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कुछ लोगों के लिए बातचीत करना एक बेहद कठिन काम होता है। और इसीलिए भी इसे किसी भी अच्छे रिश्ते की कुंजी माना जाता है । यदि आप किसी भी रिश्ते में बेहतर ढंग से बातचीत करना चाहते हैं, तो आपको ना सिर्फ अपने ही विचार सामने रखने होंगे बल्कि अपने साथी की बातों को भी सच में सुनना होगा । यदि आप रिश्ते में बेहतर ढंग से बातचीत करना सीखना चाहते हैं, तो बस इन आसान चरणों का पालन करें ।

विधि 1
विधि 1 का 3:

अपनी बात सही ढंग से रखना

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  1. हम कभी-कभी जो बोलना चाहते हैं, उसे सही ढंग से सामने नहीं रख पाते, आपने ऐसा बहुत बार सुना होगा कि -- जब वह बोलती है कि "ऐसा" तो उसका मतलब होता है वैसा -- या, "वह सच में आपको क्या समझाना चाह रहा है, किसी को नहीं पता..." ये सब सच में इसलिए मजेदार लगता है, क्योंकि ऐसा हम सबके साथ में होता ही है । कभी-कभी हम अपने साथी से उम्मीद करते हैं, कि वह हमारी बातों के पीछे छिपे हुए असल मतलब को समझे, लेकिन इस सोच पर निर्भर रहना या इसकी इच्छा भी रखना, सच में उचित नहीं है । इसकी जगह पर अपने विचारों को सीधे तौर पर उसके सामने रखने की कोशिश करें । [१]
    • जब आप अपनी बात रखें, तो अपनी बातों के अर्थ को समझाने के लिए कुछ उदाहरण भी रखें, ताकि आप की बोली जा रही बातों के सही मायने समझ आएँगे। ऐसा बिलकुल ना बोलें, कि "मुझे लगता है कि तुम घर के काम में बिलकुल भी हाथ नहीं बंटाना चाहते..." इसकी जगह पर कहें कि "मैं पिछले दो हफ़्तों से हर रात को सारे बर्तन धो रही हूँ..."
    • जितनी आवाज में आपका साथी आपको समझ सके, उतना ही धीरे बोलें । एकदम गुस्से के साथ में अपनी भावनाएं ना व्यक्त करें, नहीं तो आपका साथी आपकी भावनाओं को बिलकुल भी नहीं समझ सकेगा ।
    • याद रखें कि यदि आप ही बोलते रहेंगे तो आपकी बातों की कोई कीमत ही नहीं रह जाएगी । आप जितनी बातें सामने रखना चाहते हैं, सब रखें, लेकिन बस एक बात याद रखें, कि सिर्फ बोलते, बोलते और बोलते ही ना रहें, नहीं तो आप का साथी बेचैन हो जाएगा ।
    • सीधे तौर पर अपनी भावनाओं को सामने रखने से आप के इरादों को ले कर सामने वाले को कंफ्यूजन में डाल सकती हैं । अपने बॉयफ्रेंड को आप को किसी पार्टी में ना ले जाने के संकेत देने से अच्छा है, कि आप उस के सामने जो है वो सच बोल दें: यही कि आप फिर से इतने सारे लोगों को नहीं देखना चाहतीं, क्योंकि आप हफ्ते भर से अपने काम को लेकर परेशान हैं, उसके बाद ऐसा कहें कि "मैं ऐसा नहीं चाहती लेकिन सच में आज मैं किसी भी पार्टी में जाने के मूड में नहीं हूँ ।"
  2. अपने साथी की किसी भी गलती पर उस पर चिल्लाना या दोष डालना ना शुरू कर दें । यदि आप बोलेंगे, कि "तुम हमेशा..." या "तुम कभी नहीं..." तो आपका साथी जरा उत्तेजित हो जाएगा और फिर वह शायद ही आप की बातें और आप के दृष्टिकोण को सुनेगा । इसकी जगह पर बोलें, कि "मैंने गौर किया है कि..." या "आज कल, मुझे ऐसा लगता है..." इस तरह से अपनी भावनाओं पर केन्द्रित बातों पर चर्चा करके, आपके साथी को ऐसा नहीं लगेगा कि आप उसकी आलोचना कर रहे हैं, और इस तरह से वह चर्चा के कुछ उचित नतीजों पर पहुंच सकेगा ।
