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हालांकि सभी को अपने व्यक्तित्व और आत्माभिव्यक्ति का अधिकार है, परंतु हर कोई कुछ आधारभूत कदम उठा कर अपने आस पास के लोगों से संबंध सुधार सकता है। अपने इर्द गिर्द के लोगों पर बेहतर प्रभाव डाल और सुख्याति पाकर आपको नेटवर्किंग, व्यवसाय विकास एवं सामाजिकता में मदद मिल सकती है।

विधि 1
विधि 1 का 4:

हर बातचीत (Everyday Conversation) में दिलकश बनना

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    अपने हर मिलने वाले को सम्मान दें एवं उससे शिष्टता बरतें: इसका अर्थ है आपके मित्र, बिलकुल अनजान लोग और सबसे महत्वपूर्ण हैं, स्वयं आप! यदि आपकी प्रवृत्ति दूसरे लोगों के प्रति आलोचनात्मक है और आपका रवैया उनकी उपेक्षा करने का है, तो संभावना यही है कि आपको भी ऐसी ही नकारात्मक भावनाओं का सामना करना होगा। लोगों को स्वीकृत और प्रशंसित महसूस कराने से आपकी मित्र बनाने की संभावना बढ़ेगी।
    • अजनबियों से शिष्टता और शांति से मिलिये, धैर्य से उनसे समर्थन मांगिए, तत्परता से प्रत्युत्तर दीजिये और कृपया और धन्यवाद का ध्यान रखिए।
    • याद रखिए कि हर वह व्यक्ति जिससे आप मिल रहे हैं, मानव ही है। केवल इसलिए, कि कोई आपको भोजन परोस रहा है आपको उससे अशिष्ट होने का अधिकार नहीं मिल जाता है; उनसे वैसा ही व्यवहार कीजिये, जैसा कि उन परिस्थितियों में होने पर आप अपने लिए चाहते हों।
      • जैसे कि जे के रौलिंग ने कहा है, “कोई व्यक्ति कैसा है, यह सरलता से जानने के लिए देखिये, कि वह अपने बराबर वालों से नहीं, बल्कि अपने से निचले स्तर वालों से कैसे व्यवहार करता है।
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    आत्मविश्वासी बने रहिए: लोग उन्हीं के आसपास रहना चाहते हैं जिन्हें घमंडी हुये बगैर, स्वयं पर विश्वास होता है। दूसरों से बिगाड़े बिना, स्वयं पर विश्वास रखें। विश्वास का स्वस्थ स्तर वह है जब आपको लगता है कि आप मज़े में हैं, मगर कोई और है जो आपसे भी बेहतर है।
    • यदि आप सदैव अपनी आलोचना ही करते रहते हैं और स्वयं से नाखुश प्रतीत होते हैं तो आपको यह खतरा हो सकता है कि लोग भी आपके बारे में वैसा ही सोचने लगें। आखिरकार जब “आप” ही अपने से खुश नहीं हैं तो कोई और क्योंकर होगा?
    • सिक्के का दूसरा पहलू भी उतना ही बुरा है – यदि आप स्वयं पर मगरूर हैं तो लोग सोचेंगे कि आप स्वयं को इतना अधिक पसंद करते हैं कि किसी और को आपको पसंद करने की आवश्यकता ही नहीं है। लक्ष्य है संतोष, न कि घमंड।
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    ईमानदार रहिए, परंतु शालीनता से: अपने मित्रों और उन लोगों के साथ, जो आप की सलाह चाहते हैं, ईमानदार रहना विशेषकर महत्वपूर्ण है। आम तौर पर जब कोई झूठ बोल रहा होता है अथवा ढोंग कर रहा होता है, तो लोग पहचान जाते हैं; पाखंडियों को कोई पसंद नहीं करता है। जिन लोगों को आप अपने इर्द गिर्द चाहते हैं उन्हें झूठों को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
    • जब कोई पूछता है, “क्या इससे मैं मोटा लगता हूँ?” (हाँ, यह घिसी पिटी बात है, मगर यह है पारंपरिक उदाहरण), अपनी बात शालीनता से और ऐसे कहिए, कि वे खफा न हों। यदि आपको फ़ैशन की जानकारी हो तो कहिए क्यों। यह जानकर कि आप ईमानदार हैं और उनकी मदद की कोशिश कर रहे हैं, वे निश्चय ही आप पर विश्वास करेंगे।
    • और जो आपकी सलाह नहीं मांग रहे हों उनके साथ निर्दयता से स्पष्ट बात कहना एक पेचीदा विचार हो सकता है। इस तरह की समीक्षा को चर्चा में लाने से या तो प्रशंसात्मक प्रतिक्रियाएँ मिलेंगी या नाराज़ निगाहें, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व पर आधारित होंगी, इसलिए स्थिति का जाएज़ा निजी जोखिम पर ही लें। चाहे आप कितने भी सत्यवादी क्यों न हों, उन लोगों के साथ, जो आपके निकट नहीं हैं या आपके अच्छे मित्र नहीं हैं, संभवतः आपको नकारात्मक आलोचना प्रारम्भ करने से बचना चाहिए।
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    सुनिए: इस दुनिया में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जिसको ऐसा लगे कि लोग उसका बहुत ध्यान रख रहे हैं (कम से कम वह व्यक्ति जिसका पीछा पापाराज़ी लगातार न कर रहे हों)। हम मनुष्य जब बातचीत करते हैं, तब हममें से अधिकांश, किसी ऐसे को खोजते हैं जिसे वास्तव में “हमारी” बात सुनने की इच्छा हो – दूसरे की बात तो बाद में। ऐसा मत सोचिए कि आप उबाऊ हैं! आप दूसरे व्यक्ति को अपने बारे में अच्छा महसूस करने अवसर दे रहे हैं।
    • वैसे तो, जान बूझ कर सुनना महत्वपूर्ण है। यदि कोई लगातार आपको कुत्ते को नहलाने धुलाने की श्रेष्ठ विधियों के संबंध में बताता ही जा रहा हो, तो ऊंघ जाना, ठीक तो है, मगर अच्छे श्रोता का लक्षण नहीं है। हर समय अपना पूरा ध्यान देने का प्रयास करिए – आँखों से, गर्दन हिला कर, टिप्पड़ी कर के और अपने हाव भाव से – इन सभी से ध्यान दीजिये।
