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भावनात्मक रूप से स्वतंत्र होना, खुश रहने का एक अभिन्न भाग है। जब भी हम अपनी खुद की भावनाओं के लिए, किसी और पर निर्भर होते हैं, तो हम खुद को नहीं पहचान पाते। खुद को अपना कर, अपनी सोच को बदल कर और हम जैसे भी हैं, जो भी हैं और जो कुछ भी सोचते हैं, उसे अपनाने की पहल कर के, आप अपने अंदर मौजूद शांति की भावना और उस स्वतंत्रता को पा सकते हैं, जिसे आप पाना चाहते हैं। और इस की शुरुआत हम नीचे दिए हुए पहले चरण से करेंगे।

विधि 1
विधि 1 का 3:

खुद को अपनाना

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  1. अपने माता-पिता का ही एक उदाहरण लेते हैं, उन में से बहुत इतने भी अच्छे नहीं हुआ करते थे। तो क्या वे इसलिए उतने अच्छे नहीं थे, क्योंकि, वे हमें प्यार नहीं करते या हम उन के प्यार के हकदार नहीं थे? बिल्कुल नहीं। हालाँकि, एक बच्चे के हिसाब से यह देख पाना बहुत कठिन है। वे इतने अच्छे नहीं थे, क्योंकि उन्हें इस बात का अंदेशा भी नहीं था, कि वे क्या कर रहे हैं – वे कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे भी इंसान हैं। उन को अपने दर्द का दोषी ठहराने के बजाय, इन सारी बातों को दूसरे नज़रिए से देखने की कोशिश करें। वे आप की नाराज़गी, गुस्से या नफ़रत के हकदार नहीं हैं। बल्कि वे आप की दया और करुणा के हकदार हैं।
    • आप की उम्र चाहे जो भी हो, आप के कुछ ऐसे रिश्तेदार तो होंगे ही जो आप को पसंद नहीं। हम इंसानों की ये आदत होती है, हम हर एक असफलता, हताशा और अस्वीकृति को व्यक्तिगत तौर पर लेते हैं और इन्हें अपने मन में इन्हें जमा करते जाते हैं। एक चीज़ जिस के बारे में सोचना, हमें बंद कर देना चाहिए, वो है, बीता पल, बीता हुआ पल, बीत चुका है, और हमें भी इसे भुला देना चाहिए।
  2. खुद को अपनाने और अपने बीते हुए पल को भुला देने के लिए, ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। जब आप के मन में कोई द्वेष ही नहीं होगा और आप इन सारी बातों को व्यक्तिगत तौर पर भी नहीं लेते, तो आप अपने एक नये रूप में पहुँच जाएँगे – भावनात्मक रूप से स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में। और इस तरह से आप और भी खुश हो जाएँगे!
    • अब अगली बार आप को जब भी किसी के कारण दुख महसूस हो, तो इस बात का अनुभव करें, यदि कोई आप को दुख दे रहा है, तो इस का आप से कुछ भी लेना-देना नहीं है। ये उनका अपना निर्णय है, और आप उसे नियंत्रित नहीं कर सकते, जो सही भी है। यह आप की जिंदगी का एक छोटा सा भाग है, जो कुछ समय के बाद खुद ही भुला दिया जाएगा।
    • इस का मतलब यह नहीं है, कि आप उस इंसान के साथ अपने संबंध ही ख़त्म कर दें। उन्हें माफ कर दें, उन के व्यवहार को भूल जाएँ, और अपनी उम्मीदों को कम कर दें। क्या आप का मित्र लंच पर एक घंटे बाद पहुँचा? ठीक है। अब आप समझ चुके होंगे, कि अगली बार (यदि ऐसा हो तो) आप को किस तरह से बर्ताव करना है।
  3. याद करें आप ने आख़िरी बार कब खुद को बिना विचलित किये, या फोन के बिना, अपने साथ समय बिताया था? आज के जीवन में, हर कोई किसी ना किसी तरह से व्यस्त रहता है, यहाँ तक कि उन के पास अपने जीवन से जुड़े, छोटे-छोटे काम तक करने का समय नहीं होता, तो वे खुद के साथ बिताने या यूँ कहिए खुद को समझने तक का समय निकाल पाना उन के लिए संभव नहीं है। तो आज से खुद के लिए 20 मिनिट निकालना शुरू करें। और आप को समझने के लिए आप से बेहतर और कौन होगा?
    • इस समय में, अपने मन के विचलन को समझें। यह किस ओर जा रहा है? यह किस तरह से सोचता है? अपने मन में आ रहीं, इन सभी बातों को लिखते जाएँ। आप अपने बारे में क्या सीख पा रहे हैं?
  4. खुद को आईने में देखकर, खुद से ही सवाल करें, कुछ भी सोचें, क्या मैं ऐसी दिखती हूँ? और यहाँ पर कुछ बातें दी गईं हैं, जो हर किसी के लिए लागू होती है:
    • आप अपनी पहचान के हर किसी के जितने ही काबिल हैं। कोई भी किसी से "बेहतर" नहीं होता, सभी में कुछ अच्छे गुण होते हैं और कुछ बुरे भी।
    • आप की भी कुछ अपनी कुशलताएँ और रुचियाँ हैं। और वे क्या हैं?
    • आप के अपने खुद के क्या विचार और उद्देश्य हैं। आप में भी कुछ बातें हैं, जिन्हें आप पसंद और नापसंद करते हैं। और वो सब क्या हैं?
    • आप की अपनी कुछ धारणाएँ हैं। अपने नियम हैं। आप के कौन से विचार/बातें/धारणाएँ सच हैं?
विधि 2
विधि 2 का 3:

अपनी सोच को बदलना

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  1. ऐसी बहुत सारी बातें हैं, जिन पर लोग भावनात्मक रूप से निर्भर होते हैं। और जिन में सब से ज़्यादा सामान्य रूप से इंसान किसी रोमांटिक रिश्ते की भावनाओं के साथ जुड़े होते हैं। हम अपने किसी खास के साथ में कुछ लगाव, सेक्स,स्वीकृति जैसी भावनाओं को महसूस करते हैं। और जब यह जुडाव महसूस नहीं होता, तो हम सोचने लगते हैं, कि हमने कुछ गलत कर दिया या फिर हम किसी के लिए भी मायने नहीं रखते। आप किस तरह से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं? रोमांटिक रूप से? अपने सहयोगियों के साथ या अपने बॉस के साथ? या ऐसे हर एक व्यक्ति के साथ, जिन से आप मिलते हैं? आप को किन क्षेत्रों पर काम करना है, उस की जानकारी लिए नीचे दी गई बातों पर ध्यान दें:
    • क्या आप को किसी से बहुत आसानी से जलन होती है? क्या आप हर किसी के साथ इस कदर अपनी तुलना करते हैं, कि इस चक्कर में अपना सारा दिन ही बर्बाद कर लेते हैं?
    • क्या लोग अक्सर आप की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते? ऐसा ज़्यादातर किस के साथ होता है?
    • जब आप अकेले होते हैं, तो क्या आप सिर्फ खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए किसी की तलाश करते हैं? जब आप अकेले रहते हैं, तो क्या आप में अधूरेपन की भावना जागृत होती है?
    • क्या आप का साथी आप के लिए सिर्फ़ एक खुशी का साधन है?
  2. जब हम अन्य लोगों पर दोष लगाते हैं, तो हमें सिर्फ उन की ही कमी दिखाई देती है। और सिर्फ़ वही हैं, जो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। अपनी सोच और भावनाओं पर काबू पाने के लिए, आप को ज़िम्मेदारी लेना सीखना होगा।
    • यह आप को किसी भी समाधान के लिए, खुद पर भरोसा करने की सीख देते हैं। दुख में डूबे रहने के बजाय, आप को अपने दुख से बाहर निकलने के तरीकों के बारे में सोचना चाहिए। यह आप को उन नकारात्मक भावनाओं से दूर ले जाता है, जो आप को अपनी इन भावनाओं पर आश्रित दर्शाती है, और इस के साथ ही आप अपनी भावनाओं को और भी अच्छी तरह से नियंत्रित करना सीख पाते हैं।
  3. अब अगली बार जब भी आप को गुस्सा आए, तो वहीं खुद को रोक दें: सिर्फ़ उस समय के लिए वह सिर्फ़ एक व्यक्ति है, जो अपने निर्णय और आलोचनाओं को आप तक पहुँचा रहा है। यह कौन सा हर समय आप के साथ रहने वाला है। और यह हमारी दुनिया का अंत नहीं है और ना ही इसे इतनी ज्यादा महत्वता देनी चाहिए। हर कोई ऐसा ही करता है। तो फिर इन के बारे में इतना भी क्या सोचना? ये लोग हमारे इन विचारों के भी लायक नहीं होते।
    • खुद को याद दिलाते रहें, कि ज़रूरी नहीं, कि आप जैसा सोच रहे हैं, आप को उस समय वैसी ही प्रतिक्रिया देना है। प्रतिक्रिया देने का, यह हर एक इंसान का तरीका होता है, लेकिन ऐसा नहीं है, कि उस के पास इस के अलावा और कोई विकल्प ना हो। आप गुस्सा हो सकते हैं, आप दुखी भी हो सकते हैं – या आप इन्हें अपने मन में रखकर आगे भी बढ़ सकते हैं। वैसे भी इस तरह से गुस्सा हो कर किसी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। तो आप भी क्यों गुस्सा हो रहे हैं? यह आप को क्या दे रही है?
  4. यह आप का जीवन है, और आप ही हैं, जो अपनी हर खुशी और हर दुख के ज़िम्मेदार हैं। और यह भी आप ही सुनिश्चित करेंगे, कि आप को किस बात से खुशी मिलती है, और इस का अन्य किसी के साथ कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। हमारा दिमाग भी एक बेहद मजाकिया किरदार की तरह काम करता है। यह हमें ख़ुशी का अहसास दिलाता रहता है। ख़ुशी तो आप के अंदर से ही आती है – और आप इसे अपने बाहर नहीं पा सकते।
    • यदि आप को कुछ बातें बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहीं है, तो यह एक बहुत अच्छी बात है। आप ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा लिया है! आप किसी के भी ऊपर निर्भर नहीं हैं! आप जिन भी भावनाओं को महसूस करना चाहते हैं, उन्हें कर सकते हैं। और हर एक वो भावना, जो आप नहीं महसूस करना चाहते, तो बिल्कुल आप ऐसा भी कर सकते हैं। आप की खुशी बस आप से एक निर्णय की दूरी पर हैं।
  5. भावनात्मक रूप से स्वतंत्र होने और हठी होने के बीच में बहुत अंतर है। भावना को महसूस ना करने की कोशिश में कहीं आप खुद को और दूसरे लोगों को परेशान करना ना शुरू कर दें। बस एक बात ध्यान रखें, यह आप के किसी को परेशान करने का कोई उचित बहाना नहीं है। आप को वास्तविक होने के साथ ही दयावान और और समझदार बने रहने की ज़रूरत है।
    • ज़्यादातर लोग, जो अपनी भावनाओं के लिए अन्य लोगों पर निर्भर होते हैं, वे आंतरिक रूप से अपूर्णता और महत्वहीनता की भावना से जूझ रहे होते हैं। ये लोग अंदर से अपनी कोई भी महत्वता का अनुभव नहीं करते, और इस महत्वता को अन्य लोगों से पाने के लिए इच्छुक होते हैं। यह भावनात्मक रूप से स्वतंत्र होना नहीं – बल्कि एक तरह से आप की अशिष्टता को दर्शाता है।
विधि 3
विधि 3 का 3:

स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करना

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  1. अब अगली बार जब कभी भी आप के दोस्त, आप के साथ बैठें, और वे लोग किसी अन्य मित्र की बुराई करते हैं या किसी मूवी की बुराई करते हैं, अपने विचारों को नियंत्रित करने से बजाय, अपने लिए कुछ निर्णय लें। आप को क्या महसूस होता है? उन के विचार, आप के विचारों पर भारी क्यों हैं?
    • इसे हर एक छोटी बातों पर भी लागू करें। अगली बार आप किसी भी शॉप पर जाएँ और वहाँ पर आप ऐसी ही किसी तरह की साधारण बात सुनते हैं, फिर भी आगे बढ़ें! कभी-कभी लोगों को पता ही नहीं होता, कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं।
    • जब आप स्वयं ही आगे बढ़ने का तय करते हैं, किसी भी बारे में बोल सकने का प्रयास करें। ऐसा भी हो सकता है, कि कुछ लोगों के विचार आप के ही समान हों, लेकिन वे इन्हें प्रदर्शित करने से शरमाते हों! हो सकता है कि आप भी इस विषय को इस के अंत तक ला सकते हों।
  2. अगली बार आप कुछ भी ऐसा महसूस करें, जिसे आप नहीं करना चाहते, तो बिल्कुल उसे करने से मना कर दें। आप के अलावा बहुत से लोग इसे करना चाहते हों, लेकिन कम से कम आप अन्य लोगों की उम्मीदों पर तो नहीं निर्भर होंगे। अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ सुनें – यह अक्सर सही होती है।
    • क्या आप को अपने दोस्त की शादी पर इसलिए नहीं जाना चाहिए, क्योंकि आप को उस में जाने का कोई मन नहीं है? शायद नहीं। क्या आप को कोई ज़रूरी काम इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि आप को आज आलस आ रहा है? नहीं। इन बातों का उद्देश्य, आप को यह बताना है, कि आप को सही निर्णय लेने चाहिए।
  3. आजकल हम एक ऐसी ज़िंदगी बिता रहे हैं, जिस में हमें किसी भी काम को करने के लिए साधन उपलब्ध हो जाते हैं, हमें कोई भी काम अपने आप से नहीं करना पड़ता। हमें अपनी कार ठीक मिल जाती है, हमारा स्वास्थ्य ठीक हो जाता है, हमारे कंप्यूटर्स घर पर ही ठीक हो जाते हैं, टीवी खराब होने परइसे सुधरवाने के लिए हमें बाहर नहीं जाना पड़ता, –यह लिस्ट बहुत लंबी है। दुर्भाग्य से ये सारी ही सुविधाएँ हमारे अंदर से जिम्मेदारी की भावनाओं को हम से दूर कर देती हैं। हम को अन्य लोगों पर आश्रित ना रहने के लिए, हमें अपनी समस्याएँ खुद से सुलझानी शुरू कर देना चाहिए।
    • अब अगली बार, आप कभी भी किसी समस्या में फँसते हैं, तो उस से परेशान होने के बजाय, उस के समाधान की ओर ध्यान देना चाहिए, उसे सुधारने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाएं। कुछ ऐसा करें, जिसे करते हुए आप का खुशी महसूस हो। इस से आप का खुद पर भरोसा जागृत होगा। जब भी आप सफल होंगे तो इस से आप को ऐसा महसूस होगा कि आप हर एक काम कर सकते हैं, हर समस्या को सुलझा सकते हैं ।