    • यहाँ तक कि, "आज कल, मुझे लगता है कि तुम मुझे अनदेखा कर रहे हो", "तुम मुझे उपेक्षित कर रहे हो" की तुलना में ज्यादा समाधानकारी लगता है ।
    • फिर यदि आप इसी बात को "मैं" कथन के माध्यम से बोल रहे हों, लेकिन आपके द्वारा बोली गई यह बात आपके साथी को कम आक्रामक करेगी और इस तरह से संभावना है कि वह आपके साथ और भी खुल कर बात करने लगेगा ।
  3. वैसे तो आपको उस समय शांत रहने में बहुत कठिनाई होगी, जब आप और आपका साथी किसी गर्म मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन फिर आप जितना ज्यादा शांत रहने की कोशिश कर सकें, बिलकुल करें, आप जितने ज्यादा शांत रहेंगे, उतना ही अच्छे से आप अपनी भावना व्यक्त कर सकेंगे । तो यदि आप चर्चा करते वक़्त खुद को गुस्से में आता हुआ महसूस कर रहे हैं, या फिर बात शुरू करने से पहले ही गुस्से का अनुभव कर रह हैं, तो फिर तब तक एक लंबी साँस लें, जब तक कि आप अच्छे से बात करने के लिए खुद को शांत ना कर लें ।
    • अपने विचारों को अच्छी तरह से व्यक्त करने के लिए धीमे और एक समान स्वर में बोलें ।
    • अपने साथी के ऊपर से बीच में ना बोलें । इस तरह से आपको और भी ज्यादा गुस्सा आएगा ।
    • गहरी साँस लें । चर्चा के बीच में विचलित ना हो जाएँ ।
  4. सकारात्मक बॉडी लेंग्वेज आपकी चर्चा को भी सकारात्मक बनाने में मदद करेगी । अपने साथी की आँखों में देखें और उसकी ओर झुकाव रखें । आप चाहें तो संकेतों को दर्शाने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, लेकिन याद रखें, कि इन्हें इतना ज्यादा भी हिला-हिला कर बात ना करें, कि आप अपना नियंत्रण ही खो दें । अपने हाथों को अपनी छाती के सामने बाँध कर ना रखें, नहीं तो आपके साथी को लगने लगेगा कि आप पहले से अपना निर्णय ले चुके है और उसकी बातें सुनना भी नहीं चाहते ।
    • पास में मौजूद चीज़ों को लेकर विचलित न हो जाएँ, वरना इस तरह से आप में बेचैनी से भरपूर ऊर्जा उत्पन्न करेगा ।
  5. इसका मतलब यह नहीं है कि आपको इस तरह से पेश आना है कि जैसे आप किसी बिजनेस मीटिंग में जा रहे हो । ऐसे ना दर्शाएँ कि कमरे में आपका अधिकार चल रहा है, अपने साथी के हाथों को जोर-जोर से ना हिलाएं और इस तरह अपनी बात न रखें । इस की जगह पर उस परिस्थिति में जितना ज्यादा जो सके एकदम अनुकूल नजर आ कर अपना आत्म-विश्वास दर्शाएँ । बीच-बीच में मुस्कुराएँ, सावधानी से बोलें और बिलकुल भी ना हिचकिचाएं, जितने ज्यादा सवाल कर सकें, करें या फिर अपनी बात कहते वक़्त ज़रा सी अनिश्चितता दर्शाएँ, कि आप क्या कहना चाहते हैं । यदि आपके साथी को आपकी भावनाओं पर ज़रा सा भी शक होगा तो वो आप को इतना भी गंभीरता से नहीं लेगा ।
    • आप जितने ज्यादा आश्वस्त दिखाई देंगे, आप के मन में उसके सामने अपनी बात सही ढंग से रखने का उतना ही कम डर होगा । यह आपके विचारों को सामने रखने में मदद करेगा ।
