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लगातार चिंता और संदेह आपको प्रतिदिन परेशान कर सकते हैं और आपके तनाव का स्तर भी बढ़ा सकते हैं। यह भावनाएँ और उच्च तनाव स्तर आपको कुछ भी करने से और अपनी पसंद की चीजों का आनंद लेने से बाधित कर सकती हैं। अपने मस्तिष्क का थोड़ा सा पुनर्केंद्रीकरण करके आप बेपरवाह बन सकते हैं और चीजों को स्वयं को परेशान नहीं करने दे सकते हैं। आप तो मज़बूत चीजों से बने हैं और आपको कुछ भी गिरा नहीं सकता है। “उसको जाने भी दो” आपकी विषय धुन नहीं है और यह “आपके बारे” में है!

विधि 1
विधि 1 का 3:

मानसिक स्थिति में आना

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  1. बेपरवाह होने का अर्थ यह नहीं है कि आप प्रसन्न नहीं रहेंगे – इसका अर्थ है कि आप जल्दी ही परेशान, नाराज़, या तनावग्रस्त नहीं हो जाएंगे। और यह किया कैसे जाएगा? जब प्रत्येक वस्तु हास्यप्रद हो, तब यह अच्छी शुरुआत होगी। जिस प्रकार से हर बात में कुछ अच्छी बात अवश्य होती है, अधिकांश चीज़ों में हास्य का पुट भी होता ही है।
    • हालांकि यह उदाहरण सीधा सादा है कि मान लीजिये कि आप किसी पुरस्कार वितरण समारोह में स्टेज पर लुढ़क जाते हैं। शर्म से लाल होने की जगह यदि आप ऐसा व्यवहार करें जैसे कि आप यह होने ही देना चाहते थे, तथा अपना पुरस्कार गिरे गिरे ही ले लें, या उस अटपटे पल पर अपने हाथ उठाकर ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट कर लें। शोर गुल को शुरू हो जाने दीजिये।
  2. हम में से प्रत्येक के मन में यह इच्छा होती है कि हम धैर्यवान दिखें तथा सामाजिक रूप से स्वीकृत कार्य ही करें। यह आमतौर से हमारे मन में उठने वाली एक चतुर इच्छा होती है – इसके कारण हम मित्र तथा संबंध बना पाते हैं तथा जीवन थोड़ा सरल हो जाता है। परंतु कभी कभी यह हमें विकसित होने से रोक भी देती है तथा हमें चिंतित, भावनात्मक रूप से अस्थिर, और परेशान भी कर देती है। इसके स्थान पर, एक पल के लिए यह मान लीजिये कि आपके पास यह है ही नहीं। तब आप कैसा व्यवहार करेंगे? आपके हाव भाव दुनिया को क्या बताएंगे? बस यही बेपरवाही है।
    • हम कितना कुछ केवल शर्म से बचने और स्वीकार्य होने के लिए करते हैं। यदि आपके अंदर यह इच्छा न हो, तब आप क्या कुछ अलग तरीक़े से करेंगे? क्या आपको परवाह होगी यदि रमेश को आपके जूते पसंद आते हैं, या यदि संध्या आपके टेक्स्ट का जवाब देती है? शायद नहीं। प्रतिदिन केवल कुछ मिनट, तब तक इसपर ध्यान केन्द्रित करना शुरू करिए, जब तक कि स्वाभाविक रूप से लगभग हर समय ऐसा ही न होने लगे।
