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इसमें कोई दो राय नहीं है की बच्चों को पालने के लिए समय और कोशिश दोनों की ही ज़रुरत है । बच्चों को जन्म देना तो एक प्राकृतिक क्रिया है । पर उनको पालना काफी मुश्किल काम है । अगर आप जानना चाहते की बच्चों को कैसा बड़ा करें तो नीचे लिखे निर्देश पड़ें ।

विधि 1
विधि 1 का 4:

एक स्वस्थ दिनचर्या बनाएं

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    पहले बच्चे की परवरिश को मान्यता दें: यह आजकल की दुनिया में कर पाना बहुत मुश्किल है । अच्छे माँ बाप सोच समझ कर अपना वक़्त अपने बच्चों के साथ बिताते हैं । उनके लिए अपने बच्चे के चरित्र का विकास करना सबसे ज़रूरी हैं । जब आप माँ बाप बनते है तो आपको अपनी प्राथमिकताओं को अपने बच्चे की प्राथमिकताओं से नीचे रखना चाहिए , और अपना ख्याल रखने से ज्यादा अपने बच्चों का ख्याल रखने में वक़्त गुजारना चाहिए । इसका मतलब ये नहीं की अपना ख्याल न रखें बस अपने बच्चे की ज़रूरतों को मान्यता दें ।
    • दोनों माँ बाप एक एक करके बच्चे का ख्याल रख सकते हैं ताकि दोनों को अपने लिए भी वक़्त मिल सके ।
    • जब अपना साप्ताहिक कार्यक्रम बनाएं तो अपने बच्चे को ज़रूरतें और पसंदों का ख्याल सबसे पहले रखें ।
  2. आप के 15 साल के बच्चे को यह बहुत अच्छा लगेगा । इससे आपके बच्चे का किताबों के प्रति प्रेम पड़ेगा । दिन में कोई भी एक वक़्त अपने बच्चे को किताब पड़ने के लिए रखें , यह वक़्त आप उसके सोने से पहले रखें तो बहुत अच्छा रहेगा । कोशिश करें की 30 मिनट से एक घंटे तक का समय निकालें रोज़ इस काम के लिए । इससे न केवल आपके बच्चे का किताबों के प्रति रुझान बढेगा उसका शैक्षिक और व्यवाहरिक विकास भी होगा । खोजों में यह सामने आया है की जो बच्चे रोज़ किताबें पड़ते और सुनते हैं उनका स्कूल में व्यव्हार अच्छा रहता है । है। [१]
    • एक बार आपका बच्चा पड़ना और लिखना सीख जाये तो उसे खुद आगे बढ़ने दें । हर 2 सेकंड बाद उसकी गलती न सुधारें नहीं तो उसका उत्साह कम हो जायेगा ।
  3. आजकल के आधुनिक परिवार में लोग साथ खाना नहीं खाते हैं । खाने की टेबल ऐसी जगह है जहाँ आप बच्चों को अच्छे संस्कार सिखा सकते हैं । नियम और क़ानून भी खाने की टेबल पर पालन किये जाते हैं । परिवार के खाने का टाइम उन आदर्शों को सिखाने का वक़्त भी है जो बच्चे ज़िन्दगी भर पालन करेंगे । [२]
    • अगर आपका बच्चा मीनमेख निकल कर खाना खाता हो तो पूरा खाने का वक़्त उसको टोकने में और यह देखने में की वो कैसे खा रहा है न निकाल दें । इससे बच्चे को साथ में खाना खाने के प्रति अरुचि और बढ़ेगी ।
