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क्या आपको कभी अभावग्रस्त या लस्सू कहा गया है? क्या आप किसी नई मित्रता के प्रति इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि दूसरे व्यक्ति पर ध्यान की वर्षा सी कर देते हैं, और तब पाते हैं कि वह व्यक्ति आपसे दूर होता जा रहा है? यदि आप पाते हैं कि आप में, किसी और की आपसे संपर्क करने की इच्छा की तुलना में, उसको फ़ोन करने की, टेक्स्ट करने की या ई मेल भेजने की इच्छा कहीं अधिक होती है, तब तो आपको पता चल ही गया होगा कि अभावग्रस्त दिखने से अधिकांश लोगों को आपसे चिढ़ हो जाती है। यह पता करने के लिए कि कैसे अपनी अभावग्रस्तता का पता लगाया जाये तथा उसे कम करने के लिए विश्वास प्राप्त किया जाये, प्रथम चरण देखिये।

विधि 1
विधि 1 का 2:

संतुलन की खोज करना

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  1. प्रत्येक संबंध अपनी गति से विकसित होता है और उसको फ़ास्ट फॉरवर्ड करके “हमसफ़र” या “जन्म जन्म के मीत” के स्तर पर केवल इसलिए मत ले जाइए क्योंकि अभी सब कुछ ठीक चल रहा है। उसकी नवीनता का आनंद उठाइए, और किसी नई चीज़ की प्राप्ति से उत्तेजित भी हो जाइए, क्योंकि वह फिर कभी भी नई तो नहीं ही होगी। कोई संबंध किस प्रकार से विकसित होगा उसका विचार दिल तोड़ देने वाला हो सकता है, मगर उतना ही उत्तेजक भी! धैर्य रखिए और उस उत्तेजना का मज़ा लीजिये। संबंध को उस स्तर पर मत ले जाने का प्रयास करिए, जिसके लिए वह तैयार नहीं हों, अन्यथा आपका मज़ा नष्ट हो जाएगा और तनाव बढ़ जाएगा।
    • जब आप शुक्रवार की शाम को बाहर गए थे और आपको मज़ा आया था, तब शायद आप उसी अनुभव को यथासंभव शीघ्रता से पुनर्जीवित करने की चाहत रखते हैं। मगर, शनिवार की सुबह ही अपने मित्र को फ़ोन कर के और योजनाएँ बनाने के स्थान पर, थोड़े दिन रुक जाइए। आपने जो मज़ेदार समय बिताया है, उसका आनंद लीजिये और अपने मित्र को भी उसका आनंद लेने का अवसर दीजिये। जब फिर साथ साथ बाहर जाने का समय आयेगा, तब आप दोनों को वास्तव में एक दूसरे से मिलने की इच्छा हो रही होगी, जिससे कि आपका साथ और भी मधुर हो जाएगा।
  2. कभी कभी लोग केवल इस कारण से विषमतापूर्वक उत्तेजित हो जाते हैं क्योंकि वे किसी संबंध की शुरुआत को ही उसका आदर्श स्वरूप समझने लगते हैं। जब आप किसी ऐसे से पहली बार मिलते हैं, जिसके साथ आपका कुछ संबंध हो, तब इन कल्पनाओं में खो जाना बहुत सरल है कि आपकी मित्रता या संबंध कितने शानदार हो जाएँगे। और इन कल्पनाओं के साथ आती हैं महान अपेक्षाएँ, और कभी कभी तो वे अपेक्षाएँ वास्तविकता से परे होती हैं! अभी शायद आप यह सोच सकते हैं कि आप उस व्यक्ति के साथ अपना पूरा जीवन बिता देंगे, परंतु आप तो स्वयं को निराशा की ओर ही बढ़ा रहे हैं।