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    प्रश्न पूछिए: संवादपटु होने के लिए प्रश्न पूछना आवश्यक है (जब आप सुन रहे हों तब)। सामाजिक बातुनी विशेषज्ञ, बातें करने के उपरांत दूसरे व्यक्ति को संतुष्ट महसूस करा देगा, जिसे यह एहसास ही नहीं हुआ होगा कि उसे तो दूसरे व्यक्ति के संबंध में कुछ पता ही नहीं चला, क्योंकि सारे समय तो वही बात करता रहा था। वही बनिए। पूछिए कौन, क्यों और कैसे। दूसरा व्यक्ति प्रशंसित, चाहा गया महसूस करेगा और अपनी ही दुनिया में पहुँच जाएगा जिससे आप पर दबाव कम हो जाएगा। और इसके लिए “वे” “आपको” पसंद करने लगेंगे।
    • सभी द्वार खुले रखिए। यदि कार्यालय में जिल कहती है, “हे भगवान, मैंने अभी घंटों इस मनहूस पावर पॉइंट पर लगाए हैं“, तो बस कूद ही पड़िए! पूछिए कि वह किसलिए उसे बना रही थी, सामान्य से अधिक समय क्यों लगा, या उसके लिए उसने शोध कैसे किया था। यहाँ तक कि एक पावर पॉइंट जैसे घिसे पिटे विषय से भी ऐसी बढ़िया बातचीत शुरू की जा सकती है, जिस पर जिल ध्यान दे।
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    उनके नाम लीजिये: डेल कारनेगी की मशहूर पुस्तक “हाऊ तो विन फ्रेंड्स एंड इन्फ़्लुएन्स पीपल” का एक सिद्धान्त यह है कि बातचीत में व्यक्ति के नाम का उपयोग किया जाये। अपना नाम सुन कर हमारे मस्तिष्क का वह भाग क्रियाशील हो जाता है जो किसी भी और ध्वनि पर सुषुप्त ही रहता है [१] और हमें बहुत पसंद आता है। हमारा नाम हमारी पहचान है और किसी ऐसे के साथ बातचीत करके, जो कि उसका उपयोग करता है हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि हमारी पहचान को स्वीकार किया जा रहा है। तो अगली बार, जब आप उस परिचित से बात करें, तो उनका नाम बीच में कहीं ज़रूर डाल दें। संभावना यह है कि वे आप के साथ ऐसा संबंध प्रतीत करने लगेंगे जैसा कि अन्यथा नहीं हो सकता था।
    • यह करना बहुत ही सरल है। सबसे आसान तरीका है इसको अभवादन में ही जोड़ देना। “हे, कैसे हो?” से “हे, रॉब, कैसे हो?” कहीं अधिक निजी है। और यदि आप रॉब के काफ़ी निकट हैं तो कहिए, “हे। शानदार रॉबी! कहो मर्दे, कैसे हो?” जो कि बहुत चलता है। अभिवादन के अलावा भी, आप उसे कहीं भी, यूं ही लगा सकते हैं। वार्तालाप के शुरू में – “मेरे डेस्कटॉप के लिए इसके बारे में तुम क्या सोचते हो, रॉब?” – या केवल टिप्पड़ी जैसा “रॉब, तुम फिर मज़ाक करने लगे।“ रॉब को लगेगा कि वह आपका सबसे घनिष्ठ मित्र है।
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    अपने श्रोताओं को जानिए: संभावना यह है कि आप विभिन्न सामाजिक समूहों के लोगों को जानते होंगे। हारवर्ड में इंजीनियरिंग के कक्षा मित्रों द्वारा शुक्रवार की शाम का निमंत्रण, हाई स्कूल में लोगों द्वारा आपको पसंद किये जाने (यदि वे वास्तव में पसंद कर सकते हैं तो) से बिलकुल फर्क है। तो जानिए कि आप किस से निबट रहे हैं। उनकी रुचियाँ क्या हैं?
    • अगर आप सचमुच ही पसंद किए जाना चाहते हैं (मशहूर होना और दिलकश होना एक ही बात नहीं है) तो आपका भाग्यशाली हैं क्योंकि: आमतौर पर सभी मनुष्य एक जैसे गुणों को ही पसंद करते हैं। और हाँ, समृद्धि और आकर्षण उन प्रमुख गुणों में से एक नहीं हैं। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह पता चला है कि विश्वसनीयता, ईमानदारी, गर्मजोशी और दयालुता (सभी प्रकार के सम्बन्धों में) सबसे महत्वपूर्ण गुणों में, सर्वोपरि हैं, जबकि बहिर्मुखीपन, बुद्धिमानी और विनोदप्रियता उनके तुरंत बाद स्थान पाती हैं। [२]
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    प्रतिदान पहचानिए: आप खूब प्रश्न पूछ सकते हैं, अति शिष्ट हो सकते हैं, सब कुछ ठीक से कह सकते हैं मगर कभी कभी लोग आपको स्वीकार नहीं ही करेंगे। आप जब भी जॉनी के पास जाते हैं तो उसके पास चमत्कारी ढंग से कोई फोन आ जाता है, तो बस समझ जाइए। किसी और के साथ समय बिताइये। यह तो होगा – सबको तो प्रसन्न नहीं किया जा सकता। वैसे, प्रयास करना महत्वपूर्ण तो है, मगर वहीं, जहां उचित हो।
    • सम्बन्धों का अर्थ है लेन देन। यदि आप ही लगातार प्रयास करते हैं, टेक्स्ट भेजते है, दोस्ती के लिए आवश्यकता से अधिक शिष्ट बनते हैं और हाथ आगे बढ़ाते हैं तो ज़रा हालात पर गौर फ़रमाइए। यदि कोई कारण है (वह व्यक्ति परेशान है, सप्ताह में 60 घंटे काम करना पड़ता है, आदि), तब तो आप का ही सब कुछ करना ठीक है। मगर यदि वे दूसरों को तो प्रतिदान दे रहे हैं, मगर आप ही के लिए उनके पास समय नहीं है, तब तो कहीं और जाइए। आप सब के दोस्त तो नहीं हो सकते हैं।
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    उन्हें हँसाइये: सब लोग उस व्यक्ति को पसंद करते हैं जो कमरे में फैले हुये तनाव को दूर कर, उनको हंसा सके। विनोदप्रियता बहुत काम आ सकती है। जब लोगों को पता चलता है कि आप खुशमिजाज़ हैं और मज़े करना चाहते हैं तो वे भी आपके साथ हो जाना चाहते हैं। यह मिलनसार होने का भी एक बढ़िया तरीका है क्योंकि लोगों को पता होता है कि उन्हें कहना क्या है (जैसे आप दिलकश होना चाहते हैं, वैसे ही वे भी) – वे भी आपसे हंसी मज़ाक कर सकते है! सबकी जीत।
    • अगर कभी कभार लोगों को “आप पर” हंसी आ जाती है, तो! अगर आप भी हंस सकते हैं, तब तो बहुत बढ़िया। इससे पता चलता है कि आप धरती से जुड़े हुये हैं और आपको अपनी छवि की बहुत अधिक परवाह नहीं है – दो बढ़िया बातें। और शोध से यह भी पता चला है कि स्वयं का मज़ाक बनाने वाले को लोग पसंद करते हैं और उस पर अधिक विश्वास करते हैं – आप सचमुच के मनुष्य बन जाते हैं। [३] ठीक लगता है, न?
