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हालाँकि टेस्टोस्टेरोन (testosterone) को आमतौर पर "मेल" हार्मोन के तौर पर देखा जाता है लेकिन यह महिलाओं में भी पाया जाता है (काफी कम मात्रा में) | ऐसा देखा गया है कि अमूमन 4-7% भारतीय महिलाओं की ओवरीज में बहुत ज्यादा टेस्टोस्टेरोन बनता है जिसके कारण पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) की कंडीशन पैदा हो जाती है | [१] महिलाओं में अधिक टेस्टोस्टेरोन बनने के कारण ऑव्युलेशन की कमी से इनफर्टिलिटी की परेशानी हो सकती है और इसके अलावा मुहांसे, आवाज़ में भारीपन और फेसिअल हेयर ग्रोथ जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं | महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन के लेवल को कम करने के लिए अधिकतर दवाएं ही दी जाती हैं लेकिन डाइटरी चेंज (dietary change) मतलब खान-पान में बदलाव से भी काफी अच्छा असर दिख सकता है | (PCOS se Kaise Chutkara Paaye)

विधि 1
विधि 1 का 2:

मेडिकेशन के द्वारा टेस्टोस्टेरोन के लेवल को कम करें

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  1. अगर आपको लगता हो कि आपके हार्मोन शरीर का "सत्यानाश" कर रहे हैं तो डॉक्टर को दिखाएँ | बहुत बढे हुए एस्ट्रोजन के मुख्य संकेत हैं- अचानक गर्मी लगना (हॉट फ्लशेज) और मूड में बदलाव | जेनेटिक्स और अनजाने एनवायर्नमेंटल फैक्टर्स कुछ विशेष ग्लैंड्स (ओवरीज, पिट्यूटरी और एड्रिनल ग्लैंड) को कम काम करने के लिए ट्रिगर करते हैं जिससे टेस्टोस्टेरोन का प्रोडक्शन बहुत बढ़ जाता है | [२]
    • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) अधिकतर महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन के बहुत ज्यादा प्रोडक्शन के कारण होता है और यह किशोरावस्था के बाद (पोस्ट प्यूबेरिटी) किसी भी उम्र में हो सकता है |
    • PCOS इसलिए होता है क्योंकि टेस्टोस्टेरोन ओवरीज में उनके फोलिकल्स से अण्डों को रिलीज़ होने से रोक देता है | चूँकि फोलिकल ओपन नहीं हो पाते इसलिए अंडा और तरल उस ओवरी के अंदर ही कलेक्ट होते जाते हैं और एक ऐसी आकृति बनाते हैं जो देखने में कई सारी सिस्ट जैसी दिखाई देती है | [३]
    • पीरियड्स की कमी और PCOS अलावा, टेस्टोस्टेरोन की अधिकता के अन्य लक्षणों में शामिल हैं-हिर्सुटिस्म (हेयर ग्रोथ बढ़ जाना), गुस्सा और सेक्स की इच्छा बढ़ जाना, मसल्स मास बढ़ जाना, क्लाइटोरल ग्रोथ, मुहांसे होना, आवाज़ भारी होना और स्किन की थिकनिंग और डार्कनिंग होना |
  2. टाइप 2 डायबिटीज में आमतौर पर इन्सुलिन के इफेक्ट्स से सेलुलर सेंसिटिविटी कम हो जाती है | [४] टाइप 2 डायबिटीज ओबेसिटी से ट्रिगर हो सकती है जिसके कारण इन्सुलिन का ओवर प्रोडक्शन होने लगता है जिससे ओवरीज से टेस्टोस्टेरोन ज्यादा बनने लगता है | इसीलिए, ओबेसिटी, टाइप 2 डायबिटीज,(इन्सुलिन रेजिस्टेंस), हाई टेस्टोस्टेरोन प्रोडक्शन और PCOS महिलाओं में एक साथ तभी होते हैं जब इन्हें डेवलप होने के लिए पर्याप्त टाइम दिया जाता है | डॉक्टर आपका इन्सुलिन और ब्लड ग्लूकोस लेवल चेक कर सकते हैं जिससे पता लगाया जा सके कि आपको डायबिटीज डेवलप होने की सम्भावना है या नहीं |
    • टाइप 2 डायबिटीज वेट लॉस, रेगुलर एक्सरसाइज और डाइटरी चेंजेज (जैसे कम प्रोसेस्ड कार्बोहायड्रेट और हानिकारक हाइड्रोजनेटेड फैट्स न लेने) से रोकी जा सकती है बल्कि रिवर्स भी की जा सकती है |
    • फिजिशियन ऐसी मेडिसिन लिख सकते हैं जो इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम कर सकती हैं जैसे मेट्फोर्मिन (ग्लुकोफेज़) या पायोग्लिटाज़ोन (एक्टोज़) | ये मेडिकेशन इन्सुलिन और टेस्टोस्टेरोन के लेवल को नार्मल कर सकती हैं जिससे नार्मल पीरियड्स लाने में मदद मिल सकती है |
