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अगर आपने इन्टरनेट पर जरा सा भी टाइम स्पेंड किया है, तो उम्मीद है कि आपका सामना भी कुछ गलत जानकारी से हुआ होगा। ये कुछ बहुत अजीब सा भी हो सकता है, जैसे कि किसी मीम में कोई उल्टे दिमाग वाला इंसान, किसी सीधे दिमाग वाले इंसान से अलग कलर्स देखता है, या फिर कोई ऐसी मेडिकल "एड्वाइस" जिसे अगर कोई अपना ले, तो उसके लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है। मामला चाहे जो भी हो, आप इस तरह की गलत जानकारी की सत्यता की जांच करके और गलत या गुमराह करने वाली इन्फॉर्मेशन को शेयर नहीं करके ऐसी गलत जानकारी को फैलने से रोक सकते हैं। अच्छी बात ये है कि ऐसे कई सारे टूल्स हैं, जिन्हें यूज करके ऑनलाइन मिलने वाली जानकारी को जल्दी और आसानी से कंफर्म कर सकते हैं या उसका पर्दाफाश कर सकते हैं।

विधि 1
विधि 1 का 3:

आर्टिकल्स की जांच करना (Investigating Articles)

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  1. ऑथर के क्रेडेंशियल्स (परिचय) की जांच करके देखें कि वो क्वालिफाइड हैं या नहीं: आर्टिकल में दी हुई उस लाइन को (byline) को देखें, जिसमें ऑथर का नेम और उसे पब्लिश किए जाने की डेट दी गई होती है। पता करें अगर उस ऑथर को आर्टिकल में दिए गए कंटेन्ट के फील्ड में अच्छी जानकारी है या फिर वो कोई एक्सपर्ट है। एक बार जल्दी से गूगल सर्च करके पता करें, कि उन्हें इन्फॉर्मेशन के बारे में लिखने की जानकारी है भी या नहीं। अगर वो नहीं हैं, तो इसका मतलब कि आर्टिकल में गलत या गुमराह करने वाली जानकारी मौजूद रह सकती है। [१]
    • अगर ऑथर एक जर्नलिस्ट है, तो पहले एक बार चेक करके देख लें कि उन्होने इसके पहले इसी तरह के टॉपिक पर कौन से आर्टिकल्स लिखे हैं।
    • भले ऑथर को एक डॉक्टर, साइंटिस्ट या एक्सपर्ट की तरह भी क्यों न बताया गया हो, लेकिन एक सेकंड लेकर उनके इन क्रेडेंशियल्स के सही होने की जांच जरूर करें।
    • आप चाहें तो ऑथर के LinkedIn को चेक करके उनकी क्वलिफ़िकेशन को और उनके द्वारा काम किए न्यूज आउटलेट को देख सकते हैं।
    • अगर वहाँ पर ऐसा कोई ऑथर नहीं है, तो सचेत हो जाएँ। ये एक गलत जानकारी हो सकती है।
  2. आर्टिकल के डेट को देखकर पता करें कि ये अभी हाल ही का है या नहीं: बायलाइन में, ठीक ऑथर के नेम के नीचे, आर्टिकल के पब्लिश होने या अपडेट किए जाने की डेट दी गई होती है। सुनिश्चित करें कि उसकी डेट अभी हाल ही की है और आर्टिकल किसी पुरानी हो चुकी इन्फॉर्मेशन को नहीं दर्शा रहा है। कोशिश करें कि जितना हो सके, उतने ऐसे सोर्स की तलाश करें, जो सबसे ज्यादा अपडेटेड हैं। [२]
    • आउटडेटेड आर्टिकल्स को गलत मंशा को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि इनमें अभी के समय में जो भी चल रहा है, उसके बार में सही जानकारी नहीं दी गई होती है।
  3. ऑनलाइन सर्च करके देखें कि बाकी के दूसरे सोर्स भी उसी जानकारी को रिपोर्ट कर रहे हैं: आर्टिकल में दावा किए जाने वाले दावों और जानकारी के लिए ऑनलाइन सर्च करें और देखें कि कोई दूसरे, जाने-माने और भरोसेमंद न्यूज साइट्स भी उसके बारे में रिपोर्ट कर रही हैं या नहीं। अगर ऐसा हो रहा है, तो दूसरे सोर्स के द्वारा किए गए दावों को पढ़ें और देखें कि वो जानकारी सच्ची है या फिर यूं ही झूठी कहानी। अगर उन दावों को रिपोर्ट करने वाली कोई भी साइट्स मौजूद नहीं हैं, तो इसका मतलब कि वो एक गलत जानकारी हो सकती है। [३]
