आर्टिकल डाउनलोड करें आर्टिकल डाउनलोड करें

आप इसे आलस्य कहें, काहिली कहें, खालीपन कहें या जो जी में आए वह कहें मगर जब कुछ करने की आवश्यकता हो और कुछ किया न जाये तो उसे कमजोरी या कामचोरी की निशानी माना जाता है। कभी कभी आलस्य होता है जब आप किसी परिस्थिति का सामना नहीं करना चाहते हैं, जैसे कोई अरुचिकर काम या किसी से कठिन मुलाक़ात। दूसरी स्थिति हो सकती है जब आप इस भावना से अभिभूत हों कि अकेले आपको, एक पूरे समूह का कार्य दिया गया है। और कभी तो आप परेशान होना ही नहीं चाहते। जो भी हो, यह वांछनीय लक्षण नहीं है।

विधि 1
विधि 1 का 4:

दिमाग सही रखना

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. जब भी आप आलसी होने लगें, रुकिए, देखिये और जाएजा लीजिये कि असल में हो क्या रहा है। आलस्य समान्यतः एक लक्षण है, असल समस्या नहीं। आपमें प्रेरणा की कमी का कारण क्या है? क्या आप थके हुये हैं, अभिभूत हैं, डरे हुये हैं, चोटिल हैं या बस प्रेरित नहीं हैं और अटक गए हैं? बहुत संभव है कि रुकावट आपके विचार से कहीं छोटी हो और जितना आप सोचते हैं उससे कहीं आसानी से आप उससे पार पा सकते हैं।
    • जिसने भी आपको रोका है, पूरा प्रयास कर उसको खोजिए। अधिकांश मामलों में यह कोई एक विशिष्ट समस्या या मुद्दा ही होता है। कारण की खोज ही एकमात्र विधि है इसको संबोधित करने की। एक बार आप इसको संबोधित कर लेंगे तो आप इससे प्रभावशाली ढंग से निबट सकेंगे।
  2. अब जब आप अपने आलस्य के कारणों के संबंध में विचार कर रहे हैं तो उन पर ध्यान केन्द्रित करना प्रारम्भ करिए। यह कोई ऐसा तुरंता समाधान तो नहीं होगा, जैसा आप सोच रहे हैं, परंतु यह स्थायी होगा। निम्न पर विचार करें:
    • यदि आप थके हुये हैं, तो विश्राम के लिए समय निकालिए। सबको आराम की आवश्यकता होती है। यदि आपका कार्यक्रम इसकी अनुमति नहीं देता तो आपको कुछ त्याग करने होंगे। परंतु आपकी उत्पादकता निश्चय ही बढ़ जाएगी।
    • यदि आप अभिभूत हैं तो ज़रा पीछे मुड़कर देखिये। आप अपने काम का सरलीकरण कैसे कर सकते हैं? क्या आप उसको हिस्सों में बाँट कर छोटा कर सकते हैं? क्या आप अपनी प्राथमिकताओं की सूची बना कर एक बार में एक काम को कर सकते हैं?
    • यदि आप भयभीत हैं, तो किससे भयभीत हैं? स्पष्ट रूप से यह ऐसा कुछ है जो आप “चाहते” हैं कि आप करें। क्या आपको अपनी क्षमता पाने पर संदेह है? या लक्ष्य प्राप्ति से आपको प्रसन्नता नहीं होगी? आप कैसे जान पाएंगे कि आपका भय तर्कहीन है?
    • यदि आप चोटिल हैं तब तो समय ही एकमात्र इलाज है। विषाद, दुख आदि सब प्रतिकूल भावनाएँ मात्र चाहने से ही चली नहीं जाएंगी। हमारे घावों को भरने में समय लगता है। शायद दर्द कम करने के लिए अपने पर कम दबाव डालना ही आपके मनचाहे परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक हो सकता है।
    • यदि आप उदासीन हैं तो आप अपनी दिनचर्या में क्या परिवर्तन ला सकते हैं? क्या आप अपनी परिस्थितियाँ बादल सकते हैं अथवा आपको अपने किसी मानसिक दानव पर ही विजय पानी होगी? आप अपने प्रतिदिन के जीवन का गठन कैसे कर सकते हैं? चेतना से संबंधित विचार करें। संगीत, भोजन, दृश्य, ध्वनियाँ आदि।
  3. आसपास की अव्यवस्था – चाहे वह केवल दिखने भर की हो – हमारी अभिप्रेरक कुशलता को हानि पहुंचाती है। जो भी सुव्यवस्थित हो सकता है उसको व्यवस्थित करिए। चाहे वह आपकी मेज़ हो, कार हो, पूरा घर हो या आपकी दिनचर्या हो सबको साफ करिए।
    • हमारे अन्तर्मन में ऐसा बहुत कुछ होता रहता है जिसे हम समझ नहीं पाते हैं। चाहे वह एक असुंदर रंग मिलाने की पटिया हो, कम रोशनी हो, किसी प्रकार का असंतुलन हो आकार या प्रकार में, कहीं न कहीं हमें उसके बारे में पता होता ही है। सुनियोजित हो कर उस छोटे, मगर प्रभावी निवारक से छुटकारा पाइये।
  4. कभी तो व्यवहारों से विचार बनते हैं और कभी विचार व्यवहारों का कारण बन जाते हैं। बस अपने को सावधान रखिए तथा उस नकारात्मक आंतरिक वार्तालाप से छुटकारा पाइए। यह विचार कि “हे भगवान, उफ़्फ़, मैं कितना घिनौना, आलसी हूँ” आपके किसी काम का नहीं है। तो इसको रोक दीजिये। आपकी आँखों के पीछे जो टिकर टेप चल रहा है केवल आप ही उसको नियंत्रित कर सकते हैं।
    • जब भी आप स्वयं को वांछित स्तर पर काम करते हुये न पाएँ, बस उसे घुमा कर सकारात्मकता पर ले आइये। “सुबह भले ही धीरे से आई हो, मगर अब समय आ गया है उसको गति देने का। अब दोपहर हो गई है और मैं तैयार हूँ।“ आप चकित होंगे कि मानसिक सकारतमकता वास्तव में आपके दृष्टिकोण को बदल सकती है।
  5. हममें से बहुत सारे लोग रुक कर गुलाबों की सुगंध नहीं लेते हैं। हम मज़ेदार भोजन को भी बस निगल लेते हैं ताकि मिठाई तक पहुँच पाएँ, शराब पा जाएँ और आवश्यकता से अधिक भरे हुये पेट को लेकर बिस्तर पर पहुँच जाएँ। आज के, इस सुंदर पल को जीने के स्थान पर, हम सदैव ही आने वाले आनंद की कल्पना में रहते हैं। जब हम आज और अभी में जीने लगते हैं तभी हम उसका लाभ उठा सकते हैं।
    • अगली बार जब भी आप स्वयं को भूतकाल अथवा भविष्य के संबंध में विचार करता हुआ पाएँ तो अपने को खींच कर वापस आज में ले आइये। अपने चारों ओर के दृश्य, कांटे में फंसे हुये भोजन अथवा कानों में पड़ते हुये संगीत को यह बताने दीजिये कि आज और अभी इस धरती पर चल पाना और जीवित होना, कितना सुखद है। कभी कभी रुकना या धीमे हो जाना हमें वह शक्ति देता है कि जो भी हमारे पास है हम उसका लाभ उठा सकें।
  6. चलिये हमने आपको वर्तमान पर तो केन्द्रित कर दिया। अब हम एक बेहतर वर्तमान की ओर देखते हैं। यदि आप आज और अभी का लाभ उठायेंगे तो क्या होगा? क्या होगा, यदि आप सुबह को बिस्तर पर पड़े रहकर बर्बाद करने के स्थान पर उठ कर योग करें, अपना कार्य समाप्त करें या एक उत्तम नाश्ता ही बना लें? क्या होगा, यदि आप, अगले छह महीने तक, लगभग हर दिन ही यह कर लें तो?
    • यह मज़ेदार होगा, और क्या। इन सकारात्मक विचारों को अपनी विचारश्रंखला पर हावी हो जाने दीजिये। और यह जान लीजिये कि एक बार आप यह करने लगेंगे और आदत डाल लेंगे तब सब कुछ बहुत ही आसान हो जाएगा।
विधि 2
विधि 2 का 4:

तैयार होना

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. शोध यह बताती है कि हमारे लिए ऊंघना बुरा है। [१] आप सोचते होंगे कि बिस्तर में पड़े रहकर रज़ाई की गर्माहट का आनंद लेने से आप बाद में अधिक ऊर्जावान हो जाएँगे, परंतु होता उसका विपरीत ही है। हम वास्तव में दिनभर में और थक जाते हैं। इसके स्थान पर, बिस्तर से बाहर कूद जाइए। आपका मस्तिष्क आपके शरीर के इशारों को समझेगा। यदि आप बिस्तर से बाहर कूद ही पड़े हैं तो आप जाने के लिए तैयार और तत्पर हैं।
    • अगर आप कर सकें तो सचमुच में कूद पड़िए। रक्त संचारित होने दीजिये। शायद ही आप यह करना चाहें, मगर यदि आप ऐसा कर पाएंगे तो आप उसके बाद, अपने को अधिक जीवंत पाएंगे।
  2. कुछ ऐसे लक्ष्य तय करें जो आप आसानी से पा सकते हैं: अपने लिए उचित और प्राप्य लक्ष्य निर्धारित करने से आपको कुछ नए की उम्मीद रहेगी। ऐसे लक्ष्यों का चयन करिए जो आपको अभिप्रेरित करें और जहां आपकी क्षमताओं एवं कौशल का भरपूर उपयोग हो। छोटे बड़े कामों की एक कार्य सूची बनाइये, उसमें लगने वाले समय एवं आपके लिए उसकी क्या महत्ता है, इसके अनुसार प्रत्येक कार्य की प्राथमिकता निर्धारित करिए।
    • हर दिन के लक्षयबद्ध कार्यकलापों के लिए एक दैनंदिनी रखना लाभकारी हो सकता है, जहां यह हिसाब किताब रखा जाये कि आत्मविकास के लिए किए गए क्रिया कलापों में से किस चीज़ ने आपके लक्ष्य की प्राप्ति में मदद की है अथवा क्या चीज़ रुकावट बनी है।
    • एक विज़न बोर्ड बनाने के संबंध में विचार करें जहां आप अपने लक्ष्य और सपनों को दर्ज कर सकें। मौलिक बनिए तथा चित्रों, पत्रिकाओं के लेख आदि का उपयोग करें। इस प्रकार के पट्ट के उपयोग से आप अपने स्वप्नों का सम्पूर्ण मानचित्र बना सकते हैं। हर सुबह जागने पर अपने परिकल्पना पट्ट को देखें और विचार केंद्रीभूत करें कि आप कहाँ होना चाहेंगे। यह आपकी सुबह को एक उत्प्रेरित शुरुआत देगा और आपको अपने सपनों की ओर ले जाएगा।
      • सभी को यह विज़न बोर्ड पद्धति प्रेरणादायक नहीं लगती है, मगर अन्य रास्ते भी हैं जैसे मानसिक मानचित्र बनाना, दैनंदिनी, परिकल्पना अभिव्यक्ति का सृजन और दूसरों को उसके संबंध में बताना, कुछ करने के संबंध में जन सामान्य से औनलाइन प्रतिबद्धता व्यक्त करना आदि।
  3. अपनी इच्छाओं, लक्ष्यों एवं प्रेरणाओं की जांचसूची बनाइये: जैसे जैसे आप इनको पाते जाएँ उन्हें चिन्हित करते जाइए। लक्ष्यों को सम्मुख रखने से उन पर केन्द्रित रहना सुलभ हो जाता है और सूची में, चूंकि आसानी से मिलान किया जा सकता है इसलिए उसके कारण आप उत्साहित भी रहते हैं। अपने लक्ष्य फलक अथवा दिनचर्या की प्रतिलिपियां हर जगह पर लगा डालिए – एक फ्रिज पर, रात्रि स्टैंड पर, कंप्यूटर के निकट, स्नानागार के शीशे पर, यहाँ तक की शयन कक्ष के द्वार पर भी। हर ऐसी जगह पर लगाये जहां आप अक्सर देखते हैं अथवा जाते हैं।
    • एक बार वे सही के निशान एकत्र होने प्रारम्भ हो जाएँगे तो आप रुकना नहीं चाहेंगे। आप वास्तव में देखेंगे की आप कर क्या रहे हैं, आपमे क्षमताएँ कितनी हैं और यह प्रगति आपको इतनी अच्छी लगेगी कि आपको बस चलते ही रहना होगा। यदि आप नहीं करेंगे तो आपको निराशा होगी और बुरा भी लगेगा।
  4. नियमित रूप से अपनी समस्या और लक्ष्यों के महत्व और मूल्यों का पुनर्निरीक्षण करते रहिए: एक बार जब आप लक्ष्य का निर्धारण कर लेते हैं अथवा उस समस्या को जान लेते हैं जिसका निष्पादन किया जाना है तो बिना आपके प्रयास के, चमत्कारपूर्ण ढंग से उसका समाधान नहीं हो जाता है। कुछ हद तक लक्ष्य की प्राप्ति अथवा समस्या का समाधान प्राप्त करना इस बात पर निर्भर होता है कि आप स्वयं को निरंतर याद दिलाते रहें कि वह महत्वपूर्ण क्यों है। यदि आप लक्ष्य अथवा समाधान को भूल जाते हैं तो भटक जाना अथवा अटक जाना संभव है और चलते रहना कठिन हो जाता है जिसके कारण आलस्य आ जाता जाता है। लक्ष्य एवं समस्या की महत्ता तथा मूल्यों का निरंतर पुनराकलन, आपको केन्द्रित एवं तरोताजा रहने में मदद करता है। ऐसी कुछ चीज़ें आप स्वयं से पूछ सकते है:
    • क्या मैं वास्तव में इसकी अवहेलना करने का जोखिम उठा सकता हूँ या इसको कुछ और समय तक अनसुलझा रहने दे सकता हूँ?
    • क्या यह ऐसा कुछ है जिसे मैं किसी और की मदद या सलाह से सुधार सकता हूँ?
    • क्या मैं इस समस्या का समाधान करने के लिये अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सही दृष्टिकोण का उपयोग कर रहा हूँ? (कभी कभी पुरानी राह पर चलने के स्थान पर नए दृष्टिकोण के अनुपालन की आवश्यकता होती है।)
    • अपनी अपेक्षाओं में क्या मैं पूर्णतावादी हो रहा हूँ? (पूर्णतावाद आलस्य को जन्म दे सकता है, जिसके कारण कभी कुछ नहीं होगा क्योंकि कभी भी कुछ भी पूरा अच्छा तो हो ही नहीं सकता। इसका परिणाम? आलस्य आ जाना, क्योंकि यह तो “बहुत ही कठिन” है। परिपूर्णता के लक्ष्य पर केन्द्रित रहने के स्थान पर सदैव अपने सर्वोत्तम प्रयास करके अपने को इस विषम चक्र में फँसने से बचाएं।)
  5. क्रिया सब कुछ बदल देती है। एक पल आप निष्क्रिय एवं स्तंभित होते हैं और अगले ही पल आप पैर जमा कर कुछ परिवर्तित कर रहे होते हैं, क्योंकि आप प्रयास कर रहे हैं, कुछ करने का निश्चय किया है और बस शुरू हो गए हैं। पहले क्या हुआ था इससे आप परिभाषित नहीं होते हैं – आप सदैव अपने पुनर्निर्माण और परिवर्तन में सक्षम हैं। आपको केवल इसके बारे में ठान लेना है और विश्वास रखना है।
    • यदि कहीं पर ऐसा लगे कि आप अटक गए हैं, अपने को झटकिए, काम करिए और स्वयं को बताइये कि “स्तंभित हो जाने” की पुरानी आदत होने के बावजूद “अभी तो” मैं तैयार हूँ और “उपयोगी हूँ”। और “बस अगर” जैसे वक्तव्यों को तो भूल ही जाइए – यह उन लोगों के लिए है जो जीवन में परिपूर्णता के इच्छुक नहीं हैं।
  6. मान लीजिये कि आप गद्देदार सोफ़े पर बैठ कर अपने कंप्यूटर और उन सभी काल्पनिक स्प्रैड्शीट्स की ओर देख रहे हैं, जो आप चाहते हैं कि अपने आप वहाँ बन जाएँ। इसको तो छोड़ दीजिये। इसके स्थान पर कुछ नन्हा सा काम करिए जैसे कपड़े इस्तरी करना। आप इस्तरी निकालेंगे, बोर्ड निकालेंगे, कमीज़ निकालेंगे और पाँच मिनट यह सब कर चुकने के उपरांत सोचेंगे “मैं कपड़े इस्तरी करके अपना समय क्यों बर्बाद कर रहा हूँ?” आप उसको छोड़ देंगे, इस सक्रियता से आप थोड़े और जागरूक हो जाएँगे, और वह करने लगेंगे जिसे “वास्तव” में करना चाहते हैं।
    • अन्य लाभ? आपके पास एक इस्तरी की हुई कमीज़।
      • प्रत्यक्ष रूप से केवल इस्तरी करना ही एक काम नहीं है। स्नान भी हो सकता है। केवल उठना और कुछ करना ही कभी कभी सबसे कठिन रुकावट होती है – कोई छोटी सी चीज़ राह को सुगम कर देती है और क्रिया कलाप आसानी से होने लगते हैं।
  7. व्यायाम के अनेक लाभ हैं, सच में, परंतु प्रमुख है कि आप स्वयं को अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं। [२] रक्त संचार होने लगता है, चयअपचय बढ़ जाता है और लगभग पूरे दिन के लिए आपका शरीर ऊर्जावान हो जाता है। यदि सुबह आपमें उत्साह कम होता है तो केवल 15 मिनट व्यायाम करिए। आप दोपहर तक अधिक जीवंत महसूस करेंगे।
    • क्या हमने आपको बताया है कि यह स्वस्थ रहने का एक उपाय भी है। जब हम स्वस्थ होते हैं तो हमें सबकुछ अच्छा लगता है। यदि आप आजकल व्यायाम नहीं कर रहे हैं (विशेषकर वायवीय, वैसे अवायवीय भी) तो इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने का प्रयास करिए। लक्ष्य तो सप्ताह में 150 मिनट का होना चाहिए, मगर आप जितना भी कर सकें, करिए। [३]