  6. यह एक बेहद जरुरी बात है। जब किसी बात में बहस होने की उम्मीद ही ना हो एकदम अचानक से बहस करने ना लग जाएँ, और अपने साथी को बोलने लगें कि वह कितने गलत काम किया करता या करती है । भले ही आप ना जाने कितने ही कारणों से दुखी क्यों ना हों, लेकिन इस समय यदि कुछ जरूरी है तो आप जो बोलना चाहते हैं, अपनी उस मुख्य बात को सामने लाना और इस बारे में सोचना कि आप इस चर्चा से क्या परिणाम चाहते हैं; यदि आप अपने साथी की गलतियों के लिए उसे बुरा महसूस कराना चाहते हैं, तो आपको शुरू करने से पहले इस पर बहुत ज्यादा विचार करना होगा ।
    • इस योजना के हिस्से में कब आपको चर्चा शुरू करना है शामिल है । उचित समय पर ही कुछ तर्कसंगत विचार रखना, जैसे कि किसी पिकनिक के दौरान या फिर किसी कार्यक्रम के बीच में कुछ बोलना, इस तरह से आप खुद अपनी बातों को ना सुने जाने योग्य बना रहे हैं ।
    • आप अपनी बात रखने के लिए किस उदाहरण को सामने रखने वाले हैं, उस पर भी अच्छी तरह से सोच-विचार कर लें । चलो मान लेते हैं कि आप चाहते हैं कि आपका साथी एक अच्छा श्रोता बन जाए । तो क्या आप ऐसे एक-दो वाकये के बारे में सोच सकते हैं, जब उसने आपकी बात ना सुनी हो और इससे आपको बहुत दुःख हुआ हो? उसे बुरी बातों और आलोचनाओं से उत्तेजित ना कर दें, लेकिन अपनी बातों के उचित और ठोस सबूतों के साथ आपको अपने साथी का सारा ध्यान मिलेगा ।
    • अपने उद्देश्य को ना भूलें -- और वो यह है कि अपने साथी को जताना कि आखिर आप क्यों दुखी हैं, जरूरी विषय सामने लाना और ऐसा कोई समाधान ढूंढना, जिससे आप दोनों खुश रह सकें या एक जोड़ी के तौर पर आप दोनों किस तरह से इस तनाव से दूर रह सकें । अपने इरादों को अपने मन में रखने से आप हर वक़्त सही दिशा में कदम रख पाएंगे ।
विधि 2
विधि 2 का 3:

अपने साथी को सुनना

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  1. किसी विशेष परिस्थिति में आपके साथी का क्या दृष्टिकोण होगा, यह जानने के लिए, आपको पहले अपने आपको उसकी जगह पर रख कर अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल करके ठीक उसी की तरह से सोचना होगा । इस बात से भी वाकिफ रहें कि हो सकता है कि यहाँ पर कुछ ऐसी बातें भी हों, जिनके बारे में आपको कुछ भी जानकारी ना हो । जब वह बोल रहा हो, तो ज़रा एक बार उसके नजरिये से भी सोचने की कोशिश करें, इससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि आपका व्यवहार या परिस्थिति उसे कितना परेशान कर रही है और क्यों । जब आप गुस्से में रहते हैं, या दुखी रहते हैं तो अपनी इस बहस के अलावा कुछ सोच पाना आपके लिए बेहद कठिन साबित हो सकता है, लेकिन यह तरकीब आपकी समस्या का बहुत जल्दी ही एक समाधान देगी । [२]
    • किसी भी रिश्ते में मौजूद समस्याओं के समाधान निकालने में सहानुभूति एक अहम भूमिका अदा करती है । आप कुछ इस तरह से बोल कर कि "मुझे मालूम है कि तुम बहुत दुखी हो रहे होगे, क्योंकि..." या "मुझें पता है कि आज कल तुम अपने काम को ले कर बहुत ज्यादा परेशान हो..." सहानुभूति दर्शा सकते हैं और इससे आपके साथी को भी लगेगा कि आप सच में उसकी बातें सुन रहे हैं ।
    • अपने आपको अपने साथी की जगह पर रखने से आपको उसकी भावनाओं को समझने और उसे यह दिखाने में कि आप उसकी परेशानियों को समझ रहे हैं, बहुत मदद मिल सकती है ।
