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पीलिया, जॉन्डिस (Jaundice) या हाइपरबिलीरुबिनमिया (hyperbilirubinemia), नवजात शिशुओं में एक सामान्य स्थिति है जो जीवन के दूसरे और चौथे दिन के बीच सामने आ सकती है। ये रक्त और पित्त में मौजूद ब्लड सेल्स के टूटने के अपशिष्ट उत्पाद बिलीरुबिन (bilirubin) के उच्च स्तर के कारण होता है। पूरी तरह से बना हुआ लिवर इसे छानकर खत्म कर सकता है, लेकिन नवजात शिशुओं के अपरिपक्व अंग की वजह से पीलिया हो जाता है। 2018 में हुई एक स्टडी के अनुसार बच्चे के जन्म के 72 घंटे के अंदर बिलीरुबिन के लेवल को चेक किया जाना चाहिए, खासतौर पर डार्क स्किन टोन वाले बच्चों के लिए, जिनमें केवल कुछ ही दिखाई देने वाले संकेत समझ आ सकते हैं। [१] हालांकि पीलिया को रोकने का कोई सही तरीका नहीं है, इसके जोखिम कारकों (risk factors) को जानना आपको इससे बचने के लिए जरूरी कदम उठाना और नवजात शिशुओं के जॉन्डिस के लिए तैयार करना सीखने में मदद कर सकता है। (How to Prevent Jaundice in Newborns in Hindi, Bacchon ko Jaundice se Kaise Bachaen)

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जॉन्डिस के रिस्क फैक्टर को आंकलन करना और उन्हें कम करना (Measuring and Reducing Risk Factors of Jaundice)

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  1. कुछ रक्त असंगति अधिक रक्त कोशिकाओं के टूटने का कारण बन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक बिलीरुबिन बन सकता है। [२]
    • जिन माताओं का रक्त प्रकार Rh नेगेटिव ब्लड या O+ ब्लड टाइप है, उन्हें बच्चे के लिए अतिरिक्त रक्त परीक्षण कराने पर विचार करना चाहिए क्योंकि Rh असंगतता और ABO असंगति उच्चतम जोखिम वाले कारकों में से हैं।
    • ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज (glucose-6-phosphate dehydrogenase) की कमी जैसे आनुवंशिक एंजाइम की कमी से भी पीलिया का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि यह स्थिति कुछ रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप रक्तप्रवाह में अधिक बिलीरुबिन बनने लगता है।
    • प्रसवपूर्व पेरेंटल रक्त परीक्षण के अलावा, डॉक्टर अब बच्चे के हॉस्पिटल से जाने के पहले तक यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से नवजात शिशुओं का परीक्षण करते हैं कि बच्चे में पीलिया के कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं।
  2. 38 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में पीलिया होने की संभावना अधिक होती है। [३] एक समय से पहले हुए बच्चे का लिवर, पूरा समय लेकर जन्मे बच्चे की तुलना में कम विकसित होता है, जो नवजात शिशु के लिवर के लिए बिलीरुबिन को साफ करना अधिक कठिन बना देता है। [४]
    • समय से पहले जन्म के लिए कुछ जोखिम कारक, जैसे कि उम्र या कई जन्म, को बदला नहीं जा सकता है। हालांकि, कई पर्यावरणीय जोखिम हैं जिन्हें बदला जा सकता है।
    • अपना प्रीनेटल चेकअप कभी न छोड़ें। प्रारंभिक और लगातार प्रसव पूर्व जांच यह सुनिश्चित करेगी कि आप और आपका शिशु गर्भावस्था के दौरान यथासंभव स्वस्थ हैं, जो ऐसी किसी भी परेशानी को पहले ही पकड़ने में मदद कर सकता है, जिसकी वजह से समय से पूर्व डिलिवरी का खतरा हो सकता है।
    • केमिकल प्रदूषण से बचें। तंबाकू, शराब, ड्रग्स और कुछ नशीले पदार्थ आपके जल्दी जन्म देने की संभावना को बढ़ा सकते हैं। अगर आपको इन्हें छोड़ने में मदद की ज़रूरत है, तो अपने डॉक्टर से बात करें। पर्यावरण प्रदूषक भी जोखिम को बढ़ा सकते हैं। [५]
    • जितना हो सके शांत रहने की कोशिश करें। तनाव एक प्रमुख कारक है जो समय से पहले जन्म का कारण बनता है। सामाजिक समर्थन की कमी, तनावपूर्ण या भावनात्मक काम, और घरेलू हिंसा, चाहे शारीरिक हो या भावनात्मक, सभी तनाव में योगदान कर सकते हैं और समय से पहले जन्म की संभावना को बढ़ा सकते हैं। [६]
    • कुछ संक्रमणों के जोखिम की निगरानी करें या उन्हें कम करने की कोशिश करें। हर्पीस (herpes), सिफिलिस (syphilis), CMV, और टोक्सोप्लाज़मोसिज़ (toxoplasmosis) जैसे संक्रमण समय से पहले जन्म के साथ-साथ पीलिया का कारण बन सकते हैं।
  3. ध्यान रखें कि स्तनपान करने वाले बच्चे को पीलिया होने की संभावना अधिक होती है: हालांकि, इस स्थिति का इलाज करना आसान है और थोड़े समय के लिए रहता है।
    • प्रसव के कुछ दिनों बाद तक मां का दूध आना शुरू नहीं होता है। जीवन के शुरुआती कुछ दिनों में, बच्चा कोलोस्ट्रम (colostrum) नाम के दूध के पहले के पदार्थ को चूसता है, जो बहुत पतला पदार्थ होता है, लेकिन पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
    • क्योंकि ये जीवन के शुरुआती कुछ दिनों में एक फॉर्मूला-फेड बेबी के जितना ज्यादा नहीं पीते हैं, इसलिए इनका पाचन तंत्र बहुत तेजी से खाली हो जाता है, जिसकी वजह से बिलीरुबिन सिस्टम में जमा हो जाता है। ये आमतौर पर चिंता का विषय नहीं होता है और एक्सपर्ट्स अभी भी स्तनपान कराने की सलाह देते हैं।
    • क्योंकि स्तनपान करने वाले बच्चों को अक्सर हल्का पीलिया हो जाता है, इसलिए डॉक्टरों के लिए जीवन के पहले कुछ दिनों के लिए फार्मूला फीडिंग की सिफारिश करना असामान्य नहीं है, खासकर अगर बच्चे को पीलिया होने का उच्च जोखिम है, जब तक कि नियमित रूप से स्तन के दूध का उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
विधि 2
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नवजात बच्चों में पीलिया का इलाज करना (Treating Jaundice in Newborns, Piliya ka ilaaz karen)