    • जब हाई इन्सुलिन लेवल के साथ टेस्टोस्टेरोन का लेवल भी हाई होता है तब हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर), ब्लड कोलेस्ट्रॉल असंतुलन ("बेड" LDL कोलेस्ट्रॉल बहुत ज्यादा हो जाना) और कार्डियोवैस्कुलर डिजीज होने की रिस्क बढ़ जाती है | [५]
    • एक स्टडी में यह देखा गया कि PCOS के 43% पेशेंट्स मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित पाए गये | मेटाबोलिक सिंड्रोम डायबिटीज के सह-भागी रिस्क फैक्टर्स हैं | इन रिस्क फैक्टर्स में शामिल हैं- ओबेसिटी, हाइपरग्लायसेमिया, हाइपरलिपिडेमिया और हाइपरटेंशन | [६]
  3. डॉक्टर से बर्थ कण्ट्रोल पिल्स लेने के बारे में जानें: लम्बे समय तक हाई टेस्टोस्टेरोन लेवल रहने के कारण PCOS डेवलप होने के बाद अगर पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं (प्री-मेनोपॉज होने वाली महिलाओं में) तो यूटेराइन कैंसर होने की रिस्क बढ़ जाती है | [७] इसलिए, कैंसर की रिस्क को कम करने के लिए नार्मल पीरियड्स "शुरू" कराना बहुत जरुरी होता है | ऐसा प्रोजेस्ट्रोन पिल्स लेने या एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन वाली बर्थ कण्ट्रोल पिल्स सप्लीमेंट के रूप में रेगुलरली लेने से किया जा सकता है | याद रखें कि पिल्स के द्वारा पीरियड्स लाने पर फर्टिलिटी (प्रेग्नेंट होने की क्षमता) रिस्टोर नहीं होगी |
    • अगर आपको PCOS है तो बर्थ कण्ट्रोल पिल्स लेने से जरुर लाभ मिलता है लेकिन डॉक्टर से इनसे होने वाले प्रभावी नेगेटिव साइड इफेक्ट्स के बारे जानकारी ले लें जैसे, सेक्स की इच्छा कम हो जाना, मूड चेंज होना, वज़न बढ़ना, सिरदर्द, ब्रैस्ट में दर्द और मितली होना | [८]
    • आमतौर पर महिलाओं में हाई टेस्टोस्टेरोन से सम्बंधित लक्षणों जैसे फेसिअल हेयर विशेषतौर पर ऊपरी होंठ पर), और एक्ने में बदलाव नोटिस करने के लिए इन बर्थ कण्ट्रोल पिल्स को लगभग छह महीने तक लेना पड़ता है | [९]
  4. जब किसी महिला को डायबिटीज न हो और वो बर्थ कण्ट्रोल पिल्स भी न लेना चाहती हों और फिर भी लम्बे समय से हाई टेस्टोस्टेरोन लेवल बना हो तो उन महिलाओं के लिए यह एक बेहतर ऑप्शन है | एण्ड्रोजन इन्टररिलेटेड हार्मोन्स का एक ग्रुप है जिसमे टेस्टोस्टेरोन शामिल है जो पुरुषों के विशेष लक्षणों को डेवलप करने के लिए जिम्मेदार होता है | [१०] आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एंटी-एण्ड्रोजन ड्रग्स में शामिल हैं-स्पिरोनोलैक्टोन (एल्ड़ेक्टोन), ल्युप्रोलिड (लुप्रोन, विअडुर , एलिगार्ड), गोसेरेलिन (ज़ोलाडेक्स) और एबेरेलिक्स (प्लेनेक्सिस) | डॉक्टर प्रभावी नेगेटिव साइड इफेक्ट्स की तुलना में अनुमानित इफ़ेक्टिवनेस के लिए छह महीने तक लो डोज़ में एंटी-एण्ड्रोजन मेडिसिन देकर एक्सपेरिमेंट करने की सिफारिश कर सकते हैं |
    • एंटी-एण्ड्रोजन ड्रग्स का इस्तेमाल मेल से फीमेल ट्रांससेक्सुँल्स में टेस्टोस्टेरोन लेवेल्स को कम करने के प्रयास के रूप में भी किया जाता है, विशेषरूप से अगर उन्हें जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिए चुना गया हो तो |
    • महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढाने वाली अन्य डिजीज और कंडीशन्स हैं- ओवेरियन कैंसर/ट्यूमर, कुशिंग डिजीज (पिट्यूटरी ग्लैंड प्रॉब्लम) और एड्रीनल ग्लैंड्स के कैंसर |
    • स्वस्थ महिलाओं में, ओवरीज़ और एड्रीनल ग्लैंड्स (जो किडनी के टॉप पर स्थित होती हैं) 50 % टेस्टोस्टेरोन प्रोड्यूस करती हैं | [११]
विधि 2
विधि 2 का 2:

डाइट के द्वारा टेस्टोस्टेरोन लेवल्स कम करें

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  1. सोयाबीन में आइसोफ्लेवोंस (विशेषरूप से जेनिस्टीन और ग्लायसिटिन) नामक फायटोएस्ट्रोजनिक कंपाउंड्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं | ये कंपाउंड्स शरीर में एस्ट्रोजन के समान इफ़ेक्ट देते हैं जिससे सेकेंडरी तौर पर टेस्टोस्टेरोन का प्रोडक्शन कम हो सकता है | [१२] सोया में डैडजीन (daidzein) नामक एक कंपाउंड भी पाया जाता है जो कुछ लोगों की बड़ी आंत में हाइली एंटी-एण्ड्रोजनिक कंपाउंड एकुओल (equol) के रूप में ट्रांसफॉर्म हो के रूप में ट्रांसफॉर्म हो सकता है (इस प्रोसेस के लिए विशेष प्रकार के "फ्रेंडली" बैक्टीरिया की जरूरत होती है) | एकुओल सीधे टेस्टोस्टेरोन के प्रोडक्शन या इफ़ेक्ट को कम कर सकता है |
    • सोया प्रोडक्ट्स डाइवर्स होते हैं और सीरियल्स, ब्रेड, टोफू, कई तरह के पेय, एनर्जी बार्स और मीट सबस्टिट्यूट(जैसे वेजीटेरियन हॉटडॉग्स और बर्गर) में पाए जाते हैं |
    • सोया एक फायटोएस्ट्रोजन या प्लांट कंपाउंड है जो एस्ट्रोजन रिसेप्टर्स को भी बाँध सकता है | ये ह्यूमन प्रोड्यूस्ड एस्ट्रोजन के समान "नहीं" होते | जहाँ ह्यूमन प्रोड्यूस एस्ट्रोजन, एस्ट्रोजन के अल्फा और बीटा दोनों रिसेप्टर्स पर काम करते हैं वहीँ प्लांट एस्ट्रोजन केवल बीटा रिसेप्टर्स पर ही काम करते हैं | इसके विपरीत अफवाहों के बावजूद, सोया कंसम्पशन का सम्बन्ध ब्रैस्ट या थाइरोइड इश्यूज (एस्ट्रोजन अल्फा रिसेप्टर इशू) से नहीं है और क्लिनिकल स्टडीज के देखा गया है कि यह आमतौर पर स्वास्थ्यवर्धक होता है |
    • फिर भी, सोया प्रोडक्ट्स के बारे में कई सारे वास्तविक इश्यूज होते हैं जिनमे से एक का सम्बन्ध GMO सोयाबीन से है और अन्य सम्बन्ध फ़ूड प्रोसेसिंग से है | हाई टेम्परेचर पर सोया प्रोटीन की एसिड हाइड्रोलायसिस का इस्तेमाल करने से बनने वाला सोया कैंसर उत्पन्न करने वाले पदार्थों जैसे 3-MCPD और 1,3-DCP बनाते हैं | ध्यान रखें कि आपके सौसेस और सोया पाउडर हाई हीट पर प्रोसेस किये गये सोया पर आधारित न हों | (विशेषरूप से सोया/ओयेस्टर/होइसिन/तेरियाकी सॉस में, इसका मतलब है कि ये "नेचुरली फर्मेंटेड" हों, जो एक ऐसी प्रोसेस है जिसमे कुछ घंटे नहीं बल्कि कुछ सप्ताह लगते हैं |)
    • सोया के ओवरकंसम्पशन से कोलेजन प्रोडक्शन कम हो सकता है क्योंकि एस्ट्रोजन बीटा रिसेप्टर से कोलेजन नष्ट हो जाता है |
  2. फ्लेक्स सीड में ओमेगा-3 फैटी एसिड (जिसमे एंटी-इंफ्लेमेटरी इफेक्ट्स होते हैं) की भरपूर मात्रा पाई जाती है और लिग्नंस (lignans) नामक एक कंपाउंड पाया जाता है जो हाईली एस्ट्रोजेनिक होता है (एस्ट्रोजन के प्रोडक्शन को स्टीमुलेट करता है) | लिग्नंस शरीर में टोटल और फ्री टेस्टोस्टेरोन लेवेल्स को कम भी करते हैं और साथ टेस्टोस्टेरोन के कन्वर्शन को दबाकर अधिक प्रभावी डाइहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन में बदल देता है | [१३] याद रखें कि लोगों को यह आसानी से पचे, इसके लिए फ्लेक्स सीड को पीसना बहुत जरुरी होता है | अपने ब्रेकफास्ट सीरियल और/या दही पर पिसे हुए फ्लेक्स सीड बुरकें | आप अधिकतर ग्रोसरी स्टोर्स से फ्लेक्स सीड वाली मल्टीग्रेन ब्रैड भी खरीद सकते हैं |
    • लिग्नंस सेक्स हार्मोन बाइंडर को बढाकर अपना काम करते हैं जिससे ये शरीर में एण्ड्रोजन रिसेप्टर्स से बाइंड होकर टेस्टोस्टेरोन मॉलिक्यूल्स को निष्क्रिय करता है |
    • आमतौर पर खाए जाने वाले फूड्स में से फ्लेक्ससीड (flaxseed) लिग्नंस (lignans) के सबसे प्रचुर सोर्स हैं और दूसरे नंबर पर तिल (sesame seed) आते है | [१४]
