं सकता है" यह कहने का प्रयास करिए कि, "मैं इसमें से अधिकांश काम तो कर सकता हूँ।"
  2. समस्या केन्द्रित समाधान तब होते हैं जब आप उस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जिसके कारण आपको तनाव हो रहा है और उसका समाधान निकालने का प्रयास करते हैं। समस्या को भागों में तोड़ लीजिये जिससे कि आप उसको सुलझा सकेंगे। संभावित रुकावटों और बाधाओं को पहचान लीजिये और फिर यह निर्णय लीजिये कि जब वे उठ खड़ी होंगी तब आप उनसे कैसे निबटेंगे।
    • उदाहरण के लिए यदि आपको सहकर्मियों के साथ साथ कम नहीं कर पाने के कारण समस्या हो रही है, तब बैठिए और स्थिति का विश्लेषण करिए। पहचानिए कि क्या स्थितियाँ चल रही हैं। तब विचारमंथन करके इस समस्या के संभावित हल लिख डालिए।
    • जैसे कि, राजू को सीमा पसंद नहीं है, और आपका नियोक्ता टीम कार्य को प्रोत्साहित नहीं करता है बल्कि व्यक्तिगत प्रयासों को ही पुरस्कृत करता है। समस्या केन्द्रित समाधान का उपयोग करते हुये, आपको दृढ़ता से कहना होगा कि राजू और सीमा एक दूसरे को नापसंद तो कर सकते हैं, परंतु एक व्यावसायिक आचरण का मानक अपेक्षित है और वही लागू किया जाएगा। उसके बाद एक समूह गतिविधि करिए जहां प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के संबंध में तीन सकारात्मक बातें कहेगा।
    • टीम के सदस्यों में संबंध विकसित करने और परियोजनाओं को सफलता पूर्वक पूरी करने के मामले में, आपकी टीम, कंपनी की संस्कृति को परिवर्तित करने में उदाहरण का काम कर सकती है।
  3. एक और तरीका जिससे लोग कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक भावनाओं का अनुभव करते हैं, वह है साधारण घटनाओं में और कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक अर्थ खोज पाना। [१९] [२०]
    • याद रखिए कि नकारात्मक परिस्थित्यों को सकारात्मक मोड़ देने के अभ्यास करते रहने से आप इसे और भी सरलता और प्राकृतिक रूप से कर पाएंगे। इसके कारण आप पाएंगे कि नकारात्मक परिस्थितियों को सकारात्मक मोड़ देने से आपका सम्पूर्ण जीवन अधिक प्रसन्न और आनंददायक हो जाएगा।

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रेफरेन्स

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