  2. अपने साथी को उसके आंतरिक संघर्षों के माध्यम से समाधान निकालने की आज़ादी दें: वैसे तो अपनी परेशानियों के बारे में बात कर सकना ही बहुत बड़ी बात है, लेकिन कभी-कभी आपका साथी खुद ही कुछ परेशानियों और विचारों का सामना कर रहा होता है आर इसके लिए उसे खुद के लिए कुछ समय भी जरूरी होता है । उसे खुद से विचार करने का कुछ समय देने से उसके बहस करने की संभावना कम हो जाएगी और वो खुद ही कुछ ऐसा बोलेगा जिस से आपको उस का पछतावा दिखाई देगा । किसी चर्चा को प्रोत्साहित करने में और अपने साथी को जबरदस्ती चर्चा में घसीट कर लाने के बीच में बहुत अंतर है ।
    • बस इतना कहना, "तुम्हें जब भी बात करना हो, तो बोल देना, मैं हमेशा तुम्हारी बात सुनने के लिए तैयार हूँ" आपके साथी के मन में यह बात डालने में मदद करेगा कि आप उसकी कितनी परवाह करती हैं ।
  3. आप का साथी आपसे कब बात करना चाहता है, उन संकेतों को समझें -- और कब यह कुछ बहुत गंभीर बात है । जब भी वह आप से बात करना चाहे, तो आपको टीवी बंद करके, अपने काम को एक तरफ रख के, अपने फोन को भी एक तरफ रख कर और उसकी ओर ध्यान देने के लिए आप जो भी कर सकते हैं सब करके, उसकी बात सुनें। यदि आप बहुत कुछ दिमाग में ले कर या विचलित रहेंगे, तो संभावना है कि वो आपसे कहीं ज्यादा परेशान हो जाएगी । यदि आप सच में कोई काम कर रहे हैं, तो यदि आप कुछ कर सकते हैं, तो ये कि कुछ समय की मांग करके उसे पूरा कर दें, ताकि जब आप बातें करने लगें, तो आपका ध्यान कम ही इधर-उधर भटक पाए।
    • कमरे में चारों तरफ मौजूद चीज़ों को देख कर उनकी ओर दिलचस्पी दिखाने से बेहतर है, कि आप अपने साथी की आँखों में ऑंखें डाल कर बात करें, इस से आपके साथी को भी यही लगेगा कि आप सच में उसकी बातें सुन रहे हैं ।
    • पहले उसे पूरा बोलना दें, लेकिन अपना सिर हिलाएं या फिर कहें कि, "मैं समझ सकती हूँ कि तुम कैसा महसूस कर रहे हो..." समय-समय के साथ कुछ बोलते जाएँ ।
  4. भले ही उसने कुछ बेहद गलत बोला हो या फिर आपको लग रहा हो कि आपको इसे सही कर देना चाहिए , फिर भी चर्चा के बीच में ही उसे रोक कर कोई भी बात ना बोलें । आप जो बोलना चाह रहे हैं, उसे अपने मन में रख लें और अपने साथी को उसकी बातें खत्म करने दें । जब वह बोल चुका हो, तो अब आपकी बारी है, और आपने जो कुछ भी सोच रखा था, एक-एक कर के वो सब कुछ बोल दें ।
    • जब आपके मन में बोलने के लिए कुछ हो और फिर भी आपको चर्चा को बीच में रोक कर अपनी बात कह पाने से खुद को रोक पाना बहुत कठिन लगेगा, लेकिन इससे आपके साथी को, जब वह अपने अंदर की सारी भड़ास निकाल चुका होगा तो उसे बहुत अच्छा महसूस होगा ।
  5. जब आप अपने साथी को सुन रहे हों, तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वो जो भी कुछ कह रहा हो आपको वो सब कुछ मानने या समझने की जरूरत है। फिर ये कोई मायने नहीं रखता कि आप दोनों कितने एक जैसे हो, एक ही उम्र के हैं और कितने अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित हैं लेकिन कभी न कभी ऐसा समय जरुर आएगा, जब आप दोनों किसी परिस्थिति में एक-दूसरे को बिलकुल भी एक समान नहीं देख पाएँगे, फिर भले ही आप ने अपनी भावनाओं को कितने ही अच्छी तरह से क्यों ना पेश किया हो । और ऐसा होना ठीक है -- किसी भी परिस्थिति में आप दोनों की सोच अलग-अलग हो सकती है, और आपको इस बात को समझना भी होगा, आपके इस व्यवहार से आप के साथी को भी अपनी बात आपके सामने रख पाने में आसानी होगी ।