    • स्वयं को यह याद दिलाती रहिए कि आपके जीवन में आया हुआ यह नया व्यक्ति भी मनुष्य है, जिसका अर्थ है कि वे “सम्पूर्ण नहीं हैं”। वे गलतियाँ करेंगे ही, और इस बात से हैरान होने के स्थान पर कि वे कैसे सम्पूर्ण के अलावा कुछ और भी हो सकते हैं, आपको उन्हें सहन करने और क्षमा करने के लिए तैयार रहना होगा।
  3. ”Quid pro quo” (“जैसे को तैसा” के लिए एक लातीनी उक्ति) का अभ्यास करिए: इस व्यक्ति के साथ अपने विचार विमर्श को टेनिस या वॉली बॉल का खेल समझिए। जब भी आप संपर्क शुरू करते हैं, तब आप गेंद को उनके पाले में फेंकते हैं। तब आपको उनके द्वारा वापसी की प्रतीक्षा भी करनी होगी। यदि आप थोड़े बहुत अभावग्रस्त हैं, तब प्रतीक्षा करते समय, शायद आप चिंतित और परेशान भी होंगे। जब यह होता है, तब गहरी सांस लीजिये। यदि आप पहले किसी से संपर्क कर चुके हैं (आपने पहले ही ई मेल भेजा हो, या फ़ोन कर के वॉइस संदेश भी छोड़ चुके हों) तब दोबारा यह करने की आवश्यकता नहीं है। जब भी आपके मन में उनसे संपर्क करने की तीव्र इच्छा जागृत हो, तब याद रखिए कि यही कुछ संभावनाएँ हो सकती हैं:
    • उन्हें अभी तक आपका संदेश मिला ही नहीं है।
    • वे इतने व्यस्त या अन्य चीज़ों में इतने लीन रहे हों कि उन्हें आपको उत्तर देने का अवसर न मिला हो। यदि आपको इस व्यक्ति पर विश्वास है तो उसे संदेह का लाभ दीजिये और मान लीजिये कि यही हुआ होगा।
    • वे अभी आपके साथ घूमने फिरने के इच्छुक नहीं हैं।
  4. आप चाहे किसी व्यक्ति के कितना भी निकट क्यों न हों, उसके साथ अपना “सारा” समय बिताने से वह विह्वल हो ही जाएगा। चाहे वह व्यक्ति आपसे प्रेम ही क्यों न करता हो, वह जागते हुये (तथा शायद सोते हुये भी) हर पल आपके साथ बिताना नहीं चाहेगा। यदि आपको उससे कुछ मिनटों का विछोह भी कठिन लगता है, तब तो निश्चय ही आप ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर रहे हैं, जबकि आप मुंह की खाएँगे। चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, स्वयं पर “ज़ोर डाल कर” पीछे हट जाइए और उस व्यक्ति को थोड़ी जगह दीजिये। कुछ शामें अलग बिताइये, “अपनी” पसंद की गतिविधियां करिए, और कुछ समय के लिए न तो फ़ोन करिए और न ही टेक्स्ट। आपके संबंध निश्चय ही सुधर जाएँगे, क्योंकि पुरानी कहावत, “दूरी से प्रेम बढ़ता है” सत्य ही है।
  5. जब उस व्यक्ति की दिलचस्पी नहीं रहे, उन संकेतों को पहचानिए: कभी कभी ऐसा होता है, और इसके अनेक कारण भी हो सकते हैं, मगर एक बात तो पक्की है – उस व्यक्ति पर ध्यान बढ़ाने से कभी भी उसका हृदय परिवर्तन “नहीं” होगा। लगे रहना इसका इलाज नहीं है! चुपचाप दूर चले जाना, शायद उस व्यक्ति का, आपसे आमना सामना किए बिना संबंध समाप्त करने का तरीक़ा हो। आपके द्वारा किसी भी प्रकार का उकसाना उनकी भावनाओं को नहीं बदलेगा, और अपने अन्तर्मन में आप भी यह जानते ही हैं। यदि किसी में प्रत्युत्तर देने की सभ्यता भी नहीं है, तब वे आपके ध्यान के उपयुक्त पात्र नहीं हैं। आपको इससे कुछ बेहतर मिलना चाहिए।