  4. खुद की रक्षा आप खुद करें, आप को बचाने के लिए और कोई नहीं आएगा। यदि आप अन्य लोगों से उम्मीदें रखेंगे, तो तकलीफ़ तो ज़रूर होगी। लेकिन हम सब इंसान ही हैं, और दिन के आख़िर में हम हर एक काम कर के सिर्फ़ खुद को ही खुश देखना चाहते हैं। और क्यों ना हो, हर कोई ऐसा ही करता है, तो आप भी ऐसा कर सकते हैं – वो भी बिना किसी हीनभावना को महसूस किए।
    • इस बात को दिमाग़ में लेकर आगे चलें, तो आप को अपनी आशाओं पर काबू पाने में मदद होगी और दर्द भी नहीं होगा। जब आप को लोगों से कम उम्मीदें होंगी, तो आप को अन्य लोगों के साथ मिल कर रहने में भी मदद होगी। और इस तरह से अन्य लोगों को भी आप की उम्मीदों को पूरा करने में आसानी होगी।
  5. जब हमारी सारी ज़िंदगी सिर्फ़ चार लोगों के इर्द-गिर्द ही घूम कर रह जाएगी, तो उन से अपेक्षाएँ ना रख पाने में आप को कठिनाई होगी। अपनी इस दायरे को बढ़ाने और अपनी महत्वता को पाने के लिए, कुछ अलग-अलग तरह के लोगों से उन के विचार जानना और बातचीत करना शुरू कर दें! एक अच्छा सामाजिक ग्रुप होना आप को आप के कठिन दौर में और अच्छे दौर में बहुत मदद देगा।
    • हर इंसान का लगाव किसी ना किसी चीज़ के साथ होता है। और ऐसा होने का एक कारण यह भी है कि यह आप को उन लोगों के प्यार और लगाव की यद् दिलातीं हैं, जिन्होंने इन्हें आप को दिया है। आप की इन चीज़ों से जुड़ी हुई भावनाओं को ज़रा कम कर देना चाहिए। आप इन चीज़ों से जितनी दूरी बना लेंगे, आप के लिए उतना ही बेहतर साबित होगा। और ऐसा करने के लिए, आप को अलग-अलग लोगों के साथ बातचीत कर के खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करना चाहिए।
  6. आप एक अलग व्यक्तित्व हैं, और आप अपना ही काम करना पसंद करेंगे, फिर भले भी वह कुछ भी क्यों ना हो। जब आप अपने आप से जुड़ कर खुद को ख़ुशी का अहसास दिलाते रहेंगे, तो आप को कोई भी नहीं रोक पाएगा और परिणामस्वरूप आप आत्म-निर्भर हो जाएंगे।
    • ऐसे लोग जो हर समय अपनी वास्तविकता के साथ जुड़े रहते हैं, वे बहुत ही दुर्लभ होते हैं। यह किसी की आलोचना नही है – बल्कि यह तो एक प्रेरणा है। लोग जब आप को ही अपनी खुशी का कारण बनता देखेंगे, तो वे भी आप की ही तरह बनना चाहेंगे! और कुछ लोग शायद आप की इस ख़ुशी को बर्दाश्त भी नहीं कर पाएँगे, और आप की तरह बनने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहेंगे, और ये वही लोग होंगे, जिन्हें आप को खुद से दूर कर देना चाहिए!

सलाह

  • अपनी पुरानी ग़लतियों को एक सबक के तौर पर लें और दोबारा इस ग़लती को ना दोहरा सकने के लिए, इन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत बना लें।

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