आर्टिकल डाउनलोड करें आर्टिकल डाउनलोड करें

माता पिता बनना हमारे जीवन का सबसे पुरस्कृत व परिपूर्ण कर देने वाला अनुभव है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं की यह आसान है । आपके बच्चे/बच्चों की उम्र चाहे कितनी भी हो, आपका दायित्व कभी खत्म नहीं होता। अच्छे माता पिता बनने के लिए आपको इस कला में माहिर होना पड़ेगा कि कैसे अपने बच्चों को सही व गलत के बीच के अंतर की शिक्षा देते हुए आप उन्हें विशिष्ट एवं प्यारे महसूस करवा सकते हैं। अंत में तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह ही है कि हम आने बच्चों को ऐसी पोषक व सकारात्मक वातावरण प्रदान करें, जिससे उन्हें यह लगे कि वे एक स्वतंत्र, कामयाब, आत्मविश्वासी एवं वत्सल इंसान में विकसित हो सकते हैं। यदि आप यह जानना चाहते हैं की अच्छे माँ बाप बन्ने के लिए क्या किया जाए, तो नीचे दिए गए निर्देशों पर नज़र दौरायें ।

विधि 1
विधि 1 का 3:

बच्चों से प्यार

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. कभी कभी प्रेम व स्नेह ही सबसे अच्छी ऐसी चीज़ होती है जो आप अपने बच्चों को दे सकते हैं । प्यार भरा स्पर्श और परवाह से भरा आलिंगन ही काफी है आपके बच्चों को यह बताने के लिए की वास्तव में वे आपके लिए कितने मूल्यवान हैं । बात जब बच्चों की आती है तो शारीरिक संपर्क की महत्ता को कभी अनदेखा ना करें । निम्नलिखित तरीकों से आप बच्चों के प्रति अपना वात्सल्य दर्शा सकते हैं ।
    • एक सौम्य आलिंगन, थोड़ा सा प्रोत्साहन, प्रशंसा, अनुमोदन यहाँ तक की एक हल्की सी मुस्कान ही आपके बच्चों की खुशहाली व आत्मविश्वास की बढ़ोतरी के लिए बहुत सहायकारी साबित हो सकती है ।
    • चाहे आप उनसे कितना ही नाराज़ क्यों ना हों, उन्हें हर दिन यह बताएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं ।
    • उन्हें प्यार से गले लगायें और माथे पर किस दें । उन्हें जन्म से ही प्रेम व स्नेह से परिचित व उनका आदि बनाइये ।
    • उन्हें बिना किसी शर्त प्यार करें । अपने बालकों को कुछ ऐसा बनने पर मजबूर ना करें, जैसा बनकर ही वे आपका दुलार प्राप्त कर सकते हैं । उन्हें यह बताएं कि चाहे कुछ भी हो जाये आपका प्रेम उनके प्रति कभी कम नहीं होगा ।
  2. बच्चों की प्रशंसा अच्छे माता पिता बनने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप सदैव यह चाहेंगे कि बच्चे अपनी उपलब्धियों पर गर्व और अपने बारे में अच्छा महसूस करें । यदि आप अपने बच्चों में यह विश्वास नहीं जगाते कि वे अपने दम पर दुनिया में निकल कर कुछ हासिल कर सकते हैं, तो वे कभी स्वयं को आत्मविश्वासी व साहसी बन पाने के लिए सशक्त महसूस नहीं करेंगे । जब भी वे कुछ अच्छा करें, तो उन्हें यह दिखाइए की आपने उस बात पर गौर किया है, और उनके इस काम पर आप गर्व करते हैं ।
    • बच्चों की गलतियों पर ध्यान देने से ज्यादा उनकी उपलब्धियों, टेलेंट और उनके अच्छे व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करें। इससे उन्हें ये जाहिर होगा की आप उनमे उनकी अच्छी बातें भी देखते हैं।
    • इस चीज़ की आदत डालें कि आप अपने बच्चों को जितनी नकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, उससे कम से कम तीन गुना ज्यादा प्रशंसा करें । तथापि बच्चों को यह बताना अनिवार्य है कि वे कहाँ गलत हैं, उनमें स्वयं के लिए सकारात्मक विचार जगाना भी महत्वपूर्ण है ।
    • यदि वे इन सब चीज़ों को समझने लायक बड़े नहीं हुए हैं तो, उनकी प्रशंसा ढेर सारी वाहवाही व प्यार देकर करें । शौचालय का सही प्रयोग से ले कर अच्छे अंक लाने तक, सभी चीज़ों के लिए प्रोत्साहित करने से आप उन्हें एक खुश और सफल जीवन व्यतीत करने में मदद कर सकते हैं ।
    • “शाबाश !” जैसे ऊपरी वाक्यांशों से बचें । इसके बजाय वर्णात्मक प्रशंसा करें जिससे उन्हें साफ़ साफ़ पता चले कि आप सटीक रूप से किस चीज़ की सराहना कर रहे हैं । उदाहरण के लिए “ आपने अपनी बहन के साथ बारी बारी से खेल कर बहुत बढ़िया काम किया ।“ या “ खेलने के बाद खिलौनों को साफ़ कर उन्हें अपनी जगह रख कर आपके बहुत शाबासी का काम किया है।“
  3. बच्चों की तुलना दूसरों से करने से बचें, खासकर भाई बहनों को आपस में: हर बालक अलग एवं अनूठा होता है । उनके इस अनूठेपन का जश्न मनाएं और बालक को उनकी पसंद अनुसार अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रोत्साहित करें । क्योंकि ऐसा कर पाने में विफलता, बच्चों में मन में अपने लिए हीन भावना जगा सकती है कि चाहे वे कुछ भी करें पर आपकी नज़रों में कभी अच्छे नहीं बन पायेंगे । यदि आप उनके व्यवहार में सुधार लाना चाहते हैं, तो बैठ कर, उनके लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उनके शर्तों के अनुसार, समझायें, बजाय इसके की उन्हें अपने बहन या पड़ोसी के तरह काम करने का उदाहरण दें । इससे उनमें हीन के बजाय स्व की भावना विकसित होगी ।
    • बच्चों की तुलना आपस में करने से उनमें आपस में अपने भाई बहनों के प्रति प्रतिद्वंदिता विकसित हो सकती है । आप अपने बच्चों के बीच प्रेम सम्बन्ध का पोषण करना चाहेंगे ना कि प्रतियोगिता का ।
    • पक्षपात से बचें । सर्वेक्षण से पता चला है कि, अधिकतर माता पिता का कोई पसंदीदा होता है, परन्तु अधिकांश बच्चों के हिसाब से वे अपने माता पिता के प्रीय हैं । यदि बच्चे आपस में झगड़ रहे हैं, तो किसी एक का पक्ष ना लें, बलकि निष्पक्ष और तठस्थ निर्णय लें ।