    • सोचिए कि क्या उस व्यक्ति के व्यवहार में चंचलता नज़र आ रही है। कुछ लोगों में मित्रता या संबंध निभाने की योग्यता ही नहीं होती है और कभी कभी वे केवल आलसी या भुलक्कड़ ही होते हैं। हालांकि, अधिकांश समय जब कोई व्यक्ति आपको प्रत्युत्तर नहीं देता है, तब इसका अर्थ यह नहीं होता है कि वे भूल गए थे – इसका कारण होता है कि उन्होंने उस विकल्प को चुना होता है।
    • हो सकता है कि उस व्यक्ति को केवल, अन्य चीजों पर ध्यान देने के लिए कुछ समय की आवश्यकता हो। इसका अर्थ समब्न्ध का समापन ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं है।
  6. उपेक्षित होना या अलग थलग कर दिया जाना अस्वीकार किए जाने जैसा लग सकता है – सच तो यह है कि “अस्वीकृति” ही वास्तव में चोट पहुंचाती है। मगर जब एक बार कोई यह निर्णय कर लेता है कि उसे अब आगे बढ़ ही जाना है, तब आप फैसला बदलवाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते हैं। आप भी ज़बरदस्ती करने की तीव्र इच्छा को दबा कर आगे बढ़ने का प्रयास करिए। बदले में अचानक प्रहार करने या दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाने से तो वह व्यक्ति और भी दूर हो सकता है।
  7. यदि वह व्यक्ति, जिसको आपने अपने ध्यान में रखा है, आपको सीधे सीधे नकारता तो नहीं है, मगर उसका व्यवहार तहदार होता है, जिससे वह बस संबंध को यूं ही चलाते रहना चाहता हुआ लगता है, तब सोचिए कि क्या आप सचमुच में यह संबंध बनाए रखना चाहते हैं। केवल इसलिए कि आप अपना समय अपने मित्र या हमसफ़र के साथ गुज़ारना चाहते हैं, आप “मुहताज” नहीं हो जाते हैं। सभी संबंध बनाए रखने के लिए “कुछ” समय और प्रयास देना ही पड़ता है। यदि वह व्यक्ति आपको ऐसा महसूस करवाता है कि आप बहुत कुछ चाह रहे हैं, जबकि आपको पता हो कि आप बहुत अभावग्रस्त नहीं बन रहे हैं, तब शायद समस्या दूसरे व्यक्ति की है।
    • निर्णय कीजिये कि संबंध को आप कितना समय और ध्यान देना चाहते हैं, और यह भी अंदाज़ा लगाइये कि आप उसके बदले में कितना चाहते हैं। यदि आपकी अपेक्षाएँ तर्कसंगत हों, परंतु आप महसूस करते हों कि आप सदैव उपेक्षित रहे हैं या आपको नीचे देखा जाता रहा है, तब शायद यही वह समय है जब आपको ऐसे नए मित्र या हमसफ़र की तलाश करनी चाहिए जो आपका मूल्य समझे और ध्यान रखे।
    • सम्बन्धों का संतुलन सदैव सरल नहीं होता है – अक्सर ऐसा लगता है कि कोई एक ही व्यक्ति अधिक प्रयास कर रहा है। यह सामान्य बात है कि कभी कभी ऐसे समय आ जाएँ जबकि एक व्यक्ति व्यस्त हो और दूसरा ही अधिक टेक्स्ट या फ़ोन करता हो। हालांकि यदि यही आपके संबंध का स्थायी पैटर्न हो, और आप के विचार से यह बदलने वाला नहीं हो, तो इससे पहले कि इससे आपके आत्म सम्मान को आघात पहुंचे, आप इस संबंध से बाहर आ जाइए।
विधि 2
विधि 2 का 2:

आत्म विश्वास बढ़ाना

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  1. जो लोग व्यस्त होते हैं उनके पास तो अभावग्रस्त होने का समय ही नहीं होता है, वे हमेशा ही दूसरा कुछ करने में व्यस्त रहते हैं, बोलो क्या? वे दूसरी चीज़ें ही लोगों को अधिक दिलचस्प मित्र और रूमानी साथी बनाती हैं। यदि आपके पास किसी के फ़ोन की या किसी के पत्रोत्तर की प्रतीक्षा करने से बेहतर कुछ काम नहीं है तब शायद आप ऊब चुके हैं (और आपको पता है न कि – यदि आप ऊबे हुये हैं तब आप उबाऊ हैं)। आप प्रतीक्षा किसकी कर रहे हैं?
    • स्वयंसेवा करिए: नाचना सीखिये। दौड़ने के लिए जाइए। पेंट करना सीखिये। किसी क्लब में शामिल हो जाइए। वहाँ जाइए, प्रयास करिए और मज़ा लीजिये! आपकी सारी चिंताएँ दूर हो जाएंगी, और जब कभी भी, यदि कभी वह आपके संपर्क में आता भी है, तब यह एक सुखद आश्चर्य होगा न कि उग्र राहत!
  2. आपके मानसिक स्वास्थ्य तथा आत्म-सम्मान के लिए एक ही व्यक्ति के इर्दगिर्द ध्यान केन्द्रित रखना अच्छा नहीं है। अपनी सारी ऊर्जा एक ही व्यक्ति पर लुटा देने के स्थान पर अपने समूह के दूसरे लोगों को भी फ़ोन करिए! कुछ लोगों को एकत्र करिए और मूवी या रात्रिभोज के लिए जाइए, और सारा समय “उसकी” चिंता करने ही में मत बिता दीजिये। अपने जीवन में आने वाले सभी व्यक्तित्वों का आनंद लीजिये – आपके पास एक से अधिक मित्र बनाने के लिए स्थान उपलब्ध है।
  3. अनेक व्यक्ति अकेले ही रहते हैं और तब भी जीवन का पूरा आनंद उठाते हैं। उनके पास स्वतन्त्रता और आनंद दोनों ही होते हैं, और अनेक मामलों में वे बिलकुल उतने ही सुखी होते हैं जितने कि वे लोग, जिनके संबंध होते हैं। और गहन सत्य तो यह है कि संबंध चाहत के कारण होते हैं, आवश्यकताओं के कारण नहीं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब आप उसको एक आवश्यकता बना लेते हैं और यह विश्वास करने लगते हैं कि आप इसके बिना जी ही नहीं सकते हैं।
    • यह अभ्यास करने का प्रयास करिए: जब भी कोई मुहताजी का विचार आपके दिमाग में आए, तब यह मंत्र दोहराना शुरू कर दीजिये। कहिए, “मैं मजबूत हूँ”, या “मुझे जो भी चाहिए, मेरे पास वह सब कुछ है।“ अपने मन में ऐसा कुछ दोहराइए जिससे कि आप सम्पूर्ण व्यक्ति की तरह महसूस कर सकें जिसे जीने के लिए किसी सहारे की “आवश्यकता” नहीं है।
    • स्वतन्त्रता और सशक्तीकरण के संबंध में संगीत सुनना तथा मूवीज़ देखना भी सहायता कर सकता है।
  4. संभावना यह है कि यदि आप को अभावग्रस्तता से संघर्ष करना पड़ रहा है, तब शायद आपमें आत्म सम्मान की कमी है। शायद आप किसी ऐसे की खोज में हैं, जो आपको अपने बारे में कुछ बेहतर महसूस करवा सके, मगर वास्तविकता यह है कि “आप” ही वह व्यक्ति हैं जो सचमुच में ऐसा कर सकते हैं। आपको अपनी प्रसन्नता किसी दूसरे पर आधारित नहीं करनी चाहिए। ठीक है कि कोई आपको प्रसन्न कर सकता है, परंतु यदि वे ही आपकी प्रसन्नता के “एकमात्र” स्त्रोत हैं, तब तो जब वे आस पास नहीं होंगे तब आप अप्रसन्न या दुखी हो जाएँगे, और यह दूसरे व्यक्ति के लिए उससे की जाने वाली बहुत भारी अपेक्षा होगी! इससे वे स्वयं को दोषी, बाध्य तथा कालांतर में आपसे क्रोधित हो जाएँगे।
    • इस मुहताजी से छुटकारा पाने की एक विधि यह है कि चीज़ों को ख़ुद ही, अकेले, तब तक कर के, जब तक कि आत्मविश्वास न आ जाये, स्वयं को यह समझा दिया जाये कि हमें किसी और की आवश्यकता है ही नहीं। ऐसा प्रकट करिए कि आप “चाहते” हैं कि आपका भी कोई घनिष्ठ मित्र या हमसफ़र हो, मगर निश्चय ही आपको उसकी “आवश्यकता” नहीं है।
    • तब तक किसी नए संबंध में पड़ने की जल्दी मत करिए जब तक कि आप निश्चित न हो जाएँ कि आप फिर से उसी पैटर्न में नहीं पड़ जाएँगे।
  5. जब एक बार आप अपने अन्तर्मन के संबंध में जान जाएँगे, तब आप दूसरों से संबंध बनाने के किसी भी मामले से सफलतापूर्वक निबट सकेंगे। अभावग्रस्तता, अक्सर विश्वास की कमी से, और कभी कभी परित्याग के भय से सम्बद्ध की जाती है। जब आपको अपने प्रति किसी की भावनाओं, या उनकी निष्ठा पर संदेह होने लगे, तब स्वयं से पूछिये कि आप उन पर विश्वास क्यों नहीं कर रहे हैं। क्या इसलिए क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो संदिग्ध हो? या इसलिए कि किसी ने अतीत में आपको चोट पहुंचाई है और अब आपको लगता है कि यह नया व्यक्ति भी वही कुछ करने जा रहा है?
    • यदि बाद वाली बात सही है, तब स्वयं को याद दिलाइए कि किसी व्यक्ति को दूसरों के कृत्यों के लिए आरोपित करना ठीक नहीं है, है न?
    • यदि आप वास्तव में इस व्यक्ति की परवाह करते हैं, और उन्होने आपका विश्वास जीता है तो उन्हें वह दीजिये।
  6. सुरक्षित और स्वावलंबी होने से आप अधिक आकर्षक हो जाते हैं। यह एक जादू की तरह है: आप वास्तव में जितने सुरक्षित और स्वावलंबी होते जाते हैं, उतने ही आप आकर्षक होते जाते हैं। जब आप वास्तव में स्वतंत्र होंगे, तब आपको पता चल जाएगा। आप बिना दूसरे व्यक्ति के चिंतन की अतिशय परवाह किए, संबंध को विश्वासपूर्ण ढंग से संभाल पाएंगे। आप अपने एकांत का भी उसी प्रकार आनंद उठा पाएंगे जैसे कि अपने प्रियजन के साथ बिताए समय का।

