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भावनाओं की हमारे ज़ीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे अंदर कुछ मानसिक भावनाएँ होतीं हैं, जो हमारी शारीरिक भावनाओं से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली होती हैं। आप की भावनाएँ ही आप को यह बात बताती हैं, कि आप को क्या पसंद है और क्या नापसंद है, आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते, और क्योंकि ये भावनाएँ हमारे लिए ये सारी सूचना देती हैं, तो हमें अपनी भावनाओं के बारे में जानकारी होना, पता होना चाहिए। हालाँकि, जब आप की भावनाएँ आप पर नियंत्रण करने लगती हैं, तो ये आप की सक्षमताओं को, किसी विशेष परिस्थिति में स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता को प्रभावित करतीं हैं। जब आप कुछ बेहतर करना चाहते हैं, तो उस के लिए आप को अपनी भावनाओं पर काबू करना आना चाहिए।

विधि 1
विधि 1 का 4:

किसी भी अवस्था में भावनाहीन रूप से सोचना

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  1. खुद को नुकसान पहुँचाने वाली भावनाओं को खुद से दूर करें: खुद को आत्म-घृणा और आत्म-दया जैसी भावनाओं की ओर खींचकर ना ले जाएँ। मीडिया में मौजूद कुछ अच्छे शरीर की तस्वीरें, अच्छी लाइफस्टाइल, अच्छी जॉब और इसी तरह की कुछ चीज़ें, आप को खुद को हीन समझने की भावनाओं की तरफ खींच कर ले जाती है। अब आप को इस तरह की भावनाओं को मन में लाना हैं या नहीं, ये निर्णय आप का है।
    • खुद की तुलना दूसरों से करना बंद करें। जब आप खुद की तुलना दूसरों से करते हैं, उसी समय आप अपनी अनूठेपन को कम कर देते हैं। आप के पास आप की अपनी कुछ कुशलताएँ हैं और कुछ क्षमताएँ हैं, जो सब से अलग हैं। उन्हें अपनाएँ और उन्हें ज़रूरत के अनुसार निखारें। तुलना पैसों की होती है, इंसानों की नहीं।
    • इस तरह से सोचना बंद करें, कि मैं किसी भी परिस्थिति का सामना करने लायक नहीं हूँ या फिर हर चीज़ ग़लत ही हो जाती है। इस तरह के विचार आप की क्षमताओं को प्रभावित करती है। इस के बजाय, इस तरह की सोच को कुछ ऐसे विचारों में परिवर्तित कर दें, जो आप को इस परिस्थिति के लिए समाधान सूझा सकें। [१]
  2. अपने भविष्य के बारे में सब कुछ पहले से ना सोच लें: क्योंकि आप परिणामों को लेकर ग़लत भी हो सकते हैं! हम कुछ इस तरह से सोचना शुरू कर देते हैं, "वो उसने ऐसा किया, तो ऐसा हुआ, यदि मैं ऐसा करूँगा तो ऐसा होगा" इस तरह से सोचना बहुत आसान है। यदि आप परिणामों की चिंता करना ही छोड़ देंगे, तो यहाँ पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस से आप को डर लगे। आप भविष्य नहीं जान सकते, तो फिर किस बात की चिंता?
    • यदि आप सच में बीती हुई बातों के बारे में सोचना चाहते हैं, तो अब से 5 मिनिट पहले, खुद को सोचें, जब आप अपना आपा पूरी तरह से खो रहे थे। क्या आप वैसे ही व्यक्ति बनना चाहते हैं? शायद नहीं! अपने इस तरह की नकारात्मक सोच का प्रयोग उस बात को सोचने के लिए करें, जैसे आप बनना "नहीं" चाहते।
