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ऐसे अनेक कारण हो सकते हैं कि आपका सेल्फ़-परसेप्शन, दूसरे व्यक्तियों के परसेप्शन से अलग हो। हो सकता है कि हममें सेल्फ़-अवेयरनेस ही न हो, क्योंकि बिना नोटिस किए हुये भी अनेक आदतें पड़ जाना काफ़ी कॉमन होता है। हो सकता है कि अनचाहे विचारों और भावनाओं के विरुद्ध हम ख़ुद को धोखा दे रहे हों। [1] या हो सकता है कि हमारे अंदर अच्छी इनसाइट न हो, चूंकि कोई भी विशिष्ट व्यवहार अनेक मोटिवेशन्स का परिणाम हो सकता है। [2] यह बहुत कुछ संभव है कि आप स्वयं को वैसे ही देखे पाएँ, जैसे दूसरे आपको देखते हैं; मगर इसके लिए बहुत हिम्मत की ज़रूरत होती है और इनसाइट डेवलप करनी पड़ती है।

विधि 1
विधि 1 का 3:

रिफ़्लेक्ट करके इनसाइट डेवलप करना

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  1. किसी दोस्त से कहिए कि रिफ़्लेक्टिव लिसनिंग में आपका साथ दे: रिफ़्लेक्टिव लिसनिंग एक ऐसी तकनीक है जिसे पहली बार कार्ल रोजर्स ने विकसित किया था। इसमें स्पीकर के अंतर्निहित इमोशन्स या अंतर्निहित इंटेंट को कम्युनिकेट किया जाता है। उस बात को, जो श्रोता अर्थात लिसनर को लगता है कि वक्ता अर्थात स्पीकर कहने की कोशिश कर रहा है, रीफ़्रेज़ करने या फिर से कहने का उद्देश्य क्लारीफ़िकेशन का अवसर उपलब्ध कराना होता है। क्लारीफ़िकेशन, श्रोता और वक्ता, दोनों के लिए लाभकारी होता है। अपने मेसेज को दोबारा सुनने से हमको एक ऐसा अवसर मिलता है जिसमें हम खुद को सुन पाते हैं और तय करते हैं कि क्या जो मेसेज हम दूसरों के साथ शेयर कर रहे हैं, उससे हम खुश हैं। [3]
    • ज़रूरी नहीं है कि आपके दोस्त ट्रेन किए हुये रोजेरियन थेरपिस्ट हों; आपको उनसे कहना केवल यह है कि वे मेसेज को सुनें और उसे पैराफ़्रेज़ करें तथा बिना उस विषय में अपना जजमेंट दिये या अपनी राय बनाए, उसके अंतर्निहित इमोशन को पहचानें।
    • अगर ऐसा लगता है कि आपका दोस्त आपके इमोशन को नहीं समझ पा रहा है, तब तो आपके पास उसको क्लारिफ़ाई करने का बहुत अवसर है। तब तक बात करते रहिए जब तक कि आपको यह संतोष न हो जाये कि आपने अपने दोस्त को समझाने में पूरी मदद कर दी है। आप यह देख कर चकित हो जाएँगे कि इस एक्टिविटी के अंत तक आप खुद को कितनी अच्छी तरह समझ चुके होंगे।
  2. अपने व्यवहार के परिणामों को एनालाइज़ करने के लिए सिस्टेमेटिक रिफ़्लेक्शन करिए: किसी विशेष परिस्थिति में अपने व्यवहार को याद करिए, और फिर उसके परिणामों या नतीजों को नोट कर लीजिये। व्यवहारों और उनके परिणामों की लिस्ट बना लेने से आपको अपने विचारों को ऑर्गनाइज़ करने में मदद मिलेगी। क्या वे नतीजे और परिणाम फ़ेवरेबल थे? अगर नहीं थे, तब उन व्यवहारों की पहचान करिए जिनके कारण आपको मनचाहे परिणाम मिल सकते थे। [4]
    • इससे आपको अपने व्यवहारों के पैटर्न के बारे में खुद ही अवगत होने में मदद मिलेगी और आपको अपने अवांछित व्यवहार को बदलने के लिए एक फ़्रेमवर्क भी मिलेगा।
