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शरीर का तापमान अस्थायी रूप से बढ़ जाना ही बुखार या फीवर कहलाता है जो नॉर्मली 98 से 99 डिग्री फेरेंहाइट (36.7 से 37.2 डिग्री सेल्सियस) तक होता है | [१] फीवर संकेत देता है कि आपका शरीर इन्फेक्शन से लड़ रहा है या कोई रोग से ग्रसित है | अधिकतर बुखार फायदेमंद होते हैं क्योंकि बैक्टीरिया हाई टेम्परेचर पर वृद्धि नहीं कर पाते इसलिए यह आपके शरीर की डिफेन्स मैकेनिज्म होती है | एक दिन या उससे ज्यादा लम्बा चलने वाला बुखार असुविधाजनक हो सकता है लेकिन बॉडी टेम्परेचर जब तक वयस्कों में 103 डिग्री फेरेंहाइट (39.4 डिग्री सेल्सियस) या उससे ज्यादा या बच्चों में 101 डिग्री फेरेंहाइट (38.3 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा न पहुंचे, तब तक चिंता का विषय नहीं होता | [२] अधिकतर बुखार अपने आप नेचुरली उतर जाते हैं लेकिन खतरनाक तेज़ बुखार को कम करने से ब्रेन डैमेज जैसे सीरियस कॉम्प्लीकेशन से बचा जा सकता है |

विधि 1
विधि 1 का 2:

नेचुरली बुखार कम करें

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  1. बच्चों और वयस्कों में होने वाले अधिकतर बुखार सेल्फ-लिमिटेड होते हैं और आमतौर पर दो या तीन दिन में गायब हो जाते हैं | [३] इसीलिए, कुछ दिनों तक रहने वाले माइल्ड से मॉडरेट फीवर में धैर्य रखें (क्योंकि ये फायदेमंद होते हैं) और प्रत्येक कुछ घंटों में या उससे ज्यादा समय में टेम्परेचर मॉनिटर करते रहें जिससे पता चलता रहे कि बुखार खतरनाक रूप से नहीं बढ़ रहा है | नवजात और शिशुओं में एक सप्ताह या उससे ज्यादा दिनों तक रहने वाला तेज़ बुखार चिंता का विषय होता है (तेज़ बुखार जो 103 डिग्री फेरेंहाइट या 39.4 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा वयस्कों में और 101 डिग्री फेरेंहाइट या 38.3डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बच्चों में होता है) |
    • ध्यान रखें कि आमतौर पर शाम को और फिजिकल एक्टिविटी करने के बाद शरीर का टेम्परेचर सबसे ज्यादा होता है | मेनस्ट्रूएशन या मासिकधर्म में, स्ट्रोंग इमोशन वाले फीलिंग के समय और गर्म और नमीयुक्त वातावरण में रहने पर भी शरीर का तापमान अस्थायी रूप से बढ़ जाता है |
    • पसीना आने के अलावा, माइल्ड से मॉडरेट फीवर से सम्बंधित कुछ और लक्षण भी होते हैं जैसे; मांसपेशियों में दर्द, सामान्य कमजोरी, थकान, कंपकपी, सिरदर्द, भूख न लगना और चेहरे पर लालिमा |
    • हाई फीवर से सम्बंधित अतिरिक्त लक्षण हैं; भ्रम, कंफ्यूजन, चिडचिडापन, दौरे आना और प्रभावशाली रूप से होश गंवाना (कोमा में जाना) | [४]
    • माइल्ड से मॉडरेट फीवर उतरने का इंतज़ार करते हुए खुद को हाइड्रेटेड रखने पर ध्यान दें | फीवर से पसीना आता है जिसके कारण जल्दी ही डिहाइड्रेशन हो सकता है इसलिए आपको खूब तरल पेय लेते रहना चाहिए |
  2. बुखार कम करने की आसान और कॉमन विधि यही है कि सोते समय अतिरिक्त कम्बल और जागते समय अतिरिक्त कपडे न पहनें | [५] कपडे और कम्बल हमारे शरीर को इन्सुलेट करते हैं और स्किन से हीट को बाहर जाने से रोकते हैं | इसलिए, लाइटवेट कपड़ों की एक ही लेयर पहने और तेज़ बुखार होने की स्थिति में केवल एक लाइटवेट कम्बल भी इस्तेमाल करें |
    • सिंथेटिक फाइबर और ऊन से बने हुए कपडे और कम्बल का इस्तेमाल न करें | इसकी बजाय कॉटन के कपड़ों का इस्तेमाल करें क्योंकि इनमे से हवा आती-जाती रहती है |
    • याद रखें, आपका सिर और पैर बहुत सारी हीट कम करने के काबिल होते हैं इसलिए तेज़ बुखार होने पर अपने सिर को हैट से और पैरों को सॉक्स से कवर करने की कोशिश न करें |
    • किसी ऐसे व्यक्ति से न चिपके जो बुखार से काँप रहा हो क्योंकि वो आपका तापमान जल्दी ही बढ़ा सकता है | [६]
