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क्या आपका जीवन इसलिए बोझिल हुआ जा रहा है क्योंकि आपको पता है कि आपने ऐसा कुछ किया है, जो गलत था? पश्चाताप ही वह कुंजी है, जिससे आप ईश्वर से, इसके लिए बातें कर सकते हैं, उनके साथ समझौता कर सकते हैं जिन्हें आपने हानि पहुंचाई हो और हृदय की शांति प्राप्त कर सकते हैं। पहले चरण से शुरुआत करिए और सीखिये की कैसे पश्चाताप कर, अपनी आत्मा को शांति दे सकते हैं।

विधि 1
विधि 1 का 3:

अपने पापों को स्वीकार करना

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  1. याद रखिए: आप दूसरों से झूठ बोल सकते हैं, स्वयं से झूठ बोल सकते हैं, मगर ईश्वर से झूठ नहीं बोल सकते हैं। यदि आप वास्तव में पश्चाताप करना चाहते हैं, तब आपको विनीत बने रहने की और यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि आप सदैव ही सब कुछ सही नहीं करते हैं। ईश्वर के सम्मुख विनीत बने रहिए और अपने हृदय में यह ज्ञान रखिए कि वही सही है और आपको हमेशा उसकी बातों को मानना चाहिए।
  2. अपने हृदय में इशवर का वास और उसकी उपस्थिति सदैव महसूस करिए: आपको यह विश्वास करना होगा की ईश्वर आपको क्षमा कर सकता है और आपको बेहतर जीवन जीने में सहायता कर सकता है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तब, आप शीघ्र ही अपनी भूलों को ठीक करने की प्रेरणा खो बैठेंगे। बुरी आदतों को बदलना और गलतियों को ठीक करना कठिन है और आपको विश्वास करना होगा कि ईश्वर आपके साथ है और आपसे तो गलतियाँ होंगी ही। [१]
  3. उन सभी पापों पर विचार करिए जो आपसे हुये हैं और जो गलतियाँ आपने की हैं। अपने आपको, बस बड़ी बड़ी चीजों जैसे बेईमानी और चोरी तक ही सीमित मत करिए: ईश्वर की निगाह में सभी पाप बराबर हैं। कभी कभी पापों की लिखित सूची बनाना लाभकर हो सकता है। मगर आपको पूरी सूची एक बार में ही बना डालने की आवश्यकता नहीं है। अच्छा होगा, यदि आप इस पर थोड़ा समय दें, मगर काम पूरा करें।
  4. पश्चाताप करने से पहले यह सोच लेना आवश्यक है कि आपने जो भी किया आखिर वह गलत क्यों था। ईश्वर के आदेशों को बिना सोचे समझे पालन करते जाने से उसे लगता है कि आप को यह समझ में नहीं आया है कि आपने जो भी किया था वह गलत था। उन लोगों के संबंध में विचार करिए जिन्हें आपने अपने पाप से आहत किया है और उस पाप ने आपकी आत्मा के साथ क्या किया है (संकेत: वह आपके लिए अच्छा नहीं है!)। उन बुरी चीजों के बारे में सोचिए जो कि अपराध बोध आपके साथ करता है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है!
  5. सुनिश्चित करिए कि जब आप पश्चाताप करें तब वह सही कारणों से हो। यदि आपको लगता है कि आपको पश्चाताप इसलिए करना चाहिए क्योंकि ईश्वर आपकी कोई असम्बद्ध इच्छा पूरी कर देगा, तब तो आप पश्चाताप सही कारणों से नहीं कर रहे हैं। पश्चाताप इसलिए मत करिए कि उससे आपको भौतिक सुख, समृद्धि या उस जैसी अन्य चीज़ें ईश्वर से मिल जाएंगी बल्कि इसलिए करिए क्योंकि वह आपकी आत्मा के लिए अच्छा है और उससे आपका जीवन अधिक आनंददायक और उत्पादक बन जाएगा। ईश्वर इसलिए नहीं बैठा है।
  6. जब आप पश्चाताप करे तब प्रारम्भ में अपने धर्म की धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करिए (वेद, पुराण, बाइबल, कुरान, टोरह आदि)। पश्चाताप से संबन्धित अंशों को तो पढ़िये ही, साथ ही पूरी पुस्तक का अध्ययन भी करिए ताकि ईश्वर की वाणी आपके अंतर तक पहुँच सके और आपको दिशा निर्देश प्रदान कर सके। जब हम पाप करते हैं, तो उसका कारण यह होता है कि हम अपनी राह से भटक गए होते हैं। आपको ईश्वर की दिखाई राह को खोजने की आवश्यकता है ताकि आप पुनः उसी राह पर चल सकें।
    • ईसाइयों की बाइबल में पश्चाताप से निबटने के लिए अनेक अंश हैं, जिनमें Matthew 4:17, तथा Acts 2:38 और 3:19 शामिल हैं।
    • कुरान में अत-तहरीम 66:8 वह मुख्य अंश है जिसमें पश्चाताप से निबटा गया है।
    • यहूदी पश्चाताप संबंधी अंश Hosea 14:2-5, Proverbs 28:13, तथा Leviticus 5:5 में पा सकते हैं।
विधि 2
विधि 2 का 3:

चीजों को ठीक करना

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  1. आपका आध्यात्मिक सलाहकार जैसे पुरोहित, पुजारी, इमाम, या रब्बी आपको पापों को स्वीकार करने और ईश्वर के साथ सब कुछ ठीक करने में आपकी सहायता कर सकते हैं। याद रखिए, कि उनका काम ही ईश्वर की राह में आपकी सहायता करना है! उन्हें मदद करने में अच्छा लगता है और वे समझते हैं कि मनुष्य तो सम्पूर्ण है नहीं: वे आपका आकलन नहीं करेंगे! चाहे आप आधिकारिक रूप से उनके धार्मिक समाज के नहीं भी हों, तब भी आप उनकी सलाह मांग सकते हैं और उनसे मिलने का समय मांग सकते हैं, इसलिए ऐसे किसी भी सलाहकार से बातें करने में हिचकिचाइए मत, जिसे आप पहले से जानते नहीं हों।
    • यह मत सोचिएगा कि पश्चाताप करने के लिए आपको ईश्वर के घर में जाने की ही आवश्यकता है या ईश्वर को अपनी बात सुनाने के लिए किसी सलाहकार की आवश्यकता होती ही है। ईश्वर आपकी बात भी उतनी ही सुनता है, जितनी धर्मगुरुओं की। यदि आप चाहें तो आप अपने आप भी पश्चाताप कर सकते हैं।
  2. जब आप पश्चाताप करें, तब मुख्य बात है अपना व्यवहार बदलने की। आपको उन पापों को करने से बचना होगा जिनके लिए आप पश्चाताप करना चाह रहे हैं। हमें पता है कि यह कठिन है, मगर आप कर सकते हैं! इसमें समय लगेगा और कुछ गलतियाँ भी होंगी, मगर यदि आप गंभीर हैं और वास्तव में पश्चाताप करना ही चाहते हैं, तब आप इन अवरोधों को पार कर ही लेंगे।
  3. स्वयं ही परिवर्तन कर पाना कठिन हो सकता है। यदि आपको हृदय में ईश्वर के प्रेम से अधिक भी कुछ चाहिए, तब तो यह ठीक है! यह स्वीकृति कि आपको मदद चाहिए, ईश्वर को प्रसन्न करेगी, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि आप विनीत हैं। आप किसी समर्थन समूह में शामिल हो सकते हैं, किसी आध्यात्मिक गुरु से चर्चा कर सकते हैं, किसी धार्मिक संप्रदाय में शामिल हो सकते हैं, या किसी चिकित्सक या किसी अन्य व्यावसायिक से सहायता प्राप्त कर सकते हैं। अपने धर्म समूह से बाहर से मदद मांगने से ईश्वर अप्रसन्न नहीं होता है: उसने उन्हें वे सभी गुण किसी कारण से ही प्रदान किए हैं!
  4. आपने जो समस्याएँ उत्पन्न की हैं, उन्हें सुलझाइए: पश्चाताप का एक अन्य मुख्य भाग है, अपनी की हुई चीजों को ठीक करना। आप, परिणामों को भोगे बगैर, केवल यह कह कर कि आपको अफसोस हुआ है, छुटकारा नहीं पा सकते हैं। यदि आपने कुछ चुराया है तो आपको उस व्यक्ति को, जिससे आपने सामान चुराया हो, बताना पड़ेगा और उसकी भरपाई करनी होगी। यदि आपने झूठ बोला है और आपके झूठ से किसी को तकलीफ हुई है, तब आपको सच बताना होगा और उस व्यक्ति की सहायता करनी होगी। यदि आपने किसी परीक्षा में बेईमानी की है, तब आपको आवश्यकता है अपने अध्यापक को यह बताने की और जो भी परिणाम वे उचित समझते हों, उसे स्वीकार करने की। जिनको भी आपने ठेस पहुंचाई हो, उनके लिए जो भी आप कर सकते हों, करिए। यह ईश्वर को प्रसन्न करेगा।
  5. आप जिन पापों को ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं, उनसे शिक्षा प्राप्त करिए, ताकि आप अन्य क्षेत्रों में वही भूलें करने से बच सकें। अपनी भूलों से ऐसी शिक्षा प्राप्त करिए ताकि आप अपने जीवन में अन्य समस्याओं से बच सकें। जैसे कि, यदि आपने किसी परीक्षा में बेईमानी करने के संबंध में झूठ बोला हो और आप चाहते हों कि उस सीख से आपको लाभ पहुंचे तब सुनिश्चित करिए कि आप अन्य मामलों में भी झूठ न बोलें।
  6. दूसरों की मदद करें ताकि वे आपकी गलतियों को न दोहराएँ: अपने पापों से कुछ महत्वपूर्ण कार्य कर पाने की एक अन्य विधि है अपनी भूलों से दूसरों को कुछ सीखने का अवसर देना। कभी कभी इसका अर्थ होता है, लोगों से जा कर अपनी करनी के संबंध में बातें करना, मगर आप सक्रिय रूप से उन समस्याओं का भी समाधान कर सकते हैं, जिनके कारण आपसे वह पाप हुआ हो। जैसे कि, यदि आपने ड्रग्स लेने का पाप किया हो, तो स्थानीय ड्रग चिकित्सालय में अपनी स्वैच्छिक सेवाएँ समर्पित करने पर विचार करिए या अपनी बिरादरी में, इस समस्या से निबटने के लिए, विधान का समर्थन करने का।
विधि 3
विधि 3 का 3:

क्षमा का आलिंगन करिए

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  1. पश्चाताप करने के उपरांत, आपको ऐसा अवसर प्राप्त करना चाहिए ताकि आप भरसक ऐसा जीवन व्यतीत कर सकें, जिससे ईश्वर प्रसन्न हो। अलग अलग धर्म और समुदायों में ईश्वर को प्रसन्न करने की अलग अलग विधियाँ बताई गई हैं, मगर आप स्वयं भी धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करिए और सोचिए कि आप क्या महसूस करते हैं। यदि आपके हृदय में ईश्वर होगा तो वही आपको सही राह बताएगा।
  2. अपने धार्मिक समुदाय में औपचारिक रूप से प्रवेश करिए: एक चीज़ जो ईश्वर को प्रसन्न करेगी और आपको पाप की राह पर वापस जाने से रोकेगी, वह है अपने धार्मिक समुदाय में औपचारिक रूप से शामिल और क्रियाशील होना। उदाहरण के लिए यदि हो नहीं चुका हो तो (यदि आप ईसाई हों तो) बपतिस्मा कराइए। नियमित रूप से धार्मिक रीति रिवाजों का पालन करिए, धार्मिक संस्थाओं को चन्दा दीजिये ताकि वे दूसरों की मदद कर सकें, और ईश्वर के बताए हुये रास्ते के संबंध में अपने समुदाय के अन्य लोगों से चर्चा करिए। अपने भाइयों से प्रेम करिए और उनकी सहायता करिए तभी ईश्वर आपसे प्रसन्न होगा।
  3. भविष्य में अपनी आत्मा की रक्षा करने के लिए आपको सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। अपने पापों को स्वीकार करिए और उनसे निबटने के लिए यथा संभव प्रयास भी करिए। उन चीजों से बचिए जिनके बारे में आपको मालूम है वे आपको प्रलोभित करती हैं और उन लोगों से भी दूर रहिए जिनके लिए आपका हित सर्वोपरि नहीं है। धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करते रहिए और ईश्वरीय प्रकाश आपको, आपके लिए जो भी राह सर्वश्रेष्ठ होगी, वह दिखाएगा।
  4. स्वीकार करिए कि भविष्य में भी आपसे गलतियाँ होंगी: आप सम्पूर्ण नहीं है और आप भूल करेंगे। ईश्वर यह जानता है। जब आप भी यह जान जाएँगे, तब आपको पता चलेगा कि आप विनीत हैं। यह सोच सोच कर अपनी रातों की नींद मत गंवा दीजिये कि आप ऐसा क्या कर बैठेंगे जिससे ईश्वर अप्रसन्न हो जाएगा। उसके लिए महत्वपूर्ण है कि आप उन सभी चीजों में सुधार करने का प्रयास कर रहे हैं, जो आप ठीक से नहीं कर पाये हैं।
  5. पाप, वह भूलें हैं, जिनसे हम दूसरों को और स्वयं को भी ठेस पहुंचाते हैं। जब हम एक पापमुक्त जीवन जीते हैं, तब हम न केवल ईश्वर को प्रसन्न करते हैं और मोक्ष की राह में चल पड़ते हैं, बल्कि अपने जीवन और अधिक खुशनुमा और संतोषप्रद भी बना लेते हैं। इसीलिए, पापों से सीधा मुक़ाबला आवश्यक है। यदि आप ऐसा कुछ कर रहे हैं जो आपको अप्रसन्नता देता है दूसरों को ठेस पहुंचाता है, तो बस वहीं रुक जाइए! अपनी आत्मा को क्षमा से राहत पहुंचा कर, आप कहीं अधिक प्रसन्न जीवन व्यतीत करेंगे।

