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जब आप किसी को ठेस पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, तब हर बार बिगड़ी बात बना पाना संभव नहीं होता है। अपने दिल पर पत्थर रख कर माफी मांगने का विचार है तो भयानक, मगर यदि उससे संबंधों का पुनर्निर्माण हो जाता है तब यह भी ठीक है। समस्या को अनदेखा करने के स्थान पर उसका समाधान करने का प्रयास करके आप चलना शुरू कर चुके हैं। अब बस आपको क्षमा याचना करने के सही ढंग की खोज करना है और चीजों को ठीक कर देना है। यह सीखने के लिए की बिगड़े हुये सम्बन्धों को सुधारने की शुरुआत कैसे करनी है, पहला चरण और उसके आगे देखिये।

विधि 1
विधि 1 का 3:

समझिए कि हुआ क्या है

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  1. क्या स्थिति बिलकुल साफ थी – आप गलत थे, और दूसरा व्यक्ति सही था? या जो मसला अभी आपके सामने है वह उससे कहीं अधिक जटिल है? बिगड़ी बात बनाना तब और भी कठिन हो जाता है जब यह निश्चित न हो सके कि क्या दोष, किसका था। जो हुआ उस पर विचार करिए और फिर तय कीजिये कि किस बात के लिए क्षमा याचना करनी है।
    • यदि आपकी भूमिका बिलकुल स्पष्ट हो और आपको पता भी हो कि किस लिए आपको क्षमा मांगनी है, तब तो बिगड़ी बात बनाना सीधी बात होती है (हालांकि इससे वह कम मुश्किल नहीं हो जाती है)। जैसे कि, यदि आप किसी की कार बिना पूछे ले गए और उसमें कुछ धक्का वगैरह लग गया, तब तो बिगड़ी बात कैसे बनानी है यह तो बिलकुल स्पष्ट है।
    • दूसरी ओर, शायद यह उतना स्पष्ट भी नहीं है। जैसे कि, आप की अपने मित्र से महीनों से बातचीत नहीं हुई है, आप दोनों ने ही एक दूसरे के बारे में चोट पहुंचाने वाली बातें कहीं हैं जिसके कारण सम्बन्धों में एक ठहराव आ गया है। तब यह जानना कठिन हो जाता है कि झगड़ा शुरू कैसे हुआ था और उसके लिए उत्तरदायी कौन है।
  2. जब आपने किसी और के प्रति कुछ गलत किया हो तब, शायद आप स्वयं को पूर्णतया शर्मिंदा नहीं महसूस करते है। लोग अक्सर अपनी शर्म को आक्रामकता का जामा पहना देते हैं या अपने व्यवहार के लिए बहाने बनाना शुरू कर देते हैं। वैसे तो यह स्वीकार कर पाना ही कठिन होता है कि आपने किसी और को ठेस पहुंचाइयी है, मगर अगर आप बिगड़ी बात बनाना चाहते हैं तो आपको अन्य भावनाओं से स्थिति को और जटिल करने के स्थान पर चीजों को ठीक करने पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। अपनी भावनाओं को स्वीकार कर पाने के लिए स्वयं से निम्न प्रश्न पूछिए:
    • क्या आप अपनी शर्मिंदगी की भावना को इसलिए छिपाना चाहते हैं क्योंकि आपको लगता है कि अपनी भूल स्वीकार करने से आप छोटे हो जाएँगे? चिंता मत करिए – अपनी की हुई किसी गलती की क्षमा मांगने से वास्तव में आप दूसरों की नज़र में “बेहतर” व्यक्ति बन जाएँगे, न कि खराब व्यक्ति।
    • आपको अपनी भूल का पता तो है मगर आपने स्वयं को विश्वास दिला दिया है कि अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए आपको यह लड़ाई करने ही होगी। मगर इससे होगा यह कि आप नाराज़ और जिद्दी व्यक्ति के रूप में जाने जाने लगेंगे।
    • क्या आप चिंतित हैं कि यह आत्म सम्मान और दूसरों के सम्मान के बीच चल रहा युद्ध है?
  3. उनके दृष्टिकोण से आपके बीच क्या हुआ है? क्या आपको लगता है कि वे भी आपके जितनी ही पीड़ा, विद्वेष, तथा क्रोध महसूस कर रहे हैं? शायद उन्हें चोट पहुंची हो, उलझन हो, परेशानी हो या चिंता हो? अपनी चोट से बाहर आइये और जो भी हुआ है उसको अपने परिप्रेक्ष्य से देखने के स्थान पर दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करिए।