    • बच्चे को खाने की प्रक्रिया में शामिल करें, खाने में मज़ा तब आएगा जब बच्चे का उसमें योगदान हो जैसे की आप सब्जी चयन करने में उसकी मदद ले सकती हैं या फिर टेबल को लगाने में । आप उन्हें सब्जी धोने जैसा छोटा काम भी दे सकती हैं करने के लिए । एक बड़ा बच्चा इससे ज्यादा काम संभाल सकता है । खाने में क्या बनना ये फैसला लेने में पूरे परिवार को शामिल करें ।
    • खाना खाते वक़्त हलकी बातचीत ही करें । ज्यादा पूछताछ न करें , बस ऐसे पूछें "तुम्हारा दिन कैसा था?"
    • नीचे लिखे लेख को पड़ें ।
  4. सोने का एक नियम रखें:इसका मतलब यह नहीं है की आपके बच्चे को रोज़ उसी वक़्त ही सोना चाहिए फिर भी एक ऐसा नियम बांधें जो आपका बच्चा मान सके और उस पर टिका रह सके । खोजों से पता चला है की अगर बच्चा एक घंटे की नींद भी कम सोता है तो उसके पड़ने की शमता 2 स्तरों से नीचे गिर जाती है । इसीलिए यह ज़रूरी है की बच्चा स्कूल जाने से पहले अपनी नींद ज़रूर पूरी करें । [३]
    • अपनी दिनचर्या में थोडा शांत होने का भी वक़्त रखें । टीवी , गाने आदि सब बंद कर दें और अपने बच्चे को सुलाने से पहले उससे बात करें या किताब पढ़कर सुनाएं ।
    • अपने बच्चे को सुलाने से पहले उसे मीठा न दें खाने के लिए इससे आपको उसे सुलाने में तकलीफ होगी ।
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    अपने बच्चे को उसका हुनर विकसित करने में मदद करें: इसका मतलब ये नहीं है की आप बच्चे को एक हफ्ते में 10 अलग गतिविधियों में डाल दें , आपको बस उसकी पसंद की 2-3 गतिविधियाँ ढूँढने की ज़रुरत है जिन्हें आप अपने बच्चे के साप्ताहिक कार्यकर्म में डाल सकें । इसमें आप उसको सॉकर में या कला सम्बन्धी क्लास में भी डाल सकते हैं , बस उसे वह करने में मज़ा आना चाहिए । आप अपने बच्चे का प्रोत्साहन करें और उसे बोलें की वो कितना अच्छा कर रहा है ।
    • अपने बच्चे को अलग चीज़ें कराने से वह और बच्चों के साथ अच्छे से घुलना मिलना सीख जायेगा ।
    • आलस में न आयें । मसलन अगर आपका बच्चा शिकायत करे की उससे पियानो क्लास के लिए नहीं जाना है पर आपको पता है की उसको वहां जाना अच्छा लगता हैं तो उसकी बात सिर्फ इसलिए न मान लें क्यूंकि आपको गाड़ी चला के जाने में आलस आ रहा है ।
  6. खेलना के वक़्त का मतलब ये नहीं की बच्चा टीवी के सामने बैठ कर खेल रहा है जबकी आप घर का कोई काम निबटा रही हों । खेलने के वक़्त का मतलब है की आप बच्चे को एक अलग कमरे में ऐसे खिलोने के साथ रखें जो उसके विकास में मदद करें । चाहे आप कितनी भी थकी हों यह ज़रूरी है की आप अपने बच्चे को खिलोनों से खेलना का महत्व समझाएं ताकि वो उनसे खुद से खेलना सीखे और उसकी बढ़त भी अच्छी हो ।
    • यह ज़रूरी नहीं की आप अपने बच्चे के खेलने के लिए दुनिया के सारे खिलोने खरीद कर देदें । खिलोनों की गुणवत्ता देखें नाकि उनकी मात्रा । अंत में हो सकता है की आपका बच्चा टॉयलेट पेपर से ही खेल ले ।
विधि 2
विधि 2 का 4:

बच्चे को प्यार करें

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  1. अपने बच्चे की ज़िन्दगी में एक असरदार प्रभाव छोड़ पाना आपकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी । अपने बच्चों को अपनी ज़िन्दगी से अलग कर देना बहुत आसान है लेकिन ऐसा करके कहीं आप उसे कुछ अच्छा सिखाना का मौका न खो दें । अगर आप अपने बच्चे की बात कभी नहीं सुनेंगी और हमेशा उन पर चिल्लाते रहंगे तो उन्हें लगेगा की आपको उनकी न ज़रुरत है न परवाह ।
    • अपने बच्चे को बात करने का प्रोत्साहन दें । उन्हें अपनी बातें सबके सामने रखना सिखाएं ताकि आगे चलके वे औरों से भी सही से बात कर पाएं ।
  2. यह याद रखें की आपका बच्चा एक इंसान है जिसकी कुछ ज़रूरतें और चाहतें हैं । अगर वह ढंग से खाना नहीं खाता हो तो हमेशा खाते वक़्त उसे टोके नहीं , अगर वोह पॉटी ट्रैनड नहीं हैं तो सबके सामने इसके बारे में बात न करें । अगर आपने अपने बच्चे से वादा किया है की वो अच्छे से रहेगा तो उसे बाहर ले जायेंगे तो अपना वादा सिर्फ इसलिए न तोडें क्यूंकि आप थके हुए हैं । [४]
    • अगर आप बच्चे को इज्ज़त देंगे तभी बच्चा भी आपको वह इज्ज़त दे पायेगा जो आप चाहते हैं ।
  3. ये याद रखें की आप कभी भी अपने बच्चे को बहुत ज्यादा प्यार नहीं कर सकते हैं: बहुत ज्यादा प्यार , प्रोत्साहन और ख्याल आपके बच्चे को बिगाड़ देगा यह बात एक छलावा है । आप अगर अपने बच्चे को खूब प्यार और ध्यान देंगे तो वह बड़े हो कर एक अच्छा इंसान बनेगा । बच्चे को प्यार की जगह खिलोने देने से या उसे उसकी गलती पर न डांटने से आपका बच्चा ज़रूर बिगड़ सकता है ।
    • अपने बच्चे को कम से कम दिन में एक बार - या उससे ज्यादा बार भी बोलें की आप उसे प्यार करते हैं ।
  4. यह बहुत मेहनत और परिश्रम का काम है पर अगर आप अपने बच्चे को उसका चरित्र और शौक विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हैं तो आपको उसका एक मज़बूत सहारा बनना पड़ेगा । इसका मतलब ये नहीं की आप साए की तरह बच्चे का पीछा करें बस उसके हर छोटे कदम में उसका साथ दें ।
    • एक बार आपका बच्चा स्कूल जाने लगे तो आपको मालूम होना चाहिए की वो कौनसी क्लास में है और उसकी अध्यापिकाओं का नाम क्या हैं । अपने बच्चे का गृहकार्य ख़त्म करने में उसकी मदद करें और कोई मुश्किल कार्य मिले तो वो करने में उसकी सहायता करें पर किसी भी सूरत में उसका काम खुद न करें |
    • जैसे जैसे आपका बच्चा बड़ा होता जाये आप थोड़ी से उसे छूट दे सकते हैं और साथ के साथ उसके शौक़ पूरे करने के लिए उसे प्रोत्साहित भी कर सकते हैं ।
  5. आप अपने बच्चे का साथ निभाएं लेकिन उसे अपनी पसंद के शौक़ पूरे करने की आजादी दें । उसे यह न बताएं की उसे क्या पड़ना चाहिए उसे खुद उनका चुनाव करने दें । आप उसे तैयार होने में मदद करें लेकिन जब उसके लिए कपडे लेने जायें तो उसकी राय ज़रूर पूछें । अगर वो अपने दोस्तों या खिलोनों के साथ अकेले खेलना चाहिए तो उसे ऐसा करने दें इससे उसे अपनी पहचान बनाने में आसानी होगी । [५]
    • अगर आप बच्चे को जल्दी स्वाधीन बनायेंगे तो वह बड़े होके अपने बारे में आसानी से सोच पायेगा ।
विधि 3
विधि 3 का 4:

बच्चे को अनुशासित करना

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  1. ये बात जानलें की बच्चों को भी हदों की ज़रुरत होती है: हो सकता है की कई बार वह अपनी हदों को भूल जायें। इसके लिए उन्हें हलकी सजा आप दे सकते हैं । बच्चों को यह मालूम होना चाहिए की सजा किसलिए दी गयी है और आप प्यार में उसको सजा दे रहे हैं ।
    • अगर आपको बच्चे को किसी गलत काम से रोकना है तो उसको सजा भी ऐसी दें जो लाज़मी हो । एक बिना सर पैर की सजा देना से अच्छा है की उसका कोई विशेषाधिकार बंद कर के सजा दें । बच्चे को इस विशेषाधिकार के बंद होने का मतलब समझ आना चाहिए । [६] "मसलन आप उसे कह सकते हैं "की अगर तुमने सड़क पर साइकिल चलाई तो बाकी के दिन के लिए तुम साइकिल नहीं चला पाओगे ।"
    • बच्चों के साथ हिंसा की सजा न अपनाएं जैसे की मारना और पीटना । जो बच्चे माँ बाप से पिटते हैं वो ज़रूरी नहीं की उनकी हर बात सुनें । जो बच्चे मारे पीटे जातें हैं वो और बच्चों को भी मार पीट सकते हैं । इसलिए कभी बच्चे को मारे नहीं । वह बदमाश हो सकते हैं और अपनी हर लड़ाई को ख़त्म करने के लिए मार पीट का इस्तमाल कर सकते हैं । [७] जो बच्चे घर पर हिंसा का शिकार होते हैं उन्हें पोस्ट - ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर भी हो सकता है । [८]
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    अपने बच्चे के अच्छे व्यव्हार के लिए उसकी तारीफ़ करें: अपने बच्चे को ख़राब व्यव्हार के लिए डांटने से ज्यादा ज़रूरी है उसको उसके अच्छे व्यव्हार के लिए उसकी तारीफ़ करना । ऐसा करने से उसे आगे के व्यव्हार को समझने में आसानी होगी । अगर आपका बच्चा कोई अच्छा काम करता है जैसे अपने खिलोनों को औरों से बांटना तो उसे यह ज़रूर बताएं, यह उसके किसी ख़राब काम के लिए उसे डांटने से भी ज़रूरी है ।
    • अपने बच्चे की तारीफ करने की ज़रुरत को प्राथमिकता दें । यह कहना "मुझे इस काम के लिए तुम पर नाज़ है" आपके बच्चे को एहसास दिलाएगा की उसका अच्छा व्यवहार पसंद किया गया है ।
    • आप अपने बच्चे को समय समय पर खिलोने और स्वीट दें पर आपके बच्चे को यह न लगे की उसे हर अच्छे काम पर खिलौना दीया जायेगा ।
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    अपने व्यव्हार में समानता रखें: अगर आप बच्चे को सही ढंग से अनुशासित रखना चाहते है तो आपको एक जैसा व्यव्हार रखना पड़ेगा । आप ऐसा नहीं कर सकते की एक काम के लिए आप उसे एक दिन डांटें और अगले दिन उसे न करने के लिए उसे टॉफ़ी दें और तीसरे दिन उसे कुछ न कहें क्यूंकि आप थके हुए हैं । अगर आपका बच्चा कोई अच्छा काम करे तो हर बार उसकी तारीफ करें । यह समानता ही अच्छे और बुरे बर्ताव में उसको फर्क करना सिखाएगी ।
    • अगर दोनों माँ बाप बच्चे को साथ पाल रहे हों तो एकजुट होके रहें और एक जैसे तरीके आज़माएँ उसे अनुशासित करने के लिए ।
  4. अगर आप चाहते हैं की बच्चा आपके अनुशासन के तरीकों को समझे तो आपको उसे ढंग से बताना पड़ेगा की क्यूँ वो कुछ चीज़ें नहीं कर सकता । खाली उसको ये न बताएं की सफाई करें या और बच्चों के साथ घुल मिल कर रहें । उसे यह भी बताएं की ऐसा उसे क्यूँ करना चाहिये और ऐसा करने से उसे, आपको और समाज को क्या फायदा होगा । अगर आप बच्चे को उसके व्यव्हार और उसके असर के बारे में समझा पाए तभी वो आपके फैसलों को मानेगा ।
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    अपने बच्चे को उसके द्वारा किया गए कामों की ज़िम्मेदारी लेना सिखाएं: यह एक बहुत ज़रूरी हिस्सा है अपने बच्चे को अनुशासित करने का और उसका चरित्र विकसित करने का । अगर वो अपना खाना नीचे फेंकता है तो कोशिश करें की वह अपने व्यव्हार को माने और बताये की उसने ऐसा क्यूँ किया । बजाये इसके की वह उस हरकत से या तो मना करदे या फिर किसी और को उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराए । अगर आपका बच्चा कुछ गलत करे तो उससे बात करें की ऐसा क्यूँ हुआ ।
    • अपने बच्चे को समझाएं की हर कोई गलती करता हैं । गलती इतनी ज़रूरी नहीं जितना की यह जानना की बच्चा कैसे उसे संभालता है ।
विधि 4
विधि 4 का 4:

चरित्र निर्माण

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  1. हम सदाचार अभ्यास से सीखते हैं । माँ बाप को अपने बच्चों को यह सिखाने के लिए आत्म अनुशासन , अच्छी आदतें , औरों के लिए दया और समाज सेवा की मदद लेनी चाहिए । किसी भी चरित्र निर्माण का मूल मंत्र है व्यव्हार-उनका व्यव्हार । अगर आपका बच्चा यह व्यव्हार समझने के लिए अभी छोटा है तो आप उसे दयावान होना तो सिखा ही सकते हैं ।
  2. कोई भी इंसान ऐसे ही अच्छी या बुरी चीज़ें सीखता है , आप से ही बच्चे अच्छी बुरी सब तरीके की आदतें सीखेंगे और यही आपका सबसे बड़ा योगदान होगा । अगर आप बच्चे पर चिल्लाएं और फिर उसे कहें की चिल्लाओ मत तो वो नहीं समझेगा, अगर आप गुस्सा करेंगे या पड़ोसियों को अपशब्द कहेंगे तो बच्चे को यह व्यव्हार सामान्य लगेगा । [९]
    • पहले दिन से उसका प्रेरणास्रोत बनें । आपका बच्चा आपका भावों और व्यव्हार को जल्दी समझ पायेगा ।
  3. बच्चे स्पंज जैसे होते हैं । वो जो भी देखते हैं उससे उनका चरित्र निर्माण होता है । किताबें , गाने , टीवी, इन्टरनेट और टेलीविज़न कोई न कोई सही या गलत सन्देश बच्चों को देते रहते हैं । अच्छे माँ बाप होने के नाते हमें देखना चाहिए की बच्चों पर कौनसी चीज़ कैसा असर डाल रही है ।
    • अगर आप और आपका बच्चा कोई ख़राब चीज़ें देखें जैसे की दो लोगों में लड़ाई या फिर टीवी पर कोई हिंसक दृश्य तो अपने बच्चे को उस के बारे में ज़रूर बताएं ।
  4. अपने बच्चे को अगर आप थैंक यू और प्लीज कहने की आदत डालेंगे तो उसके लिए आगे चलके बहुत फायदेमंद रहेगा । अच्छी आदतें ज़िन्दगी भर साथ निभाती हैं इसलिए जितनी जल्दी डाल दी जाएँ उतना अच्छा । अपने से बड़ों की इज्ज़त करना और और बच्चों से नहीं लड़ना ऐसी आदतें डालना बच्चे के व्यक्तित्व के लिए बहुत अच्छा रहता है ।
    • एक अच्छी आदत है अपनी सफाई खुद करना । अगर आप अपने बच्चे को 3 साल की उम्र में अपने खिलोने उठाना सिखायेंगे तो जब वह 23 का होगा तो उसे अच्छे मेहमान बनने की कला आ जायेगी।
  5. ऐसे शब्द ही बोलें जो आप अपने बच्चे के मुंह से सुनना चाहते है: चाहे आपको किसी जान पहचान वाले को फ़ोन पर ही बुरा भला कहने का मन करे ध्यान रहे की आपका बच्चा सब सुन रहा है । अगर पति पत्नी के बीच में लड़ाई हो रही हो तो इस को बंद दरवाज़ों में करें ताकि बच्चे पर उसका असर न पड़े ।
    • अगर आपके मुंह से कोई अपशब्द निकल भी जाये तो ऐसे न करें जैसे कुछ हुआ ही न हो । माफ़ी मांगे और कहें की दुबारा नहीं होगा । अगर आप कुछ नहीं कहेंगे तो बच्चा सोचेगा की यह शब्द सही हैं ।
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    अपने बच्चे को दूसरों के साथ हमदर्दी करना सिखाएं: यह जितनी जल्दी आप सिखा दें उतना अच्छा । अगर आपका बच्चों औरों के साथ हमदर्दी रखेगा तभी वह लोगों पर जल्दी फैसले नहीं लेगा और उनकी नज़र से भी दुनिया को देख पायेगा मसलन अगर आपका बच्चे कहे की उसके दोस्त ने उसके साथ गलत व्यव्हार किया तो उसके साथ बात करके पूछें की क्या हुआ और उसके दोस्त को क्या लग रहा था जो उसने ऐसा व्यव्हार किया । [१०] या फिर होटल में अगर वेट्रेस आपका आर्डर भूल गयी हो तो यह न बोलें की वो आलसी है यह बोलें की वो सारा दिन काम करती है इसलिए थक गयी है ।
  7. सिर्फ बच्चे को थैंक यू बोलना सिखा देने से ही काम नहीं चलता । बच्चे को अहसान मानना सिखाने के लिए आपको खुद भी सबको थैंक यू बोलना चाहिए ताकि बच्चा ये अच्छा व्यव्हार देखे अगर आपका बच्चा शिकायत करे की स्कूल में सब के पास नया खिलौना है तो उसे समझाएं की कई लोग हैं इस दुनिया में जिन्हें यह भी नसीब नहीं है ।
    • उसे सब तरीके के लोगों से मिलाएं ताकि उसे यह अंदाज़ा हो की वो कितनी किस्मत वाला है फिर चाहे आप उसे त्यौहार पर नया खिलौना नहीं दे रहे हो ।
    • यह कहने से , "की मेने तुम्हें थैंक यू कहते नहीं सुना " से उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना उसको सुनाकर खुद थैंक यू बोलने से होगा ।

सलाह

  • अपने बच्चे के दोस्तों के माँ बाप से मिलें । हो सकता है आप की खुद से उनसे गहरी दोस्ती हो जाये पर फिर भी आपको यह तसल्ली रहेगी की वो उनके घर में सुरक्षित है ।
  • कैसे करें वाली किताबें सावधानी से पड़ें, बचपन में की गयी गलतियाँ बड़े होके परेशान करती हैं |

== स्रोत और उद्धरण ==

विकीहाउ के बारे में

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