विधि 2
विधि 2 का 4:

दिलकश हाव भाव में निपुणता पाना

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    मुस्कुराने की याद रखिए: इस सीधी सादी चेष्टा से आप से अच्छी मनोभावनायेँ प्रकट होती हैं, और आप अपने आस पास के सभी लोगों का मूड सुधार सकते इन। चाहे आपको कुछ खास खुशी नहीं भी हो रही हो, या आप पर उदासी का दौरा पड़ा हो आपकी पेशियों के द्वारा उत्पन्न स्वैच्छिक मुस्कान कभी कभी खुशमिजाज़ी एवं प्रसन्नता की भावनाओं को शुरू भी कर सकती है।
    • उन खुशनुमा विचारों की या बीते हुये शानदार पलों की याद करें जिनमें आपके चेहरे पर सचमुच की मुस्कान आ गई थी। कुछ नहीं भी होगा तो, कम से कम लोग यह तो सोचेंगे कि आखिरकार यह मुस्कुरा क्यों रहा है!
    • त्योरियाँ चढ़ाने के लिए मुस्कुराने से, चेहरे की, अधिक मांसपेशियाँ काम करती हैं – और यह अच्छा भी है! हरेक को त्योरियाँ चढ़ाने से अधिक मुस्कुराना चाहिए।
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    खुलिए: बात यह है कि हर कोई यह चाहता है कि लोग उसे पसंद करें। सीधी बात है – आप जितने अधिक दिलकश होंगे, जीवन उतना ही सरल हो जाएगा। चूंकि हरेक के जीवन में वही कष्ट हैं, जो आपके जीवन में हैं, तो थोड़ी उनकी भी मदद करें। मिलनसार बने रहिए (जब आप लोगों से मिलने जुलने का प्रयास न कर रहे हों – जो कि आपको करना चाहिए)। मुस्कुराइए, अपनी बाँहें बांधे मत रहिए और अपना फोन कहीं रख दीजिये। आपके सामने पूरा विश्व है। यदि आप उसको जाने देंगे, तो फिर बचेगा क्या?
    • उन लोगों के बारे में सोचिए, जिनसे आप मित्रता करना चाहते हैं। संभावना यही है कि आप उनका विवरण देते समय बदमिज़ाज विशेषण तो नहीं ही लगाना चाहेंगे। यदि आप आधी इच्छा से भी दोस्त बनाने की कोशिश कर रहे हों तब भी यह सुनिश्चित करें कि आपकी मंशा स्वागत करने की लगे। तनाव में मत रहिए, माहौल में दिलचस्पी रखिए और लोगों पर ध्यान दीजिये। आधी लड़ाई तो अपने जीत ली, सच में!
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    नज़रें मिलाइये: कभी आप ने ऐसे लोगों से बातचीत की है जो आपको छोड़ कर कमरे में और सभी चीजों को देखते रहे हों? बहुत गंदा लगता है – जैसे ही आपको यह समझ में आता है, मन करता है कि तुरंत ही बोलना बंद कर दें, और देखें कि वे दूसरी दुनिया से वापस आ पाते हैं अथवा नहीं। वैसे व्यक्ति मत बनिए। यदि कोई यूं ही कुछ कहता है तब तो भटक जाने में कोई हर्ज नहीं है, मगर अगर उसकी, उस विषय में, वास्तव में रुचि है तो पूरा ध्यान दीजिये। अपने लिए भी तो आप यही चाहेंगे!
    • कुछ लोगों को नज़रें मिलाने में उलझन होती है – बस वे नहीं मिला सकते हैं। यदि आप भी वैसे ही हैं, तो स्वयं को भरमाने के लिए उनकी नाक की नोक या भौंहों के मध्य में देखिये। जब आप लोगों की ओर नहीं देखते हैं तब उन्हें अजीब सा लगता है, इसलिए आप उन्हें “और” स्वयं को भरमाने के लिए उनकी आँखों के मध्य भाग के आस पास ही बने रहिए।
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    नकल करिए: नकल करना या उतारना, दो लोगों में, अवचेतन रूप से घनिष्ठता बढाने का एक चिर परिचित तरीका है – जहां दोनों एक जैसे हाव भाव, मुद्राएँ, शारीरिक स्थितियाँ बनाए रखते हैं। जब आप बातचीत कर रहे हों, तब ऐसा करने का प्रयास करें – एक जैसा “दिखाई देने” से निकटता होती है। मगर चूंकि यह तो अवचेतन का मामला है, इसके लिए बहुत कोशिश मत करिए – आप उलझ जाएँगे!