  3. टेस्टोस्टेरोन एक स्टेरॉयडल हार्मोन है जिसे प्रोड्यूस होने के लिए कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है | कोलेस्ट्रॉल केवल एनिमल प्रोडक्ट्स (मीट, चीज़, बटर, आदि) मिलने वाले सैचुरेटेड फैट में ही पाया जाता है | स्टेरॉयडल हार्मोन और शरीर की सभी सेल मेम्ब्रेन को बनाने के लिए थोड़े कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है लेकिन सैचुरेटेड फैट से भरपूर डाइट टेस्टोस्टेरोन के प्रोडक्शन को बढाने में ट्रिगर का काम करती है | [१५] और, मोनोसैचुरेटेड फैट (अवोकेडो, अधिकतर नट्स, ऑलिव ऑइल, कैनोला ऑइल, सेफफ्लावर ऑइल) से भरपूर डाइट भी टेस्टोस्टेरोन लेवल को बूस्ट करती है | पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) ही केवल ऐसा फैट है जिससे टेस्टोस्टेरोन लेवल कम होता है |
    • अधिकतर वेजिटेबल ऑयल्स (कॉर्न, सोया, रैपसीड/कैनोला) ओमेगा-6 PUFAs से भरपूर होते हैं लेकिन टेस्टोस्टेरोन कम करने के लिए इन्हें बहुत ज्यादा मात्रा में खाने से अन्य हेल्थ प्रॉब्लम शुरू हो सकती हैं इसलिए सावधानी बरतें |
    • PUFAs (ओमेगा-3 से भरपूर) के हेल्दी फॉर्म्स में शामिल हैं-फिश ऑइल (सामन, टूना, मैकरील, हेरिंग), फ्लेक्ससीड (flaxseed), अखरोट और सनफ्लावर सीड्स |
    • हाई सैचुरेटेड फैट वाली डाइट से भी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज की रिस्क बढ़ जाती है क्योंकि ओमेगा-6 PUFAs आपके हार्ट के लिए बहुत अच्छा नहीं होता है | नेचुरल फैट को बैलेंस रखना चाहिए जबकि हाइड्रोजनेटेड फैट को डाइट से हटाना चाहिए |
  4. रिफाइंड कार्बोहायड्रेट में आसानी से पचने वाली शुगर (ग्लूकोस) बहुत ज्यादा पायी जाती है जो इन्सुलिन लेवल को बढ़ा देती है और ओवरीज को ज्यादा टेस्टोस्टेरोन प्रोड्यूस करने के लिए ट्रिगर करती है, यही प्रोसेस टाइप 2 डायबिटीज में होती है लेकिन लॉन्ग टर्म की बजाय शॉर्ट टर्म इफ़ेक्ट के रूप में | [१६] इसलिए, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट (ऐसी कोई भी चीज़ जिसमे हाई फ्रक्टोस कॉर्न सिरप हो) लेने से बचें और हेल्दी कार्ब्स चुनें जैसे समग्र अनाज वाले प्रोडक्ट्स, फ्रेश बेरीज और साइट्रस फ्रूट्स, फाइबर वाली वेजिटेबल्स, हरी पत्तेदार सब्जियां और दालें |
    • ऐसे हाई रिफाइंड शुगर वाले प्रोडक्ट्स जिन्हें लेने से बचना चाहिए या जिन्हें कम से कम लेना चाहिए, वे हैं- कैंडी, केक्स, कूकीज़, अधिकतर स्टोर से ख़रीदे गये बेक्ड फूड्स, आइसक्रीम, चॉकलेट, सोडा पॉप और अन्य शुगरी ड्रिंक्स |
    • बहुत ज्यादा रिफाइंड शुगर वाली डाइट भी हार्ट डिजीज, ओबेसिटी और टाइप 2 डायबिटीज की रिस्क भी बढ़ा देती है |
  5. ऐसी कई हर्ब्स हैं जिनमे एंटी-एण्ड्रोजन इफेक्ट्स (कई जानवरों पर की गयी स्टडीज के आधार पर) हो सकते हैं लेकिन इनसे महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन लेवल पर पड़ने वाले डायरेक्ट इफेक्ट्स के बारे में अभी तक कोई खास स्टडीज नहीं की गयी हैं | आमतौर पर एंटी-एण्ड्रोजनिक प्रॉपर्टीज वाली जिन हर्ब्स का इस्तेमाल काफी किया जाता है उनमे शामिल हैं- सॉ पाल्मेटो, चास्ट बेरीज, ब्लैक कॉहोश, मुलहठी, स्पीयरमिंट और पेपरमिंट टी और लैवेंडर ऑइल | [१७] हार्मोन पर प्रभाव डालने के लिए फेमस, हर्ब्स को लेने से पहले हमेशा डॉक्टर से सलाह लें |
    • अगर आप प्रेग्नेंट हैं, ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं या जल्दी ही माँ बनने वाली हैं तो इन हर्बल सप्लीमेंट्स को ' न लें |
    • कैंसर (ब्रैस्ट, यूटेराइन, ओवेरियन)या अन्य हार्मोन-रिलेटेड प्रॉब्लम्स की हिस्ट्री वाली महिलाओं को इन हर्ब्स को केवल डॉक्टर के सुपरविज़न में ही लेना चाहिए |