    • प्रत्येक बच्चे को खुद के लिए ज़िम्मेदार बनाकर, प्राकृतिक जन्म क्रम की प्रवृत्ति से उबरें । बड़े बच्चों पर छोटों की जिम्मेदारी डालने से सहोदर स्पर्धा पनपती है, जबकि उन्हें खुद के लिए ज़िम्मेदार बना कर आप उनके व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करते हैं ।
  4. बातचीत का दोनों तरफ से चलना बहुत आवश्यक है । आप सिर्फ नियमों के लागू के लिए नहीं, अपितु अपने बच्चों की समस्याओं को सुनने के लिए भी मौजूद होना चाहिए । आपको बच्चों में दिलचस्पी अभिव्यक्त करने और उनके जीवन में शामिल हो पाने के लिए भी सक्षम होना चाहिए । आपको ऐसा माहौल बनाये रखना चाहिए की बच्चे अपनी समस्याओं के साथ निसंकोच आपके पास आ सकें, फिर चाहे परेशानी कितनी भी छोटी या बड़ी हो ।
    • अपने बच्चों की बातें पूरे मन से सुनने की आदत डालें। जब वो आपसे बात कर रहे हों तो उनकी तरफ देखें और उन्हें ये दिखायें की आप उनकी बात पूरे ध्यान से सुन रहे हैं. ऐसा आप बीच बीच में अपना सर हिलाकर, हूँ बोलकर, अच्छा में समझी/समझा बोलकर या फिर क्या हुआ बोलकर कर सकते हैं। जब आपके बच्चे आपको कोई बात बता रहे हों तो अपनी बात कहने या कोई रिस्पांस देने की जल्दी न करैं। जब आपके बच्चे की बात ख़तम हो जाए तो उनकी ही बातों को बीच में से उठाकर फिर अपना रिस्पांस दें; जैसे, अच्छा तो आपने अपनी फ्रेंड के साथ चॉकलेट शेयर नहीं की? लेकिन ये तो अच्छी बात नहीं है। आपको अपने फ्रेंड के साथ शेयर करना चाहिए थी।
    • आप चाहें तो दिन का एक समय अपने बच्चों की बातों के लिए निश्चित कर सकते हैं । यह सोने से पहले, नाश्ते के दौरान अथवा स्कूल से लौटते वक्त हो सकता है । पर इस समय में अपना पूरा समय दें और किसी और काम जैसे बार बार फ़ोन चेक करना आदि से डिस्ट्रैक्ट न हों।
    • अपने बच्चों की इंटेलिजेंस पर शक न करैं। जब भी कुछ गलत या सही होता है तो उसे देखने का और समझने का उनका अपना नजरिया होता है। इसलिए उनका दृष्टिकोण समझने की और उनकी बात को सुनकर उनकी सोच को समझने की कोशिश करें।
    • यदि आपके बच्चे कहते हैं कि उन्हे आपसे कुछ कहना है, तो इस बात को गंभीरता से लें, और सब काम छोड़ कर उनकी बात सुनें, अथवा एक ऐसा समय सुनिश्चित करें जब आप उनकी बात को वास्तव में ध्यान से सुन सकते हैं ।
  5. हालाँकि, यह ऐतिहात बरतें की उन्हें दबाएँ अथवा रोकें नहीं । किसी की रक्षा करना और उन्हें अपने अटल जिद्द भरी मांगों में कैद करना, इन दोनों में बहुत अंतर है । आप उन्हें यह महसूस कराना चाहेंगे कि आपके साथ बिताया गया समय बेहद ख़ास एवं पावन है, ना कि ऐसा जैसे उन्हें आपके साथ वक़्त बिताने के लिए मजबूर किया जा रहा हो ।
    • जब आप अपने बच्चे के साथ समय बिता रहे हों तो थोड़ी देर के लिए सभी टेक्नोलॉजी से दूर हो जायें। अपने फ़ोन को दूर रख दें और पूरा समय बच्चे को दें बजाय अपने व्हाट्सएप्प मेसेजेस, मेल या फेसबुक को चेक करने के।
    • प्रत्येक बच्चे के साथ व्यक्तिगत रूप से वक़्त बिताएं । यदि आपके एक से अधिक बालक हैं, तो अपने समय को उन दोनों के बीच सामान रूप से विभाजित करने की कोशिश करें ।
    • अपने बच्चों को सुनें और उनका सम्मान करें । साथ ही आपके बच्चे अपने जीवन के साथ क्या करना चाहते हैं उसका भी आदर करें । परन्तु सदैव यह याद रखें कि आप उनके माता पिता हैं । बच्चों को सीमाओं में बंधने की भी जरुरत है । जिन बच्चों को अपने मन मुताबिक काम करने की अनुमति दी जाती है और जिनकी हर चाहत की पूर्ति होती है, वे अपने व्यसक जीवन में समाज के बनाये नियमों का पालन करने में संघर्ष करते हैं । यदि आप अपने बच्चे कि हर मांग को पूरा नहीं करते, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप बुरे माता पिता हैं । आप ना बिलकुल कह सकते हैं, पर ना कहने का एक उचित कारण व अन्य विकल्प भी साथ में दें । “क्योंकि मैंने ऐसा कह दिया “ यह कारण अनुचित व अमान्य है ।
    • बच्चों की रुचि अनुसार प्ले ग्राउंड, म्युसियम या लाइब्रेरी जाने के लिए दिन निश्चित करें ।
    • स्कूल फंक्शन्स में शामिल हों । उनके साथ होम वर्क करें । बच्चे क्लास में कैसा परफॉर्म कर रहे हैं यह जानने के लिए स्कूल में रखी जाने वाली पेरेंट्स टीचर मीटिंग्स (PTM) में जाएँ ।
  6. आप अपने काम में व्यस्त हो सकते हैं, परन्तु अपने बच्चों के जीवन के ख़ास लम्हों के लिए हमेशा वक़्त निकालें, चाहे वो एक कविता सुनाना हो या फिर सनातक स्तर की पढाई । याद रखें की वक़्त तेज़ी से बढ़ता है, और इससे पहले की आपको पता चले बच्चे बड़े होकर स्वतंत्र हो जायेंगे । आपके बॉस को याद रहे ना रहे की आप एक मीटिंग में उपस्थित नहीं थे पर आपके बच्चों को यह निश्चित रूप से याद रहेगा कि आप उस प्ले में शामिल नहीं थे जिनमें उनहोंने भाग लिया था । हालाँकि आपको अपने बच्चों के लिए हर चीज़ त्यागने की आवश्यकता नहीं अपितु यह प्रयास सदैव करना चाहिए की जरूरी मौकों पर आप अवश्य ही शामिल हो पाएं ।
    • अगर आप अपने बच्चे के स्कूल के पहले दिन या अन्य महत्वपूर्ण दिवस पर व्यस्त रहते हैं, तो इस बात का अफ़सोस आपको जीवन पर्यन्त रहेगा । और आप यह कदापि नहीं चाहेंगे की आपका बालक अपने हाई स्कूल के आखिरी दिवस को इस प्रकार याद रखे कि उस दिन उसके माता पिता मौजूद नहीं थे ।
विधि 2
विधि 2 का 3:

अच्छा अनुशासक बनना

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. ऐसे नियम बनाएं जो कि हर व्यक्ति को खुशहाली व उत्पादक जीवन के ओर अग्रसर करे - ना की आपके आदर्श व्यक्ति के नियमों का प्रतिरूप । महत्वपूर्ण यह है की ऐसे नियमों व दिशा का निर्देशन हो जो बगैर सख्त लगे आपके बच्चे को विकसित होने में मदद करे, ना कि उनको ऐसा लगे कि वे एक कदम भी बिना कुछ गलत किये नहीं ले सकते । आदर्स तौर पर, आपके बच्चों के दिल में आपके नियमों से जितना डर है, उससे अधिक आपके लिए प्यार होना चाहिए ।
    • अपने नियमों को स्पष्ट रूप से सामने रखें । बच्चों को अपने कार्यों के परिणाम का बोध होना चाहिए । यदि आप उन्हें सजा देते हैं तो इस बात का खयाल रखें की बच्चों को सजा का कारण और गलती दोनों की समझ हो; अगर आप ही सपष्ट रूप से यह नहीं समझ पाते हैं की उनकी गलती कहाँ है, तो दंड का वो प्रभाव नहीं पड़ेगा जो आप चाहते हैं ।
    • सुनिश्चित करें कि आप ना केवल उचित नियमों को लागू करते हैं अपितु यह कि आप स्वयं भी उसका यथोचित पालन करते हैं । कठोर दंड, मामूली शरारतों के लिए भीषण दंड या किसी भी रूप से बच्चों को शारीरिक चोट पहुंचाने वाले सजाओं से दूर ही रहना चाहिए ।
  2. शांत और विवेकी रहना अनिवार्य है जब आप अपने नियमों की व्याख्या या उनका पालन करवा रहे हों । आप यह चाहेंगे की आपके बच्चे आपको गंभीरता से लें, ना की आप से डरें और आपको अनुचित समझें । जाहिर है की यह एक चुनौती साबित हो सकती है, विशेष रूप से तब जब आपके बच्चे नाटक कर रहे हों या आपको क्रोधित कर रहे हों, पर जब भी आपको लगे कि अब आप अपनी आवाज़ उठाए बिना नहीं रह पाएंगे, तो एक छोटा सा विराम लें या अपने प्रतिक्रिया से बच्चों को यह महसूस करने दें की आप उनसे नाराज़ हैं ।
    • हम सभी कभी ना कभी अपना मिज़ाज खो देते हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं । यदि आप कुछ ऐसा कर या कह देते हैं जिसका आपको अफ़सोस है, तो अपने बच्चों से उस बात की माफ़ी मांगे जिससे उन्हें यह पता चले कि आपसे गलती हुई है । यदि आप अपनी गलती के बाद सामान्य व्यवहार करते हैं, तो वे बाद में इसी को उदाहरण मान उसकी नकल करने की कोशिश करेंगे ।
  3. महत्वपूर्ण है कि हर समय एक जैसे नियम लागू करें, और बच्चों की जिद्द या विरोध के अधीन हो कर नियमों में अपवाद लाने के प्रलोभन से बचें । यदि आप अपने बच्चे को मन मर्जी सिर्फ इसीलिए करने देते हैं कि वरना वे चिडचिडे व झल्ला जायेंगे तो इसका अर्थ ये होगा कि आपके नियमों की बुनियाद कमज़ोर है और उनमें कोई भी फेर बदल कर सकता है । यदि आप अपने को एक से अधिक बार यह कहता महसूस करते हैं कि “ अच्छा, पर केवल एक बार “ तो आपको अपने बच्चों के लिए और अधिक सुसंगत नियम बनाये रखने की आवश्यकता है ।
    • अगर आपके बच्चे महसूस करते हैं कि आपके नियमों में अकसर फेर बदल की जा सकती है, तो वे कभी भी नियमों पर बने रहने के लिए प्रित्साहित नहीं होंगे ।
  4. यह जरूरी है की बच्चे को अपने माता पिता के एकजूटता की अनुभूति हो – दो लोग जो एक बात के लिए साथ में “ हाँ ” या “ ना “ कहेंगे । अगर बच्चों को ऐसा लगता है कि माँ हमेशा हाँ कहेगी और और बाप हमेशा ना, तो वे यह समझ सकते हैं कि कोई एक बेहतर है या दुसरे की तुलना में किसी एक से चालाकी कर आसानी से काम निकलवाया जा सकता है । उन्हें आप और आपके पति/पत्नी इकाई के रूप में नज़र आने चाहिए ताकि आपके पालन में व्यवस्था बनी रहे और आप कठिन परिस्थितियों से दूर रहें, क्यूंकि ये सामान्य है कि कई बार पति पत्नी बच्चों की परवरिश के मामले में सहमत नहीं हो पाते ।