    • बड़ी खबरें, जैसे कि मेडिकल या पॉलिटिकल न्यूज को कई सारे न्यूज आउटलेट्स के द्वारा कवर किया जाएगा। जैसे अगर आपके सामने एक ऐसा आर्टिकल आता है, जिसमें कहा गया है, कि एक एस्टेरोइड (टूटता तारा) पृथ्वी से टकराने वाला है, लेकिन आप इसके बारे में और कहीं पर कोई खबर नहीं देखते हैं, तो इसके झूठी खबर होने की संभावना ज्यादा है।
  4. किसी एक ही पक्ष के लिए सपोर्ट वाले बहुत ज्यादा शब्दों वाले टेक्स्ट को पढ़ें: आर्टिकल की हैडलाइन की जांच करें और टेक्स्ट पढ़ें। ऐसे शब्दों, किसी एक ही पक्ष के बारे में की गई बातों के ऊपर ध्यान दें, जो किसी इरादे को पूरा करने के मकसद से इस्तेमाल किए गए हैं। [४] ग्रामर और स्पेलिंग मिस्टेक्स पर नजर रखें, साथ में काफी सारे एक्स्क्लेमेशन पॉइंट्स और केपिटल्स में लिखे टेक्स्ट के ऊपर भी ध्यान दें, जो भी किसी आर्टिकल के प्रोफेशनल न होने के संकेत हैं और उसे शायद लोगों का रिएक्शन पाने के लिए डिजाइन किया गया है। [५]
    • साथ में इन्सल्टिंग और ऑफ़ेंसिव लेंग्वेज पर भी नजर रखें।
    • खराब ग्रामर भी किसी अनप्रोफेशनल न्यूज सोर्स के द्वारा इन्फॉर्मेशन की रिपोर्टिंग किए जाने का एक संकेत होता है। [६]
  5. आर्टिकल में ऑफिसियल और एक्सपर्ट साइटेशन (expert citations) की तलाश करें: किसी बड़ी न्यूज के बारे में डिस्कस करने वाले प्रोफेशनल आर्टिकल्स में अक्सर अपने दावों को सपोर्ट करने के लिए आर्टिकल्स के लिए साइटेशन, एक्सपर्ट की राय या ऑफिसियल रिपोर्ट्स को शामिल किया जाता है। अगर आपको कोई भी सोर्स या साइटेशन नहीं दिख रहा है, तो ये भी गलत सूचना दिए जाने का एक संकेत हो सकता है। [७]
    • अगर आर्टिकल में सोर्स को साइट किया गया है, तो उन्हें यूज करके आर्टिकल में किए गए दावों को वेरिफ़ाई करें।
  6. दावे को पूरी तरह से वेरिफ़ाई करने के लिए प्राइमरी सोर्स पर जाएँ: प्राइमरी सोर्स में गवर्नमेंट रिपोर्ट्स, कलेक्टेड डेटा, कोर्ट डॉक्यूमेंट्स और स्कॉलरी रिसर्च आर्टिकल्स शामिल होते हैं। प्राइमरी सोर्स से आने वाली इन्फॉर्मेशन को अपना मकसद पूरा करने के हिसाब से बिगाड़ा जा सकता है। अगर आप किसी आर्टिकल में दी हुई जानकारी के सच्चे होने की पुष्टि करना चाहते हैं, तो प्राइमरी सोर्स को पढ़कर देखें कि वो जानकारी सही है या नहीं। [८]
    • भले हैडलाइन शायद पूरी तरह से गलत नहीं भी हो सकती है, लेकिन उसे जान-बूझकर गुमराह करने लायक बनाया गया हो सकता है।
    • डेटा को भी अक्सर गलत पेश किया जा सकता है। जैसे, एक आर्टिकल जिसमें ऐसा दिया हो सकता है, कि एक सर्वे में 90% लोग जवाब देते हैं कि वो डैथ पेनल्टी के सही मानते हैं, लेकिन अगर आप केवल 5 ही लोगों से पूछेंगे, तो ये कहीं से भी सटीक सर्वे तो नहीं बन जाएगा।
    • मेडिकल रिलेटेड दावों के लिए, जैसे कि किसी बीमारी के लिए मौजूद जानकारी के लिए WHO के जैसे प्राइमरी सोर्स पर ही भरोसा करें।
विधि 2
विधि 2 का 3:

मीम्स और इमेजेस का पर्दाफाश करना (Debunking Memes and Images)

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  1. कुछ खास लोगों के लिए बने कोट्स वाले मीम्स और इमेजेस, खासतौर से सोशल मीडिया पर काफी आगे और काफी लोगों के बीच में पहुँच सकते हैं। कोट के लिए एक बार क्विक सर्च करके देखें कि अगर उसे किसी ने बोला भी है, तो वो कौन है। अगर कोट इमेज से मैच नहीं करता है, तो इसके गलत जानकारी होने की संभावना ज्यादा है। [९]
    • कुछ ग्राफिक्स और मीम्स ऐसे "डेटा" शेयर करते हैं, जो किसी जाने-माने ऑर्गेनाइजेशन से आए जैसा लगता है। अगर उसके साथ में कोई सोर्स अटेच नहीं है, तो उस पर यूं ही भरोसा न करें और आप खुद ही उसे चेक करें।
    • इमेज को भी ऑल्टर किया जा सकता है। जैसे, प्रोटेस्ट साइन की इमेज को चेंज करके साइन के ऊपर टेक्स्ट या इमेज के जैसा बनाया जा सकता है। [१०]
  2. कमेंट्स को पढ़ के चेक करें कि किसी ने इमेज को फ़ैक्ट चेक किया है या नहीं: अगर आपके सामने सोशल मीडिया पर कोई इमेज आती है, तो उसके ऊपर लोगों के द्वारा पोस्ट किए कमेंट्स को देखें। एक बार चेक करके देखें कि अगर किसी ने ऐसा कोई आर्टिकल या लिंक शेयर की हो, जो इमेज के दावे के झूठ होने का पर्दाफाश करता हो। [११]
    • बस इसलिए क्योंकि कोई किसी दावे के साथ में सहमति नहीं रखता है, इसका मतलब ये नहीं निकल आता कि वो सही ही है। ऐसे कमेंट्स को देखने की कोशिश करें, जिनमें दूसरे सोर्स की लिंक्स या रेफरेंस शामिल हों।
    • अगर आपको कमेंट्स में कुछ भी नहीं मिल रहा है, तो भी उसे सच न मान लें और अपने आप ही दावे की सच्चाई की जांच करें।
  3. ऑनलाइन ऐसे दावे की तलाश करें, जिसमें उस रिपोर्ट को सपोर्ट करते हुए विश्वसनीय सोर्स मिलें: ऐसे मीम्स और इमेज, जिन्हें ऑनलाइन शेयर किया जाता है, उनमें लगभग कुछ भी कहा जा सकता है, लेकिन अगर इन्फॉर्मेशन सही हुई, तो उम्मीद है कि कोई प्रोफेशनल न्यूज आउटलेट भी इसी के बारे में रिपोर्ट करेगा। मीम में दिखने वाले दावे के लिए सर्च करें और रिजल्ट्स को चेक करके देखें, अगर न्यूज साइट्स या गवर्नमेंट एजेंसीज पर भी उसके बारे में कोई आर्टिकल दिया गया हो। [१२]
    • अगर ऐसा कोई भी सोर्स नहीं है, जो उस इन्फॉर्मेशन के बारे में कुछ बोल रहा है, तो ये शायद एक गलत या गुमराह करने वाली खबर हो सकती है।