    • जब आप बराबर वालों के साथ हों तब तो यह ठीक है – मगर जब आप अपने से ऊपर वालों के साथ हों तब यह ठीक नहीं है। हाल के शोध से पता चला है कि – जब दो लोग उचित वातावरण में न हों (जैसे पैसे की चर्चा के समय, जीविका के सम्बन्ध में, वगैरह) तब - इसके हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं – जैसे संबन्धों में शीतलता आना आदि। [४] तो, ये सब अपने उन मित्रों के साथ करें जिन्हें आप अपने निकट लाना चाहते हैं, न कि अपने उच्चाधिकारी के साथ।
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    मर्यादा में रहिए: संभावना है कि जीवन में कभी न कभी किसी ने आपसे कंधे पीछे, सिर ऊंचा करने और कस कर हाथ मिलाने की महत्ता के विषय में अवश्य कहा होगा। इन सब चीजों का कहीं न कहीं महत्व है (जैसे नौकरी के लिए साक्षात्कार के दौरान), मगर मित्र बनाने और दिलकश बनने में इनकी गुंजाइश नहीं है। आपके शरीर को तनावरहित होना चाहिए, कड़क नहीं। ऐसा प्रदर्शित करिए कि आप किसी को चुनौती नहीं दे रहे हैं।
    • किसी का अभिवादन करने का सोचिए। उस वीडियो में जहां बिल क्लिंटन एवं नेल्सन मंडेला मिलते हैं (दो ऐसे व्यक्ति जिन्हें स्वयं को महान समझने का अधिकार था), दोनों मर्यादा प्रदर्शित करते हैं – थोड़ा झुकना, एक कदम बढ़ना, मुक्त हाथ से थोड़ा अधिक छूना, मुसकुराना। [५] वे यह संदेश दे रहे हैं कि वे एक दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे को चाहते हैं – जिससे कि उनकी दिलकशी बढ्ने में काफ़ी सहायता होती है।
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    स्पर्श की शक्ति का उपयोग करें: मनुष्य को जीने के लिए दूसरे मनुष्यों की आवश्यकता होती है, और हाँ, प्रसन्न रहने के लिए भी। वे बच्चे जिन्हें स्पर्श नहीं किया जाता है, उन्नति नहीं कर पाते हैं। और यह बात बड़े होने पर बदल नहीं जाती है! यदि आप किसी के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना चाहते हैं तो, स्पर्श के छोटे से छोटे अवसर भी खोज निकालें। निश्चय ही, उचित स्पर्श! बांह या कंधे को छूना या हाई फ़ाइव। ये छोटे छोटे पल, स्पर्श से जुड़ कर, बंधनों में परिवर्तित हो जाते हैं।
    • सोचिए कि कोई आपके पास आए और कहे, “हाय, कैसे हैं आप?” अब कल्पना करिए कि वही व्यक्ति आपके पास आए और कहे, “[आपका नाम]! कैसे हैं आप?” और जब पास से निकले तो हल्के से आपकी बांह को स्पर्श करे। कौन सा अभिवादन आपको गर्मजोशीला लगेगा? शायद दूसरा वाला, है न? उसी का उपयोग करिए। इसमें कुछ मूल्य नहीं लगना है।
विधि 3
विधि 3 का 4:

इस संबंध में विचार करिए

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    लोगों को पसंद करिए: किसी के द्वारा स्वयं को पसंद कराने का सबसे सीधा तरीका है उसको पसंद करना। बहुत कठिन बात तो नहीं है? आप किसी न किसी ऐसे व्यक्ति से अवश्य मिले होंगे जिसे आपकी तनिक भी परवाह न रही हो। और आप इसके विपरीत परिस्थिति में भी रहे होंगे – ऐसे लोग जो आपको प्रशंसनीय प्रतीत कराएं और प्रसन्न हों कि आप वहाँ हैं। चाहे आप वजह न भी बता सकें, आप किसको अधिक पसंद करेंगे?
    • आप यह आशा नहीं कर सकते हैं कि लोग तो आपको दिलकश समझें, मगर आप अपने बारे में ऐसा न सोचें। संभावना यह है, कि आप भी “निश्चय ही” उन लोगों को पसंद करते होंगे जो आपको पसंद करते हैं (अन्यथा आप उनकी परवाह क्यों करने लगे?) तो यह बात स्पष्ट क्यों नहीं कर देते! जब वे कमरे में आयें तब मुस्कुरा दीजिये। बातें करिए। जो बातें उन्होने पिछले दिनों कही हों उस पर कुछ टिप्पड़ी कर दीजिये, ताकि उनको पता चले कि आप उनकी बात सुन रहे थे। छोटी छोटी बातों से उनको आपकी ईमानदारी का पता चलेगा।
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    सकारात्मक रहिए: सभी लोग ऐसे ही व्यक्ति के इर्द गिर्द रहना चाहते हैं जो खुशमिजाज़ हो और जिसके आने से रौनक आ जाये। और इसका उल्टा भी सही है – कोई भी रोनू बाबा के पास नहीं रहना चाहता है। लोग आपको पसंद करें, इसके लिए आपको सकारात्मक होना पड़ेगा। इसका मतलब है मुसकुराना, उत्साही होना, प्रसन्न होना और जीवन के उजले पहलुओं को देखना। आप शायद ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हों जिसका आप अनुकरण कर सकते हैं।
    • यह तो हर समय करने की बात है। यदि आप भीतर से नकारात्मक होंगे तब लोगों के सामने सकारात्मक बनना बहुत कठिन होगा। आपको अपने मस्तिष्क को कुछ सिखाना होगा – सकारात्मकता उनमें से एक है। अकेले में भी सकारात्मक विचारों को लाने का प्रयास करिए, जिससे कि थोड़े ही समय में आपको उसकी आदत हो जाये।
    • जानिए कि कब सहानुभूति प्रकट की जाये। सामूहिक शिकायतों के कारण एक स्तर की एकजुटता तो हो सकती है। अपने सहकर्मियों से उच्चाधिकारी के घटिया होने की चर्चा से, मित्रता तो घनिष्ठ हो सकती है – परंतु यदि आप केवल यही करेंगे, तो आप नकारात्मकता से सम्बद्ध मान लिए जाएँगे। शिकायतें कभी कभी ही करिए – वह भी बात करने या बदलने के लिए नहीं, अपितु बस कहने के लिए।
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    अपनी अनूठी क्षमताओं को पहचानिए और उनको दिखाने का अवसर खोजिए: आपके मित्र आपके किन कौशलों और गुणों की प्रशंसा करते हैं? उन्हें विश्व को दिखा डालिए! जिनमें कुछ आग और क्षमताएँ होती हैं लोग उनकी ओर स्वाभाविक रूप से आकृष्ट होते हैं। यह हमको उपयोगी, मूल्यवान और दिलचस्प बनाता है। जो भी है, अपनी पहचान को गर्व के साथ प्रदर्शित करिए।
    • यदि आप अच्छे गायक हैं, तो करिओके रात्रि में सबका मनोरंजन करें। बढ़िया बेकर हैं? कार्यालय में कुछ बना कर ले जाइए। चित्रकार हैं? अपने समूह को अपने चित्र दिखाने के लिए बुलाइये या सार्वजनिक स्थल पर, कुछ बना कर प्रदर्शित करिए। वे आपको बेहतर जान सकें, इसलिए लोगों को अपने व्यक्तित्व को देख लेने दीजिये।
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    महत्वपूर्ण यह है कि स्वयं ही बने रहिए: यह तो असंभव है कि “सब लोग” आपको पसंद करें – अलग अलग व्यक्तित्व कभी न कभी तो जीवन में टकराएँगे ही – परंतु आपको उनकी प्रशंसा प्राप्त होगी जो आपके अनुरूप होंगे और जिनका आपके जीवन में महत्व होगा।
    • लोग उनको पसंद करते हैं जो नेकनीयत और खरे होते हैं, इसलिए जीवन में ऐसे कदम लेने से बचिए जिनके कारण आप स्वयं से ही असहज हो जाएँ। कृत्रिमता उन सभी को आपसे दूर रहने का संदेश देगी, जो आपके साथ जुड़े हैं। जो भी आप कहें या करें, उसे दिल से करिए। अगर आप दिलकश होना चाहते है तो आपको नेकनीयत और अच्छा होना होगा।
