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स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।

विधि 1
विधि 1 का 4:

अपने विषयवस्तु का चयन

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  1. यद्यपि आप क्लासरूम या कार्य सम्बंधी दिशानिर्देशों से बंधे हो सकते हैं, पर शोध-पत्र परियोजना में अपने विषय का चुनाव पहला और सबसे महत्वपूर्ण सोपान है। आपका शीर्षक मनचाहा हो सकता है या फिर कुछ ठोस सीमाओं की मांग कर सकता है, इसकी परवाह किये बिना दिमाग में कुछ प्रश्नों को रखना महत्वपूर्ण होगा: क्या इस विषय पर पर्याप्त शोध मौजूद है? क्या यह विषय पर्याप्त नया या अद्वितीय है जिसपर मैं नयी राय दे सकता हूँ? क्या यह मेरे वर्ग / पेशे के लिए प्रासंगिक है?
  2. जब भी संभव हो, ऐसा विषय चुने जिसके प्रति आप आवेग महसूस करते हों। जिसमें आपको मज़ा आता हो, उसके बारे में लिखने पर यह अंतिम दस्तावेज़ में निस्संदेह झलकेगा, और इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि जिसका आप लुत्फ़ उठाते हैं, उसके बारे में एक पेपर लिखने में सफल होंगे।
  3. अगर आप कक्षा के लिए शोध-पत्र लिख रहे हैं, तो दूसरे छात्रों के बारे में सोचिये। क्या यह संभव है कि वे भी आपके विषय पर लिख रहे होंगे? अगर सब उसी विषय पर लिख रहे हैं तो आप अपने शोध-पत्र को कैसे अद्वितीय और रोचक बना पाएंगे?
  4. अगर आप किसी ऐसे विषय के लिए जूझ रहे हें जो “बिल्कुल ठीक” महसूस हो, तो अपने प्रोफेसर या सहकर्मियों / सहपाठियों से सलाह लीजिये। उनके पास शानदार विचार हो सकते हैं, जो भले ही आपके चुनाव के विकल्प न हों, फिर भी आपको नए विचारों से प्रेरणा दे सकते हैं। किसी प्रोफेसर से मदद लेने में डर लग सकता है, पर एक प्रोफेसर के रूप में उनमें कुछ भी अच्छा है, तो वे चाहेंगे कि आप अपने काम में सफल हों, और ऐसा होने के लिए जो भी हो सके वे जरूर करेंगे।
  5. एक विषय का चयन करके आप शोध शुरू करते हैं, और किसी कारणवश यह पाते हैं कि यह आपके लिए ठीक निर्णय नहीं था, तो घबराइए नहीं! हालाँकि यह थोड़ा अधिक समय जरूर लेगा, लेकिन एक विषय पर शोध शुरू करने के बाद भी आपमें अपने विषय को बदलने की क्षमता है।
विधि 2
विधि 2 का 4:

शोध-कार्य

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  1. एक विषय लेने के बाद, अगला कदम शोध की शुरुआत है। शोध कई प्रकार के होते हैं, जैसे वेब पेज, जर्नल आलेख, किताबें, विश्वकोश, साक्षात्कार, और ब्लॉग पोस्ट इत्यादि। अपने विषय पर मूल्यवान शोध और अंतर्दृष्टि देने वाले पेशेवर स्रोतों की खोज में समय दीजिए। केवल 1-2 स्रोतों पर ही निर्भर न रहें; कम से कम पांच स्रोतों के इस्तेमाल की कोशिश करें। [१]
  2. जहां भी संभव हो, श्रेष्ठ जनों द्वारा समीक्षा किये हुए (peer review) प्रयोगाश्रित शोध को देखें । ये आपकी रूचि के क्षेत्र में विशेषज्ञों द्वारा लिखे वे लेख या किताबें हैं, जिनका काम इस क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञों द्वारा पढ़ा और पारित किया गया है। ये किसी वैज्ञानिक जर्नल या ऑनलाइन खोज के द्वारा ढूँढ़ें जा सकते हैं
  3. अपने स्थानीय पुस्तकालय या विश्वविद्यालय के पुस्तकालय जाएँ। यद्यपि ये पुराने ज़माने की तरह लग सकता है, पर किताबों से लेकर अखबार, पत्रिकाओं और जर्नल तक मददगार शोध सामग्री से पुस्तकालय भरा होता है। लाइब्रेरियन से भी मदद मांगने में संकोच न करें। वे शोध में प्रशिक्षित होते हैं और जानते हैं कि आपके विषय से सम्बंधित सबकुछ कहाँ होगा।
  4. सर्च इंजन का इस्तेमाल करके शीर्ष तीन परिणाम चुनना ज़रूरी नहीं है कि सबसे बेहतर शोध का तरीका क्या होगा। आलोचनात्मक दृष्टि से हर स्रोत को पढ़िए और निर्धारित कीजिये कि वह कहाँ तक वैध है। ऑनलाइन वेबसाइट, ब्लॉग, या फोरम के लिए केवल तथ्य प्रकाशित करना जरूरी नहीं है, इसलिए इस बात को जांच लें कि जो सूचना आपको मिली है वह विश्वसनीय है कि नहीं।
    • आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
    • अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।
  5. कुछ खास सर्च इंजन या अकादमिक डेटाबेस उपलब्ध हैं जो हज़ारों पीअर रिव्यूड या वैज्ञानिक जर्नल, पत्रिकाओं और किताबों को खंगालती हैं। हालाँकि इनमें से अधिकाँश सशुल्क सदस्यता की मांग करती हैं, पर अगर आप किसी कॉलेज के छात्र हैं तो आपको अपने विश्वविद्यालय की सदस्यता के माध्यम से इनके निःशुल्क इस्तेमाल की सुविधा मिल सकती है।
    • ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२]
    • पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
    • अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।
  6. अगर आप अपने विषय पर एक सचमुच बेहतरीन किताब या जर्नल को ढूंढ़ लेते हैं जो आपके विषय के बिल्कुल उपयुक्त हो, तो उसके अंत में दी गयी ग्रन्थ-सूची, उद्धृत सामग्री-सूची और सन्दर्भों को ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए। इसमें आपके विषय से सम्बंधित बहुत सी अन्य किताबें और जर्नल होंगे।
विधि 3
विधि 3 का 4:

एक रूपरेखा का निर्माण

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  1. किताब पर टीका-टिप्पणी, अपने शोध पर नोट्स जोड़िये: एक बार जब आप सारी सामग्री जुटा लें तो उसका प्रिंट निकाल लीजिए ( अगर वह ऑनलाइन स्रोत हो) और कागज़ की चिप्पियाँ या जो भी चीज़ें नोट्स पर निशान बनाने के लिए चाहिए उन्हें इकठ्ठा कर लें। ये चरण बहुत महत्वपूर्ण है: अपनी शोध सामग्री को पढ़ लें, जो महत्वपूर्ण लगे उसके नोट्स लें, और केन्द्रीय तथ्यों और वाक्यांशों को चिन्हित कर लें। सीधे उन कॉपियों पर लिखें जो आपने बनायी है, या कागज़ के पुर्जों का इस्तेमाल कीजिये जो महत्त्वपूर्ण स्थानों को चिन्हित करने के लिए पृष्ठों के बीच घुसाई गयी हैं। [३]
    • रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
    • जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।
  2. आपके शोध का टीकाकरण समय ले सकता है पर उसे एक कदम आगे ले जाना होगा ताकि आपके रूप-रेखा बनाने के काम में कुछ और स्पष्टता आ सके। अपने नोट्स को सुनियोजित करने के लिए सभी चिन्हित वाक्यों और विचारों को विषय आधारित वर्गों में बाँट लें। उदाहरण के लिय, अगर आप साहित्य के किसी मशहूर कार्य का विश्लेषण करते हुए एक शोधपत्र लिख रहे हैं, तो आप अपने शोध को चरित्रों पर नोट्स की सूची, कथानक के कुछ बिन्दुओं के सन्दर्भ में एक सूची, लेखक द्वारा प्रस्तुत बिम्बों की सूची, आदि में श्रेणीबद्ध कर सकते हैं।
    • हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
    • अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।
  3. जैसे-जैसे आप अपने नोट्स को पढ़ें, वैसे-वैसे प्रत्येक स्रोत के लेखक, पृष्ठ संख्या, शीर्षक, और प्रकाशकीय सूचना पर निशान लगाते चलें। पूरे मामले को उस समय यह बेहद आसान कर देगा जब बाद में आप अपनी संदर्भग्रंथ सूची या उद्धृत स्रोतों की सूची बनायेंगे।
  4. आम तौर पर कह सकते हैं, कि दो प्रकार के शोध-पत्र होते हैं: तार्किक शोधपत्र या विश्लेषणात्मक शोधपत्र। दोनों के फोकस और उनकी लेखन-शैली थोड़ी भिन्न होती है, जिनकी पहचान कच्चे ड्राफ्ट तैयार करने से पहले कर लेनी चाहिए।
    • एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
    • एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।
  5. कौन इस शोधपत्र को पढ़ रहे होंगे, क्या इसे प्रकाशित कराना चाहिए? यद्यपि आप अपने प्रोफेसर या अपने से वरिष्ठ लोगों के लिए लिखना चाहते हैं, लेकिन ये महत्वपूर्ण है कि आपका शोधपत्र उस पाठकीय स्वर और दिशा को प्रतिबिंबित करे जो उसे पढ़ेंगे। अगर आप शैक्षिक समकक्षों के लिए लिख रहे हैं, तो जो जानकारियाँ आप शामिल करेंगे उनमें आपकी पूर्वज्ञात जानकारियों की झलक होनी चाहिए; ज़रूरी नहीं है कि आप मूलभूत विचारों और सिद्धांतों की व्याख्या करें। दूसरी तरफ, अगर आप ऐसे पाठक वर्ग के लिए लिख रहे हैं जो आपके विषय के बारे में अधिक न जानता हो, तो यह महत्त्वपूर्ण होगा कि आप ऐसी व्याख्याएं या उदाहरण शामिल करें जो आपके शोध से जुड़े अपेक्षाकृत अधिक बुनियादी विचार और सिद्धांत हों। [४]
  6. थीसिस का कथन आपके शोधपत्र की शुरुआत में 1-2 वाक्यों का कथन होता है जो आपके पेपर के प्रमुख लक्ष्य या तर्क को रखता है। यद्यपि आप अपने थीसिस-कथन की शब्दावली को बाद में अंतिम प्रारूप में बदल सकते हैं, फिर भी अपने निबंध के मुख्य लक्ष्य के बारे में आरम्भ में ही स्पष्ट हो जाना चाहिए। आपके सभी पैराग्राफ और सूचनाएं आपकी थीसिस के इर्द-गिर्द ही घूमेंगे, इसलिए सुनिश्चित कीजिये कि आपकी थीसिस क्या है, इस ओर से स्पष्ट हो लीजिए। [५]
    • थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
    • शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!
  7. आपके निबंध का मुख्य भाग उन्हीं विचारों के इर्द- गिर्द घूमेगा जिन्हें आप सबसे महत्वपूर्ण समझते हैं। अपने शोध और टिप्पणियों को पढ़ते हुए यह निर्धारित करें कि कौन से बिंदु आपकी बात या सामग्री की प्रस्तुति के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। किन विचारों के विषय में आप पूरे पैराग्राफ लिख सकते हैं? आपके अनुसार किन विचारों के पक्ष में पर्याप्त मज़बूत तथ्य और प्रमाणिक शोध हैं। अपने मुख्य बिन्दुओं को कागज़ पर लिख लें, और फिर सम्बंधित सामग्री को प्रत्येक बिंदु के नीचे संयोजित करें।
    • जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
    • सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।
  8. अपने शोधपत्र के निर्देश, कक्षा निर्देश, या फॉरमैटिंग के दिशानिर्देशों के अनुरूप आपको अपने शोधपत्र को किसी खास ढंग से संयोजित करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए जब APA फॉर्मेट में लिखते हैं, तो आपको अपने शोधपत्र को शीर्षकों के अनुसार संयोजित करना होगा जिसमें भूमिका, शोध-विधि, परिणाम और विचार-विमर्श शामिल होंगे। ये दिशानिर्देश आपकी रूपरेखा और निर्णायक शोधपत्र के पूरे स्वरूप को बदल देंगे। [६]
  9. पहले दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए, अपनी पूरी रूप-रेखा को संयोजित करें। मुख्य बिन्दुओं को बायीं ओर रखें, और उपखंडों और अपने शोध के नोट्स एक-दूसरे के नीचे रखते हुए इंडेंट करें। आपकी रूप-रेखा बुलेट बिन्दुओं के रूप में पूरे शोधपत्र का संक्षिप्त विवरण होना चाहिए। हर बिंदु के बाद पाठ के अंतर्गत उद्धरण (इन-टेक्स्ट साइटेशन) को सुनिश्चित कीजिए, ताकि निर्णायक पेपर लिखते हुए आपको बार-बार अपनी शोध-सामग्री को न पलटना पड़े।
विधि 4
विधि 4 का 4:

पेपर लिखना

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  1. हालाँकि यह आपको सहज नहीं लगेगा, अपनी भूमिका पहले लिख पाना पेपर के मूल भाग को लिखने से ज्यादा कठिन होगा। मुख्य बिन्दुओं को लिखने से शुरू किया जा सकता है (अपनी थीसिस के सहायक तर्कों को केन्द्रित कर के) जिससे आपको अपने विचारों और टिप्पणी में कुछ हेर-फेर करने की सुविधा हो जायेगी।
    • अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
    • अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
    • बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
    • अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।
  2. अब जब आपने सावधानीपूर्वक अपने साक्ष्यों पर काम पूरा कर लिया है, तो एक निष्कर्ष लिखें जो आपके खोजे गए परिणाम को संक्षिप्त रूप से पाठकों तक रखे, और जो समाप्ति का आभास देता हो। अपने थीसिस-वाक्य को संक्षिप्त तरीके से दोबारा रखते हुए शुरुआत कीजिये, फिर जिन बिन्दुओं को आपने निबंध में समेटा है उन्हें पाठकों को याद दिलाएं। धीरे-धीरे अपने विषय से बाहर निकलते हुए अपनी खोज के अपेक्षाकृत व्यापक सन्दर्भ और तात्पर्य पर जोर देते हुए एक वृहत्तर नोट से समाप्त कीजिए।
    • आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
    • कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।
  3. कई पहलुओं से, प्रस्तावना दरअसल निष्कर्ष को ही पलट कर लिखना है: अपने वृहत्त्तर विषय से परिचय कराते हुए शुरुआत करिए, फिर जिस क्षेत्र पर आपने केन्द्रित किया है उस ओर पाठक का ध्यान खींचें, और आखिर में थीसिस-वाक्य को रखें। ठीक वही वाक्यांश जिनका प्रयोग आपने निष्कर्ष में किया है, उनके प्रयोग से बचें।
  4. सभी शोध प्रबंधों को किसी न किसी विधि में दस्तावेजीकरण किया जाता है ताकि शैक्षिक चोरी से बचा जा सके। अपने शोध के विषय और अध्ययन-क्षेत्र के आधार पर आपको अलग-अलग प्रकार कि फोर्मेटिंग विधियों को चुनना होगा। MLA, APA और शिकागो (Chicago) विधियां; तीन सबसे अधिक इस्तेमाल में लायी जाने वाली उद्धरण-विधियां हैं और ये निर्धारित करती हैं कि अंतरपाठीय उद्धरण या फुटनोट कैसे इस्तेमाल किये जायेंगे, और आपके शोधपत्र में सूचनाओं का क्या क्रम होगा।
    • MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
    • APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
    • शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७]
  5. अपने कच्चे प्रारूप को काट-छाँट कर सम्पादित कीजिये: यद्यपि ये बहुत लुभावना होता है कि आप अपने निबंध को केवल वर्तनी परीक्षण के टूल की मदद से पढ़ लें, पर कायदे से निबंध को कुछ अधिक गहराई से संपादित किया जाना चाहिए। न्यूनतम एक, पर अच्छा होगा कि दो या ज्यादा लोग उस निबंध को पढ़ें। उनसे मूल भाषाई और वर्तनी की अशुद्धियों और साथ ही साथ निबंध की प्रभाव-क्षमता, स्वरूप और प्रवाह को जांचने को कहिये।
    • अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
    • दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८]
  6. अब जबकि आपने अपने पेपर का सम्पादन, पुनर्सम्पादन कर लिया है, अपने विषयवस्तु के हिसाब से अपने काम की फोर्मेटिंग कर ली है, और सभी प्रमुख मुद्दों को निर्धारित कर लिया है, अपने निर्णायक मसौदे को लिखने के लिए आप तैयार हैं। अपने पेपर को पढ़े और आवश्यकता अनुसार सूचनाओं को पुनर्संगठित करते हुए सभी गलतियों को सुधारें। अपने प्रोफ़ेसर या पेशे द्वारा निर्धारित मानदंडों पर फॉन्ट, लाइनों के बीच की दूरी, और हाशिए को संयोजित कीजिए। अगर जरूरत हो तो, अपने पेपर को पुस्तक अवलंबन करने के लिए एक प्रस्तावना पृष्ठ और एक सन्दर्भ पृष्ठ बनाएँ। इन कार्यों को पूरा करते ही आपका पेपर पूरा हो जाएगा। अपने पेपर को सुरक्षित कर लेना (अतिरिक्त सुरक्षा के लिए, एकाधिक स्थानों पर) और इसे प्रिंट करवाना न भूलें।

सलाह

  • रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
  • यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
  • ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
  • अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।

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