    • जब यह चर्चा चली ही है, तो भोजन भी आरोग्यकर करिए। अस्वास्थ्यकर भोज्य आपके शरीर को वे पोषक तत्व नहीं देते हैं जो क्रियाशीलता के लिए आवश्यक होते हैं। ऊर्जारहित शरीर आपको आसानी से आलसी और उदासीन बना सकता है – यदि आप पोषक तत्वों के अंतर्गृहण अथवा ऊर्जा के स्तर को लेकर चिंतित हैं तो डॉक्टर से जांच करवाना एक अच्छा विचार है।
  8. कभी कभी हममें जीने की प्रेरणा नहीं होती है। जीने की। हम उदासीन हो जाते हैं अपने काम के प्रति, जीवनी परिस्थितियों के प्रति, अपने सम्बन्धों के प्रति और बस अपनी छोटी सी दुनिया में कुढ़ने लगते हैं जबकि हम जानते हैं कि हमें विस्तारित होना चाहिए। इस परिवर्तन की राह पर चलना शुरू करने की सबसे सरल विधि क्या है? फर्क कपड़े पहनिए।
    • चाहे आप वो पिज्जा पहुंचाने वाले हों जो शेयर बाज़ार में काम करना चाहता हो, अथवा शय्या पर पड़े रहने वाले वोह आरामतलब जो मुंबई मैराथन में दौड़ना चाहता हो, कपड़े बदलना आपके व्यवहार को बदल सकता है। यदि आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो इस प्रकार सोचिए – सूट पहने हुये व्यक्ति को आप कैसे संबोधित करेंगे? कुछ समय के उपरांत सूट वाला व्यक्ति उसी दुनिया में पहुँच जाता है जहां लोग उसे सूट पहने व्यक्ति की तरह ही संबोधित करते हैं। बस तो अपने भागने वाली पतलून पहन लीजिये। और आप थोड़ी ही देर में सोच रहे होंगे कि आप दौड़ क्यों नहीं रहे हैं?
विधि 3
विधि 3 का 4:

कार्यवाही करना

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. सबकुछ कहीं न कहीं शुरू होता है, यहाँ तक कि उस कागज में से स्टेपल निकालना हो जिसे आप पढ़ने जा रहे हों, या जिससे कार को सड़क पर निकालने के लिए विंडशील्ड से धुंध साफ करना हो। उस प्रारम्भिक जड़ता, जो मुश्किल परिस्थितियों में पड़े सभी मनुष्यों के लिए स्वाभाविक है, पर विजय, उसको टाल जाने के कष्ट को तुरंत दूर कर देगी। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि आगे कैसे निबटा जाये। बड़ी समस्या का छोटे छोटे टुकड़े कर समाधान करने से वह आवेग आयेगा तथा आपमें उत्प्रेरित रहने का विश्वास जागेगा और चीज़ें कम भयावह प्रतीत होंगी।
    • जीवन की राहों को आसान समझना तो अवास्तविक है – जीवन अक्सर कठिन होता है और कभी तो बहुत हे कठिन। परंतु जीवन अनोखा, आश्चर्यजनक, रोमांचक एवं आशा से भरपूर भी है। आलसी होकर आप अपने को जीवन की सभी संभावनाओं से काट लेते हैं जो कि स्वघाती है। दैनिक असुविधाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में सुधार लाने और स्वयं को प्रभावित करने वाली चीजों के प्रति सहनशीलता सीखने से आपका लचीलापन बढ़ता है और आप स्वयं को अधिक रचनात्मक पाते हैं। जब भी कोई चीज़ महाकाय, कठोर एवं अवांछित लगे तो बस उसे शुरू कर दीजिये। उसके संबंध में तर्क मत करिए, बहाने मत बनाइये, विरोध मत करिए – बस छोटे छोटे कदमों से चल पड़िए।
  2. अपने कार्य को छोटे छोटे हिस्सों में बाँट लीजिये। चीज़ें जितनी छोटी होंगी, वे उतनी सुगम होंगी और उतनी ही निष्पाद्य होंगी। जब आप सक्रिय रूप से कोई कार्य करने की या लक्ष्य प्राप्त करने की राह ढूंढते हैं, जिसमें नियंत्रण की आवश्यकता हो और आपका दृष्टिकोण तनावमुक्त हो तो आप स्वयं को संकट में पाने के स्थान पर सक्षम पाएंगे। अक्सर आलस्य सम्पूर्ण पराजय की भावना के कारण होता है क्योंकि मानसिक अवरोध इतना बड़ा प्रतीत होता है कि हार मान जाते हैं। इसका इलाज है छोटे की शक्ति में विश्वास।
    • इसका अर्थ यह नहीं है कि आप कार्यों की अदला बदली नहीं कर सकते हैं – निश्चय ही कर सकते हैं और वैविध्य तो रुचि बनाए रखने का मसाला है। इसका अर्थ यह है कि हर छोटा छोटा काम अलग अलग किया जाये और उनके बीच में विच्छेद होना चाहिए न कि एक साथ, एक ही समय में बहुत सारे निरर्थक काम। साथ ही जब आप एक काम से दूसरे काम पर जा रहे हों तो साफ साफ भंगबिन्दु खोज लें ताकि जब आप वापस उस काम पर जाएँ तो आसानी से वहीं पहुँच सकें जहां पर उसे छोड़ा था
    • बहुधा ऐसा कहा जाता है कि जो लोग समय की कमी होने की शिकायत करते हैं वे उसे अकुशलता से, जैसे बहु-कार्यण में अपव्यय करते हैं। लगातार दबाव की स्थिति में, जब एक समय सीमा के अंतर्गत बहुत से कार्य एकसाथ करने होते हैं तो, मानव मस्तिष्क अकुशलता से कार्य करता है – दूसरे शब्दों में, बहू-कार्यण हमें हक्का बक्का कर देता है। बिना अपराधबोध के सार्थक कार्यों को सुस्पष्ट क्रम में कर के अपने को स्वतंत्र करें।
  3. आप अपने प्रशिक्षक हैं, अपनी प्रेरणा के स्त्रोत हैं। आप अपने को अभिप्रेरित कर एवं अपने कार्यों से उसकी पुष्टि कर स्वयं को क्रियात्मक बनाने के लिए सज्जित कर सकते हैं। स्वयं को ऐसा कुछ बताइये – “मैं यह करना चाहता हूँ; मैं अभी यह कर रहा हूँ!” तथा “जब मैं इसको कर लूँगा तब मैं छुट्टी लूँगा और यह कार्य पूर्ण हो जाने के कारण यह छुट्टी और भी उचित होगी।“ आवश्यकता हो तो इसको ज़ोर से कहिए। अपने कार्यों को स्वर देकर आप उत्साहित होंगे।