    • अपने मानसिक साँचे को बदलीये। यदि आप अभी भी क्रोधित हैं, आपको लग रहा ही कि आपके साथ अन्याय हुआ है, आप क्षमा नहीं करना चाहते हैं या बस आप ऊब चुके हैं तब यह समझने का प्रयास करिए कि दूसरे व्यक्ति के साथ आपके संबंध सदैव सही होने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।
  4. इससे आपके मनोभावों को आपके सिर से निकल कर कागज पर आने में सहायता मिलेगी। इससे आपको अपनी चिंताओं, वास्तविकताओं और वस्तुस्थिति की आपके द्वारा की गई विवेचना की छँटाई करने में सहायता मिलेगी जिससे आपको यह समझ में आ पाएगा कि बिगड़ी बात बनाई कैसे जाये।
    • जो गलती आपने की है उसे स्वीकार करिए। अहंकारी और जिद्दी होने के स्थान पर ईमानदार रहिए।
    • यदि आपको यह भी लगता है कि भूल दोनों की है, ऐसे बिन्दु पर पहुंचिए जहां पर आप उस संबंध में अपना बड़प्पन दिखा सकें।
    • अपने कारणों को कागज पर देखिये। क्या स्पष्ट दिखता है? क्या आपको कुछ पैटर्न निकलते हुये दिख रहे हैं? जैसे कि आपको अपने व्यवहार का एक पैटर्न दिखे जहां पर आपने इस व्यक्ति के साथ और अन्य व्यक्तियों के साथ भी अनेक बार स्वार्थपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन किया हो। वास्तविक घटना इतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना आपका नकारात्मक कारण, तो उस पहलू पर ध्यान देने का प्रयास करिए क्योंकि आप जिस व्यक्ति से क्षमा याचना कर रहे हैं उसे यह बताना चाहते हैं कि आपने वह सब समझ लिया है।
  5. यदि आप को लगता है कि आपमें अभी भी क्रोध भरा हुआ है और आप प्रतिरक्षात्मक ही हैं, तब आपको बिगड़ी बात बनाने की कोशिश शुरू करने से पहले थोड़ी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। जब आपका दिल भावनाओं से भरा हो तब बिगड़ी बात बनाने का प्रयास करना अर्थहीन है। आपकी क्षमा याचना दिल से निकली हुई नहीं लगेगी क्योंकि वह तो “होगी” ही नहीं। अपनी विद्वेष की भावना का सामना करना आगे बढ्ने का एक व्यावहारिक और रचनात्मक तरीका है क्योंकि इससे आप उन कारणों की जड़ तक पहुँच सकते हैं जो आपको संचालित कर रहे हैं।
    • यदि आवश्यक हो तो स्वयं को शीतल होने के लिए और घावों को भरने के लिए कुछ समय दीजिये। मगर बहुत देर भी मत करिए, क्योंकि जितने लंबे समय तक आपका क्रोध पकता रहेगा और जितनी देर तक दूसरे व्यक्ति द्वारा आप पर अविश्वास किया जाता रहेगा, समझौता उतना ही कठिन होता जाएगा।
    • स्वीकार करिए कि आपसे बुरा व्यवहार हो गया है और अब समय आ गया है कि उस व्यवहार के कारण उत्पन्न गंदगी की सफाई की जाये। स्वीकृति का अर्थ क्षमा करना नहीं है – इसका अर्थ है कि जो हो गया है, उसको मान लिया जाये।
    • स्वीकार करिए कि शुरू में, जो भी हुआ, उस पर क्रोध आना स्वाभाविक है मगर उस क्रोध को बहाना मत बना लीजिये। क्रोध से आगे बढ्ने के विकल्प को चुनिये – याद रखिए कि यह आपकी भूल के संबंध में है, आपकी तथाकथित ख्याति पर कीचड़ उछालना नहीं है।
  6. निश्चित कीजिये कि जो हानि हुई है उसकी क्षतिपूर्ति कैसे होगी: अपनी शर्मिंदगी छिपाने से थोड़ा आगे बढ़ कर वास्तव में यह सोचिए कि जो आपने किया है उसको ठीक कैसे किया जा सकता है। बिगड़ी बातें बनाने का तरीका सबके लिए अलग अलग होता है। जो आपने किया है उसको ठीक करने का तरीका केवल आप ही जानते हैं।
    • बिगड़ी बात बनाने के लिए हो सकता है कि आपको सिर्फ अपनी इज्ज़त ताक पर रख कर अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगनी हो।
    • कभी तो बिगड़ी बात बनाने के लिए माफी मांगने से अधिक भी कुछ करना हो सकता है। जैसे कि, यदि आप किसी के संपत्ति बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार हों तो समस्या के समाधान के लिए उसका भुगतान करना अधिक लाभप्रद हो सकता है।
विधि 2
विधि 2 का 3:

उसको ठीक करने के लिए योजना बनाना

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  1. कठिन वार्तालाप करने से पहले उसका पूर्वाभ्यास करिए, क्योंकि इससे कि आपकी भावनाएं रास्ते में आ कर आपको रोक लें, आप अपने आप ही कहने लग जाएंगे। ज़रा पीछे मूड कर अपने कारणों की सूची तो देखिये, सोचिए कि क्या आप किसी और तरीके से भी चीज़ें कर सकते थे और खोजिये कि आगे क्या किया जा सकता है। मन ही मन वो मुद्दे तैयार कर लीजीय, चाहें तो लिख भी लीजिये, कि आप जब अगली बार दूसरे व्यक्ति से बातें करेंगे, तो क्या क्या कहेंगे। निम्न को ध्यान में रखिए:
    • जो भी आपने किया है उसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार रहिए। शुरू में ही जो कुछ भी अपने गलत किया है उसकी चर्चा कर लेना और अपनी गलती स्वीकार कर लेना अच्छा है। इससे आगे की बातचीत के लिए ग्लानि की मनोदशा स्थापित हो जाती है। आप केवल इतने से शुरुआत कर सकते हैं कि, “मुझे खेद है कि मैंने तुम्हें ठेस पहुंचाई। यह कहना/ करना मेरी गलती थी कि ....”। ठेस मारना स्वीकार कर लेने से तनाव मुक्ति की राह सरल हो जाती है।
    • याद रखिए कि यदि यह पहली बार नहीं है जब आपने किसी को ठेस पहुंचाई है, और दूसरा व्यक्ति आपकी क्षमा याचनाओं को पहले भी सुन चुका है, तो बस केवल “माफ कीजिये” से काम नहीं चलने वाला है। माफ कीजिये तब तक महज़ एक आसान से शब्द होते हैं जब तक कि उनको वास्तविक परिवर्तनों से सहारा नहीं दिया जाता है। सोचिए कि आप कैसे यह स्पष्ट करेंगे कि आप जो कह रहे हैं,वह दिल से कह रहे हैं और आपकी क्षमा याचना उस स्थिति में पूरी ईमानदारी से की जा रही है जब आप यह यकीन दिला रहे हैं कि आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे अथवा अपनी गलती नहीं दोहराएंगे। [१]
  2. बिगड़ी बातें तो ई मेल या फ़ोन पर भी बनाई जा सकती हैं मगर इसके लिए आमने सामने मिलना कहीं बेहतर होगा। इससे आपकी उस व्यक्ति से नैकट्य की तथा सीधा, अर्थपूर्ण संपर्क बनाने की इच्छा का प्रदर्शन होता है।
    • यदि आप परिवार के उन सदस्यों के साथ बिगड़ी बात बनाने की सोच रहे हैं जिन्हें आपने बहुत समय से देखा भी नहीं है, तो एक दूसरे के घर पर मिलने के स्थान पर किसी तटस्थ स्थान पर मिलने की सोचिए। इससे वे सामान्य तनाव दूर हो सकेंगे जो एक दूसरे के क्षेत्र में उठ खड़े हो सकते हैं।
    • यदि आप व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल सकते हैं तो , टाइप करके ई मेल करने के स्थान पर एक पत्र लिखने का विचार करिए। कागज कलम से अपनी लिखावट में भावनाओं को व्यक्त करता हुआ पत्र भेजना कहीं अधिक व्यक्तिगत होता है।
  3. दूसरे व्यक्ति को बताइये कि आप अपनी भूलों को सुधारना चाहते हैं और जैसा आपने पूर्वाभ्यास किया था और जिन भावनाओं के दौर से आप गुजरे हैं। उसके अनुसार, उस विषय पर बातचीत शुरू करें। निम्न बातों का ध्यान रखें:
    • बिगड़ी बात बनाने के लिए की जाने वाली चर्चा का लक्ष्य यह रखिए कि संबंध पहले से बेहतर हो जाएँ। यदि आप इस मनोस्थिति से बात शुरू करते हैं कि आप इस व्यक्ति से सम्बन्धों की परवाह करते हैं और चाहते हैं कि चीज़ें न सिर्फ पहले जैसी, बल्कि उससे भी बेहतर हो जाएँ, तो समझ लीजिये कि आपकी शुरुआत अच्छी है।
    • अपने हाव भाव, बोलचाल का लहजा, मुद्रायेँ, और मनोभावों का ध्यान रखें। यदि आपको वास्तव में खेद है तो इन सबसे आपकी ईमानदारी से भरपूर क्षमायाचना का भाव दिखना चाहिए। आँखें आपके मनोभावों को बखूबी दिखाती हैं, नज़रें मिला कर आप यह संकेत करते हैं कि आप जो कह रहे हैं वह दिल से कह रहे हैं और समस्या या गलतियों की सच्चाई से भाग नहीं रहे हैं।