    • इस फर्क को समझ कर आपको आगे किसी भी बात से बहुत कम निराशा होगी, जब आप उसको अच्छी तरह से समझ पाएंगे ।
विधि 3
विधि 3 का 3:

एक मजबूत नींव का निर्माण करना

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  1. इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि आपको हर बार झगडा करने के बाद अपने साथी के साथ बेड पर रोमांटिक होने की जरुरत है। इसका मतलब हर छोटी-छोटी चीज़ें करके जितना ज्यादा उसके करीब आ सकें, वो सारी कोशिश करें, फिर भले वो शारीरिक रूप से हो, उसकी परवाह के रूप में हो या फिर बेमतलब हँसना हो, या फिर बस सोफे पर बैठ कर एक-दूसरे का हाथ पकड कर अपना मनपसंद टीवी शो देखना हो । हफ्ते में कम से कम कुछ बार अंतरंग होने की कोशिश करें, फिर चाहे आप कितना ही व्यस्त क्यों ना हों -- इससे आपको उस समय बात करने में आसानी होगी जब आप के पास कुछ बेहद गंभीर मुद्दा होगा ।
    • इस तरह की अंतरंगता, शारीरिक अंतरंगता से कहीं ज्यादा मायने रखती है। इसका मतलब अपने साथी की ओर देखना, और अपने मन में, अपने साथी की कही गई बातों, उस की बॉडी लेंग्वेज या उस की गतिविधियों के लिए स्थान का निर्माण करने की कोशिश करना है।
  2. बेशक यह बहुत अच्छा होगा यदि आपका साथी खुद आपको बताए, कि उसे किसी बात को ले कर बुरा लगा है, कुछ चीज़ उसे परेशान कर रहीं है या वह दुखी है। लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है। यदि आप अपनी बातचीत की एक ठोस नींव रखना चाहते हैं, तो आप को अपने साथी के दुखी होने के हर एक छोटे-छोटे संकेतों को समझने की कोशिश करना होगी, फिर भले वे शब्दों में बयां किये जा रहे हों, या फिर बिना शब्दों के । अपने साथी के संकेतों को समझें और बोलें कि, "क्या हुआ, आज तुम बहुत परेशान लग रहे हो। क्या तुम्हें कुछ परेशान कर रहा है?" हो सकता है कि आपका साथी कभी-कभी कुछ बोलना नहीं चाहता हो, लेकिन यदि आप उसके कुछ बोले बिना भी उसके दर्द को समझ पाएंगी, तो उसे यह जान कर बहुत अच्छा लगेगा, कि आप उसकी परवाह करती हैं । [३]
    • जब किसी के मन में कुछ बेहद बुरा चल रहा होता है, तो ऐसी परेशानियों को व्यक्त करने का हर एक इंसान का अपना अलग तरीका होता है, कुछ लोग एकदम शांत रहते हैं, कुछ लोग कहते हैं, कि मुझे भूख नहीं लगी, कुछ बेहद भद्दे कमेंट करने लगते हैं, या फिर कुछ लोग बहुत छोटी सी चीज़ पर भी गुस्सा हो कर उल्टा-सीधा बोलने लगते हैं ।
    • इसका मतलब यह नहीं कि आपको हर समय ऐसा बोलना चाहिए कि, "क्या हुआ, कुछ गड़बड़ है क्या?" जब आपका साथी पूरी तरह से खुश लग रहा है -- हो सकता है कि वह अपने काम से थक गया हो । लेकिन हर 5 सेकंड में उससे पूछना कि वह ठीक है या नहीं बिलकुल अलग बात है; इससे वह परेशान हो जाएगा और चिढ़ जाएगा ।
