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लोगों को यह विश्वास दिलाना कि आपकी राह ही, सर्वश्रेष्ठ राह है, अक्सर बहुत कठिन होता है – विशेषकर तब जब आपको पता ही नहीं हो, कि वे मना क्यों कर रहे हैं। अपनी बात की दिशा ही बदल दीजिये और लोगों को अपने दृष्टिकोण के संबंध में विश्वास दिलाइए। तरकीब यह है कि उन्हें सोचने पर मजबूर कर दीजिये, कि आखिर वे मना क्यों कर रहे थे – और सही तकनीक से, आप ऐसा कर भी सकते हैं।

विधि 1
विधि 1 का 5:

मूल तत्व

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  1. लोगों को कैसे समझाना बुझाना है इसको जानने के लिए मात्र शब्द या हाव भाव ही काफी नहीं होते हैं – उनसे बात करने का सही समय भी जानना चाहिए। यदि आप लोगों से तब मिलते हैं जब वे तनाव मुक्त और चर्चा के लिए तैयार होते हैं, तब आप निश्चय ही शीघ्र और बेहतर नतीजे पाएंगे।
    • लोगों को उस समय समझाना बुझाना सबसे सरल होता है जब वे आपको धन्यवाद दे कर बस हटे ही हों – वे स्वयं को ऋणी महसूस करते हैं। और यह भी बात है कि, धन्यवाद प्राप्त करने के बाद वे सबसे आसानी से समझाये बुझाये जा सकते हैं क्योंकि वे स्वयं को उसका अधिकारी समझते हैं। जब कोई आपको धन्यवाद करता है, तो वही मौका है उनसे कुछ अनुग्रह मांगने का। यह कुछ वैसा ही है कि इस हाथ दे उस हाथ ले। आपने उनके लिए कुछ किया है, और अब समय है जबकि वे आपके लिए कुछ करें। [१]
  2. आपका समझाना बुझाना प्रभावी है या नहीं यह इस पर निर्भर करेगा कि आपके और आपके असामी/ पुत्र/ मित्र/ कर्मचारी के संबंध आम तौर पर कैसे हैं। यदि आप व्यक्ति को अच्छी तरह से नहीं जानते हैं, तो यह अनिवार्य है कि आप संबंध बढ़ाना तुरंत शुरू कर दीजिये – यथाशीघ्र कोई सामान्य आधार खोज लीजिये। मनुष्य, आम तौर पर, अपने जैसे लोगों के निकट ही सुरक्षित महसूस करते हैं (इसीलिए उनको अधिक पसंद भी करते हैं)। तो समानताएँ खोजिए और उनको ज़ाहिर कर दीजिये।
    • पहले जानिए कि उनकी रुचि किसमें है। लोगों से खुल कर बातें करवाने की एक श्रेष्ट विधि यह है कि उनसे उन विषयों पर बातचीत की जाये, जिनके लिए वे भावुक हों। जिसमें उनकी रुचि हो, उस विषय में बुद्धिमत्तापूर्ण, विचारशील प्रश्न पूछिए, जिसमें उनकी रुचि हो – और यह बताना मत भूलिए कि आपको क्यों वे रुचियाँ दिलचस्प लगती हैं! यह देखकर कि आप भी उसी के सजातीय हैं, उसे लगेगा कि आपसे दिल खोलना और आपकी बातें समझना ठीक है।
      • क्या उनकी मेज़ पर उनकी स्काई डाइविंग करते हुये तस्वीर है? कमाल है! आप भी तो अपनी पहली छलांग लगाने ही वाले हैं – मगर उसे 10,000 फीट से करना है या 18,000 फीट से? उनकी अनुभवी राय क्या है?
  3. यदि आप अपने बेटे या बेटी से कहते हैं कि, “अपना कमरा गंदा मत करो”, जबकि आप कहना चाहते हैं कि, “अपना कमरा साफ रखो”, तब आपको कुछ भी मिलने वाला नहीं है। “मुझसे संपर्क करने में हिचकिचाइएगा नहीं” और “मुझे बृहस्पतिवार को फ़ोन करिएगा!” में फर्क है। जिससे आप बातें कर रहे हैं उसे पता ही नहीं चलेगा कि आप का मतलब क्या है और वह आपको वह तो नहीं ही दे पाएगा जो आप चाह रहे होंगे।
    • स्पष्टता के बारे में कुछ कहा जा सकता है। यदि आप असपष्ट होंगे तो, हो सकता है कि दूसरा व्यक्ति आपसे सहमत तो होना चाहे, मगर उसको समझ में ही नहीं आयेगा कि आप चाहते क्या हैं। सकारात्मकता से बातें कर के आप स्पष्टोंक्ति बनाए रह सकते हैं और आपका मन्तव्य भी साफ रहेगा।