    • इसका मतलब यह नहीं है की आप और आपके पति/पत्नी बच्चों से जुड़े बातों पर 100% सहमत हों, परन्तु इसका अर्थ यह अवश्य है कि एक दुसरे के खिलाफ खड़े होने के बजाय, साथ मिलकर समस्यायों का हल ढूँढा जाये ।
    • पति पत्नी को आपस में बच्चों के सामने कदापि नहीं झगड़ना चाहिए । अगर बच्चे सो रहे हैं तो आहिस्ता बहस करें । बच्चे माता पिता की कलह सुन असुरक्षित व भयभीत महसूस करते हैं । इसके अतिरिक्त बच्चे भी इसी प्रक्कर से आपस में बहस करना सीख जायेंगे । उन्हें यह दिखाईये कि मतभेद को शांतिपूर्ण तरीके से चर्चा करके भी मिटाया जा सकता है ।
  5. अपने बच्चों को महसूस करायें कि उनके घर और जीवन में तर्क और अनुक्रम मौजूद हैं । यह उन्हें शांत और सुरक्षित महसूस कराएगा, जिससे वे घर और घर के बाहर दोनों जगह ही सुखी जीवन बिता पायेंगे । इन तरीकों से आप बच्चों के जीवन में क्रम/व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं :
    • रात को सोने का वक़्त के लिए नियम निर्धारित करें । ऐसा करने से बच्चों को वास्तव में माता पिता द्वारा किये गए प्यार व परवाह की अनुभूति होती है । वे उन सीमायों पर बागी हो सकते हैं, मगर अन्दर से वे अपने माता पिता के मार्गदर्शन व चिंता की प्रशंशा करेंगे ।
    • उन्हें रोज़ मर्रा के काम में शामिल करवा कर जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करें, और इन कामों को अच्छे से पूर्ण करने के फल स्वरुप उन्हें कुछ इनाम दें (जैसे की पैसे, अधिक खेलने का समय, इत्यादि) और काम ना करने के सजा के रूप में उनके विशेषाधिकार रद्द किये जा सकते हैं । छोटे से छोटा बच्चा भी इनाम और परिणाम के अवधारणा को सीख सकता है । जैसे आपके बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें और ज्यादा जिम्मेदारी सौपें और उसके साथ ही उसे पूरा करने या अनदेखा कर देने के लिए उचित पुरस्कार या दंड भी दें ।
    • उन्हें सही गलत का फर्क सिखाएं । अगर आप धार्मिक हैं तो, जिसमें आप आस्था रखते हैं उस धार्मिक संस्थान से परिचित करवाएं । अगर आप नास्तिक हैं तो यह पथ अपनाने के पीछे अपना तर्क उन्हें समझायें । कोई भी स्तिथि हो बस पाखंडी ना बनें, नहीं तो इस बात के लिए तैयार रहें कि आपके बच्चे यह इंगित कर सकते हैं कि “आप अपने उपदेश का स्वयं पालन नहीं करते” ।
  6. आप अपने बच्चों के व्यवहार की आलोचना करें न की अपने बच्चे की: आप अपने बच्चे को यह सिखाना चाहेंगे कि वे अपने जीवन में जो भी हासिल करते हैं वह उनके व्यवहार की वजह से है, बजाय इसके कि जीवन में एक ही तरह का व्यक्ति बन कर अटक जाना । उन्हें महसूस करवाएं कि उनके व्यवहार में सुधार की भरपूर गुंजाईश है ।
    • अगर आपका बच्चा हानिकारक और द्वेष पूर्ण तरीके से काम करता है तो उन्हें सख्त बताएं कि उनका यह “व्यवहार” अप्रिय और अस्वीकार्य है और उन्हें उसका विकल्प बताएं । इस तरह के बयां का इस्तेमाल ना करें जैसे “तुम बुरे हो ।” इसके बजाय आप कुछ ऐसा कह सकते हैं , ”अपने बहन के साथ इतना मतलबी व्यवहार बहुत गलत था ।“ उन्हें वजह बताएं कि क्यों उनका व्यवहार गलत है ।
    • बच्चों को उनकी गलती बताते वक़्त दृढ़ के साथ साथ नम्र होना भी जरूरी है । अपनी उम्मीद बताते वक़्त क्रोधित होने के बजाय गंभीर होना जरूरी है ।
    • सार्वजनिक अपमान से बचें । अगर वे सबके बीच दुर्व्यवहार करते हैं, तो उन्हें अकेले में ले जाकर डांटें ।
विधि 3
विधि 3 का 3:

चरित्र निर्माण में अपने बच्चे की मदद

आर्टिकल डाउनलोड करें
  1. अपने बच्चों को बताएं की अलग होना कोई बुरी बात नहीं और यह कि हमेशा झुंड के अनुसार चलना भी उचित नहीं है । उन्हें सही गलत के बीच का फर्क बचपन से ही बताएं, ताकि वे खुद के फैसले (हमेशा नहीं भी तो अकसर) लेने में सक्षम हो पायेंगे, बजाय इसके कि हर बात दूसरों से सुनकर उसका पालन करें । हमेशा ध्यान रखें कि आपका बच्चा आपका विस्तारण नहीं है । वे एक अलग व्यक्ति हैं जो आपके देखभाल में हैं, ना कि एक मौका खुद के जीवन को उनके माध्यम से जीने का ।
    • जब आपके बच्चे खुद के निर्णय लेने लायक बड़े हो जाएँ, तो उन्हें स्वयं ये चयन करने के लिए प्रोत्साहित करें कि वे कौनसी पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं या वे किन दोस्तों के साथ खेलना पसंद करते हैं । जब तक आपको ऐसा ना लगे कि वो गतिविधि बहुत खतरनाक या उनके द्वारा चयन किया गया मित्र कुसंगत है, तब तक अपने बच्चों को अपने चुनाव का परिणाम खुद समझने दीजिये ।
    • बच्चा आपसे विपरीत स्वभाव का हो सकता है, उदाहरण स्वरुप अंतर्मुखी होना जबकि आप बहुर्मुखी हैं, इस अवस्था में वे आपके बनाये गए शैली या समझ के लायक नहीं बन पायेंगे और खुद के अनुसार खुद के लिए निर्णय लेना चाहेंगे ।
    • बच्चों को यह जानना आवश्यक है कि उनके अपने कार्यों के परिणाम (अच्छे या बुरे) उन्हें स्वयं ही भुगतने पड़ते हैं । ऐसा करने से वे अच्छे निर्णय निर्माता व समस्या निवारक बन पायेंगे जो उन्हें स्वतंत्र और व्यस्क जीवन के लिए तैयार करेगा ।
    • बच्चों जो काम खुद के लिए स्वयं करना सीखना चाहिए वे आप उनके लिए नियमित रूप से ना करें । हालांकि सोने से पहले एक ग्लास पानी पिलाना उन्हें अच्छी नींद लेने में मदद करेगा, परन्तु ऐसा हमेशा करने से वे सदैव इसकी उम्मीद करने लग जायेंगे ।
  2. अगर आप अपने बच्चों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद रखते हैं तो खुद भी उस व्यवहार या व्यक्तित्व का प्रदर्शन नियमित तौर पर करें जो आप चाहते हैं कि आपके बच्चे अपनाएं । सिर्फ मौखिक स्पष्टीकरण के अलावा उन्हें उदाहरणों से समझायें । बच्चे आमतौर पर वही सीखते हैं जो आसपास देखते और सुनते हैं जब तक कि वे सचेत और संक्रेंदित प्रयास से नियमों के सांचे को तोड़ ना दें । आप को एक परिपूर्ण व्यक्ति बन्ने की आवश्यकता नहीं परन्तु वो व्यक्ति अवश्य बनना पड़ेगा जो आप अपने बच्चों को बनता देखना चाहते हैं । ताकि आप पाखंडी ना लगें जब आप अपने बच्चों को तो विनम्र बनने की शिक्षा दे रहे हैं पर खुद किसी दुकान पर बेज़ोर बहस करते पाए जाते हैं ।
    • गलती करना ठीक है परन्तु माफ़ी माँगना या बच्चों को यह दिखाना जरूरी है की वह व्यवहार उचित नहीं था । आप यह कह सकते हैं कि, “माँ तुम पर चिल्लाना नहीं चाहती थी । मैं बस बहुत पारेषण थी ।“यह अपनी गलती को अनदेखा करने से बेहतर है, क्योंकि अन्यथा बच्चों को वह व्यवहार उचित लगेगा और वे उसे ही अपनाने लगेंगे ।
    • बच्चों को दान पुण्य की शिक्षा देना चाहते हैं? तो बच्चों के साथ शामिल हो जाइये और उन्हें बेघर आश्रय या अन्य जरूरत मंदों के पास ले जा कर यथोचित सेवा से मदद प्रदान करें । उन्हें समझिए कि आप परोपकार क्यों कर रहे हैं ताकि उन्हें यह समझ आए कि उन्हें भी मदद क्यों करनी चाहिए ।
    • बच्चों से काम में छोटी मोती मदद ले कर या किसी काम के लिए समय निर्धारित कर के अपने बच्चों को रोज़ मर्रा के कामों से अवगत करवाइए । बच्चों को कुछ करने का आदेश भले ही ना दें परन्तु उनसे छोटी मोती मदद अवश्य लें । जितनी जल्दी वे आपकी मदद करना सीख जायेंगे, आगे चल कर उतना ही वे तत्पर रहेंगे ।
    • अगर आप अपने बच्चों में मिल बाँट कर रहने की भावना को बढ़ावा देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम यह उदाहरण आप स्वयं अपनी चीज़ों को बच्चों से बाँट कर स्थापित करें ।