    • कभी-कभी, बोले गए शब्दों की तुलना में बॉडी लेंग्वेज बहुत कुछ जता देती है। यदि आप किसी ग़लतफ़हमी का शिकार हुए हैं, तो भी बातों के जरिये अपनी भावना प्रकट करने की कोशिश करें ।
    • "मैं समझने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन ना जाने क्यों वहां तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ । क्या मैंने ऐसा कुछ किया है जिस से तुम नाराज हो?" "नहीं।" "क्या तुम दुखी हो?" "हाँ।" "मेरे कारण?" "नहीं । सच में नहीं ।" आप अपनी सोच को संकीर्ण कर रहे हैं । देखकर लगेगा कि आप इसमें बहुत ज्यादा कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आखिर में आपको खुद से ही इसके मायने समझ आ जाएँगे ।
  3. आपको हर एक उस छोटी चीज़ को ले कर झगड़ने की जरूरत नहीं है, जो आपको परेशान कर रही है, लेकिन आपको उन गंभीर समस्याओं को उजागर करने के लायक होना चाहिए, जो सच में इस रिश्ते के लिए बहुत गंभीर हैं । अपने आप को बहुत ज्यादा उत्तेजित ना कर लें और ना ही अपने अंदर गुस्से की आग को भड़का लें, वरना आप किसी ऐसे बेहद छोटे मुद्दे पर भी बहस कर लेंगे, जो शायद जरा सी चर्चा से ही सुलझाया जा सकता था । कुछ सवाल तैयार रखें, ताकि जब भी आपको लगे कि आपको जरूरत हो इन्हें सामने रख सकें ।
    • रिश्ते में मौजूद दोनों ही इंसान किसी भी समस्या का समाधान तब और भी आसानी से निकाल सकते हैं, जब दोनों ही इस बात को मान रहे हों कि सच में कोई समस्या है। असली समझौता तभी हो सकता है, जब किसी बात पर दोनों ही अपने विचार पेश कर और हामी भर कर किसी एक बात पर स्वीकृति दे सकें ।
  4. एक साथ बिताने के लिए कुछ समय निकालें। यदि आपको लगता है कि आप अपना सारा समय सिर्फ काम करने में और अपनी समस्याओं को लेकर लड़ने झगड़ने में निकाल देते हैं, तो आप अपने रिश्ते को सही ढंग से नहीं निभा पाएँगे और ना ही इसके आनंद को ले पाएंगे । यदि आप अपनी यादों में कुछ मजेदार पलों को संजो कर रखेंगे और अपने साथी के साथ की कुछ अच्छी भावनाओं और यादों को सहेज कर रखेंगे, तो शायद आप किसी बहस के बीच में कम ही उत्तेजित होता हुआ पाएंगे । प्यार और ख़ुशी की एक ठोस नींव आपको कठिन दौर में लड़ने का हौसला देंगी ।
    • साथ में हंसें। फिर भले ही आप कोई चुटकुला सुनाएँ, कॉमेडी शो देखें, या फिर बिना किसी बात के ही हँसना शुरू कर दें, इस तरह से हँसना आपके रिश्ते को मजबूत बनाएगा और आपको कठिन दौर से निपटने के लिए तैयार भी करेगा ।
  5. इस बात को समझना सीखें, कि कब चर्चा किसी सही दिशा में बढ़ रही है और कब नहीं: यदि आप दोनों ही एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं, एक-दूसरे को दर्द पहुंचा रहे हैं, और इससे आगे कुछ भी नहीं हो रहा है, तभी, समझ जाएँ कि चर्चा किसी भी दिशा में नहीं जा रही है । आपको सिर्फ लड़ते झगड़ते रहने की जरूरत नहीं है, ऐसे में आप स्थिति को और भी बदतर बना रहे हैं । इसकी जगह पर एक अच्छी सांस लें, अपने साथी को कहें, कि आप दोनों को थोडा शांत होने की जरूरत है, और यदि आप किसी बेहद जरूरी विषय पर चर्चा कर रहे हैं, तो बोलें कि हमें इस पर फिर कभी बात करनी चाहिए । यह अपनी बात को नियंत्रण में रखने का एक बेहद ही आसान और समझदार तरीका है । [४]
