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भगंदर (फिस्टुला) एक खाली या ट्यूबुलर ओपनिंग और दूसरे बॉडी टिश्यू ये दो ट्यूबुलर ऑर्गन के बीच का मार्ग होता है | भगंदर शरीर में अलग-अलग लोकेशन पर विभिन्न तरीके का बन सकता है लेकिन एनोरेक्टल फिस्टुला (anorectal fistulas) सबसे कॉमन होता है | फिस्टुला को ठीक करने के लिए सर्जरी जरुरी हो सकती है लेकिन लाइफस्टाइल में कुछ विशेष बदलाव करने से भी काफी फर्क पड़ सकता है |

विधि 1
विधि 1 का 3:

लाइफस्टाइल में बदलाव लायें

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  1. संतुलित आहार लें : अपनी डाइट पर ध्यान दें जिससे पेट की समस्याएं दूर रहें | स्पाइसी फ़ूड, जंक फूड्स और फैटी फूड्स खाना छोड़ने से आपको एक हेल्दी डाइजेस्टिव सिस्टम मिलेगा जिससे परेशानियाँ बहुत कम हो जाएँगी | ज्यादा से ज्यादा साबुत अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां फल और लीन मीट खाएं | [१]
    • अपनी डाइट में फाइबर और आनाज वाले फूड्स शामिल करें जिससे कब्ज़ से बचाव हो जायेगा | कब्ज़ के कारण भगंदर काफी इर्रीटेड हो सकता है |
    • आपको किस तरह के फूड्स से एलर्जी होती है या पेट खराब हो जाता है, पता लगाने की कोशिश करें | याद रखें, एक ही नियम हर किसी पर लागू नहीं होता, हर व्यक्ति अलग होता है और उसकी एलर्जी भी अलग-अलग हो सकती हैं |
    • फैटी अपशिष्ट एनल फिस्टुला टनल को ब्लॉक करने की सम्भावना बढ़ा सकते हैं और इसके कारण पेरीएनल एब्सिस (perianal abscess) बनना शुरू हो सकती है जो फिस्टुला से पीड़ित लोगों के दर्द का मुख्य कारण होती है |
  2. अगर आपके डॉक्टर आपके पानी की मात्रा निर्धारित न करें तो भी हर दिन 11/2 लीटर पानी पीने की सिफारिश की जाती है | शराब और सोडा पीने की बजाय खूब सारा पानी और फलों के रस पियें | इससे बार-बार होने वाले उस कब्ज़ से मुक्ति मिलेगी जो फिस्टुला पर प्रेशर डालता है |
    • अतिरिक्त पानी अपशिष्ट (मल) को सॉफ्ट बना देता है और आँतों को साफ़ रखने में मदद करेगा इसलिए अगर आप खूब सारा पानी पीते हैं तो बार-बार टॉयलेट भी जायेंगे |
    • पानी आंतों को ब्लॉक होने से भी बचाता है, विशेषरूप से क्रोहन्स डिजीज (Crohn’s disease), टॉक्सिक मेगाकोलन (toxic megacolon) आदि जैसी बीमारियों से पीड़ित लोगों में |
  3. अगर आप ज्यादा लम्बे समय तक बैठे रहने वाले काम करते हैं तो अपनी पीठ, नितम्बों और पैरों पर एक्स्ट्रा प्रेशर पड़ने से बचाएं, विशेषरूप से अगर आपको एनल फिस्टुला हो तो | इसके लिए आप तकिये पर बैठ सकते हैं या सामान्य कुर्सी की जगह पर “डोनट पिलो” का इस्तेमाल कर सकते हैं |
    • ऐसा काम करें जिससे आपको आराम मिलता हो | ऐसी सिचुएशन से बचें जहाँ आपको पहले से ही असुविधा होने का अंदेशा हो या फिर अपने साथ एक तकिया या दूसरी ऐसी कोई चीज़ रखें |
  4. अगर आपको फिस्टुला के कारण नीचे से लीकेज होने लगे तो सॉफ्ट, एब्सोर्बेंट पैड्स पहनने से आपको लीकेज से ब्लड, पस या कोई और तरल के आने पर किसी तरह की चिंता नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि पैड्स एक एब्सोर्बेंट सरफेस की तरह काम करेंगे |