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    यह जान लीजिये कि दूसरे लोग, सतही चीजों से केवल “पल भर के लिए” ही प्रभावित हो सकते हैं: “वास्तव में” तो वे ईमानदारी ही पसंद करते हैं। तो बाहरी दिखावा जैसे रईसी और तंदरुस्ती का दिखावा शायद आपको एक या दो प्रशंसक तो दिलवा सकता है, मगर वे अर्थहीन और निश्चय ही बहुत थोड़े समय के लिए होंगे। आपको ऐसा लग सकता है कि आकर्षक होने पर लोग आपको पसंद करने लगेंगे – और ऐसा हो भी सकता है, मगर बस एक सीमा तक। आपको इसकी पुष्टि करनी होगी। अगर लोगों को पता चलेगा कि आप झूठी बकवास कर रहे हैं तो चाहे आप कितने भी आकर्षक क्यों न हों, वे आपका साथ तुरंत छोड़ देंगे।
    • हाल के एक अध्ययन में लोगों से पूछा गया कि उनके “विचार” से अन्य लोग अपने मित्रों और संबन्धों में किन गुणों को खोजते हैं। धन, रूप-रंग, और प्रतिष्ठा का स्थान काफ़ी ऊपर था। मगर जब उनसे पूछा गया कि “वे” किसे मूल्यवान समझते हैं, तो उनका जवाब था सच्चाई, गर्मजोशी और दयालुता। समाज हमें बताता है (और वह भी गलत) कि रूप-रंग और धन, किसी भी और चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण हैं और अन्तर्मन में हम भी जानते हैं कि यह सत्य नहीं है। [६] यदि आप चाहते हैं कि लोग “सचमुच” में आपको पसंद करें तो बाहरी दिखावे के स्थान पर, जो अंदर है उसकी चिंता करिए।
      • इसके साथ ही, साफ सुथरे रहना भी महत्वपूर्ण है। अगर आप गोबर जैसी बदबू करते रहेंगे तो लोग आपको बिलकुल भाव नहीं देंगे। चाहे आप मशहूर संत या अभिनेता जैसे ही क्यों न दिखें, आपको तिरस्कार ही मिलेगा। इसलिए, जाने से पहले, स्नान करिए, दाँत साफ करिए, शीशे में देखिये और “तब” एक मुस्कुराहट पहन कर कहीं भी जाइए।
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    समझ लीजिये कि आप असुरक्षित महसूस करेंगे: दिलकश बनने की तमन्ना आपको दूसरों की दया पर ला कर छोड़ती है। यह करने के लिए, अपने सुरक्षा क्षेत्र से निकल कर जाने में आपको असहज लग सकता है। आपके कृत्य आपको भयावह लगेंगे। यह अच्छा है। इससे विकास होता है। जब तक आपको लगता है कि आप अपने आपे में हैं तब तक आप न सिर्फ अपने चरित्र निर्माण में लगे होते हैं बल्कि उसका सुधार भी कर रहे होते हैं। यह डरावना हो सकता है, मगर इसका यह मूल्य उचित ही है।
    • दिलकश होने की तमन्ना करने और खुश होने के लिए दिलकश होने की ज़रूरत में फर्क है। आपकी आत्म-छवि दूसरों की स्वीकृति पर आधारित नहीं होनी चाहिए; क्योंकि वह तो आपको बहुत जल्दी से घायल कर सकती है। मगर यदि आप स्वयं से संतुष्ट हैं और केवल लोगों के बीच में सहज भाव से रहना चाहते हैं, तो यह सम्मानीय है। लोग इसे देखेंगे और प्रतिक्रिया करेंगे। और यह डर समय के साथ समाप्त हो जाएगा।
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    अपनी असुरक्षाओं पर नियंत्रण रखें: अधिकांश लोग ऐसे लोगों से चिढ़ जाते हैं जो अपनी असुरक्षाओं से छुटकारा नहीं पा सकते। ऐसा कथन, “यह ठीक है ... मैं इसी लायक हूँ” या लगातार यह कहते रहना कि कितना मोटा या बदसूरत हूँ ऐसा संकेत देते हैं कि आप स्वयं को नापसंद करते हैं। यह व्यक्तिगत नकारात्मकता किसी के लिए भी उचित नहीं है। तो उसको बाहर ही छोड़ दीजिये। यह आपके लिए ठीक नहीं है और न ही आपकी मित्रताओं के लिए।
    • असुरक्षाओं का अर्थ है वे भावनाएँ और व्यवहार जो हम तब प्रदर्शित करते हैं जब हम स्वयं से असहज होते हैं। यदि आप स्वयं से सहज नहीं हैं तो कमरे में उपस्थित सब कोई निरुत्साहित हो जाएँगे और बहुत से लोग तो इस स्थिति से निबट भी नहीं सकते हैं। विनम्र अथवा अहंकारी दिखने की परवाह मत करिए। चीज़ें जैसी हैं, वैसी ही बताइये। आपका भी कुछ मूल्य है। हम सबका है।
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    जान लीजिये कि आप अपने विचारों को नियंत्रित कर सकते हैं: नकारात्मकता सीखी भी जा सकती है और भुलाई भी; कोई नहीं कहता है कि, “हे भगवान मेरा बच्चा कितना ‘नकारात्मक’ है।“ यदि सकारत्मकता आपके लिए समस्या है, तो सौभाग्य से आप ही वह व्यक्ति हैं जो इस परिस्थिति को बदल सकते हैं! आपका मस्तिष्क लचीला होता है और उसे प्रशिक्षित किया जा सकता है। आपको बस उसके लिए तैयारी करनी है और शुरू कर देना है।
    • शुरू करने की सबसे आसान विधि है उसको रोक देना। नकारात्मकता को राह में ही रोक दीजिये। जब आप स्वयं को अपने बारे में कुछ बुरा विचार करते हुये पाएँ, तो उस विचार को पूरा होने का अवसर ही मत दीजिये। उसके स्थान पर किसी अधिक वास्तविक और सकारात्मक चीज़ को ले आइये। आपको अच्छा भी लगेगा। जैसे “मैं बहुत मोटा हूँ” के स्थान पर सोचिए कि “मैं वज़न कुछ कम करना चाहता हूँ। मगर अब उसके लिए क्या करूँ?” और बस नई विचार शृंखला प्रारम्भ हो जाएगी। तो बस शुरू करिए।
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    अन्य लोगों के पूर्वनिर्धारित विचारों की परवाह न करें: हमने देखा है कि कैसे विश्वसनीयता एक अत्यंत दिलकश विलक्षणता है और इसकी चिंता नहीं करना कि आप स्वयं को कैसे प्रस्तुत करते हैं, भी इसी प्रकार की विलक्षणता है। जब आप स्वयं को प्रस्तुत करना प्रारम्भ करते हैं तब लोग आप पर ध्यान देते हैं। पार्टी में उस व्यक्ति की याद करिए जो “दिखावा” कर रहा था। वह कमरे में उपस्थित सभी लोगों को अपना पौरुष दिखाने का प्रयास कर रहा था। यह तो आकर्षक नहीं था। सच तो यह है कि यह अभद्र और अदर्शनीय था; उसे लग रहा था कि जो वह स्वाभाविक रूप से था, वह काफ़ी नहीं था। वह व्यक्ति मत बनिए।
    • आप मूर्ख हैं, हिप्पी हैं, या खिलाड़ी हैं, इससे कोई मतलब नहीं है। अगर लोगों को लगता है कि आपका चमकीली नेल पोलिश लगाने के शौक का अर्थ है कि आप मूर्ख हैं, तो उनको इस भुलावे में रहने दीजिये। यदि उनको लगता है कि आपका वेगान होना आपको बेवकूफ उदारपंथी बना देता है, तो लगने दीजिये। यह तो हास्यास्पद भी है। लोग आप के संबंध में धारणाएँ बनायेंगे – बनाने दीजिये। जो वे चाहें, उन्हें वह सोचने दीजिये। आप पर उसका कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
विधि 4
विधि 4 का 4:

दिलकश आदतें अपनाना

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    गर्मजोशी और दयालुता बनाए रखिए: क्या आपको पता है कि शरमीले लोगों पर बुरे इल्ज़ाम लगते हैं? क्योंकि लोग उनके शर्मीलेपन को उनका भावना रहित होना एवं उदासीनता समझते हैं। ये वे दो गुण हैं जो लोगों को डराते हैं और विमुख कर देते हैं। तो उसके विपरीत बनिए! गर्मजोशी और दयालुता को किसे भी समाज में मूल्यवान समझा जाता है – उससे पता चलता है कि आप को दूसरे के हित की चिंता है और आप उनका भला चाहते हैं। इसको कौन पसंद नहीं करेगा।?