  3. उनके एकान्तता का सम्मान करें क्योंकि यही आप उनसे अपने लिए भी चाहेंगे; उदाहरण स्वरुप यदि आप अपने बच्चों को यह सिखाते हैं कि आपका कमरा एक निजी स्थान है और उनको वहां आने से पहले अनुमति लेनी चाहिए, तो यही उपदेश आपको उनके कमरे के लिए भी अपनाना चाहिए । उन्हें यह महसूस करवाइए कि अगर कोई उनके कमरे में प्रवेश करता है तो उनके दराजों की छान बीन नहीं करेगा अथवा उनकी डायरी नहीं पढ़ेगा । यह उन्हें खुद के दायरे का सम्मान करने के साथ साथ दूसरों की एकान्तता का सम्मान करना भी सिखायेंगे ।
    • यदि आपके बच्चे आपको उनकी चीज़ों में तांक झाँक करते देख लेते हैं तो उन्हें पुनः आप पर विश्वास करने में कठिनाई हो सकती है ।
  4. एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए अपने बच्चों को प्रोत्साहित करें: यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आपके बच्चे पौष्टिक आहार, पर्याप्त व्यायाम एवं रात में भरपूर आराम करते हैं । एक सकारात्मक एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्रोत्साहित करना अनिवार्य है पर यह इतना सख्त भी नहीं होना चाहिए कि बच्चों को यह लगे कि आप उन्हें अपने अनुसार खाने पीने या रहने के लिए मजबूर कर रहे हैं । सलाहकार बनें ना कि तानाशाह । उन्हें स्वस्थ जीवन शैली का मार्ग दिखा कर इसका महत्वा एवं अर्थ उन्हें खुद समझने दें ।
    • उन्हें व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित करने का एक तरीका है कि उन्हें छोटी आयु में ही किसी ऐसे खेल से परिचित करवाएं जो उनका मनोरंजन करने के साथ साथ स्वास्थ लाभकारी भी हो ।
    • अगर आप बच्चों को “अति समझाने” लगते हैं की कुछ अस्वस्थ है या उन्हें यह नहीं प्राप्त करना चाहिए तो वे इसका गलत अर्थ निकाल सकते हैं और ये महसूस कर सकते हैं कि आप उनकी निंदा कर रहे हैं । एक बार उनके मन में यह भाव घर कर जाए तो हो सकता है कि वे फिर आपके साथ या आपके आस पास खाना ना पसंद करें और जंक फूड छुपाने भी लगें ।
    • सेहतमंद खान पान की आदत बच्चों में छोटी उम्र से शुरू करें । पुरस्कार स्वरुप कैंडीज देने से बच्चों को गलत आदत पड़ सकती है, क्योंकि बड़े होने पर जब वे खुद को इसी चीज़ का दावत देंगे तो यह मोटापे को निमंत्रण देना होगा । अल्पायु से ही उन्हें स्वस्थ नाश्ता करवाएं । बजाय चिप्स के अंगूर अथवा अन्य कोई पौष्टिक चीज़ का सेवन करवाएं ।
    • छोटी उम्र में डाली गयी आदतें ही हमेशा उनके साथ रहती हैं । अच्छी आदतों में से कुछ हैं; थाली में परोसा सम्पूर्ण भोजन समाप्त करना एवं एक बार में थोरा ही परोसना क्योंकि वे खाना कम होने पर दुबारा तो ले सकते हैं परन्तु ज्यादा होने पर पुनः उसे उठा कर नहीं रख सकते ।
  5. शराब के सेवन के सन्दर्भ में बताते वक़्त सैंयम और जिम्मेदारी पर जोर दीजिये: आप अपने बच्चों से इस बारे में छोटी उम्र में भी बात कर सकते हैं । उन्हें यह साफ़ तौर पर बताइए कि अपने दोस्तों के साथ पीने का मज़ा लेने के लिए उनको सही उम्र का इंतज़ार करना होगा और उन्हें पीकर गाडी चलाने के परिणामों से भी अवगत करवाएं । इन मुद्दों पर बात करने की विफलता से खतरनाक प्रयोगों या छुप के किये गए कार्यों का खतरा बना रहेगा ।
    • एक बार वे शराब पीने की उम्र में प्रवेश कर जाते हैं तो उन्हें आपसे निःसंकोच बात करने के लिए प्रोत्साहित करें । वो आपके प्रतिक्रिया से ग्रस्त कहीं कुछ ऐसा ना कर बैठें जिसका बाद में उन्हें पछतावा हो, जैसे की पी कर गाडी चलाना क्योंकि वो आपसे मदद मांगने में संकोच महसूस कर रहे थे ।