  3. अपने जीवन और जीवन की घटनाओं के बारे में कुछ इस तरह सोचें, जैसे एक मूवी हो। जो कुछ भी हो रहा है, उस से ऊपर उठें और कुछ इस तरह से सोचें कि आप खुद को नहीं किसी और को देख रहे हैं। इस तरह से आप अपने शरीर को तो उस परिस्थिति में रखेंगे, लेकिन अपनी भावनाओं को नहीं।
    • ऐसा सोचें कि आप उस स्थिति को, कहीं बाहर से बिना किसी जानकारी के, और बिना किसी भावना के देख रहे हैं। इस तरह से खुद को उस परिस्थिति से अलग रख के आप उस में अपनी भावनाएँ रखने से खुद को रोक पाएँगे। न्यूरो भाषा (neuro-linguistic) प्रोग्रामिंग में इस तकनीक को "रीफ्रेमिंग (reframing)" कहते हैं।
    • खुद को अलग रखते हुए, सावधान रहें, क्योंकि इस के साथ ही कुछ अंदरूनी ख़तरे जन्म ले सकते हैं। यदि आप खुद को पृथक करते समय सावधानी नहीं बरतेंगे, तो इस से आप के दिमाग़ पर और आप के व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इस तरह से खुद को अलग करना केवल कुछ ही स्थितियों में लाभकर होगा, ना कि आप ने जीवन की हर एक कठिन परिस्थिति में। कभी-कभी आप को कुछ परिस्थितियों का सामना अपने दिमाग़ से ही करना होगा, ना कि खुद को उन से दूर कर के।
  4. अपने डर, गुस्से या इसी तरह की कुछ बातों को सोचने के बजाय, तर्कों पर ध्यान दें। इस तरह के तर्क हमारे मन में आने वाली भावनाओं के साथ समान करते हैं, और हमारा ध्यान सत्यता की ओर केंद्रित करते हैं।
    • यदि आप इस बात से डरे हुए हैं, कि आप जॉब इंटरव्यू में अच्छा नहीं कर पाएँगे, तो सिर्फ़ कुछ सच्चे तर्कों की ओर ध्यान दें। जैसे, आप को इस इंटरव्यू में जाने ही ना मिलता, यदि आप के पास उस की योग्यता नहीं होती। और दूसरा, यदि आप को ये जॉब नहीं मिलती है, तो इस का एक ही अर्थ निकलता है, कि आप उस कंपनी के लिए उचित नहीं है, लेकिन इस का यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है, कि आप एक अच्छे उम्मीदवार नहीं हैं।
    • यदि आप गंभीर परिस्थिति में भी भावनाओं के ज़रिए प्रतिक्रिया देते हैं, तो आप को अपने दिमाग़ को तार्किक रूप से सोचने के लिए तैयार करना होगा।
  5. ये कभी ना कभी सामने ज़रूर आती हैं। इन का हमारे जीवन में होने का कोई ना कोई कारण होता है, यदि ये किसी भी तरह से उपयोगी नहीं होतीं तो हमारे पास भी नहीं होतीं। अध्ययनों में यह भी पाया गया है, कि कभी-कभी हम अपने आपे से बाहर होकर, ज़्यादा बेहतर निर्णय ले पाते हैं । [२] तो यदि कभी आप को कुछ ऐसा महसूस होता है, तो इस की पहचान करें, क्या यह उचित है। तो आप को उन पर अडिग रहना चाहिए।
    • यदि यह उचित नहीं है, तो इस का बिल्कुल भी पालन ना करें।
    • यदि यह उचित (जैसे कि शोक एक नकारात्मक भावना है, लेकिन यह उचित है), इसे स्वीकारें। इस बात को स्वीकार करें, कि यह भी आप के ही विचार हैं और इन्हें भी गुजर जानें दें। कुछ समय बाद इन का स्थान कोई और विचार ले लेंगे।
विधि 2
विधि 2 का 4:

अपने आप को शांत रखना

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  1. लंबी साँस लेना, कठिन परिस्थितियों में भी आप को शांत रखने में और आप के स्वास्थ्य में सुधार लाने में सहायता करती है। अपनी भावनाओं को शांत रखने के लिए, गहरी साँस लेने की, इन में से कुछ विधियों का प्रयोग करें:
    • अपनी नाक से 2 सेकेंड तक के लिए साँस अंदर खींचें। 4 सेकेंड के लिए साँस को रोक कर रखें। अपने मुँह से 4 सेकेंड तक साँस बाहर छोड़ें। इस को तब तक दोहराएँ, जब तक कि आप की भावनाएँ कम ना हो जाएँ।
    • किसी कुर्सी पर आराम से बैठ जाएँ, और अपनी साँसों पर ध्यान लगाएँ, कि क्या ये गहरी हैं या हल्की हैं। इन्हें बदलने का प्रयास ना करें; इस के बजाय अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बनाएँ और अपनी तर्जनी और अंगूठे को दबाएँ। इसे दबाव मुक्त करें और फिर से दबाव बनाएँ। आप को अनुभव होगा कि आप की साँसे हर दबाव के साथ, गहरी और धीमी होती जा रही हैं, और इस के साथ ही आप को आराम के साथ भावनाओं को मुक्त करने में मदद मिलेगी। [३]
  2. किसी जगह बैठकर बार-बार उन्ही भावनाओं पर विचार करने के बजाय, उठें और किसी और काम में अपना ध्यान लगाएँ। विचार आते हैं और जाते हैं, लेकिन आप इस तरह से खुद को नये विचार से विचलित कर के, बुरे विचारों को तो अपने से दूर कर सकते हैं। कुछ ही समय के बाद आप खुद ही भूल जाएँगे कि आप किस बात से दुखी थे।
    • कोई ऐसा काम चुनें, जिसे कर के आप को अच्छा महसूस होता है। यदि आप दुखी हैं या किसी बात से घबरा रहे हैं, और उस बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहे हैं, तो अपने पालतू जानवर के साथ बाहर दौड़ लगाएँ, जिम जाकर व्यायाम करें, या फिर अपना कैमरा ले जाकर प्रकृति की फोटो लें। ऐसा कुछ भी करें, जो आप के दिमाग़ को सक्रिय रूप से जोड़े रखे और आप की भावनाओं को बाहर करने में मदद करे।
    • ऐसी कोई गतिविधि का चुनाव करें, जिस में बहुत ज़्यादा ध्यान लगाने की ज़रूरत हो। सिलाई करें, बुनाई करें या ऐसी कोई गतिविधि, जिस में आप को अपना बहुत ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत हो।
  3. अपनी भावनाओं को ख़त्म करने के लिए, अल्कोहॉल या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन ना करें: ऐसा करना थोड़े समय तक तो आप को राहत देगा, लेकिन आप की अगली सुबह आप के किए के लिए, आप को दोगुना दर्द देगी। यह किसी भी समस्या के लिए एक अस्थायी समाधान है।
    • अपनी भावनाओं से निजात पाने के चक्कर में खाने की मात्रा में कमी या बढ़ोत्तरी ना करें। इस तरह से यदि आप अपने शरीर को अच्छी तरह से पोषण नहीं देंगे तो इस से शरीर पर और दिमाग़ पर और भी ज़्यादा तनाव बढ़ेगा।
  4. इसे अपनी भावनाओं के लिए समर्पित करें। अपने लिए समर्पित करें। इस से आप को अपने बारे में और ज़्यादा जानने में मदद मिलेगी। तो अगली बार जब भी आप कोई भावना का अनुभव करें, तो अपनी इस पत्रिका में लिखना ना भूलें।
    • यह कैसे उत्पन्न हुई? क्या आप ने इस का अनुभव किया? इस से कैसा "अनुभव" होता है? आप ने इस के अनुभव को कैसे रोका? और क्या यह अपने आप रुक गई?
  5. यदि आप ने खुद को हर समय परिस्थितियों में ज़बरदस्ती फँसते हुए पाया है, और शायद आप ऐसा नहीं करते। शायद आप एक ऐसे माहौल में हैं, जो आप को ऐसा करने को मजबूर कर रहा है। हम में से बहुत सारे लोगों के जीवन में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें शायद वहाँ नहीं होना चाहिए। ये हमारे अंदर कुछ ऐसी भावनाएँ उत्पन्न करते हैं, जिन की ज़रूरत हमें नहीं है। आप के मन में यदि ऐसे किसी भी व्यक्ति का नाम आ रहा है, तो उसे अभी अपने जीवन से दूर कर दें। आप को ऐसे लोगों की कोई ज़रूरत नहीं।
    • लोगों के पास हमारी भावनाओं को प्रभावित करने के बहुत सारे तरीके होते हैं। वैसा ऐसा सच में उन के कारण नहीं होता, लेकिन हम उन्हें ऐसा करने देते है। ऐसे लोगो के साथ घिरे रहने के लिए हमारी ज़िंदगी बहुत छोटी है, जो हमें बुरा महसूस करवाते हैं, तो उन के चले जाने में ही बेहतरी है।
विधि 3
विधि 3 का 4:

भावनाओं पर नियंत्रण करने वाली आदतों को विकसित करना

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  1. अपनी भावनाओं पर काबू पाने के लिए मेडिटेशन सब से अच्छा तरीका है। मेडिटेशन के ज़रिए आप अपनी भावनाओं को पहचान कर उन्हें स्वीकार करना और फिर उन्हें जाने देना, सीखेंगे। कुछ लोग भावनात्मक लगाव को एक ही पल में मुक्त करने में सक्षम होते हैं, और ये सब बहुत समय से किए जा रहे मेडिटेशन के अभ्यास से संभव होता है।
    • एक ऐसी जगह का चयन करें, जहाँ पर आप को कोई भी विचलित ना कर सके और एक ऐसी अनुकूल अवस्था को सोचें, जिस में आप गहरी साँसे ले सकें। आप अपनी साँसों पर ध्यान कर के भी एक साधारण मेडिटेशन का अभ्यास कर सकते हैं। अपनी नाक से साँस अंदर खींचें और पेट से साँस लें; फिर पेट से ले जाकर इसे नाक के ज़रिए बाहर छोड़ें। साँस लेते समय अपनी साँस के शरीर से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करें।
    • अपने शरीर का सिर से लेकर पैर तक ध्यान करें। अपने अनुभवों के बारे में जानें। क्या यहाँ ठंडा है या गर्म? क्या आप अपने नीचे मौजूद शीट या ज़मीन को महसूस कर पा रहे हैं? सब पर ध्यान लगाएँ।
  2. मेडिटेशन करते वक़्त कल्पनाशक्ति का प्रयोग करें: कुछ ऐसी कल्पना करें, जो आप को शांति के अनुभवों के साथ जोड़े और उस छवि पर अपना ध्यान केंद्रित करें, जो आप के मन में है। हर समय जब आप का मन भटकेगा भावनाओं को जानेगा, स्वीकार करेगा और जाने देगा। अपने ध्यान को वापस से उस छवि पर लेकर आएँ। [४]
    • यदि कोई भी विचार या भावनाएँ उत्पन्न होती हैं तो उन्हें स्वीकार करते जाएँ। उन्हें बदलने या ठीक करने की कोशिश ना करें: बस उन्हें स्वीकार करें। फिर उन्हें जाने दें और वापस गहरी साँस लेना शुरू करें।
    • एक अच्छे से किए हुए मेडिटेशन को 5 मिनिट से लेकर 30 मिनिट तक का समय लगता है। एक बार आप अपने मकाम पर पहुँच जाएँ, फिर आप खुद ही अपनी भावनाओं में, अपने व्यवहार में बदलाव महसूस करेंगे। एक बार जब आप को सहज महसूस होने लगे, तो आप परिस्थितियाँ उत्पन्न कर के अपनी भावनाओं से निपटने की काबिलियत की परीक्षा ले सकते हैं।
  3. हमारे जीवन के बहुत से मसले ऐसे होते हैं, जिन का कोई भी जवाब नहीं निकल पता और आप भी उस तरह से ग़लत और सही के बारे में नहीं सोच पाते। जब आप खुद को ग़लत पाएँ, तो अपनी उन ग़लत भावनाओं की माफी माँगे। आप के जीवन में ग़लत भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होना चाहिए। इन से कुछ भी अच्छा नहीं होता!
    • मेडिटेशन की ही तरह, अपनी ग़लती को स्वीकारें और उसे जाने दें। वो बीत चुका है। अब आप समझ चुके हैं! इस ग़लती को दोबारा नहीं दोहराएँगे, तो इस की चिंता करने से क्या फायदा। अपनी ग़लती को स्वीकारना एक बहुत बड़ा कदम है।
  4. चाहे आप कितने भी गुस्से में या चिंता में क्यों ना हों, लेकिन फिर भी जब तक आप पूरी तरह से परिस्थिति का जायजा ना कर लें, तब तक इस तरह की भावनाओं पर कोई प्रतिक्रिया ना करें। खुद को उस परिस्थिति में रख कर एक बार फिर से सारी स्थिति का जायज़ा करें और अपनी प्रतिक्रिया के परिणामों को देखें।
    • बोलने से पहले सोचें। हम अक्सर भावनाओं के साथ बहकर कुछ ऐसा बोल देते हैं या कर देते हैं, जिसे बाद में सोचकर हमें पछतावा होता है। थोड़ा सा समय लें और अक्ल का इस्तेमाल करें। यदि आप बिना सोचे-समझे कुछ बोलना चाहते हैं, तो फिर उस के परिणाम के लिए भी तैयार रहें।
      • यदि आप का सहकर्मी आप के काम की निंदा करता है, तो उसे गुस्से में कुछ भी भला-बुरा कहने से बचें। इस के बजाय कुछ समय, उस की निंदा करने की वजह पर विचार करें, हो सकता है, उस की यह निंदा उचित हो, और फिर इस से आप अपने काम को और बेहतर कर पाएँ, और इस निंदा के लिए उसे धन्यवाद भी कहना चाहें, तो बस जो भी कहें सोच समझ कर ही कहें।
  5. यदि आप किसी ऐसी स्थिति की पहचान करते हैं, जिस से आप को क्रोध आता है, तो उस स्थिति पर जितना जल्दी हो सके नियंत्रण करने की कोशिश करें। सिर्फ़ आप को ही पता होगा कि आप के लिए क्या सही होगा। लेकिन ऐसा कर सकने के लिए, आप को उन सभी बातों को जानना होगा, जिन से आप को गुस्सा आता है।
    • अपनी मदद करने का यही एक उचित तरीका है! तो किसी स्थिति में जाने के बाद बजाय यह सोचने के, कि मैं क्यों इस में फँसा हुआ हूँ, इस से निकलने के तरीकों को खोजें। साँसें लें। ध्यान भटकाएँ। आदतों को बनाने में समय लगता है। भावनाहीन बनने के तरीकों का अभ्यास करें, और बहुत जल्दी ही आप में बहुत परिवर्तन देखने को मिलेंगे।
विधि 4
विधि 4 का 4:

अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना

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  1. ये ऐसा नहीं हुआ, ये बहुत ग़लत हुआ, ऐसा नहीं होना चाहिए, बस यही ज़िंदगी है। इस को कोई नहीं बदल सकता, इसे बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं, तो ही इस का अस्तित्व होगा। इस में ना तो कुछ बहुत अच्छा है, ना ही कुछ बुरा, बस यह एक परिस्थिति है, जिस का सामना करना, आप को आना चाहिए। बस इसी धारणा को अपनाने की ज़रूरत है। जब आप किसी भी चीज़ पर ज़्यादा ध्यान नहीं देंगे, कोई भी चीज़ आप के लिए मायने नहीं रखेगी, तो आप की भावनाएँ भी गायब हो जाएँगी।
    • आप को क्या लगता है, कौन सी भावना दिखाने योग्य है? प्रेम? बच्चे? धन-दौलत? ये सब क्षणभन्गुर हैं। यह अक्सर कुछ स्वार्थी भावनाओं से ग्रसित होता है। खुद को समझा कर रखें कि जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो सारे जीवन आप के साथ रहेगा -- इस तरह से आप का जीवन और भी आसान हो जाएगा।
  2. सिर्फ़ अपने बारे में ही नहीं, बल्कि और भी लोगों के बारे में सोचें: जब हम किसी और के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो हमारे अंदर मौजूद स्वार्थी भावनाएँ हमें रोकना शुरू कर देती हैं। हालाँकि, ऐसा करना हमारे लिए बहुत कठिन होता है, क्योंकि किसी भी संबंध से ऊपर हमारा स्वार्थ आकर खड़ा हो जाता है।
    • अन्य लोगों के साथ जुड़ना, हमारी अपनी ज़िंदगी को आगे बढ़ने में मदद करता है। दूसरों की मदद कर के, उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर के, आप को अनुभव होगा कि आप की भावनाएँ कोई इतनी भी महत्वपूर्ण नहीं है।
    • दूसरों को समय देकर, आप अपने आप के बारे में सोचने तक का समय नहीं निकाल पाएँगे। जब अन्य लोग आप पर अपना विश्वास दिखाएँगे, तो आप को साहस मिलेगा और आप की भावनाएँ आप के रास्ते में बाधा बन कर कभी नहीं आ पाएँगी।
  3. अध्ययन के अनुसार, अपने मन में किसी नई चीज़ के लिए जगह बनाना बहुत कठिन है। इस की जगह पर अपनी सोच को ही बदल दें। और अच्छी बात यह है कि आप के सोचने का बदला हुआ तरीका और भी मजबूत होगा क्योंकि इस के अंदर मौजूद बातें एकदम नई और केंद्रित होंगी।
    • आप के अंदर जमा हुई उदासी की भावना पर काबू पाने में समय गँवाने से बेहतर है कि आप अपने बारे में एक नया नज़रिया बनाएँ।
    • अपने अंदर की सारी ऊर्जा को इस नए नज़रिए को साकार करने में झौंक दें। इस नज़रिए का अभ्यास करें और पुराने वाले को पूरी तरह से भूल जाएँ।
  4. जैसे कि यह आप के भावनाहीन बनने के बारे में बात की जा रही है, तो इस के साथ ही आप के अंदर मौजूद कुछ अच्छी भावनाएँ भी छूट जाएँगी। तो जब आप की माँ आप के लिए कोई मनपसंद चीज़ खरीद कर लाएँ या फिर आप का मित्र आप के कमरे में आए, तो उन्हें और उन की भावनाओं की स्वीकारें, लेकिन खुद को उन में बहने ना दें। मुस्कुरा कर उन का आभार व्यक्त करें, लेकिन बस इतना ही, इस से ज़्यादा कुछ ना करें।
    • यदि आप सच में भावनाहीन होना चाहते हैं, तो आप को किसी भी चीज़ के प्रति उत्साही नहीं होना चाहिए। इस से एक बात जो आप के लिए अच्छी होगी वो ये कि कोई भी चीज़ ना तो आप को खुशी दे पाएगी और ना ही दुख पहुँचा पाएगी। आप को किसी भी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ेगा।
  5. जब आप किसी को परिस्थिति को बदलने में नाकामयाब होते नज़र आएँगे, तो आप को इस से गुस्सा भी आएगा, लेकिन आप को अपने इस क्रोध का उपयोग परिस्थिति को छोड़ देने के लिए करना होगा। इस के बजाय, किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करें, जिसे आप बदल सकते हैं, इस से आप का मन दुख की बजाय एक सकारात्मक दिशा की ओर केंद्रित होगा।
    • सकारात्मक तरह से सोचकर भी आप भावनाओं के लिए एक नई अवस्था का निर्माण कर रहे हैं। हालाँकि, सलाह तो यही दी जाएगी कि आप बिल्कुल भी कुछ ना सोचें। यदि आप एकदम निष्पक्ष या उदासीन होना चाहते हैं, तो ना तो सकारात्मक सोचें और ना ही नकारात्मक। खुद को पूरी तरह से विचारहीन रखने का प्रयास करें।