  3. अगर आपको और आपके बच्चे को तेज़ बुखार के साथ उससे सम्बंधित लक्षण (ऊपर बताये अनुसार) हों तो ठन्डे पानी से नहाकर या ठंडे पानी का शॉवर लेकर अपने शरीर के टेम्परेचर को कम करें | [७] लेकिन, ध्यान रखें की आपको ठन्डे पानी, बर्फ या अल्कोहल सलूशन का इस्तेमाल नहीं करना है क्योंकि इनसे कंपकपी ट्रिगर होने के कारण सिचुएशन और खराब हो सकती है जिससे बॉडी टेम्परेचर और भी बढ़ सकता है | नल के पानी या ठन्डे पानी से लगभग 10 से 15 मिनट तक नहायें | अगर आप थके हुए हैं, कमजोरी फील कर रहे हों तो शॉवर लेने की बजाय नल के पानी या सामान्य ठंड पानी से नहाना ज्यादा आसान होगा |
    • अल्टरनेटिव के रूप में, एक साफ़ कपडा या स्पंज लें, इसे ठन्डे पानी में भिगोयें, निचोड़ें और माथे पर ठन्डे सेंक के तौर पर लगायें | बुखार कम होने तक इसे हर 20 मिनट में बदलते रहें |
    • एक और अच्छा आईडिया है, स्प्रे बोतल में ठंडा डिस्टिल्ड वॉटर भरकर हर 30 मिनट में या उससे ज्यादा बार खुद पर स्प्रे करना का इस्तेमाल करना और अपने शरीर को ठंडा रखना | अपने चहरे, गर्दन और छाती के ऊपरी हिस्से पर स्प्रे करने से बेहतर रिजल्ट्स मिलते हैं |
  4. हाइड्रेटेड रहना हमेशा जरुरी होता है लेकिन बुखार होने पर और भी ज्यादा जरुरी होता जाता है क्योंकि इसमें बहुत सारा पानी पसीने के रूप में निकल जाता है | अपनी पानी की खपत को कम से कम 25% बढ़ा दें | इस प्रकार अगर आप रोज़ आठ बढे गिलास शुद्ध पानी (जो सामान्य हेल्थ के लिए सिफारिश योग मात्रा है) पीते हैं तो बुखार होने पर इसे बढ़ाकर 10 गिलास कर दें | [८] बुखार कम करने के लिए ठन्डे पेय में बर्फ डालकर पियें | नेचुरल फल/ सब्जियों का जूस सबसे बेहतर होता है क्योंकि इनमे सोडियम (एक इलेक्ट्रोलाइट) पाया जाता है जो आमतौर पर पसीना आने के दौरान शरीर से निकल जाता है |
    • कैफीनेटेड और अल्कोहलिक पेय पदार्थों से दूरी रखें क्योंकि ये स्किन को लाल कर देते हैं और व्यक्ति को ज्यादा गर्म कर देते हैं |
    • कम पसीना आने वाले बुखार में गर्म पेय (जैसे हर्बल टी) और फूड्स (जैसे चिकन सूप) ले सकते हैं जिससे पसीना आना शुरू हो और उससे वाष्पीकरण से शरीर ठंडा हो |
  5. आपके शरीर और पसीने वाली स्किन के आसपास जितनी ज्यादा हवा लगेगी, वास्पीकरण की प्रक्रिया उतनी ही असरदार होगी | इसीलिए सबसे पहले पसीना आता है जिससे हवा नमी को वाष्पीकृत करके ब्लड वेसल्स की सरफेस और स्किन को ठंडा कर सके | पंखे के नजदीक बैठने से यह प्रोसेस तेज़ हो जाती है | इसलिए पंखे के नजदीक बैठने से बुखार उतरने लगता है लेकिन ध्यान रखें कि आपकी स्किन पर्याप्त रूप से हवा में एक्सपोज़ रहे | [९]
    • पंखे के बहुत ज्यादा नजदीक न बैठें और न ही बहुत तेज़ पंखा चलायें अन्यथा कंपकपी हो सकती है जिससे थरथराहट होगी और रोंगटे खड़े होकर शरीर का तापमान बढ़ा देंगे |
    • गर्म और नमी वाले कमरे के लिए एयर कंडीशनर सबसे बेहतर होते हैं लेकिन फिर भी मैकेनिकल फैन सबसे बेहतर होता है क्योंकि इससे कुछ देर तक कमरा ठंडा बना रहता है |
विधि 2
विधि 2 का 2:

चिकित्सीय देखरेख से बुखार कम करें

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  1. कई बुखार फायदेमंद होते हैं और उन्हें कृत्रिम रूप से कम नहीं किया जा सकता या दबाया नहीं जा सकता लेकिन कई बार बुखार के कारण दिमागी दौरे पड़ने (febrile seizures), कोमा या ब्रेन डैमेज होने से बचाने के लिए ऐसा करना जरुरी हो जाता है | अगर बुखार एक सप्ताह में ख़त्म न हो या तापमान काफी ज्यादा बना रहे तो बुखार के इलाज़ की सही जानकारी के लिए डॉक्टर को दिखाएँ | डॉक्टर के पास सही उचित एरिया में तापमान नापने के लिए जरुरी उपकरण होते है, भले ही तापमान ओरली, रेक्टली, कांख के नीचे या कर्णनलिका में ही क्यों न लेना पड़े |
    • अगर बच्चे को तेज़ बुखार (101 डिग्री फ़ेरेनहाइट या 38.3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा) हो और इसे कमजोरी, चिडचिडापन, उल्टियाँ हों, आँखों का सम्पर्क बनाने में कठिनाई हो, अधिकतर समय उन्नींदा लगे और/या भूख पूरी तरह से खत्म हो जाए तो डॉक्टर को दिखाएँ | [१०] ध्यान रखें, चूँकि बच्चे छोटे होते हैं और ग्रोइंग फेज में होते हैं इसलिए अगर उनमे लगातार कुछ दिनों तक बुखार बना रहता है तो वे जल्दी ही गंभीर रूप से डिहाइड्रेटेड हो जाते हैं |
    • वयस्कों को डॉक्टर को तब दिखाना चाहिए, जब उन्हें तेज़ बुखार (103 डिग्री फेरेनहाइट या 39.4 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा) हो और निम्नलिखित में से कोई लक्षण हों; तेज़ सिरदर्द, गले में सूजन, स्किन रेशेस, लाइट सेंसिटिविटी, गर्दन में जकड़न, भ्रम, चिडचिडापन, छाती में दर्द, पेटदर्द, लगातार उल्टियाँ होना, हाथ-पैरों में झनझनाहट और सुन्नपन और/या दौरे पड़ना | [११]
    • अगर तेज़ बुखार बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण हो तो डॉक्टर सबसे पहले इन्फेक्शन को कण्ट्रोल करने और खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक्स देंगे |
  2. एसीटामिनोफेन न केवल एक पैनकिलर (एनाल्जेसिक) है बल्कि यह एक स्ट्रोंग एंटीपायरेटिक दवा भी है जिसका मतलब है कि यह ब्रेन में हाइपोथेलेमस को शरीर का तापमान कम करने के लिए ट्रिगर करती है | [१२] दूसरे शब्दों में कहें तो, यह ब्रेन के थर्मोस्टेट को धीमा कर देती है | यह दवा छोटे बच्चों के तेज़ बुखार (इस्तेमाल बच्चे के वज़न के अनुसार बॉक्स पर दिए गये डोज़ में ही करें) और किशोर और वयस्कों के लिए सबसे सुरक्षित और बेहतर दवा है |
    • तेज़ बुखार के लिए, एसिटामिनोफेन के डोज़ हर 4 से 6 घंटे में लेने की सलाह दी जाती है | वयस्कों के लिए, एसिटामिनोफेन का अधिकतम सिफारिश योग्य डेली डोज़ 3000 मिलीग्राम है | [१३]
    • बहुत ज्यादा एसिटामिनोफेन लेने या लम्बे समय तक लेते रहने से लिवर पर टॉक्सिक इफेक्ट्स या डैमेज हो सकते हैं | दूसरी दवाओं के इंग्रेडीएंट्स पर भी ध्यान दें | उदाहरण के लिए, जुकाम की दवाओं में भी एसिटामिनोफेन शामिल हो सकती है |
    • अल्कोहल को कभी भी एसिटामिनोफेन के साथ कंबाइन करके नहीं लेना चाहिए |
  3. आइबूप्रोफेन भी क अच्छी एंटीपायरेटिक होती है बल्कि कुछ स्टडीज के अनुसार यह 2 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों के बुखार के लिए ज्यादा असरदार साबित होती है | [१४] मुख्य परेशानी यह है कि इसे 2 साल से छोटे बच्चों ( विशेषरूप से छह महीने से छोटे बच्चों) को देने की सिफारिश नहीं की जाती क्योंकि इसके काफी गंभीर साइड इफेक्ट्स भी होते हैं | [१५] आइबूप्रोफेन भी एक अच्छी एंटी-इंफ्लेमेटरी (एसिटामिनोफेन के समान ही) है जिसे आप या आपके बच्चे बुखार के साथ मसल्स पैन या जॉइंट पैन में ले सकते हैं |
    • वयस्कों के लिए, तेज़ बुखार को कम करने के लिए इसे 400 से 600 मिलीग्राम में डोज़ में दिया जा सकता है | बच्चों की इसकी आधी मात्रा में देते हैं लेकिन उनके लिए डोज़ उनके वजन और दूसरे हेल्थ फैक्टर पर निर्भर करता है इसलिए डॉक्टर की सलाह से ही दें |
    • बहुत ज्यादा आइबूप्रोफेन लेने या लम्बे समय तक लेते रहने से आमाशय और किडनी में इर्रीटेशन और डैमेज हो सकते हैं इसलिए यह दवा खाने के साथ ही लें | बल्कि, इससे आमाशय के अलसर और किडनी फ़ैल होने जैसे गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं | इसके अलावा, इसे कभी भी अल्कोहल के साथ नहीं लेना चाहिए |
  4. एस्पिरिन एक अच्छी एंटीइंफ्लेमेटरी और स्ट्रोंग एंटीपायरेटिक दवा है और यह वयस्कों में होने वाले हाई फीवर को ठीक करने में काफी असरदार होती है | [१६] लेकिन, एस्पिरिन एसिटामिनोफेन या आइबूप्रोफेन से ज्यादा टॉक्सिक होती है, विशेषरूप से बच्चों के लिए | इसीलिए विशेषरूप से अगर बच्चे या किशोर चिकनपॉक्स (chickenpox) या फ्लू जैसे वायरल इन्फेक्शन से रिकवर हो रहे हों तो उमें एस्पिरिन का इस्तेमाल बुखार कम करने के लिए नहीं किया जाता है | इसका सम्बन्ध रेयेस सिंड्रोम ( Reye's syndrome) से होता है जो एक ऐसी एलर्जिक कंडीशन है जिसमे लम्बे समय तक उल्टियां होती रहती हैं, भ्रम, लिवर फेलियर और ब्रेन डैमेज हो सकते हैं | [१७]
    • एस्पिरिन (Aspirin (Anacin, Bayer, Bufferin)) विशेषरूप से अमाशय की लाइनिंग को इर्रीटेड कर देती है और ज्यादातर पेट के अलसर का कारण बनती है | एस्पिरिन को हमेशा भरे पेट पर ही खाएं |
    • वयस्कों को दिया जाने वाला एस्पिरिन का अधिकतम डोज़ 4000 मिलीग्राम होता है | [१८] इससे ज्यादा मात्रा में खाने से पेट खरब हो सकता है, कानों में घंटियाँ सुनाई दे सकती हैं, चक्कर आना और दृष्टी धुंधली हो सकती है |