    • अपने वाक्यों में “आप” कहने से बचिए, सदैव कहिए, “मैं महसूस करता हूँ”, “मेरा विचार है”, “मुझे लगता है”, “मैंनें सोचा” आदि। समझ लीजिये कि यहाँ पर हम उनकी भूलों की चर्चा करने नहीं आए हैं।
    • अपनी बातों को न्यायसंगत बताने की छोटी भी कोशिश मत करिए। इससे तो आप फिर उसी झगड़ालू स्थिति में पहुँच जाएँगे।
  4. लंबी चौड़ी क्षमा याचना तो विलाप जैसी लगने लगेगी और आप घूम फिर कर फिर वहीं पहुँच जाएँगे। अपनी बातें स्पष्टता, मधुरता और प्रभाव पूर्ण विधि से कहिए। आप दोनों में से कोई भी नहीं चाहता होगा कि असहजता के इस स्तर पर दिन भर पड़े रहें।
  5. उनकी भावनाओं और दृष्टिकोण का अनुमान मत लगाने लगिए। जैसा कि पहले कहा गया था, शायद अब तक आप उनके स्थान पर स्वयं को रखने का प्रयास कर चुके होंगे, मगर ध्यान रहे कि यह भी आपने अपनी जानकारियों और दुनियावी समझ के अनुसार ही किया है। उनको अपनी शिकायतें कहने के लिए स्थान, समय, और स्वतन्त्रता दीजिये। चाहे आपको यह क्यों न लगता हो कि उनके द्वारा किया गया परिस्थितियों का आकलन पूरी तरह से सही नहीं है, मगर उनको यह बताने से, कि वे सही नहीं समझ पा रहे हैं, आपको मामले में कुछ सहायता नहीं मिलेगी।
  6. आपकी खरी क्षमा याचना तब और भी अर्थपूर्ण हो जाएगी, जब आप उसके साथ परिवर्तन के मापने योग्य वादे भी करेंगे और उनका अनुपालन भी करेंगे। जैसे कि, यदि आपसे किसी की कोई चीज़ टूट गई है तो उसके स्थान पर नई ला देने का प्रस्ताव रखिए; यदि आपने किसी के बारे में बहुत बुरी बुरी बातें कहीं हों, तो उनके गुणों की लंबी फेहरिस्त उनके सम्मुख प्रस्तुत करिए और स्पष्ट करिए कि आपको उनकी उपलब्धियों से ईर्ष्या थी; यदि आपने किसी के समारोह को बर्बाद कर दिया हो, तो उसके बदले में एक और आयोजित करने के लिए कहिए। चाहे धन हो, या समय या ध्यान, जो भी आपने किसी से छीना हो, यथा संभव उसको वापस करने का प्रयास करिए।
    • आप किस प्रकार अपना व्यवहार परिवर्तित करना चाहते हैं, यह स्पष्ट करिए। यदि आप अपने इस बदलाव के वादे के समर्थन में कोई प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं तो उसे दिखाइये। उदाहरण के लिए यदि आपसे किसी दुर्घटना में किसी व्यक्ति की प्यारी भेड़ मर गई हो और आप उसे यह बता रहे हों कि अब आप कभी भी ए टी वी नहीं चलाएँगे तो उस वाहन की बिक्री के लिए दिया गया विज्ञापन दिखाइए।
    • दूसरे व्यक्ति को यह बताने में पूरी ईमानदारी बरतिए कि “आपने” उस अनुभव से सीख पायी है। इससे दूसरे व्यक्ति को यह समझने में सहायता मिलती है कि आपने सचमुच में सबक लिया है, आप को पश्चात्ताप है और आपके लिए वह पाठ सच में प्रभावकारी था।
    • यदि आवश्यक हो तो आप दूसरे व्यक्ति को एक यह रास्ता भी सुझा सकते हैं कि यदि आप अपने वादे को नहीं निभाते हैं तो वे क्या क्या कर सकते हैं – वैसे यह अंतिम रास्ता है और इसकी उपयोगिता इस पर निर्भर करेगी कि आपकी भूल कितनी बड़ी और कितनी भयानक थी। जैसे कि, आप कह सकते हैं कि, “यदि मैं यह वादा तोड़ूँ तो आप मेरा स्टार ट्रेक संग्रह बेच देने के लिए स्वतंत्र हैं”।
  7. दूसरे व्यक्ति से पूछिए कि उनके विचार से बिगड़ी बात बनाने के लिए क्या किया जा सकता है: यदि वे कोई यथार्थवादी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तो यह सम्बन्धों के पुनर्स्थापन के लिए एक बढ़िया राह हो सकती है। यह विकल्प सदैव ही उचित नहीं होगा, इसलिए भूल के संदर्भ को ध्यान में रखिए। उस समय विशेष तौर से सावधान रहिए जब आप इस बात से चिंतित हों कि दूसरा व्यक्ति इस अवसर को चालकी भरे व्यवहार के लिए इस्तेमाल करेगा – आप बिगड़ी बात बनाने आए हैं न कि सदैव की ग़ुलामी के लिए।
विधि 3
विधि 3 का 3:

आगे की कार्यवाही करना

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  1. किसी व्यक्ति को उसी तरह से दोबारा ठेस पहुंचाना तो उसके विश्वास को पूरी तरह नष्ट कर देना है। यदि आप दोस्ती सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो सुनिश्चित करिए कि आप फिर कभी भी जान बूझ कर उसे ठेस नहीं पहुंचाएंगे। एक विश्वसनीय और विचारशील मित्र बनने का भरसक प्रयास करिए। संपूर्णता तो असंभव है, मगर आप विश्वसनीय होने का तो यथा संभव प्रयास कर ही सकते हैं।
  2. बिगड़ी बात बनाने के आपके प्रयासों का जो भी नतीजा हो, महत्वपूर्ण यह है कि आप आत्मदया के चक्कर में न पड़ें, और न ही दूसरे व्यक्ति को आरोपित करने का प्रयास करते रहें। चाहे आप चीज़ें ठीक न भी कर पाये हों कम से कम आपने यथा संभव प्रयास तो किया है।
    • आप दोनों के लिए भविष्य में क्या है, इस पर ध्यान दीजिये और जो हो चुका है उसी को फिर से जीते मत रहिए।
    • चाहे आप दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध इसलिए पुनर्स्थापित नहीं कर पाएँ क्योंकि उस व्यक्ति ने तय कर लिया हो कि आप दोनों के संबंध पूरी तरह से टूट चुके हैं, तो भी निश्चय कर लीजिये कि इस तरह से कभी किसी और को ठेस नहीं पहुंचाएंगे। [२]
  3. अपनी भूल के अनुभव का प्रयोग करके उनके साथ सहानुभूति करिए जिनसे वैसी ही भूल हो जाती है। आप न केवल उनको बेहतर समझ पाएंगे, बल्कि यह भी संभव है कि आपके पास इतना अनुभव हो, जिससे आप उनकी निंदा किए बगैर, उनको सकारात्मक परिणाम पाने में सहायता कर सकें। [३]
    • स्वयं को क्षमा करने से (जो कि बिगड़ी बात बनाने का मूल है) आप अतीत में रहने के स्थान पर, वर्तमान में रहने में सक्षम हो पाते हैं, ताकि यदि बात नहीं भी बनती है, तो आप इस उपहार के लिए आभारी हो सकते हैं। स्वयं को क्षमा करके आपके घाव भरेंगे।