  3. सेल्फ़ को एक्स्प्लोर करने के मज़ेदार तरीके रूप में पर्सनैलिटी क्विज़ वगैरह लीजिये: आपको ऑनलाइन ऐसी अनेक एक्टिविटीज़ मिल सकती हैं। हालांकि वे शायद ही कभी वैलिड अथवा विश्वसनीय होती हैं, परंतु वे आपकी इंटेन्शन को आपके अन्तर्मन की ओर डायरेक्ट अवश्य कर देते हैं। इस एक्टिविटी को किसी दोस्त के साथ करना मज़ेदार तो होता ही है, उसके साथ में आपको यह भी अवसर मिलता है कि आप इस संबंध में यह फ़ीडबैक प्राप्त कर सकें कि दूसरे आपको किस तरह से देखते हैं।
    • दोस्तों के साथ क्विज़ वगैरह लेने से आपको यह टेस्ट करने का अवसर मिलता है कि आपका सेल्फ़-परसेप्शन आपके अपने संबंध में दूसरों के परसेप्शन किस तरह मैच करता है। अपने दोस्त से कहिए कि जो प्रश्न आप पर अप्लाई करते हैं, उनका जवाब दे, और आप ख़ुद भी वह क्विज़ लीजिये। उसके बाद आप उत्तरों को कंपेयर कर सकते हैं और जहां पर आपके जवाब नहीं मैच करते हैं, उन जगहों पर डिस्कस कर सकते हैं।
    • रिफ्लेक्शन के लिए केवल ध्यान को अपने अंदर की ओर फ़ोकस करने की ज़रूरत होती है, मगर कुछ लोगों को यह काम भी कठिन लग सकता है। केवल शांति से बैठ कर चिंतन करना मात्र ही वास्तव में सेल्फ़-अवेयरनेस तथा आपके बारे में दूसरों के परसेप्शन से संबंधित इनसाइट को सुधार सकता है। [5] अगर आपमें अपने व्यवहार पर रिफलेक्ट करने की आदत नहीं है, तब आप इसको अनप्रोडक्टिव तथा अनकम्फ़र्टेबल भी समझ सकते हैं। कोई भी स्ट्रक्चर्ड एक्टिविटी आपको सहज महसूस करने में अधिक सहायता करेगी।
  4. दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखते हुये कभी-कभी लोग अपनी आलोचना को कम कर देते हैं तथा फ़ीडबैक को शुगरकोट कर देते हैं, जिसके कारण यह समझ पाना कठिन हो जाता है कि दूसरे आपको किस तरह पर्सीव कर रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि आपको दूसरों को यह अनुमति देनी होगी कि वे बिना आपकी भावनाओं का ध्यान रखे, आपके साथ सच को शेयर करें। आप उनको यह एक्सप्लेन करने से शुरुआत कर सकते हैं कि आप सेल्फ़-एक्स्प्लोरेशन की यात्रा पर निकल पड़े हैं तथा आपको कड़वी ईमानदारी चाहिए।
    • अगर वह व्यक्ति जिससे आपने फ़ीडबैक मांगा है अभी भी हिचकिचा रहा/रही है, तब तब उसे सच्चे रिस्पोंस देने के लिए गाइड करिए। उससे कहिए कि आपकी स्ट्रेन्थ्स को बताए। और उसके बाद, उससे कहिए कि आपकी कमजोरियों को पहचान कर, वह भी बताए। उससे पूछिये कि उसके अनुसार, उन कमजोरियों को दूर करने के लिए आप क्या कर सकते हैं, और इस प्रकार आप इस एकसरसाइज़ को कंस्ट्रक्टिव भी बना सकते हैं।
    • यह सबसे अच्छी तरह तब हो सकता है जब आप इसको किसी ऐसे व्यक्ति के साथ करते हैं जो आपको अच्छी तरह जानता है और आपको विश्वास है कि वह इस अवसर का इस्तेमाल आपके साथ केवल दुष्टता करने के लिए नहीं करेगा।
    • आप सवाल पूछें इसके पहले खुद को अप्रिय चीज़ें सुनने के लिए तैयार कर लीजिये। अगर आप डिफ़ेंसिव हो जाएँगे, तब तो इस एकसरसाइज़ का कोई लाभ ही नहीं होगा। अगर आपको लगे कि आप डिफ़ेंसिव हो रहे हैं, तब खुद को याद दिला लीजिये कि यह ग्रोथ का एक अवसर है।
विधि 2
विधि 2 का 3:

मिररिंग (Mirroring) समझना

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  1. हमलोग दरअसल एक दूसरे को मिरर करने के लिए बायोलॉजिकली वायर्ड होते हैं। जब हम एक दूसरे से एंगेज करते हैं तब मिरर न्यूरॉन्स एक्साइट हो जाते हैं। इसके कारण कभी-कभी फ़िजिकल एक्स्प्रेशन एक दूसरे की नकल करने लगते हैं, और हम अपने अन्तर्मन में दूसरों की इमोशनल स्टेट को अनुभव कर सकते हैं। [6] यही एम्पेथी (empathy) का बायोलॉजिकल आधार होता है। हम खुद महसूस करके दूसरों के इमोशन्स को समझ पाते हैं। [7] यही उस कनेक्शन के लिए ज़िम्मेदार होता है जो हम एक दूसरे के साथ, उनके जीवन की कहानियों को सुन कर अनुभव करते हैं। एम्पेथी हमें कंपैशन विकसित करने में तथा एक दूसरे से रैपो (rapport) बनाने में मदद करती है।
    • मिररिंग का आंतरिक अनुभव आम तौर पर ऑटोमेटिकली होता है और हमारे कॉन्श्स (conscious) नियंत्रण के बाहर होता है। इसका अर्थ है कि यह सामान्यतया होता ही है, चाहे आप चाहें या न चाहें, और बिना आपकी जानकारी के आपके बाह्य व्यवहार को प्रभावित करता है।
  2. पहचानिए कि मिररिंग किस प्रकार आपके व्यवहार को प्रभावित करती है: जैसे-जैसे आप अधिक और अधिक सेल्फ़-अवेयर होते जाएँगे वैसे-वैसे आप यह एहसास करेंगे कि मिररिंग के प्रभाव आपके पोश्चर, मैनरिज़्म्स, बोली, इमोशन्स, और यहाँ तक कि सांस लेने और छोड़ने पर भी पड़ने लगे हैं। हालांकि सामान्यतया यह एक अच्छी चीज़ होती है, मगर कुछ मामलों में आप देखेंगे कि आप दूसरों के निगेटिव इमोशन्स अडॉप्ट करने लगे हैं और आप पाएंगे कि जब आपके आसपास के लोग अधिक और अधिक एजीटेटेड होने लगते हैं, तब आपके इमोशनल अनुभव भी इंटेन्सिफ़ाई करने लगते हैं। [8] अगर आपको समझ में आ जाता है कि किसी ख़ास व्यक्ति या विषय पर दूसरे के साथ इंटरेक्ट करने पर आपके विचार या फ़ीलिंग्स अधिक निगेटिव हो जाती हैं, तब इस विषय पर विचार करके देखिये कि क्या परिस्थितियों में कोई वास्तविक परिवर्तन हुआ था या आप दूसरे व्यक्ति की निगेटिविटी के प्रभाव में आ गए हैं।
    • हालांकि मिररिंग का आंतरिक प्रभाव अक्सर ऑटोमेटिक होता है, मिररिंग के बाह्य एक्स्प्रेशन पर आपका नियंत्रण होता है। आप मिररिंग के विरुद्ध रिस्पोंड करना भी चुन सकते हैं।
  3. किसी दोस्त से कहिए कि वह आपको किसी दूसरे दोस्त से इंटरेक्ट करते हुये ऑब्ज़र्व करे और मिररिंग के बढ़े-चढ़े या दबे-छुपे प्रभाव पर नोट्स बनाए: ये नोट्स आपके उस विशिष्ट व्यवहार, जिसे आप बदलना चाहते हैं, उसके विषय में अधिक अवेयर होने में आपकी मदद करने में सहायक होंगे। उसके बाद किसी तरह का संकेत तय करिए, जैसे कि कान खींचना आदि, ताकि जब भी आप अनुचित रूप से नकल कर रहे हों, तब आपका दोस्त आपको अलर्ट कर सके। और तब, आप कॉन्शसली अपना व्यवहार बदल सकते हैं।