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  1. अपने बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसे स्तनपान कराने से पीलिया होने के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है और यदि बच्चा पहले से ही संक्रमित है तो उसका इलाज भी शुरू कर सकता है।
    • बच्चे के जन्म के बाद पहले कुछ घंटों के भीतर स्तनपान शुरू करने वाली माताओं को देरी करने वाली माताओं की तुलना में अधिक सफलता प्राप्त होती है। जल्दी वजन बढ़ना आपके बच्चे के विकास में मदद कर सकता है, जिससे लिवर के लिए अपना काम करना आसान हो जाता है।
    • इसके अलावा, जन्म देने के बाद पहले दिनों में मां जो कोलोस्ट्रम पैदा करती है, वह बच्चे के पाचन तंत्र को मल को बाहर निकालने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे आंतों से अतिरिक्त बिलीरुबिन को बाहर निकालने में मदद मिलती है। दूसरे शब्दों में, जितनी जल्दी बच्चा शौच करना शुरू करता है, उतनी ही जल्दी पीलिया ठीक होना शुरू हो जाता है। [७]
    • यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान कराने का निर्णय लेती हैं, तो अपनी स्तनपान तकनीक में सुधार के लिए एक स्तनपान परामर्शदाता (lactation specialist) के साथ काम करें। ये परामर्शदाता नई माताओं को यह सीखने में मदद कर सकते हैं कि कैसे ठीक से स्तनपान कराया जाए ताकि उनके नवजात शिशुओं को पर्याप्त दूध मिल सके।
  2. दूध की नियमित आपूर्ति बच्चे के वजन और विकास को बढ़ा सकती है, जिसमें उसके लिवर का विकास भी शामिल है। यह स्तनपान और फॉर्मूला दूध पिलाने वाले दोनों बच्चों पर लागू होता है। आदर्श रूप से, नवजात शिशु को पहले कुछ दिनों तक दिन में कम से कम 8 से 12 बार दूध पिलाना चाहिए, खासकर अगर उसे पीलिया होने का खतरा हो। [८]
    • यदि आप स्तनपान करा रही हैं, तो जन्म के बाद पहले दिन (दिन में कम से कम 8 से 12 बार) दूध पिलाने तेजी से दूध उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और दूध की प्रचुर आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
  3. [९] पराबैंगनी प्रकाश (Ultraviolet light) बिलीरुबिन के साथ प्रतिक्रिया करता है, इसे एक ऐसे रूप में परिवर्तित करता है जिसे उत्सर्जित करने के लिए लिवर से गुजरने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे शरीर से अतिरिक्त बिलीरुबिन निकल जाता है और पीलिया का खतरा कम हो जाता है।
    • एक नग्न या डायपर वाले बच्चे को दिन में एक या दो बार एक बार में पांच मिनट से अधिक के लिए धूप में न रखें। इस समय से अधिक देर न करें क्योंकि बहुत अधिक समय तक सूर्य के संपर्क में रहने से बच्चे की त्वचा आसानी से जल सकती है और वास्तव में और जटिलताएँ हो सकती हैं। बच्चे को धूप में रखने के दौरान बच्चे को अपनी छाती पर रखकर और/या कमरे का तापमान बढ़ाकर सुनिश्चित करें कि बच्चे को ठंडा न होने दें।
    • वैकल्पिक रूप से, आप अपने बच्चे को पर्दे के साथ धूप वाली खिड़की के पास बिस्तर पर लिटा सकती हैं। पर्दे और खिड़कियां काफी परेशानियों की वजह को पैदा करने वाली बहुत अधिक पराबैंगनी प्रकाश को फ़िल्टर कर सकती हैं, इस प्रकार, बच्चे को जलने के जोखिम के बिना धूप मिल सकती है।
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पीलिया को समझें (Understanding Jaundice, Piliya ko Samjhen)