सलाह

  • अधिकांश सम्बन्धों में विवाद तो जीवन का हिस्सा ही होते हैं। जब उनकी देखभाल ठीक से होती है, तब गलतफहमी और विवाद का समापन, वास्तव में आपको एक दूसरे के निकट ला सकता है, और आप दोनों को बेहतर समझदारी पाने और एक दूसरे की सीमाएं समझने में सहायता कर सकता है। यदि आप नकारात्मक अंतःक्रियाओं को भी इस परिप्रेक्ष्य में देखेंगे, तो आप उनसे हर कीमत पर बचते रहने के स्थान पर, आसानी से उनको अपने लिए जीवन के सबक और सम्बन्धों के विकास के लिए सुअवसर की तरह स्वीकार कर पाएंगे।
  • बिगड़ी बातें बनाने के पहले, अपनी भूलों के प्रति शांत रहिए – इससे दूसरे लोगों को भी अपनी भूलों से आगे बढ्ने में सहायता मिलेगी।
  • बिगड़ी बातें बनाने का एक संदर्भ यह भी हो सकता है कि आप किसी और की ओर से भी यह करने की इच्छा रखें, जैसे कि परिवार के किसी ऐसे सदस्य अथवा मित्र के लिए, जिसके लिए आप स्वयं को उत्तरदायी समझते हों, मगर जिसके व्यवहार को परिवर्तित करने के लिए कुछ कर नहीं पा रहे हों। यदि आप किसी और की बिगड़ी बात बनाने का प्रयास कर रहे हों तो, सावधान रहिए कि कहीं आप उनकी शर्मिंदगी और अपराध बोध को अपने ऊपर न ओढ़ लें, अन्यथा इससे आपका जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा और आपका दृष्टिकोण दूषित हो जाएगा। ध्यान रखिए कि हम सब अपने व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं।

चेतावनी

  • आजीवन यह समझते रहना कि आप ही सदैव सही हैं, क्लेश प्राप्त करने की निश्चित विधि है। याद रखिए कि खयालात सबके होते हैं; कुछ के आपसे भिन्न भी हो सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे निश्चय ही गलत हैं, केवल आपसे फर्क हैं। दूसरे व्यक्ति को अपनी समझ, निर्णयों और दृष्टिकोण से आबद्ध करना न केवल हानिकारक है, बल्कि आपको यह देखने से भी रोक देता है कि आपका खयाल दुनिया के करोड़ों ख़यालों में से एक है और चूंकि आपने अपना दिमाग खुला रखने से इंकार कर दिया है इसलिए आप अपना शेष जीवन दूसरों से लड़ने में ही निकाल देंगे। अपने और दूसरे व्यक्ति, दोनों के विचारों को स्वीकार करके जीने का प्रयास करिए – केवल इतना कहिए कि, “आपके विचार/ निर्णय/ दृष्टिकोण मुझसे भिन्न हैं”। कुछ भी सही और गलत नहीं होता है, केवल कम या अधिक सहनशीलता होती है।

चीजें जिनकी आपको आवश्यकता होगी

  • कागज और कलम (ऐच्छिक)

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  1. Stephanie Dowrick, Choosing Happiness: Life and Soul Essentials , p. 293, (2005), ISBN 1-74114-521-X
  2. Stephanie Dowrick, Choosing Happiness: Life and Soul Essentials , p. 294, (2005), ISBN 1-74114-521-X
  3. Stephanie Dowrick, Choosing Happiness: Life and Soul Essentials , p. 294, (2005), ISBN 1-74114-521-X

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