    • पहचानिए कि कब मिररिंग के कारण किसी ख़ास तरह का रिस्पोंस रीइन्फ़ोर्स हो रहा होगा, या उसके कारण कुछ परसेपशन्स छुपे रह जा रहे होंगे। चूंकि मिररिंग मुख्यतया हमारी अवेयरनेस से परे होती है, मिररिंग के एक्स्प्रेशन्स में वेरिएशन्स अनजाने में ही हमारे संबंध में दूसरों के इंप्रेशन्स पर प्रभाव डालते हैं। जो लोग मिररिंग के बाह्य संकेतों को एक्स्प्रेस करने में असफल रहते हैं, उन्हें कोल्ड और भावनाहीन समझा जा सकता है, जबकि दूसरे लोग जो ज़ोरदार तरह से मिररिंग करते हैं, उनको रिएक्टिव, आक्रामक, अस्थिर, या चिढ़ाने वाला समझा जा सकता है। [9]
    • अगर आपको पता चलता है कि आपके एटिपिकल मिररिंग पैटर्न के कारण आपका इंप्रेशन टेढ़ा-मेढ़ा है, तब या तो आपको दूसरों द्वारा किया गया अपना कैरेक्टराइज़ेशन स्वीकार करना होगा, या कॉन्शसली अपने मिररिंग पैटर्न को बदलने का प्रयास करना होगा। आपको घनिष्ठ दोस्तों के साथ शायद एक्टिवली मिमिक करने को बढ़ाने या घटाने की ज़रूरत हो सकती है।
  4. रिस्पोंसेज के इंटेन्सिफ़ाई करते हुये पैटर्न्स को डीएस्केलेट करिए: आमने-सामने के इंटरेक्शन में मिररिंग साइक्लिकल हो सकती है। जब एक व्यक्ति एजीटेट होता है, तभी दूसरा भी हो जाता है। उसके बाद इंटरेक्शन की गर्मी बढ़ती ही जाती है, स्पीच में दबाव बढ़ जाता है, भाषा और भी अधिक आक्रामक हो जाती है, तथा हाथों के जेश्चर्स और चेहरे के एक्स्प्रेशन्स अधिक एक्साजेरेटेड (exaggerated) हो जाते हैं। अगर आप आसानी से इस तरह के एस्केलेट करने वाले इंटरेक्शन्स में आसानी से उलझ जाते हैं, तब आपको यह विचार करना चाहिए कि क्या यह इंटरेक्शन उस विषय पर आपकी वास्तविक भावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है। क्या दूसरे भी उस विषय पर आपके पैशन में आपके साथ हैं, या यह मिररिंग के रनअवे फ़िट हैं। जब आप यह जान लेते हैं कि इंटरेक्शन में आपकी भागीदारी अब ठीक-ठीक आपकी भावनाओं को नहीं रिप्रेजेंट कर रही है, तब आप बात करने के अपने टोन को बदल सकते हैं। यह समझ लेने से कि कब मिररिंग आपके विचारों और भावनाओं का सही रिप्रेज़ेंटेशन नहीं कर रही है, फ़ायदा यह होता है कि आप मिररिंग के उसी साइक्लिकल नेचर का इस्तेमाल इंटरेक्शन को बदलने के लिए कर सकते हैं। यह इंप्रेशन्स को मैनेज करने का और यह सुनिश्चित करना एक तरीका है कि दूसरे लोग आपको एक्यूरेटली देखें।
    • आप जितना चाहते हैं, अगर डिस्कशन उससे अधिक निगेटिव हो जाता है, तब आप उसमें पॉज़िटिव एक्स्प्रेशन्स को शामिल कर सकते हैं। कभी-कभी कोमल मुस्कान, जवाब में उसी तरह के व्यवहार को सामने लाती है।
    • इंटेंसिटी को कम करने के लिए, धीरे-धीरे अपने वॉल्यूम को नीचे लाइये और अपनी भाषा को कोमल बनाइये।
    • मूड को हल्का करने के लिए, हंसी के कारण दूसरों से अनायास ही ह्यूमर के इंजेक्शन लगने लगेंगे।
विधि 3
विधि 3 का 3:

प्रोजेक्शन्स को स्वीकार (एक्नौलेज) करना

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  1. श्रोता के रूप में रिफ़्लेक्टिव लिसनिंग करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वक्ता के संबंध में आपका परसेप्शन एक्यूरेट है: बात करने वाले को बताइये, कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप सही समझ पा रहे हैं, आप रिफ़्लेक्टिव लिसनिंग करेंगे। इससे आपको क्लारीफ़िकेशन प्राप्त करने के और दूसरों के संबंध में अपने परसेप्शन को वेरिफ़ाई करने के अनेक अवसर मिलेंगे।
    • व्यक्तिगत बायसेज़ (biases) अथवा प्रोजेक्शन्स के कारण दूसरों के प्रति आपके रिस्पोंसेज डिस्टोर्ट (distort) हो सकते हैं। सिगमंड फ़्रायड पहली बार प्रोजेक्शन को एक डिफ़ेन्स मेकेनिज़्म के रूप में सामने लाये, और इसी को बाद में एना फ़्रायड द्वारा एक्सपैंड (expand) किया गया। अपनी अस्वीकार्य तथा अवांछनीय भावनाओं से डील करना अवॉइड करने के लिए, हम उनको दूसरे व्यक्ति पर एट्रिब्यूट कर देते हैं। [10] इसके कारण दूसरे व्यक्ति के व्यवहार के प्रति हमारा इम्प्रेशन प्रभावित हो जाता है और हम उससे किस तरह रिस्पोंड करते हैं वह भी बदल जाता है। जिसकी वजह से इसके बाद हमारे संबंध में दूसरे व्यक्ति का परसेप्शन प्रभावित होता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप दूसरे व्यक्तियों को एक्यूरेटली परसीव कर रहे हैं और उसके साथ उचित ढंग से रिस्पोंड कर रहे हैं, आपको अपने परसेप्शन्स को वेरिफ़ाई करवाना चाहिए।
  2. हम अपने सेंस ऑफ सेल्फ़ की रक्षा करने के लिए सेल्फ़-डिसेप्शन करते ही रहते हैं। हम सभी के इस तरह के ट्रेट्स तथा दिखाई पड़ने वाले व्यवहार होते हैं, जिन पर हमको गर्व नहीं होता है। [11] कार्ल जुंग ने इस तरह के घृणित ट्रेट्स तथा स्वीकार न कर सकने योग्य विचारों को छाया (shadow) कह कर रेफ़र किया है। दूसरों पर अपनी छाया को प्रोजेक्ट करने से हमें अनुभव होने वाली उस गिल्ट (guilt) तथा शर्मिंदगी छुटकारा मिल जाता है जो हमें उसको स्वीकार करने पर होती है। दूसरे लोग जानबूझ कर हमारी पर्सनैलिटी के इस पक्ष से आँखें नहीं मूँद लेंगे, इसलिए उनको नकारने से केवल आपकी यह जानने की उस क्षमता में रोक लगेगी जहां आप जान पाते हैं कि दूसरे लोग आपको कैसे देखते हैं। अगर दूसरे आपको ईर्ष्यालु, या असहनशील समझते हैं, या आपमें किसी अन्य ऐसे ट्रेट के संबंध में कमेन्ट करते हैं, जिसको आप शायद, अधिक संभावना यही है कि, नकार देंगे, तब इस संभावना को एक्स्प्लोर करिए कि शायद आपमें वो चीज़ें हों, और उनको स्वीकार कर लीजिये।
    • अगर आपकी पर्सनैलिटी में कोई ऐसी चीज़ हो जिसके कारण आपको डिस्ट्रेस होता हो और जिसे शायद आप छिपाना चाहते हों या जिसके संबंध में आप झूठ बोलना चाहते हों, तब शायद आपको उसे बदलने की कोशिश करनी चाहिए। उनको बदल सकने के लिए, आपको पहले उन ट्रेट्स की उपस्थिति को स्वीकार करना पड़ेगा।
  3. दूसरों से कहिए कि आपको सेल्फ़ अवेयर होने में मदद करें: जैसा कि किसी भी आदत के साथ होता है, प्रोजेक्टिंग सदैव ही सबकॉन्शसली होती है। जब एक बार आप स्वीकार कर लें कि आप प्रोजेक्ट करते हैं, तब दूसरों से कहिए कि वे आपको सेल्फ़ अवेयर होने में मदद करने के लिए, जब भी आप वैसा कर रहे हों, तब आपको बता दें।
    • अपने विचार और भावनाओं को दूसरों पर प्रोजेक्ट करने के साथ-साथ, कभी-कभी हम दूसरों के प्रोजेक्शन को भी सेंस ऑफ सेल्फ़ में शामिल कर लेते हैं। हो सकता है कि आपके जीवन में कोई दूसरा व्यक्ति अपनी निगेटिव भावनाओं और इमोशन्स को प्रोजेक्ट करता हो, और तब आप उसके प्रति निगेटिव भावनाओं और इमोशन्स से ही रिस्पोंड करते हों। उसके बाद वह व्यक्ति आपके रिसपोनसेज़ का इस्तेमाल अपने द्वारा किए गए आपके कैरेक्टराइज़ेशन को वैलिडेट करने के लिए करता हो। [12] बाहरी लोगों से कहिए कि वे उस व्यक्ति के साथ होने वाले आपके इंटरेक्शन्स को देखें और उस डायनामिक्स के संबंध में अपनी राय शेयर करें।