  4. [२] आपको वह याद है न, जो कि कॉलेज में आपने उस साहित्य के पाठ्यक्रम में अरस्तू की अपीलों के संदर्भ में पढ़ा था? नहीं? चलिये, यहाँ उसकी याद ताज़ा कर लेते हैं। वह बहुत चतुर व्यक्ति था – और ये अपीलें इतनी मानवीय हैं कि वे आज के दिन भी उतनी ही सत्य हैं।
    • सदाचार – सोचिए विश्वसनीयता। हम उन लोगों का भरोसा करते हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं। आप सोचिए कि प्रवक्ता क्यों होते हैं? बिलकुल इसी अपील के कारण। एक उदाहरण यह है: लक। अच्छी बानियान, सम्मानीय उत्पादक। मगर क्या आपके लिए इस उत्पाद को खरीदने का यही कारण, पर्याप्त है? हो सकता है, शायद। ठहरिए, सनी देओल पिछले दो दशकों से यही पहनते हैं? [३] बिक गई!
    • मनोभाव – आपकी भावनाओं पर आधारित होते हैं। सबको मालूम हैं वे विज्ञापन फिल्में जिनमें मृत्यु और दुखद संगीत के साथ एक विधवा की बेटी के विवाह को दिखाया जाता है। बहुत ही दुखद विज्ञापन है। क्यों? क्योंकि आप उसे देखते हैं, दुखी होते हैं और आप जीवन बीमा खरीदने के लिए बाध्य हो जाते हैं। मनोभावों का सुंदर उपयोग।
    • प्रतीक – यह तर्क शब्द का मूल है। शायद यह समझाने बुझाने की सबसे ईमानदार विधि है। आप सीधे शब्दों में बता देते हैं कि किस कारण से आपकी बात सुनने वाले को आपका समर्थन करना चाहिए। इसी कारण से सांख्यिकी का प्रयोग इतनी बहुतायत से किया जाता है। यदि आपको बताया जाये कि, “आम तौर पर, जो लोग सिगरेट पीते हैं, वे नहीं पीने वालों से 14 वर्ष पूर्व ही मर जाते हैं” (वैसे यह सच भी है) [४] , और आप को लगता है कि आप लंबा एवं स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं, तो तर्क संगत तो यही होगा कि आप बंद कर दें। बस। हो गया समझाना बुझाना।
  5. समझाने बुझाने का यह पहला नियम है। आखिरकार, यदि जो आप बेच/ ला/ कर रहे हैं, उसकी आवश्यकता ही नहीं है, तब तो वह होगी ही नहीं। आपको अगला बिल गेट्स होने की आवश्यकता नहीं है (हालांकि उसने वास्तव में आवश्यकता का जनन कर ही दिया) – आपको केवल मासलो के अनुक्रम को देखना है। आवश्यकता के विभिन्न आयामों को देखिये – चाहे वे भौतिक हों, भयमुक्ति एवं सुरक्षा की हों, प्रेम और संबद्धता की हों, आत्म सम्मान की हों अथवा आत्म वास्तविकीकरण की हों, आपको एक न एक ऐसा क्षेत्र अवश्य मिल जाएगा जहां पर कि कुछ न कुछ कम ही होगा, और जिसे आप ही सुधार सकते होंगे। [५]
    • ’”अभाव पैदा कर दीजिये’”। उन चीजों के अलावा जो हम मनुष्यों को जीवित रहने के लिये आवश्यक हैं, शेष सभी चीजों का तुलनात्मक रूप से कुछ न कुछ मूल्य है। कभी कभी (शायद अधिकांशतः), हमें चीज़ें इसलिए चाहिए होती हैं क्योंकि दूसरे लोग उन्हीं चीजों को चाहते हैं (या वे उनके पास होती हैं)। यदि आप चाहते हैं कि कोई उस चीज़ को चाहे जो आपके पास है (या जो आप हैं, या जो आप करते हैं या कोई सिर्फ आप ही बनना चाहता है), तो आपको उस चीज़ का अभाव पैदा करना होगा, चाहे वह चीज़ आप स्वयं ही क्यों न हों। मांग होने पर ही दीजिये। [६]
    • ”तत्काल आवश्यकता की स्थिति उत्पन्न करिए”। लोगों से उसी समय काम करवाने के लिए, आपको तत्काल आवश्यकता की स्थिति उत्पन्न करने में सक्षम होना पड़ेगा। यदि, जो भी आपके पास है उसको पाने के लिए वे उसी समय उत्प्रेरित नहीं होते हैं, तब इस बात की संभावना कम ही है, कि वे बाद में अपना विचार बदलेंगे। आपको, लोगों को वर्तमान काल में ही समझाना बुझाना होगा; लाभ इसी का होगा। [६]
विधि 2
विधि 2 का 5:

आपका कौशल

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  1. यह सच है – लोग सत्य बोलने वाले की अपेक्षा जल्दी और विश्वास के साथ बोलने वाले की बातों पर आधिक विश्वास करते हैं। एक तरह से यह बात समझ में भी आती है – आप जितना तेज़ बोलेंगे, उतना ही कम समय सुनने वाले को आपकी बातें प्रसंस्कृत करने में लगेगा और जो आपने कहा है उस पर सवाल करने में भी। एक तो वह, और फिर तथ्यों को इतनी तेज़ी और विश्वास से बता कर, आप यह भावना जागृत कर देते हैं कि आपको विषय की पूरी समझ है।
    • अक्तूबर 1976 में जर्नल ऑफ पर्सोनाल्टी एंड सोशल साइकोलोजी में बोलने की गति और मनोभावों पर एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था। शोधकर्ताओं ने सहभागियों से बात करके उनको यह आश्वस्त करने का प्रयास किया कि कैफीन उनके लिए बुरी है। जब उन्होंने 195 शब्द प्रति मिनट की गति से बातें कीं, तब सहभागी अधिक आश्वस्त हो सके; जिन्हें 102 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दिया गया, वे कम आश्वस्त हुये। यह माना गया कि उच्च गति (195 शब्द प्रति मिनट, वह अधिकतम गति है जिस पर लोग सामान्य बातचीत में बोल सकते हैं) से बोला गया संदेश अधिक विश्वसनीय माना जाता है – अतः अधिक समझाने बुझाने वाला भी। तेज़ बोलने से अधिक आत्म विश्वास, बुद्धिमत्ता, निष्पक्षता और उतम ज्ञान की प्रतीति होती है। 100 शब्द प्रति मिनट की गति से की गई बातचीत, जो सामान्य बातचीत की निम्नतम गति है, इसके बिलकुल विपरीत समझी जाती है। [७]
  2. किसने सोचा होगा कि घमंडी दिखना अच्छी बात भी हो सकती है (सही समय पर)? वास्तव में, हाल के शोध ने यह बताया है कि मनुष्य गर्वीलेपन को निपुणता से बेहतर समझते हैं। कभी सोचा है कि कैसे वे बिना जानकारी वाले राजनीतिज्ञ और बड़े आदमी कुछ भी कह के निकल जाते हैं? क्यों अभी भी राजदीप सरदेसाई, समाचार चैनल पर छाए रहते हैं? यह मानव मनोविज्ञान के काम करने का नतीजा है। सच में, नतीजा।
    • कारनेगी मिलान विश्वविद्यालय में हुई एक शोध से ज्ञात हुआ है कि मानव आश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी पसंद करते हैं – चाहे उनको यह मालूम ही क्यों न हो कि सूत्र की जानकारी अतीत में उतनी अच्छी नहीं रही है। यदि किसी को यह पता हो (अवचेतन रूप से या और कैसे भी), तो यह उनको विषय पर अति विश्वास दिखाने के लिए अभिप्रेरित करेगा। [८]
  3. यदि आप अगम्य, अपने में सीमित, और जान बुझ कर हठ करने वाले प्रतीत होंगे, तो आप जो भी कहेंगे, लोग उसको सुनना नहीं चाहेंगे। चाहे आप सब सही बातें कह रहे हों, वे आपके हाव भाव से कुछ और ही अर्थ निकाल लेंगे। जैसे आप अपने शब्दों का ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार से आप अपनी मुद्राओं का भी ध्यान रखिए।
    • खुलेपन से रहिए। अपनी बाँहें खुली और शरीर दूसरे व्यक्ति की ओर रखिए। नज़रें मिलाइये, मुस्कुराइए और ध्यान रखिए कि आप अस्थिर न हों।
    • दूसरे व्यक्ति की तरह दिखिए। एक बार फिर से कह रहे हैं कि मनुष्य उन्हीं को पसंद करते हैं, जो उनकी तरह दिखते हैं – उनकी नकल कर, आप वास्तव में, उनकी स्थिति में जा रहे हैं। यदि वे एक कोहनी पर टिके हों तो, आप भी उन्हीं की तरह कोहनी पर टिकिए। यदि वे पीछे की ओर झुकते हैं तो, आप भी झुकिए। यह सब ऐसे जान बुझ कर मत करिए कि ध्यान आकर्षित होने लगे – वास्तव में, अगर आपको उनसे संबंध लग रहा होगा, तब आप यह सब स्वतः ही करने लगेंगे।
  4. एक ऐसे बढ़िया राजनैतिज्ञ की कल्पना कीजिये जो सुंदर वेषभूषा में, मचान पर खड़ा हो। कोई रिपोर्टर उससे प्रश्न पूछता है कि क्या उसको 50 वर्ष और उससे अधिक के लोगों से ही समर्थन मिलता है। प्रत्युत्तर में, मुट्ठी बांध कर, इशारे करता हुआ, वह आक्रामक रूप से कहता है कि, “मैं नौजवानों के लिए काम करता हूँ”। इस तस्वीर में गलती क्या है?
    • गलती, सब कुछ गलत है। उसकी पूरी छवि – उसका शरीर, उसके हाव भाव – सब, जो वह कह रहा है उसके विरुद्ध हैं। उसका उत्तर, उपयुक्त और मृदुल हो सकता है, मगर उसके हाव भाव कठोर, बेचैन, और खूंखार हैं। नतीजे के तौर पर, वह विश्वसनीय नहीं है। समझाने बुझाने लायक होने के लिए आपके संदेश और आपके हाव भाव में अनुकूलता होनी चाहिए। अन्यथा, आप सीधे सीधे झूठे जैसे ही दिखाई देंगे।
  5. यह ठीक है कि किसी के पीछे पड़ कर, उसकी जान मत ले लीजिये, मगर इससे इतने हताश भी मत हो जाइए कि अगले व्यक्ति से कुछ कहें ही नहीं। आप हर किसी को समझा नहीं सकते हैं, विशेषकर तब जब तक कि आप पूरी तरह से सीख न जाएँ। अंततोगत्वा, लगे रहना काम आयेगा।
    • सबसे बढ़िया समझाने वाला वह होता है जो इंकार सुन लेने के बाद भी, यह पूछने को तैयार होता है कि वे चाहते क्या हैं। विश्व का कोई भी नेता, कुछ भी नहीं कर पाता, यदि पहली अस्वीकृति पर उसने प्रयास छोड़ दिया होता। अब्राहम लिंकन, अमेरिका के सबसे सम्मानीय राष्ट्रपतियों में से एक, ने राष्ट्रपति बनने से पूर्व अपनी माता, तीन पुत्रों, बहन, तथा गर्लफ्रेंड गँवाए, व्यापार में असफल हुये और उन्होंने आठ अलग अलग चुनावों में पराजय का सामना किया। [६]
विधि 3
विधि 3 का 5:

प्रोत्साहन

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  1. आपको किसी से कुछ चाहिए, हमें यह तो समझ आ गया है। अब, आप उनको क्या दे सकते हैं? आपको पता है कि उन्हें चाहिए क्या? पहला जवाब: पैसा।
    • मान लेते हैं कि आप कोई ब्लॉग या अखबार चला रहे हैं और आपको साक्षात्कार के लिए कोई लेखक चाहिए। यह कहने के स्थान पर कि, “हे, मुझे आपका काम पसंद है!”, क्या अधिक प्रभावशाली होगा? यह एक उदाहरण है: “प्रिय जॉन, मुझे पता चला है कि कुछ ही हफ्तों में तुम्हारी एक पुस्तक प्रकाशित होने वाली है, और मुझे यकीन है कि मेरे ब्लॉग के पाठक उसको हाथों हाथ लेंगे। क्या आप की लगभग 20 मिनट के एक साक्षात्कार में दिलचस्पी होगी, और मैं उसे अपने सभी पाठकों के लिए प्रस्तुत करूंगा? और उसके अंत में हम आपकी पुस्तक का प्रचार भी कर सकते हैं।“ [९] अब जॉन को पता है कि यदि वह यह साक्षात्कार करता है तो वह अधिक पाठकों तक पहुँच सकता है, अपने कार्य को अधिक लोगों को बेच सकता है, अधिक कमाई कर सकता है।
  2. ठीक है कि सब लोग पैसे के पीछे नहीं भागते हैं। यदि यह विकल्प नहीं उपलब्ध है, तब सामाजिक राह पर चलिये। अधिकांश लोग अपनी समग्र छवि के संबंध में चिंतित होते हैं। यदि आप उनके किसी मित्र को जानते हैं, तब तो और भी अच्छा है।
    • यहाँ पर फिर वही विषय है, बस सामाजिक प्रोत्साहन का प्रयोग किया गया है: “प्रिय जॉन, मैंने हाल ही में आपके शोध का वह हिस्सा पढ़ा जो आपके द्वारा प्रकाशित किया गया है, और मैं अपने को यह सोचने से रोक न सका कि, “इसके बारे में सब लोग क्यों नहीं जानते हैं?” मैं सोच रहा था कि, क्या आप 20 मिनट का एक छोटा सा साक्षात्कार करना चाहेंगे, जहां हम आपके शोध के बारे में बातें कर सकें? अतीत में मैंने मैक्स, जिनके साथ, मुझे मालूम है कि आप काम कर चुके हैं, के शोध के संबंध में लिखा है, और मुझे विश्वास है कि आपका शोध भी मेरे ब्लॉग पर खूब हिट होगा।“ [९] अब जॉन को पता चल जाता है कि मैक्स भी इस बीच में है (लोकाचार का संकेत) और यह व्यक्ति अपने कार्य के प्रति भावुक है। सामाजिक तौर से जॉन के पास, नहीं करने के कोई कारण नहीं हैं और हाँ करने के अनेक।
  3. वैसे तो यह सबसे कमज़ोर विधि है, परंतु कुछ लोगों के लिए यह बहुत प्रभावी हो सकती है। यदि आपको लगता है कि किसी को धन या सामाजिक छवि कि चिंता नहीं है, तब यह प्रयास भी किया जा सकता है।
    • ”प्रिय जॉन, मैंने हाल ही में आपके शोध का वह हिस्सा पढ़ा जो आपके द्वारा प्रकाशित किया गया है, और मैं अपने को यह सोचने से रोक न सका कि, “इसके बारे में सब लोग क्यों नहीं जानते हैं?” वास्तव में यह भी एक कारण है जिसके लिए मैंने अपना सोशल ट्रिगर्स नामक पॉडकास्ट चालू किया है। मेरा मुख्य उद्देश्य अकादमिक पेपर्स के परिज्ञान को सामान्यजन तक पहुंचाना है। मैं सोच रहा था कि, क्या आप 20 मिनट का एक छोटा सा साक्षात्कार करना चाहेंगे? हम आपके शोध की विशिष्टतायेँ अपने श्रोताओं तक पहुंचा सकते हैं और आशा करते हैं कि विश्व कुछ अधिक चतुर बनाने का प्रयास कर सकते हैं।“ [९] अंतिम वाक्य धन और अहम के स्थान पर सीधे नैतिकता की राह पर है।
विधि 4
विधि 4 का 5:

नीतियाँ

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  1. क्या आपका कभी कोई ऐसा मित्र रहा है जो यह कहे कि, “पहला राउंड मेरी ओर से!” और आपके दिल में तुरंत विचार आता है कि “तब अगला मेरा होगा!” यह इस कारण है क्योंकि हम आदान प्रदान के लिए अनुकूलित हैं; और यही ठीक भी है। इसलिए जब आप किसी के लिए कुछ “भला काम” करते हैं, तब उसको भविष्य के लिए निवेश समझिए। लोग वापस देना ही “चाहेंगे”। [१]
    • अगर आपको शक है, तो जान लीजिये कि लोग इस तकनीक का प्रयोग आपके चारों ओर, हर समय, कर रहे हैं। सारे समय। वे परेशान करने वाली महिलाएं जो मॉल के बूथों में लोशन देती रहती हैं? प्रतिदान। रात्रि भोज के अंत में बिल के साथ दी जाने वाली मिंट? [१०] प्रतिदान। बार में शॉट ग्लास में दी गई मुफ़्त टेकीला? प्रतिदान। यह सभी जगह है। समस्त विश्व में, व्यापार में यह चलता ही है।
  2. यह मानव स्वभाव है कि वह संतोषी और “सबके जैसा” होना चाहता है। जब आप लोगों को यह बताते हैं कि दूसरे लोग भी वैसा ही करते हैं (इस आशा में कि वे लोग या व्यक्ति जिसका वे सम्मान करते हों), तो वे आश्वस्त हो जाते हैं कि आपका सुझाव ठीक है और उनके मन से वह बोझ भी उठ जाता है कि उन्हें जांच करनी चाहिए कि वह अच्छा है भी या नहीं। “भेड़ चाल मानसिकता” होने से मानसिक आलस्य आ ही जाता है। यह हमको पीछे छूटने से भी बचाती है।
    • होटलों के स्नानागार में रखे हुये सूचना पत्रक इस विधि की सफलता का एक उदाहरण हैं। एक अध्ययन के अनुसार, जब सूचना पत्रकों में लिखा गया कि, “इस होटल में रुकने वाले 75% ग्राहक तौलियों को दोबारा इस्तेमाल करते हैं” तब तौलियों को दोबारा इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की संख्या 33% बढ़ गई। [१०]
      • यह और भी तीव्र हो जाता है। यदि आपने मनोविज्ञान पढ़ा हो, तो आपने इस तथ्य के विषय में सुना होगा। 50 के दशक में सोलोमन आश्च ने सहमति संबंधी बहुत सारे अध्ययन किए। आश्च ने पात्र (subject) को एक ऐसे संधिबद्ध समूह में रख दिया जहां पर उन सबको एक गलत उत्तर बताने के लिए कहा गया था (यहाँ पर एक स्पष्ट रूप से छोटी दिखने वाली रेखा को स्पष्ट रूप से लंबी दिखने वाली रेखा से बड़ा बताना था, जो कि एक तीन साल का बच्चा भी कर सकता है)। चौंकाने वाला नतीजा यह आया कि, 75% सहभागियों ने कहा कि छोटी रेखा लंबी है और उन्हों ने अपने विश्वास से पूरी तरह समझौता कर लिया, केवल इसलिए कि वे सामान्य में मिल जाएँ। क्यों, हैं न पागलपन?
  3. यदि आप माता या पिता हैं, तो आपने इसको कार्य रूप में देखा ही होगा। बच्चा कहता है, “मम्मी, मम्मी! चलो बीच पर चलें! माँ, मना कर देती है, और अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती है, मगर उसके पास इरादे बदलने का विकल्प तो है नहीं। मगर जब, बच्चा कहता है कि, “ ठीक है, तब चलो पूल पर चलें?” माँ चाहती है कहना “हाँ” और “कहती” भी है।
    • तब आप वास्तव में जो चाहते हैं उसको “दूसरे” नंबर पर मांगिए। लोग जब किसी निवेदन को ठुकराते हैं, चाहे वह जो भी हो, तब उन्हें अपराधबोध होता ही है। यदि दूसरे निवेदन (यानि कि वास्तविक निवेदन) में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे कि मना किया जाये, तब वे यह अवसर हाथ से जाने नहीं देंगे। दूसरा निवेदन उन्हें अपराध बोध से मुक्ति दिलाता है, और यह एक तरह से भागने का एक चोर रास्ता भी होता है। वे चिंतामुक्त हो जाएँगे, अपने को बेहतर समझने लगेंगे और आपको वह मिल जाएगा, जो आप चाहते हैं। [१] यदि आप 10 रुपये का दान चाहते हैं, तो 25 मांगिए। यदि आप चाहते हैं कि कोई परियोजना एक माह में पूरी हो जाये, तो पहले कहिए कि इसे दो हफ्तों में पूरा होना है।
  4. “’अध्ययन से पता चला है कि “हम” का आश्वासन लोगों को समझाने बुझाने में, अन्य कम सकारात्मक पद्धतियों, जैसे कि धमकी पद्धति (“यदि आप यह नहीं करेंगे, तब हम करेंगे”), या तार्किक पद्धति (“आपको यह इन कारणों से करना चाहिए”), से अधिक उत्पादक हो सकता है। “हम” का प्रयोग भाईचारे की, समानता और तालमेल की भावना, का संकेत करता है।“’
    • याद है, हमने पहले कहा था कि संबंध बनाना महत्वपूर्ण है ताकि श्रोता आपके समकक्ष महसूस कर सके और आपको पसंद करे? और फिर हमने कहा था कि अपने हाव भाव उसके जैसे ही बनाइये ताकि श्रोता आपको अपने जैसा ही समझे और आपको पसंद करे? ठीक है, तो अब आपको “हम” का प्रयोग करना है ताकि श्रोता आपको अपने जैसा ही समझे और आपको पसंद करे। मगर आपको लगा नहीं था कि यह होगा।
  5. आप जानते हैं न, कि कभी कभी टीम तब तक काम करना शुरू ही नहीं कर पाती है जब तक कि कोई एक “काम की शुरुआत नहीं कर देता है”? तब, आपको वही व्यक्ति होना है। यदि आप पहली बात कह देंगे, तब श्रोता वाक्य पूरा कर ही देगा।
    • लोगों द्वारा पूरा काम करने स्थान पर अधूरे काम को पूरा करने की संभावना अधिक होती है। अगली बार जब कपड़े धोने हों, तो कपड़े वाशर में डाल दीजिये और तब अपने हमसफर से उनको केवल निकाल लेने को कहिए। [१] यह इतना आसान काम है कि वे मना करने का कोई कारण नहीं पाएँगी।
  6. लोग स्वयं के अनुरूप ही रहना चाहते हैं। यदि आप उनसे “हाँ” कहलवा लेते हैं (किसी न किसी तरीके से), तो वे उस पर टिके ही रहना चाहेंगे। यदि उन्हों ने स्वीकार किया है कि वे किसी समस्या को सुलझाना चाहते हैं या कोई एक रास्ता है, और आप कोई समाधान सुझा देते हैं, तब वे उसको मान लेने को बाध्य हो जाते हैं। जैसे भी हो, उनसे मनवा ही लीजिये।
