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फ़िल्मों की दुनिया में बहुत कंपटीशन है। आपके पास दुनिया का सबसे बढ़िया आइडिया हो सकता है, मगर यदि आपका कथानक ठीक से फ़ोरमेटेड नहीं है, तब तो अधिक संभावना यही है कि शायद वह पढ़ा भी नहीं जाएगा। अपने लिखे हुये को बड़े पर्दे पर देखे जाने की संभावना को बढ़ाने के लिए इन चरणों का पालन करिए।

विधि 1
विधि 1 का 3:

शुरुआत करना

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  1. कथानक या पटकथा, उन सभी एलिमेंट्स (औडियो, दृश्य, व्यवहार तथा डाइलॉग) की रूपरेखा होती है, जिनकी आवश्यकता किसी कहानी को मूवी या टीवी के ज़रिये से बताने के लिए पड़ती है।
    • कथानक, अक्सर ही, किसी अकेले व्यक्ति का काम नहीं होता है। इसके स्थान पर, उसको बार बार दोहराया जाता है और बार बार लिखा जाता है, और आख़िरकार उसको निर्माताओं, निर्देशकों तथा अभिनेताओं द्वारा समझा जाता है।
    • मूवीज़ और टीवी दृश्य माध्यम हैं। इसका अर्थ है, कि आपको कथानक ऐसे लिखना होगा, जिसमें कि कहानी के देखे और सुने जाने वाले पक्ष शामिल हों। चित्रों तथा आवाज़ों पर अपना ध्यान केन्द्रित करिए।
  2. मूवी कथानकों को ऑनलाइन पढ़िये और तय कीजिये कि आपको उसमें क्या पसंद (क्या नापसंद) आता है। ऐक्शन को किस प्रकार से दिखाया गया है, डाइलॉग कैसे लिखे गए हैं, और चरित्र कैसे विकसित किए गए हैं, इस पर ध्यान दीजिये।
  3. यह मानते हुये कि आप जो लिखना चाहते हैं, उसके लिए आपके पास विचार उपलब्ध हैं, कथानक के उन सभी विवरणों, सम्बन्धों, तथा चरित्रों की खासियतों को लिख डालिए जिनसे आपकी कहानी आगे बढ़ेगी। वे कौन से तत्व हैं जो आपके विचार से जुड़े हुये हैं? आपके चरित्र एक दूसरे से कैसे बातचीत करते हैं, और क्यों? आपका मुद्दा क्या है? क्या आपके कथानक में कुछ कमियाँ हैं? इन सभी मुद्दों को, चाहे जैसे भी आप उचित समझें, लिख डालिए।
विधि 2
विधि 2 का 3:

कथानक को लिखना

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  1. अपने कथन के मूल भाव से शुरू करिए। फिर कहानी के संघर्षों पर फ़ोकस करिए; संघर्षों से ही ड्रामा चलता है।
    • लंबाई का ध्यान रखिए। जब स्क्रिप्ट के रूप में होता है, तब हर पेज आमतौर पर, पर्दे का एक मिनट लेता है। आमतौर पर, दो घंटे की स्क्रिप्ट 120 पेजों की होती है। ड्रामा को लगभग 2 घंटे का होना चाहिए, और कॉमेडी को थोड़ा छोटा, अर्थात डेढ़ घंटे का।
    • साथ ही, यह भी ध्यान रखिए कि जब तक कि लेखक पूर्व परिचित न हो, बढ़िया सम्बन्धों वाला न हो, या ख़ूब बिकने वाला न हो, लंबी पटकथा के वास्तव में चुने जाने की संभावना बहुत कम होती है। यदि आप जो कहानी कहना चाहते हैं, उसको पर्दे पर दो घंटे में नहीं दिखाया जा सकता हो, तो अच्छा होगा कि आप उसको उपन्यास में परिवर्तित कर दें।
  2. ये तीन ऐक्ट कथानक के स्तम्भ होते हैं। प्रत्येक ऐक्ट स्वतंत्र रूप से चल सकता है, और साथ में मिल कर उससे कहानी में मोड़ आता है।
    • प्रथम ऐक्ट: यहाँ पर कहानी की भूमिका बनाई जाती है। कहानी की दुनिया और चरित्रों का परिचय दिया जाता है। कहानी का टोन तय किया जाता है (कॉमेडी, ऐक्शन, रोमान्स आदि)। अपने नायक का परिचय दीजिये और उस संघर्ष की बात शुरू कीजिये, जिससे कहानी आगे चलेगी। जब एक बार नायक लक्ष्य की ओर चल पड़ता है, तब दूसरा ऐक्ट शुरू होता है। ड्रामा के लिए प्रथम ऐक्ट आमतौर से 30 पेज का होता है। कॉमेडी के लिए 24 पेज।
    • दूसरा ऐक्ट: यह ऐक्ट कहानी का मुख्य भाग होता है। यहाँ पर नायक को संघर्ष सुलझाने के रास्ते में बाधाएँ मिलती हैं। टिपिकली, दूसरे ऐक्ट में ही उप कथानक भी शुरू किए जाते हैं। दूसरे ऐक्ट के दौरान नायक में परिवर्तन के निशान दिखते रहते हैं। ड्रामा के लिए, आमतौर पर दूसरा ऐक्ट 60 पेज का होता है। कॉमेडी के लिए, 48 पेज का।
    • तीसरा ऐक्ट: तीसरे ऐक्ट में, कहानी सुलझाव पर पहुँच जाती है। तीसरे ऐक्ट में ही कहानी के मोड़ होते हैं, तथा उसके अंत में, लक्ष्य से अंतिम आमना सामना। चूंकि कहानी दूसरे ऐक्ट में स्थापित की जा चुकी है, इसलिए तीसरा ऐक्ट बहुत तेज़ी से चलता है और कंडेंस्ड होता है। ड्रामा के लिए तीसरा ऐक्ट आमतौर पर 30 पेज का होता है। कॉमेडी के लिए 24 पेज का।
  3. सीक्वेंस कहानी के वे भाग होते हैं, जो मुख्य संघर्ष से अलग चलते रहते हैं। इनकी शुरुआत, मध्य, तथा अंत होता है। आमतौर पर, सीक्वेंस की लंबाई 10 से 15 पेज की होती है। सीक्वेंस में किसी चरित्र विशेष पर फ़ोकस किया जाता है।
    • सीक्वेंस का ताना बाना आमतौर पर, मुख्य कहानी से अलग होता है, परंतु अक्सर उनसे कहानी पर होने वाला असर दिखता है।
  4. दृश्य आपकी मूवी की घटनाएँ हैं। वे विशेष लोकेशन्स पर होते हैं, तथा हमेशा कहानी को आगे बढ़ाते हैं। यदि कोई दृश्य ऐसा नहीं करता है, तो उसे कथानक से हटा दिया जाना चाहिए। जिन दृश्यों का कोई उद्देश्य नहीं होता है, वे दर्शकों को खटकते हैं, और कहानी को धीमा कर देते हैं।
  5. जब आपके दृश्य तैयार हो जाएँगे, तब आपके चरित्र एक दूसरे से इंटर ऐक्ट करने लगेंगे। संवादों का लिखना सबसे कठिन काम हो सकता है। हर चरित्र की अपनी अलग, विश्वसनीय बोली होनी चाहिए।
    • रियलिस्टिक संवाद, अच्छे संवाद हों, यह आवश्यक नहीं है। संवादों का फ़ोकस कहानी को आगे बढ़ाने, और चरित्रों का विकास करने पर होना चाहिए। संवादों से सच्चाई को पकड़ पाने की चिंता आपको नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वास्तविकता में तो अक्सर संवाद नीरस तथा बेजान होते हैं।
    • संवादों को बोल कर पढ़िये। क्या वे अटकते हुये लगते हैं, घिसे पिटे लगते हैं, या सिर के ऊपर से निकल जाते हैं? क्या सभी चरित्र एक ही तरीक़े से बोलते हैं?
  6. अब जब आपके सभी विचार कागज़ पर उतर गए हैं, तब कमज़ोर कड़ियों, डिस्ट्रैक्शन (distractions), या कोई भी ऐसी चीज़, जिससे कहानी के चलने में बाधा आती हो, उसको ढूंढ निकालिए। क्या कहानी कहीं पटरी से उतर जाती है? क्या उसमें बेकार के विस्तार और दोहराव भी हैं? क्या आप अपने दर्शकों को पर्याप्त समझ बूझ वाला समझते हैं? यदि कहीं पर बात को कुछ ज़रूरत से ज़्यादा समझाया जा रहा हो, या कहानी आगे न बढ़ रही हो, तब उसे काट फेंकिए।
  7. विभिन्न प्रकार की राय लेने के लिए, अलग अलग रुचियों तथा बैकग्राउंड के लोगों को चुनिये। उनसे कहिए कि वे कड़वा सच आपको बताएं, क्योंकि आप रचनात्मक आलोचना चाहते हैं, न कि चापलूसी और झूठ।
  8. अपने काम को जितनी बार भी आवश्यक हो, उतनी बार दोहराइए: शुरू में यह कष्टदायक लग सकता है, मगर जब पूरा हो जाएगा, तब आपको अच्छा लगेगा कि आपने समय निकाल कर अपनी कल्पना को सही तरह से प्रस्तुत किया है।
विधि 3
विधि 3 का 3:

कथानक को फ़ारमैट करना

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  1. आमतौर पर पटकथाएँ 81/2” X 11” के कागज़, जिसमें 3 छेद किए हों, पर लिखी जाती हैं। ऊपर और नीचे का हाशिया 0.5” तथा 1” का होता है। बायाँ हाशिया 1.2” से 1.6” तक का, तथा दाहिना हाशिया .5” से 1” का रखा जाता है।
    • पेज नंबर सबसे ऊपर दाहिने कोने पर लिखे जाते हैं। शीर्षक पेज पर नंबर नहीं डाला जाता है।
  2. आमतौर पर पटकथाएँ कूरियर 12 पॉइंट फॉन्ट में लिखी जाती हैं। यह मुख्यतः समय को ध्यान में रख कर किया जाता है। कूरियर 12 में लिखा हुआ एक पेज पर्दे पर दिखाये गए एक मिनट का समय लेता है।
  3. पटकथा के अनेक भाग होते हैं, जिनके लिए विशेष प्रकार के फ़ारमैट बनाने की आवश्यकता होती है, ताकि वे इंडस्ट्री के स्टैंडर्ड के हिसाब से हों।
    • सीन का शीर्षक : इसको “स्लग लाइन” भी कहते हैं। इससे लोकेशन का विवरण देकर पाठक के लिए स्टेज तैयार किया जाता है। सीन का शीर्षक बड़े अक्षरों में लिखा जाता है। सबसे पहले यह संकेत करिए कि दृश्य अंदर का है, या बाहर का है तथा लिखिए “INT.” या “EXT.”। तब, उसके बाद लोकेशन तथा समय लिखिए। कभी भी किसी पेज के अंत में सीन का शीर्षक मत लिखिए, आवश्यक हो, तो खींच कर अगले पेज पर ले जाइए।
    • ऐक्शन : यहाँ पर कथानक का वर्णन किया जाता है। प्रेसेंट टैन्स में लिखिए, और ऐक्टिव वॉइस में भी। पैराग्राफ़ को पाठक का ध्यान खींचने के लिए छोटा ही रखिए। अच्छा पैराग्राफ़ 3 से 5 लाइनों का होता है।
    • चरित्रों का नाम : इससे पहले कि संवाद शुरू हो, चरित्र का नाम बड़े अक्षरों में बाएँ हाशिये से 3.5” अंदर लिखा जाता है। यह नाम, या तो चरित्र का वास्तविक नाम हो सकता है, या फिर यदि मूवी में उसका नाम नहीं है, तब चरित्र का विवरण हो सकता है, या उसके पेशे से संबोधित किया जा सकता है। यदि चरित्र की आवाज़ पर्दे के बाहर से आ रही हो, तब उसके नाम के सामने “(O.S.)” लिखा जाता है। यदि चरित्र कुछ कह रहा होता है, तब वॉइस ओवर के लिए उसके नाम के आगे “(V.O.)” लिखा जाता है।
    • संवाद : जब कोई चरित्र बोल रहा होता है, तब संवाद बाएँ हाशिये से 2.5” अंदर लिखते हैं, तथा दाहिने हाशिये से लगभग 2-2.5” दूर रखा जाता है। संवाद चरित्र के नाम के ठीक नीचे लिखते हैं।