सलाह

  • बिना डिफ़ेंसिव हुये, फ़ीडबैक तथा क्रिटिसिज़्म का स्वागत करिए।
  • समय-समय पर अपने व्यवहार को एनालाइज़ करने के लिए एक जर्नल रखिए।
  • एक्स्प्लोर करने के प्रोसेस में विश्वस्त दोस्तों को इनवॉल्व करिए। वे, उन ट्रेट्स और आदतों को पहचान सकते हैं जिनको शायद आपने नोटिस नहीं किया हो।
  • अधिकांश एक्स्प्लोरेटरी एक्टिविटीज़ से पूरा लाभ उठाने के लिए प्रोफेशनल काउंसेलर की सहायता लीजिये।
  • अगर आप अपने प्रति कम क्रिटिकल होना चाहते हैं, तब कोशिश करिए कि आप अपनी अंतर की आवाज़ पर और अधिक ध्यान दें। हो सकता है कि आप बिना एहसास किए स्वयं को नीचा दिखा रहे हों। जब इस प्रकार के निगेटिव सेल्फ़ टॉक पर आपका ध्यान जाये, तब आप अपने विचार पैटर्न को बदलना शुरू कर दीजिये।

चेतावनी

  • जब हम सेल्फ़ को ईमानदारी से तथा ऑब्जेकटिवली एक्स्प्लोर करते हैं, तब हम जो कुछ भी देखते हैं वह हमेशा पसंद नहीं भी आता है। अवांछित ट्रेट्स पर बहुत समय तक लिंगर मत करिए बल्कि उसकी जगह ग्रोथ के अवसरों पर फ़ोकस करिए।
  • अतीत के दुखद ईवेंट्स शायद सेल्फ़-एक्स्प्लोरेशन को कठिन और दर्दनाक बना सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य प्रोफ़ेशनल आपको इस ट्रौमा से निबटने में सहायता कर सकता है।

विकीहाउ के बारे में

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