सलाह

  • ऐसे किसी भी व्यक्ति का मनोरंजन ना करें, जो आप की निंदा करता हो। उन्हें दर्शाने के लिए कि आप की उन की बातों में दिलचस्पी नहीं है, उन की तरफ बोरियत भरी निगाहों से देखें।
  • अधिकांश लोग रोने के बाद खुद को हल्का महसूस करते हैं, क्योंकि यह भावनाओं से निजात पाने की एक शारीरिक प्रक्रिया है। हालाँकि, जब आप काम के दौरान किसी भावनात्मक परिस्थिति का सामना करते हैं, तो आप किसी के भी सामने रोना शुरू कर सकते हैं। ऐसे समय में अपनी त्वचा को उंगली और अंगूठे से ज़ोर से दबाएँ (चुटकी काटें)। आप को ताज्जुब होगा कि इस ने किस तरह से आप के रोने को प्रभावित किया।
  • यदि कोई आप को परेशान कर रहा है, और आप की भावनाओं को उकसाने की कोशिश कर रहा है, तो मुस्कुराएँ और उसे साफ-साफ समझा दें, कि आप जो कर रहे हैं, वो उचित नहीं है।
  • अपनी भावनाओं पर उचित प्रतिक्रिया देना जानने के लिए Cognitive Behavioral Therapy, या "CBT" को देखें। डॉक्टर्स, साइंटिस्ट्स और थेरेपिस्ट भी CBT को, सोचने के तरीके को बदलने का एक प्रभावी टूल मानते हैं।
  • जब भी आप खुद को भावुक महसूस करें, तो अपने मन में गिनती करना शुरू कर दें। यह खुद को शांत करने का अच्छा तरीका है।

चेतावनी

  • खुद को हानि पहुँचाना (खुद को चुटकी काटना ) अपने अंदर के दर्द से छुटकारा पाने का कोई उचित तरीका नहीं है। इस से ना सिर्फ़ आप को कष्ट होगा, बल्कि हो सकता है कि, ये आप के शरीर पर इन ज़ख़्मों के दाग छोड़ जाए, जिस से शायद आप को बाद में पछतावा हो।
  • यदि आप खुद को भावनाओं में फँसा हुआ पाते हैं, और उन को नहीं रोक पा रहे हैं, तो शायद आप चिंता, हताशा या ऐसी ही किसी अवस्था से गुजर रहे हैं। किसी मानसिक स्वास्थ्य प्रदर्शक (mental health professional) से मदद माँगने में भी ना शर्माएँ। जितने जल्दी आप मदद पाएँगे, उतने ही जल्दी आप इन सारी चीज़ों से छुटकारा पाएँगे।

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