  3. जो कुछ आप बदल नहीं सकते हैं, उसके बारे में चिंता करना कम कर दीजिये: दुनिया अंततोगत्वा कभी न कभी समाप्त होगी ही। क्या आप उसकी चिंता करते हैं? शायद नहीं। आपकी माँ कभी कभी सबसे भद्दा स्वेटर पहनती हैं। क्या आप उसकी चिंता करते हैं? नहीं। यदि आप उसको बदल नहीं सकते हैं, उसके बारे में चिंता करने से कोई लाभ नहीं है। आप कर क्या सकते हैं? उसके बारे में चिंता कर सकते हैं... और परेशान हो सकते हैं? हाँ। इससे तो कोई लाभ नहीं है।
    • तो जब आपके अध्यापक एकाएक क्विज़ की घोषणा करते हैं? आप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते। उसके संबंध में चिंता करने से कोई लाभ नहीं है – आप केवल यह चिंता कर सकते हैं कि आप करेंगे कैसा। और जब आपका चाहने वाला टेक्स्ट का जवाब नहीं देता है? आगे बढ़िए – आप तो यूं ही इसके बारे में चिंतित थे।
  4. स्वयं को (या किसी भी और चीज़ को) बहुत गंभीरता से मत लीजिये: सारा जीवन तब कहीं अधिक सरल हो जाता है जब आप इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि कोई भी बात इतनी बड़ी नहीं है। हम सभी इस धरती पर एक रेत के कण के समान हैं और यदि सब कुछ हमारे हिसाब से ठीक नहीं हो रहा है, तब मान लीजिये कि ऐसा ही होना था। बुरी चीज़ें होंगी और अच्छी चीज़ें भी अवश्य ही होंगी। इसके बारे में परेशान क्यों हुआ जाये?
    • आप शायद किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हों जो स्वयं को उससे कहीं अधिक गंभीरता से लेता हो जितना लेना चाहिए। वे तनाव में रहते हैं और लगातार यह चिंता करते रहते हैं कि लोग उनके कार्यों के बारे में, कथनों के बारे में, और वे कैसे दिखते हैं, इस संबंध में क्या सोचते होंगे। वास्तव में, दूसरे लोग उनके बारे में सोच ही नहीं रहे हैं। उनको तो देखते ही रहना थका देने वाला होता है क्योंकि वे इतने अधिक तनाव में रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के विपरीत बनिए और बेपरवाही आ जाएगी।
  5. योग, कैलोरी जलाने और मांसपेशियाँ बनाने के साथ ही हम में से अधिकांश के मन में चलने वाली उलझनों से छुटकारा दिलाने की भी एक शानदार विधि है। अनेक अध्ययनों से यह पता चला है कि “योगियों” को तनाव कम होता है, परेशानी कम होती है, और यहाँ तक कि उनका रक्तचाप भी कम होता है। [१] यदि आपको अपने विचारों के पैटर्न को बदलने में कठिनाई हो रही है, तब शायद योग आपके लिए यह संभव कर सकता है।
    • गहरी सांस लेने वाले व्यायाम करना भी एक अच्छा विचार हो सकता है। अपने शरीर और श्वसन पर ध्यान केन्द्रित करने से आप अपने मस्तिष्क को वहाँ से निकाल कर यहाँ और अभी पर ले आते हैं। आपका ध्यान ठोस वास्तविकताओं, जैसे कि जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं, वह आपकी त्वचा को कैसी लगती है, तथा कमरे का तापमान क्या है, पर केन्द्रित हो जाता है – और उसपर नहीं, जिसकी चिंता अभी तक आप कर रहे थे।
विधि 2
विधि 2 का 3:

बेपरवाही का व्यवहार करना

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  1. जब हम चिंतित तथा उद्विग्न होते हैं, तब हम दंभी तथा स्वार्थी हो जाते हैं। एकाएक सब कुछ सिर्फ़ “मेरे और मेरे ही” बारे में होता है और आपको जो भी चाहिए वह “अभी ही” मिलना चाहिए – दूसरे शब्दों में, हम बच्चे बन जाते हैं। [२] अपने इस भाग को पहचानिए (हम सब में यह होता है), और इसके स्थान पर अपने वयस्क का चयन करिए (यह भी हम सब में होता है)। आपके वयस्क और अधिक विकसित भाग की प्रतिक्रिया क्या होगी?
    • मान लीजिये कि आपने अभी अपने बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड को एक टेक्स्ट भेजा है। उन्होने अभी तक उसका उत्तर नहीं दिया है। घड़ी चल रही है, समय गुज़र रहा है, और “अभी भी” उन्होने उत्तर नहीं दिया है। आपके अंतर का बच्चा चाहता है, “यह क्या हो रहा है? वो जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? कुछ गड़बड़ तो नहीं? वे इतनी नीचता क्यों कर रहे हैं?” नहीं। आप यह नहीं करने जा रहे हैं। इसके स्थान पर आप एक किताब उठाने वाले हैं। यदि वे जवाब नहीं देते, तब कोई बात नहीं। आपको तो वास्तव में याद भी नहीं है कि आपने उनको टेक्स्ट भेजा क्या था।
  2. बेपरवाह की परिभाषा ही है कि वह लगभग 24/7 धैर्यवान और शांत बने रहें। आप हल्की फुली रुचि या प्रसन्नता प्रदर्शित कर सकते हैं – या थोड़ी निराशा और परेशानी भी – परंतु अंदर से आपमें गहरी झील जैसी जैसी शांति बनी रहती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप भावना रहित या ठंढे रहेंगे, यह तो शांत रहने की बात है।
    • मान लीजिये कि आपके प्रेमासक्त ने आपसे दूर रहने को कह दिया है। तब। बुरा तो लगता है। इच्छा तो आपकी हो रही है कि चीखें, चिल्लाएँ और काट खाएं मगर आपके मस्तिष्क का एक भाग कह रहा है कि शांत रहिए। आप यह तो नहीं करने जा रहे हैं कि कहें, “चलो ठीक है” और बात को जाने दें, क्योंकि ऐसा हो नहीं रहा है। जब आप अपने मित्रों के बीच बात करते हैं, आपको ऐसा कुछ कहना है, “दोस्तों, दर्द तो हो रहा है। काश ऐसा नहीं होता, मगर मुझे ख़ुशी है कि मैंने कम से कम उसे डेट के लिए तो नहीं निमंत्रित किया था!”
  3. आपको पता है ना कि राय के संबंध में क्या कहा जाता है? यह सभी के पास होती है। यह प्रयास करना कि आप सबको ख़ुश कर सकें, और सब लोग आपको चाहें, व्यर्थ है, क्योंकि ऐसा तो हो ही नहीं सकता। दूसरों की राय का कोई महत्त्व नहीं है; जीवन तो चलता ही रहेगा। क्या आपको दो सप्ताह बाद याद भी रहेगा कि निशा ने आपके बालों के बारे में क्या कहा था? नहीं। तब, बात को बढ़ाइए मत। आप अपने मन की कर रहे हैं, और “वही” महत्त्वपूर्ण है।
    • आप पाएंगे कि, जब केवल आपकी राय महत्त्वपूर्ण हो, तब आपके लिए अधिक आराम से और तनाव रहित रहना सरल होता है। दूसरे शब्दों में, बेपरवाह। वे सभी “मत” जो महत्त्वपूर्ण हैं, वे आपके ही नियंत्रण में होते हैं। यह भावना है न शानदार? हर वह चीज़ जो आपके दिमाग में नहीं है, तनाव योग्य नहीं है।
  4. कभी कभी हम चाहे जितनी शांति और धैर्य की बातें करें, हमारे हाव भाव से रहस्य खुल जाता है। आपकी आवाज़ तो निकलती है, “कोई बात नहीं। चिंता मत करिए,” मगर आपके कानों से धुआँ निकल रहा होता है और मुट्ठियाँ बंधी होती हैं। यह कोई छुपी बात नहीं होगी क्योंकि सभी लोग असलियत तो समझ ही जाएँगे। इसलिए जब आप बेपरवाही से बोल रहे हों, तब सुनिश्चित करिए कि आपका शरीर भी उसका समर्थन करे। [३]
    • आपका शरीर कैसे स्थापित होगा, यह आपकी परिस्थिति पर निर्भर करेगा। जब आप चिंतित और परेशान (और बेपरवाह “नहीं”) होंगे तब मुख्य बात यह होगी कि आपकी मांसपेशियाँ तनी होंगी। यदि आप सोचते हैं कि आपके हाव भाव से बात खुल जाएगी, तब अपने शरीर को ऊपर से नीचे तक देखिये और जानबूझ कर यह तय करिए कि हर भाग शांत रहे। यदि ऐसा नहीं हो, तब उसे ढीला करिए। मानसिक बेपरवाही यहीं से आएगी।
  5. जब कोई आपके पास गर्मागर्म गॉसिप लेकर आता है, तब यह आपके लिए एक संकेत होता है। यह वास्तव में कंधे सिकोड़ना नहीं होगा परंतु, उस जैसा ही कुछ होगा। “ओह, अच्छा। आपने इसे कहाँ सुना?” कंधे झाड़ने का एक प्रकार है, जबकि वह व्यक्ति आपसे इस प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर रहा हो, “हे भगवान, सच में?” इस प्रकार से आप बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दे रहे हैं।
    • एक प्रकार के “मानसिक कंधे झाड़ने वाला’ मनोभाव होना भी अच्छा है। दूध गिर गया है? कंधे झाड़ दीजिये। क्या आपको सफ़ाई करनी होगी? आपका वज़न थोड़ा बढ़ गया है? कंधे झाड़ दीजिये। कल थोड़ा ज़्यादा सलाद लेंगे।
विधि 3
विधि 3 का 3:

बेपरवाह जीवन शैली में जीना

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  1. वे लोग जो उतने बेपरवाह नहीं हैं (आप कह सकते हैं, परवाह करने वाले), अपने जीवन को दूसरों की कही हुयी विधि से बदलने में व्यस्त हैं। वे दूसरों के द्वारा स्वीकार किए जाने, और प्रेम किए जाने के लिए इतना कठोर प्रयास करते हैं ताकि सब कुछ बिल्कुल वैसा ही हो जाये। संक्षेप में, “वे बहुत अधिक परवाह करते हैं।“ और उन चीज़ों के बारे में, जिनका कुछ अर्थ ही नहीं है। इस जीवन शैली की, और दूसरों के जीवन की नक़ल मत करिए – अपनी शैली से जीवन जिएँ। आप दूसरों के कहने की तो परवाह नहीं करते – आप वही करिए जिससे आपको प्रसन्नता मिले।
    • यह काई कारणों से लाभकर होती है। यह आपको व्यस्त रखती है, इससे आपके अनेक नए मित्र बनते हैं, और यह आपको प्रसन्न तथा सम्पूर्ण महसूस कराती है। आपका विश्व जितना बड़ा होगा, बाक़ी चीज़ें उसीके अनुसार छोटी होती चली जाएंगी। जहां पहले कोई एक व्यक्ति आपको परेशान कर सकता था, अब नहीं कर सकता है क्योंकि आप उसके जैसे अनेक लोगों को जानते हैं।
  2. चलिये, इस उदाहरण का उपयोग करते हैं: मान लीजिये कि आप एक बगीचा लगाना चाहते हैं, परंतु आपके पास केवल एक बीज है। आप उस बीज को इतने ध्यान से लगाते हैं तथा दिन रात उसकी ओर देखते रहते हैं और यह चिंता करते रहते हैं कि शायद इसमें से कुछ भी नहीं निकलेगा और संभवतः इस प्रक्रिया में उसका दम घोंट देते हैं।सौभाग्य से, वास्तविक जीवन में यह आपका बगीचा नहीं है। आपके पास इतने बीज हैं कि आपको समझ भी नहीं आता है कि उनका करें क्या! आप कुछ यहाँ, और कुछ वहाँ डाल सकते हैं और फिर यह देख सकते हैं कि होता क्या है। आपको परवाह कितनी है? ठीक है, थोड़ी तो है। आप चाहते हैं कि आपका बगीचा लहराये। परंतु क्या आप एक छोटे से बीज की चिंता में सारी रात जागते रहेंगे? कतई नहीं। [४]
    • यह इस बात को कहने की एक सुंदर विधि है कि आपके जीवन में बहुत कुछ चल रहा है। यदि एक चीज़ गड़बड़ भी हो जाती है, तो क्या। आपके पास तो हज़ारों ऐसी चीज़ें चल रही हैं, धन्यवाद है कि जो बिल्कुल ठीक ठाक हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। यदि वह “बीज” काम नहीं करता है, आप दूसरा लगा देंगे।