  6. उनके जीवन का हर फैसला आप ना लें, उन्हें अपने द्वारा किये गए चुनावों के परिणामों के साथ जीवन बिताना आना चाहिए । आखिरकार तो उन्हें खुद के लिए निर्णय लेना सीखना ही होगा । इसीलिए बेहतर होगा कि वो ये कार्य तभी शुरू कर दें जब आप उनका मार्गदर्शन करने हेतु उनके साथ मौजूद हों, ताकि दुष्परिणामों को कम और बच्चों की प्रगति की जा सके ।
    • बच्चों को यह जानना आवश्यक है कि उनके अपने कार्यों के परिणाम (अच्छे या बुरे) उन्हें स्वयं ही भुगतने पड़ते हैं । ऐसा करने से वे अच्छे निर्णय निर्माता व समस्या निवारक बन पायेंगे जो उन्हें स्वतंत्र और व्यस्क जीवन के लिए तैयार करेगा ।
  7. जिन्दगी बहुत अच्छी शिक्षक है । जब तक परिणाम भीषण गंभीर ना हो तब तक हर समय अपने बच्चे के बचाव के लिए ना आयें । उदाहरण के लिए, हाथ कट (छोटा सा) जाने से दर्द हो सकता है, परन्तु यह उनके इस बात की सीख दे जाएगा कि क्यों धार वाली चीज़ों से परहेज़ बनाये रखना चाहिए । याद रखिये कि आप अपने बच्चों की रक्षा हमेशा नहीं कर पायेंगे, इसीलिए वे जीवन के सबक जितनी जल्दी सीख जाएँ उतना बेहतर है । हांलांकि दूर खड़े रह कर अपने बच्चों को गलती करते देख पाना कठिन हो सकता है, परन्तु लम्बे समय में यह आप और आपके बच्चे दोनों के लिए ही लाभकारी साबित होगा ।
    • आपका बच्चा जब अपनी भूल से कुछ सीख रहा होता है तो उनकी हिम्मत यह कह कर कम ना करें कि, “मैंने तो पहले ही कहा था”, अपितु उन्हें उस गलती का निश्कर्ष खुद निकालने दें ।
  8. जुआ, शराब और चरस गांजा का नशा आपके बच्चों की वित्तीय सुरक्षा को भंग कर सकता है । उदाहरण के लिए, धूम्रपान सदैव ही अपने पर्यावरण में स्वास्थ सम्बंधित खतरों को बढ़ता है । धूम्रपान करने वाले लोगों के अस पास जो भी रहते हैं उनके उस प्रदूषित हवा में सांस लेने से भी श्वसन रोग उत्पन्न हो सकते हैं । धूम्रपान से माता/पिता की जल्दी मृत्यु भी हो सकती है । शराब और ड्रग्स से स्वास्थ सम्बंधित खतरों के अलावा पर्यावरण में हिंसा का परिचय भी हो सकता है ।
    • जाहिर है कि कभी काबर यदि आप मदिरा का सेवन करते हैं तो यह गलत नहीं है, पर ध्यान देना जरूरी है कि प्रयाप्त मात्रा में सेवन और ज़िम्मेदाराना बर्ताव कर रहे हों ।
  9. अपने बच्चों पर अनुचित अपेक्षाओं का भार ना डालें: अपने बच्चों को एक ज़िम्मेदार, परिपक्व व्यक्ति बनाने में या ऐसा मानव बनने में बहुत फर्क है जो सिर्फ आपके अनुसार व्यवहार करे । आपको अपने बच्चों को कक्षा में सर्वप्रथम आने के लिए या किसी खेल में प्रथम आने के लिए मजबूर नहीं करना है अपितु अच्छा अध्ययन करने वाला और सहस रखने वाला व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करना है । उन्हें अपनी काबिलियत के अनुसार प्रयास करने का अवसर दें ।
    • अगर आप ऐसा दर्शाते हैं कि आप को सिर्फ सबसे अच्छा ही चाहिए तो बच्चों को यह लगेगा कि वे कभी आपके उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकते और इस दौरान वे बागी भी हो सकते हैं ।
    • आप यह नहीं चाहेंगे की आपके बच्चे आपके उम्मीदों से घबरा कर आपसे दूर हो जाएँ । आपको उनके जीवन में प्रोत्साहन देने वाला बनना है, ना की तानाशाह ।
  10. इस बात का ज्ञात रहे की माता पिता का कर्तव्य कभी समाप्त नहीं होता: आपको ऐसा लग सकता है कि अब आपका अपने बच्चों को जीवन के ढाँचे में डालने का कार्य पूर्ण हो गया पर ऐसा नहीं है । आपका कर्तव्य माँ बाप होने के नाते जीवन भर चलेगा और हर पग पर उन्हें आपके उसी प्यार, दुलार और वात्सल्य की जरुरत पड़ती रहेगी ।
    • आपके बच्चे आपका मार्गदर्शन खोजते रहेंगे और आपकी बातों से प्रभावित भी होते रहेंगे, फिर चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो । इसीलिए जैसे जैसे वक़्त बीतता जाएगा आप ना केवल अपने मत्रित्वा/पित्रित्वा की कला को निखारते जायेंगे अपितु यह भी सोचते रहेंगे कि अच्छे माँ बाप कैसे बना जाए ।