    • एडल्ट डायपर भी बहुत काम देते हैं, लेकिन ये थोड़े बड़े और निंदनीय होते हैं | पैड्स पतले और आसानी से संभालने योग्य होते हैं |
    • पैड्स बार-बार बदलते रहे अन्यथा डिस्चार्ज की बदबू आने लगेगी |
  5. हर बार टॉयलेट जाने पर और बाद में प्रभावित एरिया को अच्छी तरह से धोने की आदत डालें | अपनी स्किन पर बैक्टीरिया की उपस्थिति को रोकना ही इन्फेक्शन रोकने का पहला कदम है | लीकेज अनुभव होने पर ये संभावना पब्लिक रेस्टरूम में दोगुनी हो जाते है |
    • अगर आप बाहर हैं और ऐसा नहीं का सकते हैं तो घर पहुँचने तक अपने साथ हमेशा वाइप्स रखें | आपके हाथ जर्म के सबसे ज्यादा सम्पर्क में आते हैं इसीलिए इनका साफ रहना बहुत जरुरी है |
    • अगर फिस्टुला लीक करता है तो पूरे दिन में जरूरत के अनुसार बार-बार अंडरवियर बदलते रहें | हर बार नहाने पर अपनी टॉवेल भी बदलें | यह दोनों काम करने से जर्म्स को फैलने और बैक्टीरिया की ग्रोथ को रोका जा सकता है जिससे पेरीएनल इर्रीटेशन को कम किया जा सकता है | इस प्रकार, फिस्टुला से पीड़ित लोगों को परेशानी देने वाले इन लक्षणों को कम करने में मदद मिलेगी |
  6. एनोरेक्टल फिस्टुला में लगातार टीस मारने वाला दर्द भी होता है जो नीचे बैठने पर काफी बढ़ जाता है | इसका मुकाबला करने के लिए डॉक्टर से सलाह लें कि आपके लिए कौन सी दर्दनिवारक दवाएं और उनके डोज़ उचित रहेंगे | आइबूप्रोफेन एक नॉन-स्टेरॉयड एंटी-इंफ्लेमेटरी (NSAID) है और यह फिस्टुला के दर्द में मददगार साबित हो सकती है अन्यथा आप डॉक्टर से दवा लिखवायें |
    • दर्द आमतौर पर फिस्टुला के कॉम्प्लीकेशन के रूप में हो सकता है | ब्लॉक टनल पस ड्रेन करके बाहर निकालने की बजाय भरने लगेगी और यह एक ऐसी प्रोसेस है जिससे एब्सिस बन सकती है या स्किन की सरफेस के पास मवाद की थैली बन सकती हैं |
    • दर्द के साथ इर्रीटेटिंग सेंसेशन और रेडनेस भी हो सकती है जो पस ड्रेन होने के कारण पेरीएनल स्किन के चारों ओर डायपर रेशेज़ के समान दिखाई दे सकती है |
  7. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनायें : हेल्दी डाइट मेन्टेन करने और फिश, ऑलिव ऑइल और साइट्रस फ्रूट्स जैसे ओमेगा-3, ओमेगा-6 और विटामिन C से भरपूर डाइट लेने से इम्यून सिस्टम को मजबूती देने और फिस्टुला के कारण होने वाली सूजन को कम करने में मदद मिलेगी | अगर डॉक्टर सलाह दें तो आप कुछ सप्लीमेंट भी ले सकते हैं |
    • एक्सरसाइज करने, खूब सारा पानी पीने, पर्याप्त नींद लेने और हाइजीनिक बने रहने से आप ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ रह सकते हैं | और अगर आपको स्मोकिंग जैसी कोई बुरी लत है इसे परेशानी का कारण मानते हुए छोड़ें | [२]
  8. एक्टिव रहें : अगर आपकी कंडीशन धीरे-धीरे वॉक करने जैसी आसान सी हलकी-फुलकी एक्सरसाइज करने के लिए स्वीकृति दे तो अपनी हेल्थ के लिए और तनाव से मुक्ति पाने के लिए करें | स्ट्रेस से मूड प्रभावित होता है और प्रॉब्लम को ट्रिगर कर सकता है, साथ ही पेट भी ख़राब कर सकता है | इससे डाइजेस्टिव सिस्टम और डाइटरी हैबिट प्रभावित होती हैं जिससे स्त्राव बार-बार होने लगते हैं | [३]