    • निरुद्देश्य ही दयालुता के कार्य करने शुरू करें: दूसरों के लिए कुछ करिए, चाहे आप उनको नहीं भी जानते हों। जब किसी इमारत के अंदर या बाहर जा रहे हों तो द्वार पकड़ लीजिये, यदि किसी अनजान व्यक्ति से भी कुछ सामान गिर जाये तो उसे उठाकर दे दीजिये, यदि कोई समूह फोटो लेने का प्रयास कर रहा हो तो आप स्वयं फोटो लेने की पेशकश करिए। इस प्रकार की स्वार्थहीन गतिविधियां दूसरों को भी प्रतिउत्तर में ऐसा ही कुछ करने के लिए अभिप्रेरित करती हैं – केवल आपके लिए नहीं, अपितु जीवन में दूसरों के लिए भी।
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    ”कुछ स्तर तक” बहिर्मुखी बनिये: सामान्य तौर पर लोग बहिर्मुखी होने को कुछ महत्व देते हैं। और इसका महत्व भी है: हम सभी चाहते हैं कि बात चीत और सामाजिकता सहजता से हो सके और बहिर्मुखी लोगों की उपस्थिति इसको अटपटे होने के खतरे से बचा लेती है। यदि आप मेज़ पर बैठें और कुछ भी न बोलें, तब तो, आप वहाँ न भी हों तो चलेगा। बोलिए! अपनी आवाज़ सुनी जाने दीजिये। लोगों को पता कैसे चलेगा कि आप की कीमत क्या है?
    • कम से कम, यदि आपको पता है कि आपसे यह अपराध हो रहा है और आप इसको रोक नहीं पा रहे हों, तो ऐसा कहा जाता है कि, आप इसको कम तो कर ही सकते हैं। हालांकि सभी लोग अच्छी बातचीत करने वाले को पसंद करते हैं, मगर वे ऐसे व्यक्ति के साथ भी अपना समय नहीं व्यतीत करना चाहेंगे जो उनको एक एक शब्द बोलने के लिए तरसा दे। यदि पिछले 5 बिन्दु आपके बारे में थे तो ज़रा समझ से काम लीजिये। संभव है कि दूसरा व्यक्ति ऐसा न हो, जो कि बीच में कूद पड़े; हो सकता है कि उसे निमंत्रण की आवश्यकता पड़ती हो। उनकी राय मांगिए ताकि वे भी आपके साथ महत्वपूर्ण हो सकें।
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    चापलूस न बनिये: लोग दिलकश लोगों को तो पसंद करते हैं, मगर ऐसे लोगों को नहीं जो चाहे जाने के लिए मरे जा रहे हों। यदि आप लगातार प्रशंसोक्तियाँ दिये जा रहे हैं और उनके पीछे दुम हिलाते हुये घूम भी रहे हैं, तब तो जो आप चाह रहे हैं वह आपको वह नहीं मिलेगा। आप कितने भी शिष्ट क्यों न बनें आप को उस चिपकू कीड़े जैसा समझा जाएगा, जिसे बस उड़ा ही देना चाहिए। चिपकू, ज़रूरतमन्द होने से बचिए।
    • यदि आप ध्यान देंगे तो आपको संकेत मिल जाएँगे। यदि कोई आपके फोन कॉल का जवाब नहीं देता है, केवल अच्छी अच्छी बातें ही करता है, ज़्यादा कोशिश भी नहीं करता है – और आप उसके साथ रहने के लिए उसके पीछे लगे रहते हैं, तो आप चापलूस हैं। आपकी नीयत अच्छी हो सकती है, मगर हताशा आकर्षक नहीं होती है। छोड़ दीजिये और देखिये कि क्या वे आपकी ओर आते हैं।
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    कृपादृष्टि मांगिए: यदि आपने बेंजामिन फ़्रेंकलिन प्रभाव के बारे में सुना हो तो आप समझ जाएँगे कि हम कहना क्या चाहते हैं। अक्सर हम “अपने ही” व्यवहार से वे संकेत पाते हैं कि हम किस प्रकार सोच रहे हैं। यदि आप किसी के लिए कुछ अच्छा करते हैं, तो आप उसे अधिक चाहने लगते हैं। यदि आप किसी को चोट पहुंचाते हैं तो आप उसको कम चाहेंगे। इसको कहते हैं संज्ञानात्मक असंगति। [७] अतः कृपादृष्टि मांगिए – यदि वह व्यक्ति आप पर उपकार कर देता है, तो शायद अंततोगत्वा वह आपको अधिक चाहने लगेगा।
    • हम कर ये रहे हैं कि अपने व्यवहार का अवचेतना से अध्ययन कर रहे हैं और स्वयं से पूछ रहे हैं कि हमने ऐसा क्यों किया। हमने अपने परिचित को अपना प्रिय कॉफी का प्याला क्यों उधार दिया? शायद, ... इसलिए कि हम उनको पसंद करते हों। धीमी समझ! हालांकि हास्यास्पद है, मगर किसी को चाहने का निर्णय करना, सचमुच चाहने से फर्क नहीं है।
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    अपने वादे निबाहिए: सुनिश्चित करिए कि आप अपनी सारी वचनबद्धताएँ पूरी करें। वे “वचनबद्धताएँ” इसलिए कहलाती हैं क्योंकि आपने किसी कार्य अथवा कार्यक्रम को पूरा करने के प्रयास को करने की प्रतिज्ञा की है, अतः आप अब उससे मुकर नहीं सकते हैं। यदि किसी प्रतिज्ञा को पूरा करना संभव न हो सके, तो जैसे ही आपको पता चले, उसमें शामिल उन सभी को सूचित करिए कि आपसे नहीं हो पा रहा है। हो सकता है कि अन्य लोग इससे चिढ़ जाएँ, मगर कम से कम उनको इसी की आशा थी और वे अपने कार्यक्रम आवश्यकतानुसार समायोजित कर सकते हैं।