सलाह

  • महिलाओं को सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में टेस्टोस्टेरोन की लगभग 1/10 मात्रा होती है लेकिन महिलाओं की किसी भी उम्र में टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ भी सकता है |
  • महिलाओं में हाई टेस्टोस्टेरोन लेवल के सभी साइड इफेक्ट्स अनचाहे नहीं होते, जैसे मांसपेशियों का मांस बढ़ना और सेक्स की इच्छा बढ़ जाना |
  • हिर्सुडिज्म को बेहतर रूप से डील करने के लिए फेसिअल हेयर को प्लकिंग या कॉस्मेटिक लेज़र ट्रीटमेंट (इलेक्ट्रोलायसिस) पर विचार करना चाहिए |
  • वेजीटेरियन डाइट शरीर में टेस्टोस्टेरोन लेवल को कम करती है जबकि हाई सैचुरेटेड और/या मोनोसैचुरेटेड फैट वाली डाइट से टेस्टोस्टेरोन लेवल बढ़ता है |
  • वज़न कम करने के लिए कार्डियोवैस्कुलर एक्सरसाइज एक अच्छा ऑप्शन है लेकिन जिम में हैवी वेट लिफ्टिंग से पहले दो बार सोच लें क्योंकि इससे पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन लेवल बढ़ जाता है और इसी तरह महिलाओं में भी बढ़ सकता है |

चेतावनी

  • अगर आपको लगता है कि आपके शरीर में हार्मोनल इम्बैलेंस हो रहा है तो अपने हार्मोन लेवल को कम करने की कोशिश से पहले डॉक्टर से सलाह लें | डाइटरी मॉडिफिकेशन आमतौर पर सुरक्षित होता है लेकिन लक्षणों के कारण को जाने बिना इन मॉडिफ़िकेशन से आपकी कंडीशन और खराब हो सकती है |
  • डॉक्टर टेस्टोस्टेरोन लेवल को कम करने के लिए जो भी दवाएं देना चाहते हैं, उनसे उन दवाओं के कारण होने वाले साइड इफेक्ट्स के बारे में गहराई से पूछें | आपके द्वारा पहले से ले जा रही दवाओं या बीमारियों के बारे में डॉक्टर को खुलकर बताएं |

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