    • स्वयं से सारे दिन नियमित रूप से ऐसे सक्षमकारी मंत्र का पाठ लाभकर हो सकता है, जैसे “मैं यह कर सकता हूँ, मैं यह जानता हूँ।“ आप कुछ कार्यों को पूरा हो चुका होने की कल्पना भी कर सकते हैं और परिपूर्णता की उस भावना का पूर्वानुमान भी कर सकते हैं जो आपको तब होगी।
  4. बहुत से लोग इस अवांछित भय को लेकर जीते हैं कि दूसरों से सहायता मांगना गलत है। चाहे यह पिछले किसी हृदयहीन अनुभव से उत्पन्न हुआ हो, एक दमघोंटू शिक्षण अनुभव से हुआ हो, प्रचंड प्रतियोगितात्मक कार्य स्थल के कारण हुआ हो, यह जीवन के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण है। हम लोग सामाजिक प्राणी हैं और हमारे अस्तित्व का एक भाग सहभाजन एवं एक दूसरे की मदद करनेके संबंध में है। “मैं से हम” तक की यात्रा के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है परंतु यह बड़े होने के लिए और अकेले संघर्ष के समापन का अनिवार्य भाग है।
    • कभी कभी किसी दूसरे के द्वारा उत्तरदायी ठहराया जाना आवश्यक कार्य की प्रेरणा देता है। यदि आप वज़न कम करने का प्रयास कर रहे हों तो साथ में व्यायाम करने वाला एक मित्र ले लें! वह दूसरा व्यक्ति हम पर वह दबाव डालता है जो हम स्वयं पर नहीं डाल पाते हैं (अच्छी भावना से)।
    • सुनिश्चित करें कि आपके आसपास ऐसे लोग हों जो आपको संबल दें और प्रेरित करें। जब हम केवल अपवाही सम्बन्धों को ही सब ओर पाते हैं, तब यह समझना सरल है कि आलस्य की समस्या क्यों है। अपने आंतरिक वृत्त में ऐसे लोगों को जानिए जिनका साथ आपको अच्छा लगता है और उन्हें निर्देश का माध्यम बनाइये।
  5. गद्देदार सोफ़े से तब तक अलग रहिए जब तक कि आप अल्पविराम के लिए तैयार न हों। जब आप बैठें, तब भी अपने लिए समय निर्धारित कर लीजिये कि कब आप काम, या जो भी आप कर रहे हों, जैसे पाठ्यपुस्तक पढ़ना, कपड़े धोना, मित्र को पत्र लिखना आदि, उस पर वापिस जाएँगे। स्व-अनुशासन का अर्थ है जब भी, जो भी करना हो, उसे करना, चाहे आप चाहें या न चाहें। यह प्रशिक्षण चाहे जितनी भी जल्दी शुरू हुआ हो, इस पाठ में महारत प्राप्त करना सबसे कठिन है। स्वयं पर दया और कठोरता में एक स्वस्थ संतुलन बनाइये और कार्य को आनंद से ऊपर रखिए।
    • पारितोषिक मधुर तब ही होते हैं जब उनके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी हो तथा आप उनके लायक हों। यदि आप 10 मिनट कार्य करने के उपरांत दो घंटे टी वी देखेंगे तो आपको अपने ऊपर क्रोध आयेगा ही। संघर्ष करिए। अंततोगत्वा, आपको अच्छा लगेगा।
  6. इससे पूर्व कि आप इसे अहंकार समझने लगें, यह ध्यान रहे कि यह कोई दंभ उत्सव नहीं है – यह केवल आपकी प्रेरणा को बनाए रखने के लिए है। जब भी आप कोई पग पूरा कर लें, छोटा लक्ष्य पा लें, राह में कोई मील का पत्थर पार कर लें स्वयं को उत्साहित करने के मार्ग ढूंढिए। कार्य का पूरा होना अथवा उसके लिए किए गए प्रयास, हर बार अच्छे लगेंगे।
    • उपलब्धि की सराहना स्वयं से यह कह कर करिए कि आपने बढ़िया काम किया है। ऐसा कुछ कहिए – “बहुत खूब! ठीक चल रहा है; बस इसको करते रहो और यह तो पूरा हो ही जाएगा”। चूंकि बड़ी सफलताएँ लगातार मिलने वाली छोटी छोटी सफलताओं से मिल कर बनती हैं (हर छोटी सफलता बहादुरी होती है), अपने परिश्रम की तदनुसार सराहना करिए।
विधि 4
विधि 4 का 4:

अभिप्रेरित रहना

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. छोटी छोटी चीज़ें जो आप कर पाते हैं या जिनके लिए आप प्रयास कर पाते हैं उनके लिए स्वयं को पुरस्कृत करिए: आकस्मिक पुरस्कार, कार्य के माधुर्य को बढ़ा देंगे और आपको सही राह पर रखेंगे। यदि आज आप ऐसा कुछ कर पाते हैं जो आप पहले नहीं कर रहे थे अथवा करने से बिलकुल डरे हुये थे, तब तो शानदार दावत बनती ही है। मुख्य लक्ष्य की राह में चलते हुये, छोटे छोटे लक्ष्यों की प्राप्ति पर जब आप स्वयं को पुरस्कृत करते हैं तब एक प्रकार से यह इस तथ्य का स्वचालित सुदृढीकरण है कि आप ठीक कर रहे हैं। पुरस्कारों को सीधा सादा मगर प्रभावशाली रखिए जैसे लंबा विश्राम, सिनेमा देखना, कैलोरी से भरे नाश्ते पर पैसे उड़ाना (कभी कभार!) या ऐसा ही कुछ। सचमुच के बड़े पुरस्कारों को पूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति अथवा अंतिम बिन्दु के लिए रख छोड़िए। स्वयं को पुरस्कृत करके आप अपने मस्तिष्क को इस बात के लिए प्रशिक्षित करते हैं कि वह पुरस्कृत होने से पूर्व सक्रिय रूप से कार्य करे।
    • छुट्टियाँ पुरस्कार भी हैं “और” आवश्यकता भी। सृजनात्मकता के नवीनीकरण एवं ताजगी लाने हेतु ली जाने वाली छोटी छोटी नियमित छुट्टियों को आलस्य समझने की भूल मत करिए।
    • स्पष्ट है कि पुरस्कार का विलोम तो दण्ड होगा ही। लोग सकारात्मक सुदृढीकरण पर सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं इसलिए पुरस्कारों पर टिके रहना ही सर्वोत्तम है। उद्देश्य पूर्ण नहीं होने पर स्वयं को दंडित करना, आपके सबसे भयावह विचार को प्रमाणित करते हुये, कि आप नाकारा और आलसी हैं, जैसी, उल्टी प्रतिक्रिया दे सकता है। यदि कोई निरर्थक अभ्यास हो सकता है, तो वह यही है।
  2. साप्ताहिक लक्ष्य सूची आपको केन्द्रित एवं अभिप्रेरित रखेगी। समय के साथ लक्ष्य परिवर्तित होना तो अपरिहार्य है। आप उनकी प्राप्ति के लिए सबसे प्रभावशाली, सही रास्ते भी जान जाएँगे। जैसे जैसे वे बदलें, वैसे वैसे आपकी सूची भी बदलनी चाहिए।
    • उस सूची को सब जगह लगा दीजिये। इसको, अपने यंत्र अथवा फोन का लौक स्क्रीन बनाने का प्रयास करिए। इसके लिए बस इनको नोट्स में लिखिए, स्क्रीनशॉट लीजिये और उसको पृष्ठभूमि बना दीजिए। दैनिक, मासिक और यहाँ तक कि वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करिए ताकि आप उनको प्रतिदिन अलग तरीके से देख सकें।
  3. किसी भी लाभ का आनंद उठाने के लिए आम तौर पर कुछ दाम देना होता है। पीड़ा/ कष्ट सामान्य रूप से कभी भावनात्मक हो सकते हैं, कभी शारीरिक और कभी कभार मनोवैज्ञानिक। अक्सर यह पीड़ा पीछे छूट जाने की होती है अथवा इस बात की कि दूसरों को उन चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा, जो आपको करना पड़ा है (अक्सर उनकी अपनी चुनौतियाँ होती हैं जिनका आपको पता भी नहीं होता)। तथा उस पीड़ा के कारण आप टालु, विचलित और आरामदेह क्षेत्र की सुरक्षा में जाने लगते हैं। आरामदेह क्षेत्र के उस पार जाने के लिए आपको पीड़ा का सामना करना होगा तभी आप संभावनाओं तक पहुँच पाएंगे। [४]
    • मूल्यांकन करिए कि संभावित लाभ क्या आपको लगने वाले मूल्य के लिए उचित हैं? यदि उचित हैं तो (और अधिकतर, होगा ही), सदैव विकसित होने वाली परिपक्वता का उपयोग कर आवश्यक हिम्मत, धीरज एवं अनुशासन से वह साहस जुटाइए जिससे दीप्तिमान नतीजे मिल सकें। बिना प्रयास और पीड़ा के किसी को कुछ नहीं मिलता।
  4. अधिकांश विशेषज्ञ, अनुभवी एवं प्रतिभावान लोग यह मानेंगे कि उनकी अधिकांश उपलब्धियां 99 प्रतिशत परिश्रम तथा एक प्रतिशत प्रतिभा के कारण हैं। अनुशासनहीन प्रतिभा से शायद ही कोई कुछ प्राप्त कर पाता है – शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठता, आर्थिक स्वायत्तता, खेल, व्यावसायिक कला तथा संबंधो के निर्वहण के लिए निरंतर एवं सुसंगत विचारशीलता तथा श्रेष्ठतम व्यक्तियों द्वारा कठोर एवं पीड़ादायक परिश्रम से किए गए थका देने वाले, शारीरिक तथा मानसिक कार्य की आवश्यकता होती है। आपकी जिजीविषा एवं तड़क भड़क आपके काम करने की इच्छा में भी तब दिखनी चाहिए जब वह आवश्यक एवं उपयोगी दोनों ही हो।
    • आप रातोंरात बड़े व्यापारी, महान धावक, उत्तम रसोइये अथवा अपने काम में माहिर नहीं बन सकते हैं। आप असफल और असफल और असफल और असफल होंगे। यह सामान्य है। इसका अर्थ है कि आप प्रयास कर रहे हैं।
  5. आपकी डेली लाइफ में बहुत सारे ऐसे गैर-जरूरी काम शामिल होते हैं जिनकी वजह से आप वाकई में आपको जो करना चाहिए वो नहीं कर पाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए अपने शिड्यूल को व्यवस्थित कीजिये और सिर्फ वो काम शामिल कीजिये जो आपको करना जरूरी हैं। ऐसे सभी कार्य जो आपको डिस्ट्रैक्ट करते हों उन्हें करना बंद करें और अपने गोल पर फोकस करें।
    • उदाहरण के लिए, अगर आप वीकेंड्स पर किसी विषय पर 1,000 शब्द लिखने की सोच रहे हैं लेकिन अपनी एक्स्ट्राकरिक्यूलर एक्टिविटी (extracurricular activities) की वजह से आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो इनमे से कुछ एक्टिविटीज़ को कम कर ऐसा कर सकते हैं।
  6. ऐसा भी समय आयेगा जब कठिनाई बढ़ती जाएगी और पुरस्कार पाने के उपरांत उसी काम पर वापस जाने की इच्छा नहीं होगी। ऐसे समय में आवश्यकता होगी उन आंतरिक क्षमताओं को जागृत करने की जो आपको लक्ष्यों एवं हलों की याद दिला सकें जिससे आप केन्द्रित ही रहें। इस सफलता की भावना का पूरा लाभ उठाएँ – जब आप इस स्थिति में हों (जिसे अक्सर चढ़ाव की स्थिति कहा जाता है), तो बस जैसे ही आप अपने को पुरस्कृत कर चुके हों, तब तुरंत ही अगले लक्ष्य और कार्य पर छलांग लगा दें।
    • अपने लक्ष्य अथवा कार्य की एक इकाई के समापन के उपरांत फिर से शुरुआत करने में आप जितनी देर करेंगे, फिर से शुरू करना उतना ही कठिन हो जाएगा। याद करिए कि किसी चीज़ को करने में बिलकुल डूब जाने की भावना और फिर उसको प्राप्त कर लेना कितना अच्छा लगता है। और जितनी जल्दी आप फिर से शुरू करेंगे आप उतने ही अधिक विश्वस्त होते जाएँगे और यह अच्छी भावनाएँ पुनर्स्थापित हो जाएंगी।
  7. अपनी प्रेरणा पा जाना एक चीज़ है। मगर जब कठिनाइयाँ बढ़ती हैं, विशेषकर अप्रत्याशित समस्याओं के कारण, तब अभिप्रेरित रहना दूसरी ही बात है। ध्यान रखिए कि अक्सर अनायास ही अवरोध तो आएंगे और आपके प्रयासों को उलट देंगे। नाकामयाबियों से अक्रियाशील होने के स्थान पर उनकी असलियत पहचानिए और हार मानने से इंकार कर दीजिये। आप अकेले नहीं हैं और चुनौतियों का सामना करते हुये केन्द्रित बने रहना, संभलने एवं वापसी के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है।
    • स्वयं को याद दिलाइये कि आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अथवा अपने कार्य के लिए कितने लालायित हैं, यथासंभव सहायता प्राप्त कीजिये, अपनी प्रगति का जाएजा लीजिये और तब हार मानने से इंकार कर दीजिये। बस हो गया।