    • चाहे किसी भोज में जाना हो या कोई परियोजना पूरी करनी हो, महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने मित्रों एवं सहकर्मियों को अपनी प्रगति से अवगत कराते रहें। चाहे वह, यह कहने के लिए एक छोटा सा ई मेल हो कि सब ठीक चल रहा है या एक नोट जिसमें अयाचित देरी के लिए क्षमायाचना की गई हो, लोग सम्प्रेषण पसंद करते हैं। चाहे परियोजना समय पर ही पूरी क्यों न हो जाये और गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हो मगर यह पता नहीं होना कि क्या हो रहा है, बहुत परेशानी उत्पन्न करता है।
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    बिना प्रवचन दिये अपनी आस्थाओं पर डटे रहिए: दिलकश होने के लिए आपके पास व्यक्तित्व होना ही चाहिए। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। व्यक्तित्व होने के लिए आस्था, विश्वास एवं मान्यताएँ होनी चाहिए। उनको अभिव्यक्त करिए! वे आपका हिस्सा हैं। वे कमरे को जीवंत बना देती हैं। यदि हम सबके पास एक जैसी ही आस्थाएँ होतीं, तो ज़िंदगी कितनी उबाऊ हो जाती। अपनी दो कौड़ियाँ भी लगा ही दीजिये। हो सकता है कि इससे कुछ दिलचस्प हो ही जाये।
    • अपनी आस्थाओं के लिए डटे रहना एक चीज़ है; उन पर प्रवचन देना दूसरी। यदि आप किसी के विश्वासों से असहमत हैं तो कोई बात नहीं! उसको ज़रा देखिये। उसके संबंध में बात करिए। अपने विपरीत दृष्टिकोणों पर बौद्धिक चर्चा करिए। उनका मुंह बंद करवाने के स्थान पर, यह बताने के स्थान पर कि वे गलत हैं, और अपने विचारों पर प्रवचन देने के स्थान पर, दिमाग खुला रखिए और उनका दृष्टिकोण समझने का प्रयास करिए। शायद आपको भी, कुछ समझ में आ जाये।
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    जान लीजिये कि किसी भी और चीज़ से, लोगों को प्रसन्न रखना अधिक महत्वपूर्ण है: लोग संवेदनशील जीव होते हैं। यदि कोई आपका परिचित यह कहना शुरू करता है कि ईस्टर बनी जीसस क्राइस्ट का खोया हुआ बेटा है और आप “सचमुच” में चाहते हैं कि वे आपको पसंद करें तो यह कहने की रट मत लगा लीजिये कि नहीं, वे तो स्वाभाविक रूप से ही पैदा होते हैं। होने दीजिये कैसे भी। और यही बात इस बारे में भी, कि जब कोई कहता है कि, “मैं वास्तव में सोचता हूँ कि चामत्कारिक रूप से, मैं कितना व्यावहारिक हूँ। अर्थात मेरे सारे काम सादगी पूर्ण एवं निस्वार्थ होते हैं।“ ये वह सुअवसर नहीं है जब आप उनकी प्रचंड उद्दंडता एवं आत्मबोध की कमी की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कराएँ।
    • मगर यह सब केवल तब, जब आप चाहते हों कि वे लोग आपको पसंद करें। बहुत देर तक यह सुनने के उपरांत कि वह व्यक्ति कितना महान है, आप का धैर्य खो बैठना स्वाभाविक है। परंतु यदि आपकी जान पहचान उस व्यक्ति या समूह से नई नई है तो कभी कभी सर्वश्रेष्ठ यही होता है कि जैसा चल रहा है उसको वैसे ही चलने दिया जाये।
  8. सभी को पुनर्पुष्टिकरण की आशा होती है। हम चाहते हैं कि कोई हमें बताए कि हम सुंदर हैं, स्मार्ट हैं, मज़ाकिया हैं, और हमसे ही सब चलता है, वगैरह वगैरह। और यह सब कभी भी काफ़ी नहीं होता है। तो, जब कोई व्यक्ति आ कर हमसे कुछ सकारात्मक कहता है, तो बस हमारा दिन बन जाता है। ऐसा भी सोचिए: कुछ लोगों का तो, बिना कुछ भी सकारात्मक सुने, पूरा जीवन बीत जाता है। उसको बदल डालिए। आपका केवल कुछ पलों का समय लगेगा।
    • ईमानदार रहिए: ऐसा नहीं कि किसी के पास जा कर कहिए कि आपकी ख़ाकी पतलून बहुत अच्छी लग रही है। इसको अर्थपूर्ण बनाइये। ऐसा कुछ कहिए जो उनके बारे में हो। वह एक सीधी सादी बात भी हो सकती है, जैसे “वाह क्या बढ़िया विचार है।“ आम तौर पर छोटी बातें दिल से आई लगती हैं (और विश्वसनीय भी)। किसी चुट्कुले के बाद, “आप बहुत ही मज़ाकिया हैं” या “जो लेख आपने लिखा था वह वास्तव में सारगर्भित था, उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।“ जो भी आप कहें, वह सचमुच में कहें। शायद आपको उसी का कुछ वापस मिलेगा।
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    प्रयास करिए: अधिकांश लोग सामाजिक तितलियों जैसे नहीं होते हैं। हम सभी लोग चाहते हैं कि हम पर ध्यान दिया जाये, मगर हमें पता नहीं होता है कि कैसे लोगों से इसको पाया जाये। सामाजिक परिस्थितियों में हम सभी असुरक्षित महसूस करते हैं और चाहते हैं कि वह कम से कम हो। इस बात को समझ लेना कि हम सभी एक ही नौका पर सवार हैं, आपको यह समझने में मदद करेगा कि प्रयास करना कोई अटपटी बात नहीं है – बल्कि यह तो साहसी कृत्य है। अन्य सभी लोग “चाहते” हैं, बस वे केवल आलसी हैं। यदि आप किसी से मित्रता करना चाहते हैं, तो उनसे बातें करना शुरू कर दीजिये। हो सकता है कि वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे हों।