    • बस कहें, कि, "मुझे लगता है कि ये बात हम दोनों के लिए ही बहुत जरूरी है, लेकिन हमें इसे तभी आगे बढ़ाना चाहिए, जब हम दोनों ज़रा शांत हो जाएँ ।"
    • एकदम दरवाजा को धक्का देते हुए या कुछ उल्टा-सीधा बोलते हुए बाहर ना निकल जाएँ । भले ही आप कितने ही गुस्से में क्यों ना हों, लेकिन हमेशा ज़रा सकारात्मक तरीके से ही चर्चा को खत्म करें ।
    • कभी-कभी आप बिना किसी बात के ही एक-दूसरे की प्रतिक्रिया पाने के लिए बहस करने लगते हैं । यदि ऐसा ही है, तो फिर ऐसा बिलकुल ना करें । कहें, "हम दोनों किस बात को ले कर झगड़ रहे हैं?" इससे आप दोनों ही एक कदम पीछे ले सकेंगे और इस स्थिति पर काबू पा लेंगे ।
  6. किसी भी रिश्ते में खुश रहना, सही रहने से कहीं ज्यादा जरूरी होता है । तो हर समय बस अपने आपको सही साबित करने या अपनी बात मनवाने के लिए ना झगड़ते रहें, नहीं तो आप की जिंदगी से रोमांस ना जाने कहाँ चला जाएगा-- और ऐसा बहुत तेज़ी से होगा । इसकी जगह पर, इस परेशानी के किसी ऐसे समाधान पर विचार करें, जो आप दोनों को खुश कर सके । यह आपके रिश्ते को आगे बढ़ाने में और आगे भी अपनी बात अच्छी तरह से सामने रखने में मदद करेगा । [५]
    • कभी-कभी आप भी इस तरह की चर्चा में सही तरह से समाधान नहीं खोज पाएँगे, जैसे कि रहने के लिए एक नए आशियाने की तलाश करना । लेकिन फिर भी याद रखें कि अगली बार आप ऐसा कर पाएँ या फिर आप इस चर्चा के परिणामों से खुश रह पाएँ ।
    • समान रहें । हर बार कोई एक ही अपना पक्ष नहीं रख सकता और आप भी ना तो ऐसा करें और ना करने दें ।
    • अपने रिश्ते की अच्छाईयों और बुराइयों की एक लिस्ट बना लेने से आप को चर्चा के दौरान अच्छे समाधान खोजने में मदद करेगी और कम गुस्सा आएगा ।
    • कभी-कभी जब आप किसी विषय पर बहस कर रहे हों, तो एक बार इस बारे में सोच लेना बहुत जरूरी हो जाता है, कि कौन ज्यादा परवाह करता है । इस तरह से आप को परिस्थिति से निपटने में मदद होगी । यदि कोई चीज़ सच में आपके लिए जरूरी है, लेकिन आपके साथी के लिए नहीं, तो अपने साथी को इस बारे में बताएँ ।
  7. यदि आप अच्छे और स्वस्थ्य तरीके से बातचीत करना चाहते हैं, तो आपको अपने साथी की तारीफ करने का समय निकालना होगा, एक-दूसरे को कुछ प्यारे नोट्स भेजने होंगे, एक-दूसरे को बताना होगा कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं, और अपनी पसंद की चीज़ों को करने का समय निकालना होगा। हफ्ते में डेट पर जाना और कभी-कभी कैंडल लाईट डिनर पर जाना भी आप दोनों को एक साथ बांधे रखने में, एक-दूसरे के साथ का आनंद लेने में और अच्छी तरह से और सकारात्मक तरीके से अपनी बातें कर पाने में मदद करेगा। और यह आप दोनों के बीच में बहस होने की संभावना को भी कम कर देगा ।
    • यदि किसी भी अच्छे रिश्ते में आपको अपने साथी को बुरा कहने से ज्यादा अच्छी बातें कहनी चाहिए । यदि आपको लगता है कि वो सब कुछ कितना सही कर रहा है, तो भी उसे बताएं, उसकी तारीफ करें, उसे अच्छा लगेगा ।

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