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  1. पीलिया आमतौर पर बच्चे के जीवन के दूसरे या तीसरे दिन विकसित होता है और आमतौर पर एक अनुमानित पैटर्न का पालन करता है।
    • एक स्वस्थ शरीर में, बिलीरुबिन एक सामान्य उपोत्पाद (byproduct) है जो रक्तप्रवाह में तब होता है जब लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं। बिलीरुबिन लिवर में प्रवाहित होता है, जहां यह पित्त नलिकाओं (bile duct) में और अंत में मल में उत्सर्जित होता है। पीलिया के साथ पैदा हुए नवजात शिशुओं में, लिवर अभी तक कुशलता से काम करना शुरू नहीं कर पाता है जिससे बिलीरुबिन पित्त नलिकाओं में ले जाने के बजाय यकृत और रक्त में बनता है। [१०]
    • अस्पताल में नवजात शिशुओं का नियमित परीक्षण किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि बच्चे को पीलिया तो नहीं है। यह बहुत आम है — सही समय पर जन्म लेने वाले लगभग 60% बच्चों में पीलिया हो जाएगा, और समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में यह दर और भी अधिक होती है। [११] एक नियमित प्रक्रिया में, नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन के स्तर के लिए बच्चे की एड़ी पर चुभाकर और थोड़ी मात्रा में रक्त निकालकर परीक्षण किया जाएगा।
    • 5 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dL) से नीचे बिलीरुबिन के स्तर वाले शिशुओं को सामान्य माना जाता है, जबकि 5 mg/dL से ऊपर के स्तर को उच्च स्तर माना जाता है।
    • कम से मध्यम पीलिया वाले अधिकांश शिशुओं को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, और पीलिया एक या दो सप्ताह के बाद ठीक हो जाएगा।
    • कभी-कभी, यदि बिलीरुबिन का स्तर बहुत अधिक होता है, बहुत तेज़ी से बढ़ता है, या दो सप्ताह के बाद नीचे नहीं जाता है, तो आपके डॉक्टर लाइट थेरेपी (एक हानिरहित पराबैंगनी चिकित्सा जिसका अधिकांश बच्चे आनंद लेते हैं) की सलाह दे सकते हैं।
    • दुर्लभ मामलों में, गंभीर पीलिया को कम करने के लिए बच्चे को ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) की आवश्यकता हो सकती है।
  2. अस्पताल में जन्म लेने वाले अधिकांश शिशुओं का बिलीरुबिन के स्तर का पता लगाने के लिए एक या अधिक बार परीक्षण किया जाएगा, लेकिन कुछ लक्षण पीलिया का संकेत दे सकते हैं:
    • त्वचा का और आँखों के सफेद भाग का रंग पीला हो जाना। यह पीलिया का सबसे आम लक्षण है। (Piliya ke Lakshan Kya Hain)
    • नींद आना और स्तनपान कराना मुश्किल। कभी-कभी, बिलीरुबिन का स्तर शिशुओं को नीरस बना देता है, जिससे उन्हें स्तन का दूध या फार्मूला देना मुश्किल हो जाता है। [१२] बच्चे को स्तनपान कराने के लिए जगाने के लिए उसके कपड़े उतारने की कोशिश करें।