सलाह

  • अपनी स्थानीय लाइब्ररी में पटकथा लेखन पर उपलब्ध किताबें पढ़ डालिए। अनेक पुराने फिल्म बनाने वालों ने आपके जैसे लोगों के लिए पुस्तकें लिखी हैं।
  • कहानी को ऐसे विकसित करने की कोशिश करिए कि वह प्राकृतिक रूप से बढ़ती हुयी लगे। अनेक ऐसे पटकथा लेखकों को, जो पहली बार लिख रहे हैं, लगता है, कि हर अगला पल पिछले पल से अधिक उत्तेजक होना चाहिए; जबकि कुछ ऐसे भी होते हैं, जो उत्तेजना और शांति के बीच में आते जाते रहते हैं। आप यह ध्यान रखिए कि आपकी पटकथा धीरे धीरे ऐसे विकसित हो, कि उत्तेजना एक चरम सीमा तक पहुँच सके।
  • पटकथा लेखन का सॉफ्टवेयर ख़रीदने का विचार करिए। अनेक ऐसे प्रोग्राम उपलब्ध हैं, जिनसे आपको फोर्मेटिंग में दिशा निर्देश मिल सकते हैं, या वे पहले से लिखी हुयी पटकथा को सही तरह से रख सकते हैं।
  • आपका हुक (अर्थात, आपकी अवधारणा या दिलचस्पी का मुख्य मुद्दा) पटकथा के पहले दस पेजों में दिया जाना चाहिए। निर्माता कहानी पूरी पढ़ने का निर्णय पहले दस पेज पढ़कर ही लेते हैं!
  • पटकथा लेखकों के फ़ोरम में भाग लीजिए। आप साथी लेखकों से सुझाव ले सकते हैं, और विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं, साथ ही, शायद आपको कुछ कांटैक्ट भी मिल जाएँ, तथा वे लोग भी, जिन्हें आपके काम में रुचि हो।
  • रचनात्मक लिखने के कोर्स करिए। पटकथा लेखन में भी उतना ही समय और परिश्रम लगता है, जितना कि किसी भी अन्य प्रकार के लेखन में, और यदि आपने स्कूल में लिखने का अभ्यास नहीं किया है, तब यह और भी कठिन हो जाता है।
  • पटकथा लेखन पर औपचारिक पढ़ाई करने का विचार करिए। पुणे में स्थित फ़िल्म अँड टेलिविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया इसके लिए एक बढ़िया जगह है।

चेतावनी

  • दूसरों के कार्यों से प्रेरणा तो लीजिये, मगर उनके विचार अपने लेखन में मत लाइये। यह गैर कानूनी है, और नैतिकता के विचार से घृणित भी।
  • अपनी पटकथा यूं ही किसी को मत दे दीजिये; विचारों को आसानी से चुराया जा सकता है। इससे बचने का एक बढ़िया तरीक़ा यह है कि अपनी पटकथा को भारत में फ़िल्म लेखकों के असोशिएशन में रजिस्टर करायें [१] , अमेरिका के लिए यह रजिस्ट्रेशन Writer's Guild of America पर हो सकता है। फिल्म लेखकों का असोशिएशन सभी लेखकों का प्रतिनिधित्व करता है, तथा वैबसाइट पर पटकथा लेखन की कला के संबंध में पूरी जानकारी मिल सकती है।

चीज़ें जिनकी आपको आवश्यकता होगी

  • वर्ड प्रोसेसर
  • औथरिंग सॉफ्टवेयर (वैकल्पिक)

विकीहाउ के बारे में

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