    • अगर आपको दर्द हो या उसकी वजह से कोई काम न कर पा रहे हों तो रुकें और गहरी साँस लें | इस समय आपका शरीर आपसे कह रहा होता है कि आप जो परिश्रम या तनाव ले रहे हैं, उसे शरीर हैंडल नहीं कर सकता |
    • डॉक्टर की सलाह से कोई आसान हलके-फुल्के स्पोर्ट्स या एक्सरसाइज करें | बल्कि आप चाहें तो घर पर योगा भी कर सकते हैं जिसकी अधिकतर डॉक्टर सलाह देते हैं | योगा से दिमाग में स्पष्टता आती है, स्ट्रेस खत्म हो जाता है और डिप्रेशन से लड़ा जा सकता है | इससे मूड और हेल्थ में भी सुधार आता है |
विधि 2
विधि 2 का 3:

ट्रीटमेंट कराएं

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  1. इनकी डायग्नोसिस विसुअल एग्जामिनेशन से होती है | क्रोहन्स डिजीज, कैंसर और दूसरी सीरियस कंडीशन का पता लगाने के लिए विसुअल एग्जामिनेशन के साथ ही सिग्मोइडोस्कोपी भी की जाती है | लेकिन आपके केस में फिस्टुला में अंदर और बाहर के मुख का पता लगाने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित में से कोई एक और टेस्ट भी करेंगे: [४]
    • कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (CT scan) : यह टेस्ट विशेषरूप से क्रोहन्स डिजीज से पीड़ित मरीजों में किया जाता है | इसमें CT स्कैन फिस्टुला बनने की पॉसिबल इनफार्मेशन देने से पहले इंफ्लेमेटरी स्टेज का संकेत देता है और साथ ही, एब्सिस की कैविटी को दिखाता है जिससे पता लगाया जा सके कि सर्जरी करनी है या नहीं |
    • मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI) : यह फिस्टुला ट्यूब में दिखने वाले तरल के जमाव या इंफ्लेमेटरी बदलावों को प्रकट करके आंतरिक फिस्टुला का पता लगाने में मदद करती है |
    • फिस्टुलोग्राफी : यह एक X-ray मेथड हैं जिसमे फिस्टुला का मार्ग और यह टिश्यू में कितनी गहरे में है, का पता लगाने के लिए फिस्टुला के बाहरी किनारे पर एक कंट्रास्ट मीडिया को इंजेक्ट किया जाता है | इससे ट्रीटमेंट चुनने में मदद मिलती है |
    • अल्ट्रासोनोग्राफी : यह फिजिकल एग्जामिनेशन के साथ ही की जाती है जिससे फिस्टुला ट्यूब में फंसे हुए तरल के जमाव या एब्सिस की उपस्थिति की पहचान की जा सकती है |
    • सिस्टोस्कोपी : यह “इंट्रोवेसिकल फिस्टुला” के लिए काफी उपयोगी होता है जो आँतों को यूरिनरी ब्लैडर से जोड़ता है |
    • माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्ट्स : इन्फेक्शन के संकेतों का पता लगाने के लिए, विशेषरूप से एब्सिस की उपस्थिति में, कोलोवेसिकल फिस्टुला के केस में यूरिन कल्चर की जरूरत हो सकती है |
  2. फिस्टुला का सबसे कॉमन ट्रीटमेंट है; सर्जिकल केयर जिसे “फिस्टुलोटॉमी" कहते हैं | इस प्रोसेस से फिस्टुला और उसके अंदर भरे हुए तरल या पस को निकाल दिया जायेगा | फिस्टुलोटॉमी 85% से भी ज्यादा केसेस में इफेक्टिव होती है | [५]
    • रेक्टल फिस्टुला के लिए की जाने वाली फिस्टुलोटॉमी में एक प्रोसेस की जाएगी जिसे एन्डोरेक्टल फ्लैप कहा जाता है | बार-बार होने वाल इन्फेक्शन के केस में मल से ब्लॉकेज होने को रोकने के लिए यह उस जगह पर की जाती है जहाँ आस-पास के हेल्दी टिश्यू फिस्टुला कैविटी के अंदर जा रहे होंते हैं |