    • जिंग क्सु और रोबर्ट व्यर द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन में सहभागियों ने यह प्रदर्शित किया कि “किसी ऐसी चीज़” को देखने के बाद, जिससे वे सहमत हों, उनकी ग्रहणशीलता बढ़ जाती है। ऐसे ही एक सत्र में सहभागियों को जॉन म्क्कैन या बराक ओबामा का भाषण सुनवाया गया और तब उन्हें टोयोटा का विज्ञापन दिखाया गया। जॉन म्क्कैन को देखने के उपरांत रिपब्लिकन, विज्ञापन से अधिक प्रभावित हुये, और डेमोक्रेट्स? आपने सही समझा ... बराक ओबामा को देख कर टोयोटा की तरफदारी कर रहे थे। तो यदि आप कुछ बेचने का प्रयास कर रहे हों तो, पहले अपने ग्राहकों का समर्थन प्राप्त करिए – चाहे जो आप कह रहे हों उसका आपके द्वारा बेची जाने वाली चीज़ से कुछ भी लेना देना न हो। [११]
  7. बावजूद इसके कि कभी कभी संदेह होता हो, सत्य यही है कि लोगों के पास स्वतंत्र विचार होते हैं, और सब के सब मूर्ख नहीं होते हैं। यदि आप किसी तर्क के सब पक्षों की चर्चा नहीं करेंगे, तो लोगों की आपसे सहमत होने की संभावना कम ही है। [१२] यदि आपकी कमज़ोरियाँ आपके सम्मुख हों, तो स्वयं ही उनका सामना करिए – विशेषकर इसके पहले कि कोई और वैसा करे।
    • पिछले वर्षों में एकपक्षीय और द्विपक्षीय तर्कों की विभिन्न संदर्भों में, प्रभावोत्पादकता और प्रेरण क्षमता के संबंध में अनेक अध्ययन हुये हैं। इल्लीनोई विश्वविद्यालय के डेनियल ओ कीफ़ी ने 107 विभिन्न अध्ययनों का अवलोकन किया (50 वर्ष, 20,111 सहभागी) और एक प्रकार का मेटा विश्लेषण किया है। अनेक भिन्न भिन्न प्रकार के संदेशों और सहभागियों के साथ अध्ययन करके वे इस निर्णय पर पहुंचे कि सभी प्रकार के द्विपक्षीय तर्क, एक पक्षीय तर्कों से अधिक प्रभावोत्पादक होते हैं। [१२]
  8. कभी पावलोव के कुत्तों का नाम सुना है? नहीं, यह सेंट लुई के रॉक बैंड का नाम नहीं है। [१३] यह परीक्षण शास्त्रीय अनुकूलन से संबन्धित है। बस इतनी सी बात है। आप कुछ करते हैं जिसके कारण अवचेतन रूप से कहीं और अनुक्रिया होती है – और उनको इसका पता भी नहीं चलता है। मगर जान लीजिये कि इसमें समय लगता है और बहुत परिश्रम भी।
    • यदि हर बार अपने मित्र के पेप्सी कहने पर आपके मुख से कराह निकलती है तो यह शास्त्रीय अनुकूलन का एक उदाहरण है। कालांतर में, जब आप कराहते हैं, आपका मित्र पेप्सी के विषय में सोचने लगता है (शायद आप चाहते हैं कि वे कोक अधिक पिएँ?)। इससे अधिक उपयोगी उदाहरण होगा आपके उच्चाधिकारी द्वारा सबकी प्रशंसा के लिए एक ही वाक्यांश का प्रयोग करना। जब आप उसे किसी और को भी बधाई देते हुये सुनते हैं, तो आपको वही समय याद आता है जब उसने वही सब आपसे कहा था – और आप गर्व से फूल कर, कुछ और अधिक परिश्रम से अपना काम करने लगते हैं।
  9. यदि आप के पास सत्ता है, तब तो यह तरीका और भी अच्छा है – और बिलकुल ज़रूरी भी। यह जताइये कि आपको अपने अधीनस्थों (कर्मचारियों, बच्चों आदि) के सकारात्मक गुणों पर पूरा भरोसा है, और उनके द्वारा आपकी बातें मानी जाने की संभावना अधिक हो जाती है।
    • यदि आप अपने बच्चे को बताते हैं कि वह बहुत चतुर है और आपको विश्वास है कि वह अच्छे अंक प्राप्त करेगा, तो वह आपको निराश नहीं करना चाहेगा (यदि उससे संभव होगा तो)। उसको यह बताने से, कि आपको उस पर विश्वास है, उसके लिए स्वयं पर विश्वास करना आसान हो जाएगा।
    • यदि आप किसी कंपनी में बॉस हैं, तो अपने कर्मचारियों में सकारात्मकता के स्रोत बनिए। यदि आप किसी को कोई कठिन परियोजना सौंपते हैं, तो उसको पता लगने दीजिये कि आपने वह कार्य उसे इसलिए सौंपा है, क्योंकि आपको विश्वास है कि वह उसे कर पाएगी। यह साबित इससे होता है, कि उसने ये, ये और ये गुण प्रदर्शित किए हैं। इस बढ़ावे से उसका काम और भी बेहतर हो जाएगा।
  10. यदि आप किसी को कुछ दे सकते हैं, तो बहुत अच्छा है। मगर आप किसी से कुछ छिनने को बचा सकते हैं, तब तो आप छा गए। आप उसके जीवन में एक तनाव उत्पन्न होने से बचा लेते हैं – तब वे मना क्यों करेंगे?
    • एक अध्ययन किया गया जिसमें प्रबन्धकों के एक समूह को किसी प्रस्ताव के संबंध में, लाभ और हानि से संबन्धित कुछ निर्णय लेना था। अंतर बहुत बड़ा था: दो तिहाई प्रबन्धकों ने प्रस्ताव की स्वीकृति में तब हामी भरी, जब उन्हें यह बताया गया कि अस्वीकार किए जाने की स्थिति में पाँच लाख का घाटा होगा और स्वीकृति से उतना ही लाभ। समझाने बुझाने में दाम की चर्चा और लाभ के रत्ती भर ज़िक्र से, अधिक और किसकी आवश्यकता होती है? शायद। [१०]
    • यह तरकीब घर में भी खूब काम करती है। पति को शाम को बाहर घूमने जाने के लिए टेलीविज़न के सामने से उठाना कठिन होता है? आसान तरीका है। शिकायत करने, या चिड़चिड़ा कर “परिवार के साथ समय बिताने” की महत्ता पर भाषण देने के स्थान पर, उनको यह बताइये कि बच्चों के वापस आने के पहले की यह अंतिम शाम है। जब उनको यह पता चलेगा कि वे कुछ खो बैठेंगे, तब बात जल्दी समझ में आ जाएगी। [१]
      • मगर इसमें संदेह की गुंजाइश है। इसके विपरीत भी एक शोध है जहां यह सुझाव दिया गया है कि लोग नकारात्मक चीजों की याद दिलाया जाना, विशेषकर व्यक्तिगत मामलों में, पसंद नहीं करते हैं। जब बात सच के बहुत निकट होती है, तब तो नकारात्मक तात्पर्यों से वे घबरा ही जाते हैं। जैसे कि, “त्वचा के कैंसर से बचिए” संदेश सुनने के स्थान पर वे “आकर्षक त्वचा प्राप्त करें” का संदेश सुनना चाहेंगे। [१४] इसलिए कुछ भी कहने से पहले इस बात का ध्यान रखिए।
विधि 5
विधि 5 का 5:

विक्रेता की तरह

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  1. विनम्र, प्रसन्नचित्त और आकर्षक व्यक्तित्व युक्त बने रहिए। अच्छा मनोभाव आपकी अपेक्षा से कहीं अधिक लाभकारी हो सकता है। जो आप कहना चाहते हैं, लोग उसको सुनना चाहेंगे – आखिरकार, द्वार से प्रवेश पाना ही तो सबसे कठिन होता है।
    • आप यह तो नहीं चाहेंगे कि वे समझें कि आप अपना दृष्टिकोण उन पर थोप रहे हैं। शालीन और विश्वस्त बने रहिए – संभावना यह है कि, वे आपके एक एक शब्द पर भरोसा कर लेंगे।
  2. अपने विचार के सभी लाभकारी पहलुओं का प्रदर्शन करिए। अरे, अपने लिए नहीं! उनको बताइये कि उससे “उनको” लाभ कैसे होगा। यह सदा ही उनका ध्यान आकर्षित करता है।
    • ईमानदार रहिए: यदि आपके पास कोई ऐसा उत्पाद या विचार है जो कि उनके लिए उपयोगी नहीं है, तब तो उनको पता चल ही जाएगा। बात फूहड़ हो जाएगी और तब वे अगर कुछ सच भी होगा तो उस पर यकीन नहीं करेंगे। उनको आश्वस्त करने के लिए कि आप विवेकपूर्ण तथा तर्कसंगत हैं, और उनका हित ही आपके हृदय में सर्वोपरि है, स्थिति के दोनों पक्षों को स्पष्ट करिए।
  3. जो आपने सोची भी नहीं हैं, उनके लिए भी तैयार रहिए! यदि आपने अपने कथन का अभ्यास किया हुआ है, और धैर्यपूर्वक उसका मूल्यांकन भी किया हुआ है, तब आपके लिए तो यह कुछ समस्या है ही नहीं।
    • अगर लोगों को लगेगा कि इस मामले में आपको अधिक लाभ हो रहा है तब वे नहीं करने का कोई न कोई बहाना ढूंढ निकालेंगे। लाभ श्रोता को होना चाहिए – आपको नहीं।
  4. सौदेबाजी समझाने बुझाने का एक मुख्य भाग है। केवल इसलिए कि आपको सौदेबाजी करनी पड़ी है, इसका यह अर्थ नहीं है कि अंत में विजय आपकी नहीं होगी। वास्तव में, ढेरों शोध ने यह दिखाया है कि सीधा सादी “हाँ” में भी बहुत प्रबोधन क्षमता होती है।
    • वैसे तो “हाँ” प्रबोधन के लिए अजीब शब्द ही लगता है, मगर उसमें क्षमता इसलिए होती है क्योंकि उससे आप स्वीकार्य और मित्रवत प्रतीत होने लगते हैं और दूसरा व्यक्ति स्वयं को निवेदन का एक भाग समझने लगता है। जो आप चाह रहे हैं, उसको ऐसे प्रस्तुत करना कि वह उपकार के स्थान पर, समझौता लगे, दूसरे व्यक्ति को आपकी “मदद करने” की प्रेरणा दे सकता है। [१५]
  5. यदि आप अपने बॉस से या सत्ता प्राप्त किसी भी व्यक्ति से बातें कर रहे हों तो शायद आप सीधी बातें करने से बचना चाहेंगे। और यही बात तब होगी जब आपकी परियोजना कुछ अधिक ही महत्वाकांक्षी हो। नेताओं को तो आप केवल विचारों की दिशा देना चाहेंगे, ताकि उनको लगे कि वे विचार उनके अपने ही हैं। संतुष्ट होने के लिए उनकी हुकूमत की भावना को बनाए रखना होता है। तो वही करिए और अपने अच्छे विचारों का चारा, उन्हें शांति से देते रहिए।
    • अपने बॉस के आत्मविश्वास को कम करने से शुरुआत करिए। किसी ऐसी चीज़ के बारे में बातें करिए, जिसके बारे में वह अधिक नहीं जानता/ जानती हो – यदि संभव हो, तो कार्यालय के बाहर, तटस्थ क्षेत्र में ये बातें करिए। अपनी बात कहने के उपरांत उसे याद दिलाइये कि बॉस कौन है (वही है!) जिससे कि वह एक बार फिर से सशक्त महसूस करने लगे – तो अब वह आपके निवेदन के संबंध में कुछ करने में सक्षम है। [१२]
  6. निस्पृह भाव रखिए और संघर्ष की स्थिति में शांत रहिए: भावनाओं में बंध कर कभी भी कोई भी समझाने बुझाने में अधिक प्रभावकारी नहीं हुआ है। भावनापूर्ण अथवा संघर्ष की स्थिति में, शांत रहना, निस्पृहता, और भावनाओं पर नियंत्रण रखना सदैव ही आपको सर्वाधिक, परिस्थितिजन्य लाभ प्रदान करता है। यदि किसी को अपनी दृढ़ता कम होती हुई लगती है तो वे उसके लिए आपके पास आएंगे। आखिरकार, आपको अपनी भावनाओं पर नियंत्रण प्राप्त है। उन पलों में वे नेतृत्व के लिए आपका विश्वास करेंगे।
    • क्रोध का सोद्देश्य प्रयोग करें। संघर्ष अधिकांश लोगों को बेचैन कर देता है। यदि आप “वहाँ जाने” को तैयार हैं, यानि कि स्थिति को तनावपूर्ण करने के लिए, तब संभावना है कि, अन्य व्यक्ति पीछे हट जाएँगे। मगर यह अक्सर ही मत करिए, और गुस्से में या जब आप अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो चुके हों, तब तो बिलकुल ही मत करिए। यह तकनीक, कुशलता से और सोद्देश्य ही प्रयुक्त की जानी चाहिए। [६]
  7. यह तो मानना ही होगा: सत्य, किसी भी अन्य गुण की अपेक्षा, अधिक अकाट्य, मादक एवं सम्मोहक होता है। कमरे में उपस्थित वह व्यक्ति जो विद्युतगति से मुसकुराते हुये विश्वास के साथ बोलता ही जा रहा है, सभी को अपने दल में शामिल करने के लिए समझा पा रहा है। यदि आपको, जो आप कर रहे हैं उस पर विश्वास है, तो अन्य व्यक्ति भी उसको देख पाएंगे और उपयुक्त प्रतिक्रिया देंगे। वे उतने ही आत्मविश्वासी होना चाहेंगे, जितने आप हैं। [१०]
    • यदि आप नहीं हैं, तब यह वास्तव में आपके हित में होगा कि आप उसका ढोंग करें। यदि आप किसी पाँच सितारा होटल में जाते हैं, तो किसी को यह जानने की आवश्यकता नहीं है कि आपने किराये का सूट पहना हुआ है। जब तक कि आप जींस और टी शर्ट में नहीं हैं, कोई कुछ प्रश्न नहीं पूछेगा। जब आप अपनी बात कहेंगे, तब इसी दिशा में सोचिए।


