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कई लोग कम बोलने और ज्यादा सुनने की आदत डालना सीखना चाहते हैं | ज्यादा और ध्यान से सुनने से आपको ज्ञान तो प्राप्त होता ही है, साथ ही आप औरों के बारे में भी जानते हैं और संक्षिप्त रूप में अपने मन की बात ज़ाहिर करना भी सीख जाते हैं |

विधि 1
विधि 1 का 3:

अपना बात करना कम करें

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  1. बोलने से पहले सोचें, की आप जो कहने वाले हैं वो वाकई ज़रूरी बात है की नहीं | जब आप किसी वार्तालाप में कुछ महत्वपूर्म योगदान नहीं कर रहे हों तो बोलने से परहेज़ करें | [१]
    • लोग उनकी बात को ज्यादा अहमियत देते हैं जो अपने शब्दों को सावधानी से चुनते हैं | अगर कोई हर बात में अपनी राय दे रहा है या कहानियां सुना रहा है तो लोग उसमें समय के साथ ध्यान देना बंद कर देते हैं | अगर आपको ज्यादा बात करने की आदत है, तो आप को भी बेकार जानकारी बांटने की आदत पड़ जाएगी |
  2. कई बार लोग सिर्फ चुप्पी तोड़ने के लिए बात करते हैं | हो सकता है की आप ऑफिस या स्कूल में सिर्फ इसलिए बोलने लगे हैं, क्योंकि वो चुप्पी आपसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही है | कई बार चुप्पी ठीक होती है और उसे ख़त्म करने के लिए बोलने की ज़रुरत नहीं है | [२]
    • उदाहरण के तौर पर, अगर आप और आपके साथ काम करने वाला एक समय पर ब्रेक रूम में हैं, तो आपको बातचीत शुरू करने की ज़रूरत नहीं है | अगर वो आपके साथ बातचीत करने में रूचि नहीं दिखा रहा है तो शायद वो आपस में जान पहचान नहीं बढ़ाना चाहता है |
    • ऐसी स्थिति में, एक विनम्र मुस्कान देकर चुप्पी को बरकरार रखें |
  3. अगर आप बहुत ज्यादा बोलते हैं, तो हो सकता है आप वो बोल दें जो सबसे पहले आपके दिमाग में आये | आप एक बार को भी यह नहीं सोच पाएंगे की ये बात उचित है की नहीं | कम बोलने की आदत डालने का मतलब है अपने शब्दों को तोल लें | कुछ भी कहने से पहले ये सोचें, की क्या आपके शब्द सही हैं | इससे आपको खुद ही कई बातों का ज्ञान हो जायेगा, और आप यूँ भी कम बोलना सीख जायेंगे | [३]
    • कई बार लोग ज्यादा बोलने की वजह से ऐसी जानकारी भी दे देते हैं जिसे वह छिपाना चाहते हैं | जब भी आपके मन में कुछ कहने का विचार आये, ख़ास तौर से अगर वो बहुत निजी है, तो एक बार रुक जाएँ | याद रखें की आप बाद में भी नयी जानकारी दे सकते हैं, लेकिन अगर कोई बात सार्वजानिक हो गयी तो उसे फिर छिपा नहीं सकते हैं |
  4. अगर आपको इस बात का अंदाज़ा है की आप कितनी देर से बात कर रहे हैं तो आप शायद कम बात करेंगे | मुख्यतः: बोलने के 20 सेकंड के बाद आप सुनने वाले का ध्यान अपनी तरफ से हटा सकते हैं | इस पल के बाद, दूसरे व्यक्ति की बात सुनना शुरू कर दें | ऐसे संकेतों पर ध्यान दें की उनकी रूचि ख़त्म हो रही है | [४]
    • बॉडी लैंग्वेज पर नज़र रखें: हो सकता है की सुनने वाले की रूचि कम हो रही हो और ऐसे में वह या तो फ़ोन की ओर देखने लगेगा या उसका ध्यान बंटने लगेगा | ऐसे में अगले 20 सेकंड के अन्दर अपनी बात ख़त्म करें और दूसरे व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौका दें |
    • सामान्य तौर पर, हम एक समय पर 40 सेकंड से ज्यादा बात करने की कोशिश करते हैं | इससे ज्यादा अगर हम बात करेंगे तो दूसरा व्यक्ति उत्तेजित हो सकता है और ये सोच सकता है की आप उसकी बात काट रहे हैं |
  5. जब भी आप बैचैनी के चलते ज्यादा बोलते हैं तो एक बार सोच लें: कई बार लोग सामाजिक बैचैनी (social anxiety) के कारण ज्यादा बात करते हैं | जब आप ज्यादा बात करें तो उस पर ध्यान दें | क्या आप बैचैन हो रहे हैं? अगर ऐसा है, तो और तरीकों से उसका हल निकाल लें | [५]
    • जब आप देखें की आप ज्यादा बोल रहे हैं तो रुक कर अपने मूड का जायज़ा लें | आपको कैसा लग रहा है? क्या आप बैचैन हो रहे हैं?
    • अगर बैचैनी हो रही है तो तरीके अजमा सकते हैं जैसे दिमाग में 10 तक गिनती करना | आप किसी सामाजिक मौके में भाग लेने से पहले अपना मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं | अपने को आश्वासन दें की घबराना एक सामान्य बात है, पर आपको शांत हो कर मस्ती करने की कोशिश करनी चाहिए |
    • अगर सामाजिक बैचैनी आपके लिए एक बढ़ी समस्या है, तो थेरापिस्ट से मिलकर इसका हल निकालें |
  6. खास तौर से ऑफिस में हम और लोगों को प्रभावित करने के लिए ज्यादा बोलते हैं | अगर आप देखें की आप ज्यादा बात कर रहे हैं, तो सोचें की क्या आप ज्यादा बनने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं | [६]
    • अगर आप औरों को प्रभावित करने के लिए ज्यादा बात करते हैं, तो अपने को याद दिलाएं की बाकी लोग इस बात से ज्यादा प्रभावित होंगे की आप क्या बोल रहे हैं नाकि इससे की आप कितना बोलते हैं |
    • अपने बारे में ज़रुरत से ज्यादा बातें बताने के बजाय, अपने विचारों को तब तक संजो कर रखें जब आपके पास बातचीत में जोड़ने के लिए कोई महत्वपूर्ण बात हो |
विधि 2
विधि 2 का 3:

ज्यादा सुनना शुरू करें

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  1. एक बातचीत के दौरान, अपने फोन पर या कमरे में इधर उधर नहीं देखें | ये भी नहीं सोचें की आप खाने के बाद क्या करेंगे या रात के खाने में क्या खायेंगे | अपने ध्यान को सिर्फ बोलने वाले पर केन्द्रित रखें | इससे आपका ध्यान सिर्फ उसकी बात पर रहेगा, और आप बेहतर तरीके से उसकी बात को सुन पाएंगे | [७]
    • अधिकतर समय तक अपनी आँखें बोलने वाले पर ही टिका कर रखें | अगर आपको कौई और विचार अपने दिमाग में आते लगें, तो खुद को वर्तमान में वापस आने की सलाह दें और बात सुनें |
  2. आँखों से संपर्क बनाने से लगता है की आप ध्यान दे रहे हैं | जैसे वो व्यक्ति बात करे उसकी आँखों से आंखें मिलाएं | आँखों से संपर्क साधने से लगता है की आप ध्यान दे रहे हैं | आँखों से संपर्क करने में कमी ऐसा दिखाती है की आप को उनसे बात करने रूचि नहीं या आप बदमिजाज़ लोगों में से हैं | [८]
    • सेल फ़ोन, जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आपका ध्यान बंटा सकते हैं, खास तौर से अगर वह आवाज़ करें या उनमें नोटिफिकेशनस आयें | जब आप किसी से बात कर रहे हैं तो सेलफोन को अन्दर अपने पर्स या जेब में रखें ताकि आपका ध्यान उसके ऊपर नहीं जाए |
    • आँखों से संपर्क साधने से आपको ये भी पता चलेगा की क्या आप किसी को बोर कर रहे हैं | अगर कोई आपसे बात करते समय आँखों का संपर्क तोड़े, तो हो सकता है आप ज्यादा बात कर रहे हों | शांत हो जाएँ और दूसरे व्यक्ति को बोलने का मौका दें |
  3. किसी को सुनने के लिए धैर्य की ज़रुरत होती है | जब तक वह बात करे, ये आपकी ज़िम्मेदारी है की आप सुनें की वह क्या कह रहा है | ऐसा करते समय कोई मन में धारणा बनाने से परहेज़ करें | अगर आप उसकी कही बात से सहमत नहीं हैं, तो भी अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करें | उसकी बातचीत के समय ये नहीं सोचें की आप उसे किस प्रकार से जवाब देंगे | [९]
    • अगर आप अपने दिमाग में उस बात का चित्रण करें जो कही जा रही है तो आपको निश्चित रूप से मदद मिलेगी | अपने दिमाग में जो भी बोलने वाला कह रहा उसके चित्र बनाएं |
    • इसके इलावा जब वह बात कर रहा है आप मुख्य शब्दों और वाक्यों को ध्यान में रख सकते है |
  4. किसी भी बातचीत में, अंत में आपके कुछ कहने की बारी आएगी | ऐसा करने से पहले, मगर ये दिखाने की कोशिश करें की आप सुन रहे हैं | जो भी दूसरा व्यक्ति बोल रहा है उसे अपने शब्दों में फिर कहें और अगर कोई सवाल हैं तो वो पूछे | [१०] जो भी वो कहने की कोशिश कर रहा है उसे फिर से नहीं दोहराएं | बस आपको उसकी बातों से जो समझ में आया उसे अपने शब्दों में कहें | इसके इलावा ये बात ध्यान में रखें की ध्यान से सुनने से आपको उसकी बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने में और साथ ही उन्हें ये बताने में की आप सुन रहे है, मदद मिलेगी | ध्यान से सुनने को बीच में बोलने और अपने विचार प्रकट करने के लिए प्रयोग नहीं करें |
    • उदाहरण के तौर पर, कुछ ऐसा कहें, "तो, तुम कह रहे हो की तुम्हें आने वाली ऑफिस पार्टी की चिंता है |"
    • फिर, इसके बाद एक और सवाल पूछें | उदाहरण के तौर पर, कहें, "तुम्हें क्या लग रहा है ये चिंता क्यूँ हो रही है? क्या तुम उसके बारे में बात करना चाहते हो?"
    • जैसे आप दूसरे व्यक्ति की बात सुनें धारणाएं नहीं बनाएं और संवेदनशील बनने की कोशिश करें | आप अपने पद को खोये बिना भी अपनी तरफ से उन्हें इज्ज़त और प्रतिष्ठा दे सकते हैं |
विधि 3
विधि 3 का 3:

गलतियों से बचना

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  1. कम बोलने का मतलब ये नहीं की आप अपनी बात को मनवा अथवा प्रकट नहीं कर सकते हैं | अगर आपको कोई गंभीर मसला है, या कोई ऐसा विचार जो आपको अहम् लगता है, तो बोलने से कतराएं नहीं | कम बोलने का एक अहम् भाग है ये जानना की कब अपनी ओर से विचार बांटने हैं | [११]
    • उदाहरण के तौर पर , अगर आप अपनी निजी जिंदगी में किसी गंभीर समस्या से गुज़र रहे हैं, तो आप औरों से सहारा पाने के लिए अपने विचार प्रकट कर सकते हैं |
    • इसके इलावा अगर आपको लगता है की आपके विचार बहुमूल्य हो सकते हैं तो भी उन्हें बाँट दें | अगर, मान लीजिये, आपको कार्यक्षेत्र में किसी बात को लेकर प्रबल विचार हैं, तो उसे अपने बॉस और साथ काम करने वालों से बांटना सही रहेगा |
  2. आँखों में संपर्क ज़रूरी है | लेकिन, बार बार उसको करने से बातें कुछ ज्यादा गंभीर हो सकती हैं | वैसे तो लोग आँखों में आंखें डाल कर बात करने को आत्मविश्वास और ध्यान से सुनने से जोड़ते हैं, पर इसको ज्यादा करने से आप पर भरोसा करना मुश्किल हो जायेगा | ये उचित रहेगा की आप 7 से 10 सेकंड तक किसी से नज़रें मिलाएं और फिर एक पल के लिए कहीं और देखें | [१२]
    • आँखों से संपर्क बनाना कुछ सभ्यताओं में उचित नहीं माना जाता है | एशियाई सभ्यताओं में आँखों से संपर्क करने को बैज्ज़ती करने के बराबर माना जाता है | अगर आप किसी और सभ्यता के व्यक्ति से मिल रहे हैं, तो आँखों के संपर्क से जुड़ी वहां की सामाजिक परंपरा जान लें |
  3. हर किसी को अपने विचार रखने का और सही और गलत के मायने तय करने का हक है | जब आप बहुत ध्यान से किसी की बात सुन रहे हों, तो हो सकता है वो कुछ ऐसा बोलें जो आपको पसंद नहीं आये | लेकिन, सुनते समय, आप अपनी धारणाओं को अपने पास रखें | अगर आपको भी किसी को लेकर धारणाएं बनाने की आदत है, तो रुकें और खुद को अपने शब्दों का ध्यान रखने की याद दिलाएं | आप बाकि जानकारी का आंकलन बाद में कर सकते हैं | सुनते समय, सिर्फ बोलने वाले की बात पर ध्यान दें और किसी धारणा को पीछे छोड़ दें | [१३]

सलाह

  • किसी बातचीत का हिस्सा बनने से पहले, सोचें की क्या आपका योगदान ज़रूरी है, अगर नहीं, तो चुप रहे |

विकीहाउ के बारे में

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