सलाह

  • बुखार एक ऐसा लक्षण है जो कई तरह की बीमारीयों से ट्रिगर होता है जैसे, वायरल, बैक्टीरियल, फंगल इन्फेक्शन, हार्मोन असंतुलन, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और एलर्जिक/टॉक्सिक रिएक्शन |
  • थोड़े समय के लिए आने वाला बुखार किसी और डिजीज की बजाय आमतौर पर ज्यादा मेहनत करने या असामान्य रूप से गर्मी पड़ने के कारण आता है |
  • वर्तमान में होने वाले इम्यूनाइजेशन के कारण बच्चों में कम समय के लिए बुखार आ सकता है लेकिन ये आमतौर पर अपनेआप एक दिन में ही चला भी जाता है |
  • जब तक बुखार 107 डिग्री फेरेंहाइट (41.7 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा न हों, बुखार के कारण ब्रेन डैमेज नहीं हो सकता | [१९]
  • बच्चों में इन्फेक्शन के कारण होने वाले बुखार का इलाज़ न होने पर 105 डिग्री फेरेंहाइट (40.5 डिग्री सेल्सियस) तक जा सकता है |

चेतावनी

  • बच्चों के बुखार को ठीक करने के लिए एस्पिरिन (aspirin) न दें क्योंकि इससे रेयेस सिंड्रोम (Reye's syndrome) हो सकता है |
  • अगर बुखार होंने पर आपको इनमे से कोई लक्षण हों तो मेडिकल अटेंशन लें; सीवियर रेशेस, छाती के दर्द, बार-बार उल्टियाँ होना, स्किन पर सूजन आना और स्किन गर्म और लाल होना, गर्दन में जकड़न, गले में खराश, भ्रम होना या एक सप्ताह से ज्यादा दिनों तक बुखार बने रहना
  • अगर आपको तेज़ बुखार हो तो इलेक्ट्रिकल हीटिंग ब्लैंकेट के इस्तेमाल या गर्म आग के सामने बैठने से बचें क्योंकि इससे आपकी सिचुएशन और भी ज्यादा खराब हो सकती है |
  • अगर आपको तेज़ बुखार हो तो मिर्च-मसालेदार फूड्स न खाएं क्योंकि इनसे आपको और भी ज्यादा पसीना आएगा |
  • अगर कोई भी गर्म कार जैसी बहुत ज्यादा हीट वाली कंडीशन मे ज्यादा लम्बे समय तक रहता है तो हाइपरथर्मिया (hyperthermia) हो सकता है |

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