  3. जानिए कब पीलिया एक परेशानी का इशारा देता है (Know when jaundice signals a problem): पीलिया बहुत आम है और अक्सर अपने आप ही ठीक हो जाता है। लेकिन दुर्लभ मामलों में, पीलिया जटिलताएं पैदा कर सकता है और इसके लिए उपचार की आवश्यकता होती है।
    • हालांकि पीलिया नवजात शिशुओं में आम है, रक्त में बिलीरुबिन के ऊंचे स्तर के मामलों में (चिकित्सकीय रूप से "गंभीर हाइपरबिलीरुबिनमिया" के रूप में जाना जाता है) जिनका इलाज नहीं किया जाता है, बिलीरुबिन मस्तिष्क तक पहुंच सकता है और गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
    • हालांकि दुर्लभ, ये जटिलताएं स्थायी मस्तिष्क क्षति (सेरेब्रल पाल्सी, सीखने की अक्षमता, या विकास संबंधी गड़बड़ी), दांतों के इनेमल का अनुचित विकास, या सुनने की हानि का कारण बन सकती हैं। [१३]
    • ध्यान देने वाले लक्षणों में आलस, एक ब्राइट पीला रंग और पीले पैर (खासतौर से सोल) शामिल हैं। साथ ही मसल टोन में गड़बड़ी, एक अजीब, तेज आवाज में रोना, बुखार या चिड़चिड़ापन हो सकता है।
    • यदि आपके बच्चे का बिलीरुबिन लेवल उसके जीवन के कुछ दिनों के बाद में बढ़ना जारी रहता है, तो आपके डॉक्टर शायद आपको बच्चे को इंफेंट फॉर्मूला (infant formula) के साथ में स्तनपान कराने की सलाह दे सकते हैं। अधिकांश मामलों में, जब तक कि बेबी का बिलीरुबिन लेवल 20 mg/dL या इससे अधिक नहीं हो जाता या फिर अगर बच्चे में पीलिया होने का कोई खतरा होता है, जैसे कि समय से पहले जन्म या ब्लड डिसऑर्डर या फिर बहुत ज्यादा वजन कम होना, तब तक सप्लिमेंट लेने की सलाह नहीं दी जाती है। बच्चे को फॉर्मूला के साथ फीड कराना बाद में एक सफल स्तनपान रिश्ता बनाना आपके लिए मुश्किल कर देता है। [१४] इस तरह से सप्लिमेंट देने से पहले अपने डॉक्टर से इसके फायदे और नुकसान के ऊपर चर्चा कर लें।

सलाह

  • चूंकि अधिकांश बच्चों को पीलिया हो जाता है, इसलिए पीले रंग के कपड़ों से बचना एक अच्छा विचार हो सकता है। पीले कपड़े अक्सर पीलियाग्रस्त बच्चे की आंखों और त्वचा का पीला रंग दिखाते हैं।
  • यदि आपके शिशु की त्वचा सांवली है, तो उसके मसूढ़ों और आंखों के सफेद भाग में पीले रंग की रंगत की जांच करें।

चेतावनी

  • नवजात को कभी भी पानी न दें। हालांकि यह आपके बच्चे को अधिक तेज़ी से अपशिष्ट को बाहर निकालने का एक अच्छा तरीका प्रतीत हो सकता है, यह वास्तव में नवजात शिशु के लिए घातक हो सकता है क्योंकि यह रक्त प्रवाह में पोषक तत्वों के नाजुक संतुलन को बाधित करता है।
  • यदि आपका शिशु सुस्त है, उसका रंग पीला है, उसके पैरों के तलवे पीले हैं, या यदि आपको लगता है कि आपका शिशु ठीक से फीड नहीं कर रहा है या डिहाइड्रेटेड लगता है, तो तुरंत चिकित्सा उपचार लें।

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