    • सेटन स्टिच (ड्रेनेज में दौरान इसे बंद रखने के लिए फिस्टुला में एक कार्ड को गुजारने की प्रोसेस) का इस्तेमाल भी फिस्टुलोटॉमी में देखा जाता है | हालाँकि, इसके लिए रिकवरी होने और टाँके पूरी तरह से घुलने तक डॉक्टर के पास कई बार जाना पड़ता है | "कटिंग सेटन ट्रीटमेंट" को "क्षार सूत्र थेरेपी" के नाम से भी जाना जाता है जिसकी सक्सेस रेट बहुत ज्यादा होती है |
  3. अगर फिस्टुला इसोफगस (आहारनली) के नज़दीक हो तो अतिरिक्त सावधानी रखें: इसोफेगस और ट्रेकिया-ब्रोन्कियल ट्री के बीच फिस्टुला होने पर उसे जान का खतरा मानना चाहिए और तुरंत ट्रीटमेंट कराना चाहिए | अगर इसका इलाज़ न किया जाए तो लम्बे समय तक बनी रहने वाली फेंफडों की एब्सिस बन सकती है और प्राणघातक निमोनिया हो सकता है | इसके ट्रीटमेंट कई तरह की मेडिकल प्रोसीजर के द्वारा किया जा सकता है जैसे:
    • इसोफेगस डायलेशन : यह कुछ मरीजों में एक महीने से लेकर कई सालों तक की जा सकती है |
    • फ्लेक्सिबल-मेटल मेश स्टंट्स : ये इसोफेगस की स्पष्टता और स्ट्रक्चर को मेन्टेन करने के लिए सबसे ज्यदा इफेक्टिव होती हैं |
    • प्लास्टिक कोटेड मेश स्टंट्स : इनका इस्तेमाल भी ट्रेकिया-इसोफेजियल फिस्टुला को बंद करने के लिए किया जा सकता है, इनमे से कुछ में ऐसे वाल्व होते हैं जो इसोफेजियल स्फिन्क्टर के नज़दीक फिस्टुला होने पर रिफ्लक्स को रोक देते हैं |
  4. यह बहुत जरुरी है कि आप सर्जरी के बाद डॉक्टर के साथ फॉलोअप करे, विशेषरूप से अगर आपको क्रोहन्स डिजीज जैसे लम्बे समय से कोई इंफ्लेमेटरी डिजीज है | इन केसेस में, फिस्टुला केवल एक साइड इफ़ेक्ट होता है और इसके वास्तविक कारण का पता लगाना जरुरी होता है |
    • कई दूसरे इशू भी होते हैं जिनका सम्बन्ध डायरेक्टली फिस्टुला से होता है जिनहे प्रभावित मरीज को फॉलोअप करान चाहिए और सावधान भी रहना चाहिए | इनमे दिखने वाले किसी भी तरह में इन्फेक्शन का इलाज़ करने सेप्सिस होने से रोका जा सकता है जैसे, फिस्टुला के आस-पास के टिश्यू में इंफ्लेमेशन होना | फिस्टुला के ड्रेनेज को कण्ट्रोल करें और आसपास के टिश्यू को हेल्दी रखने के लिए स्किन की उचित देखभाल को मेन्टेन रखें |
    • इसोफेजियल फिस्टुला से पीड़ित मरीज को खाना खिलाने के लिए गेस्ट्रोनॉमी ट्यूब की जरूरत पड़ती है | यह पेट की भित्ति के जरिये जाती है और डायरेक्ट स्टमक (आमाशय) में जाती है | अगर जरूरत पड़े तो ट्यूब को डाला जाता है जिसमे मरीज को पहले एनेस्थीसिया दे दिया जाता है जिससे उन्हें दर्द न हो | [६]
  5. एंटीबायोटिक लेने के बारे में डॉक्टर से सलाह लें: एंटीबायोटिक्स फिस्टुला साईट पर किसी भी तरह का इन्फेक्शन होने की संभावनाओं को कम कर देती हैं, विशेषरूप से आँतों में | श्वेत रक्त कणिकाओं (WBCs) का बढ़ना इन्फेक्शन की उपस्थिति को दर्शाता है जिसे उचित एंटीबायोटिक्स देकर ठीक करना जरुरी होता है | [७]
    • आरंभिक अवस्था में फिस्टुला को मेट्रोनिडाजोल और सिप्रोफ्लोक्सासिन या वैन्कोमायसिन के कंपाउंड ट्रीटमेंट से ठीक किया जा सकता है | मेट्रोनिडाजोल हर 8 घंटे में 250 से 500 मिलीग्राम मी मात्रा में लेनी होगी जबकि वैन्कोमायसिन हर 6 घंटे में या खाना खाने के एक घंटे बाद दिन में तीन बार 125 से 250 मिलीग्राम की मात्रा में लेनी होगी |