  4. फ़ैक्ट-चेकिंग वैबसाइट को गलत जानकारी की सच्चाई निकालने और उसे गलत ठहराने के लिए डेडिकेट किया जाता है। अगर आपके सामने ऐसा कोई दावा आता है, जिसकी सच्चाई के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, तो किसी फ़ैक्ट चेकिंग वैबसाइट पर जाकर देखें, अगर उसके बारे में वहाँ पर कुछ डिस्कस किया गया हो या उसे गलत ठहराया हो। [१३]
    • फ़ैक्ट चेकिंग साइट्स की लिस्ट को यहाँ से पाएँ: https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_fact-checking_websites
    • ज़्यादातर फ़ैक्ट चेकिंग साइट्स पर एक्स्प्लेन किया गया होगा कि कोई जानकारी कैसे और कहाँ पर गुमराह करने वाली है, इसलिए बेहतर समझ पाने के लिए पूरे टेक्स्ट के ऊपर अच्छी तरह से ध्यान दें।
  5. जिसने इमेज शेयर की है, उस इंसान से सोर्स के लिए पूछें: अगर इमेज को सोशल मीडिया साइट पर या ऑनलाइन फोरम पर शेयर किया गया है, तो जिस इंसान से उसे असल में पोस्ट किया है, उस तक पहुँचने की कोशिश करें। उनसे पूछें कि अगर वो उस इन्फॉर्मेशन को कंफर्म कर सकें और सोर्स प्रोवाइड कर सकें। अगर वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, तो इसका मतलब कि वो जानकारी गलत या गुमराह करने वाली है। [१४]
    • कभी-कभी, किसी से दावे के लिए सोर्स की मांग करना भी उसका पर्दाफाश करने में मदद कर सकता है। अगर वो उसे प्रूव नहीं कर सकते हैं, तो वो शायद उसे वापस भी ले सकते हैं, जो गलत जानकारी को फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
  6. इमेज के रिवर्स इमेज सर्च करके देखें कि वो असल में आई कहाँ से है: गूगल (Google) या बिंग (Bing) जैसे सर्च इंजन को ओपन करें। इमेज के यूआरएल को पेस्ट करें और सर्च करके पता लगाने की कोशिश करें कि उसे पहली बार कब पोस्ट किया गया था। अगर ये एक पुरानी इमेज है, जिसे सर्कुलेट किया जा रहा है, तो ये एक गलत जानकारी है। चेक करके देखें अगर इमेज दावों से भी संबन्धित है। [१५]
    • जैसे, अगर ऐसा कोई मीम है, जो ब्राज़ील के जंगलों में लगी आग को एक उद्देश्य के लिए लगाए जाने को दिखाए जाने का दावा करता है, लेकिन रिवर्स इमेज सर्च से पता चलता है कि वो इमेज तो असल में कैलिफोर्निया में कंट्रोल में लगाई एक आग को दर्शा रही है, तो ये एक गलत जानकारी है।
    • RevEye एक यूजफुल फ्री एप है, जो आपको ऑनलाइन दिखने वाले हर पिछले इन्सटेन्स के बारे में आपको बताता है, जो उसका पर्दाफाश करने में मदद कर सकता है। आप इसे अपने स्मार्टफोन ये टेबलेट के एप स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।
विधि 3
विधि 3 का 3:

सोर्स को एनालाइज करना (Analyzing a Source)

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  1. साइट की डिजाइन को देखकर चेक करें कि ये क्या प्रोफेशनल जैसी दिखती है: एक बार वैबसाइट को अच्छी तरह से देखें। अजीब या अनप्रोफेशनल साइट के संकेतों को, जैसे कि काफी सारी पॉप-अप एड्स देखें। पेज पर मौजूद दूसरी लिंक्स को भी चेक करें। अगर वहाँ पर कोई भी नहीं है या वो किसी अनजानी ही जगह पर ले जा रहे हैं, तो वो साइट शायद फेक हो सकती है। [१६] ऐसी बदली हुई इमेज को देखें, जो फेक या फिर फोटोशॉप की हुई जैसी भी नजर आती हैं। [१७] स्पेलिंग और ग्रामर एरर्स को भी चेक करें।
    • Snopes फेक न्यूज वैबसाइट की एक लिस्ट मेंटेन करता है। आप उसे यहाँ से चेक कर सकते हैं: https://www.snopes.com/news/2016/01/14/fake-news-sites/
    • अपने मन की आवाज पर भी भरोसा करें। क्या साइट आपको अधूरी सी लगती है? अगर ये लगती है, तो ये शायद गलत जानकारी से भरी हो सकती है।
  2. मीडिया बायस सोर्स पर सर्च करके उसके सच्चे होने की जांच करें: ऑनलाइन गलत जानकारी को मॉनिटर करने वाली मीडिया बायस वैबसाइट का यूज करें। लिस्ट पर सोर्स के लिए सर्च करें और पता करें कि वो बायस या किसी एक पक्ष के हैं या फिर वो गलत जानकारी पब्लिश करते हैं। [१८]
    • Fairness & Accuracy in Reporting (FAIR) ये एक नेशनल मीडिया वॉच ग्रुप है, जो बायस मीडिया की पहचान करने का काम करता है। आप उन्हें यहाँ: https://fair.org/ से देख सकते हैं।
    • एडिशनल मीडिया बायस साइट्स की एक लिस्ट के लिए, https://guides.ucf.edu/fakenews/factcheck पर जाएँ।
  3. किसी भी पक्षपात के लिए सोर्स के “About Us” सेक्शन को चेक करें: ऐसे किसी भी “About Us” सेक्शन या पेज की तलाश करें, जो साइट की हिस्ट्री के बारे में डिस्क्राइब करता हो। अगर वहाँ पर कोई नहीं है, तो ये उस साइट के शायद गलत जानकारी फैलाने का संकेत हो सकता है। डिस्क्रिप्शन को पढ़ के देखें अगर आप वहाँ पर उनके द्वारा पब्लिश किए जाने वाली बातों में किसी एक ही ओर झुकाव, एंगल या पक्षपात देखते हैं। [१९]
    • जैसे, अगर वैबसाइट के “About Us” सेक्शन में कहा गया है कि वो वैक्सीन के खिलाफ हैं, तो फिर आपको उनके द्वारा शेयर किए जाने वाले वैक्सीन के बारे में सभी आर्टिकल्स पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
    • बस इसलिए क्योंकि एक पेज बायस है, इसका मतलब ये नहीं निकल आता कि उनके द्वारा शेयर की जाने वाली सभी इन्फॉर्मेशन गलत ही होगी।
  4. यूआरएल के बारे में जांच करके देखें अगर उसमें कोई भी गड़बड़ नजर आए: सोर्स को वेरिफ़ाई करने में मदद के लिए उसकी पूरी यूआरएल को चेक करें। किसी भी जानी-मानी न्यूज साइट की यूआरएल के पीछे एक्सट्रा एड किए “.co” या “.lo” कोड को देखने की कोशिश करें, जिससे उनके सही सोर्स नहीं होने की पुष्टि की जा सके। [२०]
    • जैसे, अगर आपको एक यूआरएल दिखता है, जिस पर “cnn.com.lo” लिखा है, तो ये शायद एक फेक साइट हो सकती है, जो खुद के CNN होने का छलावा कर रही है।
    • किसी भी अच्छी तरह से मशहूर यूआरएल में भी जरा से वेरिएशन पर भी ध्यान दें। जैसे, “cbsnewsnet.org.co” यूआरएल नकली या झूठी साइट हो सकती है।
  5. साइट पर पब्लिश किए आर्टिकल्स पर मौजूद बायलाइंस को चेक करें: प्रोफेशनल न्यूज साइट्स में बायलाइंस शामिल होती हैं, जिनमें ऑथर का नाम और आर्टिकल को पब्लिश किए जाने की डेट को आर्टिकल में सबसे ऊपर दिया गया होता है। अगर वहाँ पर बायलाइन नहीं है, तो सोर्स और इन्फॉर्मेशन शायद इसलिए भरोसेमंद नहीं है, क्योंकि उसके कंटेन्ट को किसी क्वालिफाइड या प्रोफेशनल ऑथर के द्वारा नहीं लिखा गया है। [२१]

सलाह

  • अपने अंदर से आने वाली आवाज को सुनें और अपने अंदर की आवाज पर भरोसा करें। अगर इन्फॉर्मेशन कहीं से भी भरोसा करने लायक नहीं दिख रही है, तो उसकी जांच करें। उम्मीद है कि ये शायद पूरी तरह से सच नहीं होगी। [२२]

चेतावनी

  • गलत जानकारी नुकसानदेह हो सकती है, अगर आप किसी भी खतरनाक या वॉयलेंट इन्फॉर्मेशन को शेयर होते हुए देखते हैं, तो उसकी रिपोर्ट करें।

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