सलाह

  • व्यक्ति को स्थान दीजिये। उनकी सीमाओं का सम्मान कीजिये।
  • कुछ देर के लिए दूर रहिए और अपने आप कुछ करना शुरू करिए। व्यस्त हो जाइए।
  • अत्यंत अभावग्रस्त होने से आप केवल स्वयं को अस्वीकृत होने के लिए तैयार कर रहे हैं। इससे आपका आत्मसम्मान कम होगा और गहरा अकेलापन आ जाएगा।
  • कुछ भी ऐसा करिए जिससे आपको अच्छा लगे और प्रसन्नता मिले। अकेले रहने से बचिए। घर से बाहर निकलिए, शाम को मित्रों के साथ घूमने जाइए, आपकी जितनी अधिक रुचियाँ तथा शौक़ होंगे, आप उतने ही आकर्षक होते जाएँगे!
  • यदि आप जिस व्यक्ति के साथ हैं, उससे प्रेम करते हैं तो उसे प्रदर्शित करिए, परंतु शालीनता से, तथा उनपर बोझ मत डालिए अन्यथा वे आपको धकेल कर दूर कर सकते हैं।
  • अपना मूल्य समझिए!
  • पहले तो एकांत में रहने की आदत डालिए। तब आपका अपना समय आपके लिए मूल्यवान हो जाएगा और आप संबंध को और अधिक निष्पक्षता से देख सकेंगे।
  • स्वयं से प्रेम करिए।
  • जान लीजिये कि कुछ लोग अच्छे नहीं भी होते हैं। बात आपकी नहीं, बात उनकी है। नए मित्र ढूंढ लीजिये।
  • आपका सच्चा प्यार आपकी कल्पना से पहले आपके सामने आ जाएगा। धैर्य रखिए और सकारात्मक बने रहिए।

चेतावनी

  • अभावग्रस्तता एक विषम चक्र हो सकती है। आपको ध्यान चाहिए होता है, वह व्यक्ति डर जाता है और आपको दूर धकेल देता है, आपको अपने बारे में और बुरा लगता है, और उसके बाद आप और भी अभावग्रस्त हो जाते हैं। इसको पहचान लीजिये और बदल दीजिये।
  • अभावग्रस्तता आपको विषाद की ओर भी धकेल सकती है और हम सभी को मालूम है कि विषाद के तो बुरे दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इससे बाहर आने की सर्वश्रेष्ठ विधि है कि कुछ शौक़ पाल लिए जाएँ ताकि आपका ध्यान उन शौक़ों की ओर चला जाये।
  • यदि आप धैर्यवान नहीं हैं, आप ऐसी चीज़ों के संबंध में सोचने लगेंगे, जो कि सत्य नहीं होंगी। शांत रहिए और आप जिससे प्रेम करते हैं, उसपर एकाग्र होने का प्रयास करिए।

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