सलाह

  • अपने शब्दों का ध्यान रखें। आप जो भी कहते हैं उसे आशावादी, प्रेरणा दायक और खुशनुमा होना चाहिए; निराशावादिता और आलोचना तो उबाऊ होती है। जैसे कि, उस राजनीतिज्ञ के, जो “आशा” के संबंध में भाषण देता है, चुनाव में विजयी होने की संभावना अधिक होती है; कटुता की बातें कुछ काम की नहीं होती हैं।
  • कभी कभी अपने श्रोताओं को यह जान लेने देना, कि कोई चीज़ आपके लिए कितनी महत्वपूर्ण है, लाभकर हो सकता है और कभी कभी नहीं भी होता है; अतः विवेक-बुद्धि का प्रयोग करें।
  • जब भी आप किसी विवाद को शुरू करें, उस व्यक्ति के साथ सहमति जताइये और उसके सभी अच्छे मुद्दों का ज़िक्र करिए। जैसे कि, यदि आप किसी फर्नीचर की दुकान को अपने ट्रक बेचना चाहते हैं और प्रबन्धक आपके मुंह पर कह देता है कि, “नहीं, मैं आपके ट्रक नहीं खरीदने जा रहा हूँ! मुझे फलानी ब्रांड, इन इन कारणों से पसंद हैं।“ आपको ऐसा कुछ कहते हुये सहमति जतानी चाहिए, “ठीक ही है, उस ब्रांड के ट्रक अच्छे हैं, वास्तव में मैंने सुना है कि पिछले 30 वर्षों से वे प्रख्यात रहे हैं।“ मेरा विश्वास कीजिये, इसके बाद वह उतना चुनौतीपूर्ण नहीं रह जाएगा! यहाँ से आप अपने ट्रकों के संबंध में मुद्दे सामने ला सकते हैं, “..... परंतु क्या आपको पता है कि यदि जमा देने वाली शीत के कारण आपके ट्रक स्टार्ट नहीं होते हैं तो, कंपनी आपकी मदद नहीं करेगी? और आपको स्वयं ही टो ट्रक को बुलाना होगा और ट्रक की मरम्मत भी खुद ही करवानी पड़ेगी?“ यह, उसे आपकी सलाह पर विचार करने को मजबूर कर देगा।
  • किसी से भी तब समझौते की बातचीत मत करिए जब आप थके हों, जल्दी में हों, व्यग्र हों अथवा “मुसीबत से निकले ही हों”; संभवतः आप कुछ ऐसे अनुदान कर बैठेंगे जिनके लिये आपको बाद में पछताना पड़ेगा।
  • आपका, मित्रवत, मिलनसार और मज़ाकिया होना आपके लिए सहायक होगा; यदि आपको लोगों के साथ मज़ा आता है, तब आपका उन पर प्रभाव भी अधिक होगा।

चेतावनी

  • एकदम से मत छोड़ बैठिए – इससे उन्हें लगेगा कि वे जीत गए हैं और भविष्य में उन्हें समझा पाना कठिन हो जाएगा।
  • बहुत उपदेश मत दीजिये अन्यथा वे अपने सारे विकल्प इस प्रकार से बंद कर लेंगे कि आपका प्रभाव उन पर से पूर्णतया समाप्त हो जाएगा।
  • कभी भी लक्षित श्रोताओं की आलोचना या उनका विरोध मत करिए। कभी कभी यह कठिन प्रतीत हो सकता है, मगर इससे आप कभी भी अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकते हैं। वास्तव में, यदि आप थोड़े भी चिड़चिड़े अथवा परेशान हैं तो बस वे उसी पर टूट पड़ेंगे और तुरंत रक्षात्मक कार्यवाही करने में जुट जाएँगे, अतः बेहतर यही होगा कि थोड़ी प्रतीक्षा की जाये। काफी प्रतीक्षा।
  • नैतिक अथवा उपयोगिता के परिप्रेक्ष्य में, असत्य और बढ़ा चढ़ा कर बातें करना कभी भी उत्तम विकल्प नहीं होता है। आपके श्रोता मूर्ख नहीं हैं, और यदि आपको लगता है कि पकड़े गए बिना, आप उन्हें धोखा दे सकते हैं, तब तो जो भी आपको मिलता है, आप उसी के पात्र हैं।

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