  3. दूसरे लोगों को अधिकांश योजनाएँ शुरू करने दीजिये: उतने बेपरवाह नहीं दिखने की एक और विधि है कि अति उत्सुक दिखा जाये। आपमें ही हमेशा उत्साह रहता है और नए नए विचार आते रहते हैं तथा आप प्रयास करते हैं कि दूसरे लोग कुछ चीज़ें करें। ज़रा ठहरिए, बहादुर व्यक्ति। बेपरवाह होने के लिए अधिकांश समय दूसरे लोगों को अपने पास आने दीजिये। आप ऐच्छिक सहभागी तो हो जाएँगे परंतु आप केवल साथ चलने के लिए हैं। आप जहाज़ के कप्तान नहीं हैं।
    • यह बात “अधिकांश” समय की है। आप वह नीरस व्यक्ति तो नहीं होना चाहेंगे जो आलस्य वश दूसरे लोगों के अच्छे विचारों का पालन करता है और आप चाहेंगे कि आप अपने मित्रों को जता सकें कि आपके हृदय में उनके विचारों का कितना मूल्य है। जब आपको निमंत्रित किया जाये, तब उन्हें बताइये कि आपको आनंद आया और उदाहरण के लिए आप कह सकते हैं कि अगली बार पार्टी मेरे घर पर होगी। दोस्ती अंततोगत्वा दोतरफ़ा रास्ता होती है।
  4. जब किसीने यह गीत गाया कि “उसको बीत जाने दो” तब वह मज़ाक नहीं था। जब भी आपके मनो’भावों का पेंडुलम बाएँ या दायें जाने की इच्छा व्यक्त करे, तब एक पल को ठहर जाइए। दस तक गिनिए और उस इच्छा को बीत जाने दीजिये। धैर्यवान, शांत, तथा संयमित रहने पर ध्यान केन्द्रित करिए। बात समझ में आ गई। निश्चय ही आप प्रसन्न हैं, या निश्चय ही आप दुखी हैं – परंतु आप इसको स्वयं पर छा नहीं जाने देंगे। इसका लाभ क्या होगा?
    • यदि आप किसी ऐसी चीज़ के साथ जूझ रहे हों, जिससे आपको वास्तव में परेशानी हो रही हो, स्वयं को यह बताने का प्रयास करिए कि आप कल उसके संबंध में चिंता करेंगे। परंतु अपने मस्तिष्क में आपको यह पता होना चाहिए कि 24 घंटों के अंदर तो आप उससे निबट ही लेंगे। तब क्या होता है? कल आता है, और या तो आपको चिंता करने की याद नहीं रहती, या जो भी हुआ होता है उसके संबंध में बहुत अच्छा (या कम से कम अधिक नियंत्रण में) महसूस करते हैं।

चेतावनी

  • ध्यान रखिए कि निष्पक्षता भावनात्मक प्रतिबद्धता के समय ही सबसे अच्छी तरह से प्रदर्शित होती है। यह अपनी भावनाओं को छुपाने और लोगों को भयभीत न होने देने की सर्वश्रेष्ठ विधि है। यह आपको किसी मज़बूत तथा पाषाण जैसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित कर सकती है।
  • लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहिए। बहुत अधिक बेपरवाही से लोगों को चोट पहुँच सकती है और वे आपसे दूर हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश, यह आपके प्रिय को भी, यदि आप सावधान नहीं रहे तो, आपसे दूर कर सकता है।

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