सलाह

  • स्वयं को क्षमा करिए। अपना आकलन मत करिए। आकलनकर्ता तो एक ही है: स्वयं को क्षमा करना ही वह एक चीज़ है, जो आपको करनी है। यदि आप क्षमा तो मांगते हैं, मगर अपने दिल के अंदर उसे नहीं ढूंढते हैं, तब जो भी आपने किया है उसका बोझ आपके सिर पर रहेगा।
  • याद रखिए कि क्षमा की कोई सीमा नहीं है। ईश्वर आपसे सदा ही प्रेम करेगा। ईश्वर का प्रेम आपसे कोई नहीं छीन सकता है।
  • अपना माहौल बदल डालिए। यदि किसी चीज़ ने आपको पाप करने पर मजबूर कर दिया हो, तब उस व्यक्ति या चीज़ की परिस्थितियों को बदल डालिए जिसने आपके अंदर वह पाप करने की इच्छा उत्पन्न की।
  • एक चीज़ याद रखिए कि, मनुष्यों के पापों के लिए ही ईसा मसीह घायल हुये थे और इसी लिए मारे गए क्योंकि मनुष्यों ने पाप किए थे। उन्होंने जो दंड पाया उससे हमारे घाव भर गए, हमारे स्थान पर उनके द्वारा खाये गए प्रहारों से, हमारे घावों के निशान भी मिट गए।(Isaiah 53:5)। अब वह क्षमा करने के लिए तैयार हैं, बस मुड़िए और क्षमा मांगिए।
  • याद रखिए, अपने को परिवर्तित करने की क्षमता केवल आप में है (ईश्वर का कवच पहन लीजिये)। आप बदलना चाहते हैं। आपके मित्र या परिवार आपसे परिवर्तित होने के लिए कह सकते हैं, मगर जब समय आता है केवल आप ही ईश्वर को समर्पण कर सकते हैं और बदल सकते हैं।
  • विश्वास कीजिये चीज़ें बदलेंगी। क्यों न उनको बदलते हुये देखा जाये? यदि आपको नशे की आदत थी या कोई और ऐसी आदत थी जिसे आप छोडना चाहते थे या जिस पर आप विजय पाना चाहते थे, विश्वास करिए कि आप उससे छुटकारा पा ही जाएँगे मगर यदि आवश्यक हो तो इसके लिए मदद भी लीजिये।
  • कैथोलिक: वर्जिन मेरी से निवेदन करिए कि अपने दैवी पुत्र से आपके लिए प्रार्थना करें। किसी पापी के लिए की गई उसकी प्रार्थना वह अवश्य ही सुनता है।

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