    • चाहा जाना, तब तक संभव नहीं है जब तक कि आप की हिस्सेदारी उसमें न हो। अक्सर हमें लगता है कि हम दिलकश नहीं हैं जबकि वास्तविकता में, लोगों में किसी तरह की कोई भावना नहीं होती है – क्योंकि हमने तो अपने को उनके सम्मुख प्रस्तुत ही नहीं किया होता है। अगली बार जब आप किसी ऐसे समूह में हों जहां आप चाहते हों कि आपको दिलकश समझा जाये, अपने व्यक्तित्व का प्रदर्शन करिए। उस समूह में स्वयं को किसी भूमिका में जमाने का प्रयास करिए। चुटकुला सुनाइये, मुस्कुराइए, सीधी सादी बातचीत शुरू कीजिये। वहीं से सब कुछ शुरू हो जाएगा।

सलाह

  • शेख़ी मत बघारिए। शेख़ी मारने वाले पसंद नहीं किए जाते हैं। आप बेहतर नहीं लगते हैं; ऐसा लगने लगता है कि आप प्रशंसा की खोज कर रहे हैं। और यह प्रीतिकर भी नहीं है।
  • ईमानदार रहिए, जैसे कि प्रशंसोक्तियाँ वास्तविक होनी चाहिए। इससे वह व्यक्ति स्वयं को प्रशंसित समझेगा और आपके संदर्भ में सहृदय हो जाएगा क्योंकि आपने समय निकाल कर उस पर ध्यान दिया है।
  • स्वयं को किसी व्यक्ति के लिए दिलकश बनाने के लिए एक बहुत ही आसान सलाह है – उससे किसी चीज़ के संबंध में सहायता मांगिए। कुछ ऐसी सहायता मांगने की प्रयास करिए जिसमें उनकी रुचि और कौशल हो। इससे न केवल यह पता चलेगा कि आप उन पर ध्यान दे रहे हैं, बल्कि यह भी, कि आप उनके उस अधिकार का सम्मान कर रहे हैं जिसमें उनकी रुचि है।
  • उनकी रुचियों पर अपनी से अधिक ध्यान केन्द्रित करिए। उनसे उनके स्कूल, गुणों, कार्य आदि के बारे में पूछिए और अपने संबंध में केवल आवश्यकता होने पर ही बताइये। ऐसे व्यक्तियों को लोग, अधिक मित्रवत और दूसरों में दिलचस्पी रखने वाला मानते हैं।
  • दिलकश वे लोग होते हैं जो दूसरों को पसंद करते हैं। जब आप उनको पसंद करते हैं तब लोगों को पता चल जाता है। यदि आप चाहते हैं कि कोई आपको पसंद करे, तो किसी ऐसी चीज़ पर ध्यान केन्द्रित करिए जो आप उनके बारे में पसंद करते हों। यदि आप उनको सचमुच में नापसंद करते हैं .... तब शायद यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि वे आपको पसंद करें।
  • उन्मुक्त रहिए। यदि आप दुखी और नाराज़ दिखेंगे, तो किसी न किसी स्तर पर लोगों को यह समझ में आ ही जाएगा और वे आपसे बातें नहीं करेंगे। यदि आप वास्तव में दुखी और नाराज़ हैं भी, तो सोचिए कि उस सार्वजनिक स्थिति में आपको क्यों प्रसन्न रहना चाहिए, और वे भारी भारी भावनाएँ किसी उचित व्यक्तिगत समय पर निकट संबंधियों एवं मित्रों के साथ बाँटने के लिए बचा कर रखिए।
  • भूमिका के अनुसार वेशभूषा धारण करें। कपड़ों और बालों की आड़ में मत छिपिए। ऐसे कपड़े पहनिए जो आपके नाप के हों और यदि संभव हो तो थोड़े रंगीन कपड़े पहनिए। आप बाह्य रूप से कैसे दिखते हैं, इस पर थोड़ा विचार करने से आपको आंतरिक शांति मिलेगी।

चेतावनी

  • ढोंग मत करिए। लोग आपकी आदतों में भूलों को देख लेंगे और समझ जाएँगे कि आप नाटक कर रहे हैं। आप जो भी करें उसमें आपको विश्वास होना चाहिए, अन्यथा वह आप पर और भी बुरा लगेगा। प्रथम धारणाएं महत्वपूर्ण होती हैं, हालांकि, जीवन में किसी नए, अचानक आए हुये व्यक्ति के ऊपर ध्यान देने का नाटक करना आपको तब “ढोंग” जैसा लग सकता है जबकि आप वास्तव में वैसा महसूस न कर रहे हों। इसकी सरल विधि यह है: उनके साथ वही व्यवहार करें जो आप अपने साथ चाहते हैं।
  • याद रखिए कि न तो यह संभव है और न ही वांछनीय कि “सभी लोग” आपको पसंद करें! सदैव ऐसे लोग रहेंगे ही जिन्हें आप नाखुश करेंगे या जो आपसे प्रसन्न नहीं होंगे, सही या गलत। जानिए कि कब चीजों को जाने देना चाहिए और कब किसी संघर्ष को सम्मान और परिपक्वता के साथ स्वीकार करना चाहिए। इन घटनाओं पर स्वयं को कोसिए मत और आत्मविश्वास बनाए रखिए।
  • दूसरों को ज़बरदस्ती अपना कायल कराने का प्रयास मत करिए। अपने सकारात्मक गुणों का बखान आपको घमंडी दिखा सकता है। समय आने पर लोगों को आपके गुण स्वयं ही दिख जाएँगे।
  • यदि आपको स्वयं में ऐसा कुछ दिखे भी जिसे परिवर्तित होना चाहिए, तब भी आत्मगौरव को भूल मत जाइए। आपका मूल व्यक्तित्व तो शानदार है और उसे दिखाने में संकोच मत करिए, छोटी मोटी चीज़ें तो सभी सुधार सकते हैं।
  • बेहतर सामाजिक स्थिति पाने के इच्छुक मत दिखिए और न ही यह दिखाइये कि आप दोस्त बनाने के लिए परेशान हैं। दूसरों को पता चल जाता है और यह उनकी चिढ़ का मुख्य कारण बन सकता है।

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