सलाह

  • जब भी आलस्य आए ठंडा पानी पीजिए। पानी आपके मस्तिष्क को प्रोत्साहित करता है, इधर उधर जाने की इच्छा बढ़ाता है और काम करवा देता है।
  • मीठे से, गाढ़े अनाज के शर्बत अथवा अनाज के शर्बत से बने भोज्य पदार्थों के सेवन से बचें क्योंकि इसके कारण आपका शरीर वसा के स्थान पर शक्कर का चयापचय प्रारम्भ कर देता है। (बिना रेशे की) अप्राकृतिक शक्कर थोड़े समय के लिए आपको ऊर्जावान कर सकती है परंतु उसके बाद रक्तशर्करा में गिरावट होगी और आप को भूख और कमजोरी का एहसास होने लगेगा। बुरा भोजन आलस्यपूर्ण व्यवहार का जनक है।
  • यदि आपको सुबह उठते ही काम करना या काम पर नहीं जाना है, तो सुबह उठने के लिए अपना अलार्म, सुबह के उचित समय जैसे 7 बजे के लिए लगा लें। स्नान करिए, कपड़े बदलिये और कमरे से बाहर निकलने से पहले अपने को प्रस्तुत करने योग्य बना लीजिये। हमेशा ऐसे कपड़े पहन लीजिये जैसे की बस अभी बाहर जाने वाले हैं; शयन कक्ष से बाहर निकालने से पूर्व पाजामा तो छोड़ ही दीजिये। बिस्तर ठीक कर दीजिये ताकि वह आपको वापस न बुला सके और आपके कमरे की लापरवाही को न बढ़ा पाये।
  • 20/10 तकनीक के अनुपालन का प्रयास करिए। 20/10 का अर्थ है कार्य पूर्ण करने के 20 मिनट (जैसे सफाई, पढ़ाई या जो भी हो) और फिर 10 मिनट का अवकाश। 45/15 भी इसी प्रकार का है क्योंकि आप जानते हैं की 45 और 15 क्या है। धीरे धीरे शुरू करिए, यदि आवश्यक हो तो 10/5 से।
  • अपने लक्ष्य स्वयं को याद दिलायेँ और यह भी की आप यह क्यों कर रहे हैं। और यह भी की यदि आप लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ नहीं करेंगे तो दीर्घकाल में क्या होगा। इससे आपमें दृढ़ निश्चय की एक तरंग उठेगी।
  • जब आप यह विचार कर रहे हों की आपको कुछ करना है अथवा नहीं तब यह सोचिए “मैं वह करूंगा जो मुझे करना चाहिए, ताकि मैं वह कर सकूँ जो मैं करना चाहता हूँ।“
  • अपने टेलीविज़न से छुटकारा पाने संबंध में विचार करें। लाभ, पीड़ा से कहीं अधिक है – पड़े हुये लगातार उसको देखते रहने के लालच के स्थान पर सभी तरह की रोमांचक गतिविधियों के लिए आपके पास एकाएक ढेर सारा समय उपलब्ध हो जाएगा।
  • ऐसे लोगों के साथ रहिए जो आपका उत्साहवर्धन करें, चाहे मीडिया से, टेक्नॉलॉजी से या कैसे भी। अन्य लोगों का प्रेम, सहयोग एवं उत्साहवर्धन आपकी आंतरिक शक्ति को बढ़ा सकता है।
  • समाधि लगाना आपकी चेतनता के स्तर को और वर्तमान पल की जागरूकता को बढ़ा कर आपके आलस्य को कम कर सकता है, चूंकि तब आप अपनी श्वांस, मुद्रा एवं पाँच इंद्रियों के साथ अपने विचारों, भावनाओं एवं सकारात्मक ऊर्जा पर भी नियंत्रण और केन्द्रीकरण करते हैं।
  • अपनी परियोजना या हाथ में लिए हुये काम को पूरा करने के स्थान पर अगले कार्यक्रम के लिए चैनल बदलते समय ज़रा सोचिए “क्या मेरी तुरंत कुछ पाने की इच्छा (तू कु पा) मुझसे यह करवा रही है अथवा यह अरुचि, पीड़ादायक अनुभव (अ पी अ) से बचने की इच्छा के कारण उत्पन्न हुई है”। आलस्य से बचने के लिए ‘तू कु पा’ या ‘अ पी अ’ का ध्यान रखें और धीरे से उनसे आगे निकाल जाएँ।
  • ”जल्दी सो जाएँ जल्दी उठ जाएँ” निंदासेपन से बचने की एक उत्तम विधि है ... साथ ही भरपूर नाश्ता भी करें।

चेतावनी

  • यदि ऊपर दिये गए सुझाव आपकी गतिविधियों को नहीं बढ़ाते हैं, आपकी गिरी हुई मनोदशा को, विह्वलता को अथवा लंबे समय से गिरे हुये आत्मसम्मान को नहीं उठाते हैं तब आपको अवसाद की गंभीर समस्या हो सकती है। तुरंत चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करिए।
  • सुनिश्चित करिए की आप में रक्ताल्पता या ऐसा कोई रोग तो नहीं है जो आपकी सुधार योजना को ध्वस्त कर दे। “स्वयं को जानें”। अपनी शारीरिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुये यथार्थवादी लक्ष्य निर्धारित करें और फिर डटे रहिए।
  • सामान्यतया किसी न किसी अवसादकारी परस्थितिवश (जैसे मृत्यु, नौकरी चली जाना आदि) से हर कोई कभी ना कभी उत्साहहीन हो ही जाता है, पर अधिकांश लोग उचित समय में उससे निकल भी आते हैं। परंतु यदि समस्या असीमित हो और जाये ही नहीं तो यह जानने के लिए व्यावसायिक सुझाव प्राप्त करें कि कहीं आपको कोई रोग तो नहीं है और यदि आवश्यक हो तो समुचित इलाज एवं सुझाव लें।

संबंधित लेखों

सेक्स की इच्छाओं पर काबू पाएँ (Control Sexual Urges)
एक कंडोम का प्रयोग करें
कैसे पता करें कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़की है या लड़का?
जल्दी सिक्स पैक एब्स प्राप्त करें
कड़े मल को सॉफ्ट बनाएं
सेक्स की अवधी बढ़ाएं (Kaise Sex ka Samay Badhaye)
अपने मन पर काबू पायें (Control Your Mind)
अल्ट्रासाउंड पिक्चर पढ़ें (Read an Ultrasound Picture)
किसी को अपनी आँखों से हिप्नोटाईज (सम्मोहित) करें (Hypnotize Kaise Kare, Kaise Kisi ko Apne Bas Me Kare)
काम वासना पर विजय पायें
वीर्य की मात्रा बढ़ाएँ (Sperm, Shukranu ki sankhya badhayen)
सेक्स के बारे में सोचना बंद करें (Stop Thinking About Sex)
उत्तेजित लिंग (इरेक्शन) को शांत करें
महिला कंडोम का इस्तेमाल करें

विकीहाउ के बारे में

सभी लेखकों को यह पृष्ठ बनाने के लिए धन्यवाद दें जो ५२,६४९ बार पढ़ा गया है।

यह लेख ने कैसे आपकी मदद की?