टिप्स

  • अपने जीवन के उदाहरणों द्वारा अपने बच्चों में आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करें ।
  • अपनी चाहतों से प्यार करें परन्तु अपने बच्चों की जरूरतों को सर्वोपरी रखें । अपनी महत्वाकांक्षयों के लिए अपने बच्चों को नज़रंदाज़ ना करें । अगर आप डेटिंग कर रहे हैं तो अपने बच्चों को प्राथमिकता दें और उन्हें किसी भी प्रकार के खतरे में ना डालें अपनी गृहस्ती में किसी ऐसे व्यक्ति को शामिल कर जिन्हें आप अच्छे तरीके से जानते नहीं हैं । बच्चों को सुरक्षित और अपनापन महसूस करने की आवश्यकता है । यदि आप अपने प्रेमी या प्रेमिका में व्यस्त होकर अच्चानक अपने बच्चों की जरूरतों से मुह मोड़ लेंगे तो वे असुरक्षित व परित्यक्त महसूस करने लगेंगे । प्यार हर किसी को चाहिए पर अपने बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ के कीमत पर नहीं । और यह बात बड़े बच्चों पर भी लागू होती है ।
  • आपका बच्चा क्या कहना चाहता है उसे सुनें ।
  • अपने जीवन को उनके माध्यम से ना जियें अपितु उन्हें उनके जीवन के निर्णय खुद लेकर अपने अनुसार जीने दीजिये ।
  • बार बार अपने बचपन पर भी नज़र दौड़ाइए । आपके माता पिता ने जो गलती की है उन्हें दोहराइए मत । इससे वही गलती पीढ़ियों तक चलने से बच जायेगी । हर पीढ़ी के माता पिता/बच्चों को नयी सफलता व नयी गलतियों से सीखना चाहिए ।
  • एक किशोर जो व्यासक्त की कगार पर खड़ा है, उसे अपने माता पिता के नेतृत्वा की जरुरत सबसे ज्यादा होती है । ये समझना की चूँकि वे 18 या 21 के हो गए हैं, वे सब चीज़ खुद सुलझा सकते हैं । हांलांकि आपको बेवजह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, पर एक सूक्ष्म रेखा खींचना भी अनिवार्य है ।
  • उनके दोस्तों के चुनाव को छोटा करने की कोशिश ना करें । अपितु, खुद के भी मित्र बना कर रखें ।
  • अगर आप किसी आदत को छोरना चाहते हैं तो आप उन संस्थानों से मदद ले सकते हैं जो इन कार्यों में सहायता प्रदान करती है । उचित मदद लें और ऐसे व्यक्तियों से बात करें जो आपकी हिम्मत बंधाये रख सके । याद रखें कि आप ना केवाल खुद की अपितु अपने बच्चों की भी मादा कर रहे हैं ।
  • अपने पुराने दुर्व्यवहार को अपने बच्चों से साझा ना करें वरना वे खुद की गलतियों की तुलना उसी गलती से करने लगेंगे यह कह कर कि, “आप ने भी तो यही किया था ।“
  • सकारात्मक वाक्यों से उनकी प्रशंसा करें जब भी वे कुछ अच्छा करें तो, बजाय उन्हें हमेशा दंड देने के । और कभी भी उन्हें शारीरिक रूप से चोट ना पहूँचायें ।
  • बच्चों के मित्रों को आंकें ना । इससे आपके बच्चों को यह लगेगा कि आप उनके दोस्तों को नापसंद करते हैं । हमेशा बच्चे के दोस्तों से खुल कर पेश आयें ।
  • अपने बच्चों के सामजिक व्यवहार को भी तराशने की कोशिश करें ।

चेतावनी

  • माता पिता की जिम्मेवारी से घबराएं ना । अपना सर्वोत्तम दें, उनके दोस्त बनकर रहे पर यह कभी ना भूलें कि आप उनके माता पिता हैं, सहयोगी नहीं ।
  • जब भी आप अपने बच्चों की परवरिश कर रहे हों, तो अपने बच्चे के प्रयास पर ध्यान केन्द्रित करें ना की अंत परिणाम पर।
  • बच्चों के बड़े हो जाने से माता पिता का कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता । यह भूमिका आपको जीवन भर संभालनी पड़ती है । पर याद रखें की बड़े होकर बच्चे जो भी निर्णय लेते हैं वो उनके खुद के होते हैं उनके परिणामों के साथ ।
  • अपने संस्कृति, दौर, जातीय समूह या परिवार के खींचे गए माता पिता बन्ने के तरीकों को कट्टरता से ना अपनाएं । कृपया अपनी सोच का दायरा यहाँ तक सीमित ना करें कि सिर्फ यही एक सटीक तरीका हो सकता है अपने बच्चों को बड़ा करने का ।
  • अपने बच्चों को अति लिप्त ना बनाएं । इससे वे हठी और गैर जिम्मेदार बन सकते हैं ।

विकीहाउ के बारे में

सभी लेखकों को यह पृष्ठ बनाने के लिए धन्यवाद दें जो ९१,०८३ बार पढ़ा गया है।

यह लेख ने कैसे आपकी मदद की?