विधि 3
विधि 3 का 3:

फिस्टुला के बारे में जानें

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  1. इसके अधिकतर केस का सम्बन्ध क्रोहन्स डिजीज और ट्यूबरक्लोसिस जैसी लम्बे समय से होने वाली इंफ्लेमेटरी डिजीज से होता है | दूसरे कारणों में डाइवर्टीकुलाइटीस, ट्यूमर या लम्बे समय से होने वाले ट्रॉमा हो सकते हैं | कोई सर्जरी या इंजरी फिस्टुला के प्रोडक्शन को भी बढ़ावा दे सकती है जैसे बिलियरी या आर्टरियोवेनस फिस्टुला के केस में होता है |
    • रेक्टो-वेजाइनल फिस्टुला संभवतः क्रोहन्स डिजीज, बच्चे पैदा करते समय होने वाली ऑब्सटेट्रिक इंजरी, रेडिएशन थेरेपी या कैंसर के कारण सेकेंडरी रूप से हो सकते हैं |
    • बच्चों और नवजातों में होने वाले फिस्टुला अधिकतर लड़कियों की तुलना में लकड़ों को पैदाइशी रूप से प्रभावित करते हैं |
  2. आमतौर पर हर तरह के फिस्टुला में निम्नलिखित लक्षण मिलते हैं: [८]
    • लगातार डिस्चार्ज (पस) होना
    • दर्द (इन्फेक्शन से सम्बंधित)
    • ब्लीडिंग
    • पेट में दर्द
    • डायरिया
    • भूख न लगना
    • वज़न कम होना
    • मितली और उल्टियाँ
  3. परिभाषा के अनुसार, फिस्टुला या भगंदर दो ओपनिंग के साथ एक ट्यूब जैसे टनल होते हैं; एक प्राइमरी ओपनिंग आगे चलकर दूसरी बाहरी ओपनिंग जिसे सेकेंडरी ओपनिंग कहा जाता है, तक जाती है | फिस्टुला कई तरह के होते हैं लेकिन सभी फिस्टुला में से 90% फिस्टुला एनोरेक्टल फिस्टुला ही होते हैं | [९] फिजिकली ये निम्नलिखित रूपं में बनते हैं:
    • ब्लाइंड फिस्टुला : दो सरफेस के बीच की एक ऐसी लिंक है जिसका एक सिरा बंद और दूसरा खुला होता है | अगर इसका इलाज़ न किया जाए तो यह कम्पलीट फिस्टुला में बदल सकता है |
    • इनकम्पलीट फिस्टुला : यह एक ऐसी लिंक है जिसमे केवल एक ही एक्सटर्नल ओपनिंग होती है |
    • कम्पलीट फिस्टुला : यह इंटरनल और एक्सटर्नल ओपनिंग के बीच की लिंक होता है |
    • हॉर्सशू फिस्टुला : यह गुदा के आस-आस की दो एक्सटर्नल ओपनिंग के बीच एक U शेप की लिंक के रूप में होता है |
  4. एनल फिस्टुला से होने वाले कॉम्प्लिकेशन्स जानें: बुरी बात यह हैं कि फिस्टुला के लक्षणों तक ही समस्या ख़त्म नहीं होती, बल्कि इसके कारण कुछ कॉम्प्लिकेशंस भी हो सकते हैं | ये निम्नलिखित है:
    • स्राव (secretion) जिनके कारण एनल एरिया के चारों ओर सूजन आने लगती है
    • एनल कैनाल के ट्यूमर्स
    • रेडियल फंगल डिजीज (बहुत ही कम देखी गयी हैं)
    • सीवियर ट्रॉमा के लिए एक्सपोज़र होना
    • एनल एरिया के आस-पास क्रैक्स होना
    • डाइजेस्टिव ट्रैक्ट के इन्फेक्शन्स
      • इसीलिए, यह सबसे ज्यादा सलाह दी जाती है कि टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद एनस (गुदा) को अच्छी तरह से साफ़ करें, पब्लिक सेफ्टी और पर्सनल हाइजीन के नियमों का पालन करें और टॉयलेट के इस्तेमाल के बाद वाइप्स का इस्तेमाल करें जिन्हें प्रत्येक इस्तेमाल के बाद फेंक दें |

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