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ओकुलर हाइपरटेंशन (Ocular hypertension) सबसे व्यापक स्थितियों में से एक है, जो आंखों को प्रभावित करती है। ये उस वक़्त होती है, जब आँखों में फ्लुइड प्रैशर (इंट्राओकुलर प्रैशर) का लेवल हमेशा के हिसाब से ज्यादा होता है। अगर ओकुलर हाइपरटेंशन को इग्नोर किया जाए, तो उसकी वजह से ग्लॉकोमा (Glaucoma) और यहां तक ​​कि स्थायी रूप से दृष्टि हानि भी हो सकती है, इसलिए इस कंडीशन के लिए जरूरी एक्शन लिए जाने जरूरी होते हैं। हाइ इंट्राओकुलर प्रैशर या ओकुलर हाइपरटेंशन के कोई लक्षण नहीं होते हैं, इसलिए इसे आइ केयर स्पेशलिस्ट के पास विजिट के दौरान ही डाइग्नोज किया जा सकता है। वैसे तो आमतौर पर हाइ आइ प्रैशर को ट्रीट करने के लिए सबसे पहले आइ ड्रॉप्स का ही यूज किया जाता है, लेकिन बदकिस्मती से, ये हर किसी के ऊपर काम नहीं करते हैं। [१]

विधि 1
विधि 1 का 4:

डाइट और लाइफ़स्टाइल को बदलना

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  1. ऐसे लोग, जो मोटापा, डाइबिटीज़ और हाइ ब्लड प्रैशर जैसी परेशानियों से गुजर रहे होते हैं, ऐसे लोगों के लिए अक्सर इंसुलिन को रोक पाना मुश्किल हो जाता है, जिसकी वजह से उनका शरीर और ज्यादा इंसुलिन प्रोड्यूस करने लग जाता है। ये हाइ इंसुलिन लेवल्स अक्सर बढ़े हुए आइ प्रैशर से जुड़े हुए होते हैं। [२]
    • इस मुश्किल को हल करने के लिए, पेशेंट्स (मरीजों) को अक्सर ही ऐसे खास फूड्स को अवॉइड करने की सलाह दी जाती है, जो अचानक इंसुलिन लेवल में बढ़त लाने के जवाबदार होते हैं। इन फूड्स में: शुगर, ग्रेन्स (होल और ओर्गेनिक), ब्रेड, पास्ता, राइस, सीरियल (cereal) और पोटेटोशामिल हैं।
  2. एरोबिक्स, जॉगिंग, ब्रिस्क वॉकिंग, बाइकिंग और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जैसी एक्सर्साइजेज़ को रेगुलरली करते रहने से आपके शरीर के इंसुलिन लेवल को कम करने में मदद मिलती है, इस तरह से आपकी आँख भी हाइपरटेंशन से बच जाती है।
    • इंसुलिन एक ऐसा हॉरमोन है, जो ब्लड शुगर (या ग्लूकोज) को एक एनर्जी सोर्स की तरह सेल्स में ट्रांसपोर्ट करने में मदद करता है। अगर हम इस एनर्जी को एक्सर्साइज़ के जरिए यूज कर लेते हैं, तो हमारे शरीर में मौजूद ब्लड ग्लूकोज का लेवल, इंसुलिन लेवल के साथ कम हो जाता है। अगर इंसुलिन लेवल कम होगा, तो ओकुलर सिंपैथिक (sympathetic) नर्व में हाइपरस्टिमुलेशन भी नहीं होगा, इस तरह से आपकी आँखों में प्रैशर भी नहीं बढ़ेगा।
    • हफ्ते में तीन से पाँच बार, दिन में कम से कम 30 मिनट की एक्सर्साइज़ जरूर किया करें।
    • ऐसी एक्सर्साइज़ करना अवॉइड करें, जिसमें आपको हैड डाउन (अपने सिर को नीचे रखने) की पोजीशन में आना होता है, क्योंकि इसकी वजह से इंट्राओकुलर प्रैशर बढ़ जाता है। इनमें हैडस्टेंड जैसी कुछ योगा पोजीशन्स शामिल हैं।
  3. डॉकसैहेक्साइनॉइक एसिड (Docosahexaenoic acid/DHA) एक तरह का ओमेगा-3 फेटी एसिड होता है, जो एक हैल्दी रेटिनल फंक्शन मेंटेन करता है और आँखों में प्रैशर बनने से रोक लेता है। [३]
    • DHA (और दूसरे ओमेगा-3 फेटी एसिड्स) सैल्मन (salmon), टूना (tuna), सार्डिन (sardines), शैलफिश (shellfish) और हेरिंग (herring) जैसी ठंडे पानी में मिलने वाली फिश में मौजूद होता है। अपने DHA लेवल्स को बूस्ट करने के लिए, हर हफ्ते दो से तीन सर्विंग्स इसी तरह की फिश के टाइप की फिश की लिया करें।
    • वैकल्पिक रूप से, आप चाहें तो फिश ऑइल कैप्स्यूल या एल्गी- बेस्ड डीएचए (DHA) सप्लिमेंट्स लेकर आपके DHA इनटेक को बढ़ा सकते हैं। बेहतर रिजल्ट्स के लिए, हर रोज 3,000 – 4,000mg स्टैंडर्डाइज्ड फिश ऑइल कैप्स्यूल्स लिया करें या फिर रोजाना 200mg एल्गी-बेस्ड सप्लिमेंट्स लिया करें। [४]
  4. ल्यूटिन (lutein) और जेयाक्सान्थिन (zeaxanthin) वाले फूड्स ज्यादा खाएं: ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन, जो आपके शरीर को फ्री रेडिकल्स से प्रोटेक्ट करने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स की तरह काम करते हैं। ये फ्री रेडिकल्स इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देते हैं, जो ओप्टिक नर्व्स में इन्फेक्शन और डैमेज पैदा कर सकते हैं। [५]
    • ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन ओप्टिक नर्व के आसपास, ऑक्सीडेटिव डैमेज को कम करके आइ प्रैशर को कम करने में मदद करते हैं। जैसे कि ओप्टिक नर्व में होने वाला कोई भी डैमेज आइ प्रैशर को बढ़ा देता है, इसी वजह से ये बहुत जरूरी होते हैं।
    • ऐसे फूड्स, जिनमें ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन भरपूर पाया जाता है, उनमें केल (kale), स्पाइनेक (पालक), कोलार्ड ग्रीन्स (collard greens), ब्रूसेल स्प्राउट्स (Brussels sprouts), ब्रोकली और कच्चा एग योल्क शामिल है। दिन के हर एक बड़े मील में इनमें से किसी एक को शामिल करने की पूरी कोशिश करें।
  5. जैसे कि ऊपर भी बताया गया है, ओमेगा-3 फेटी एसिड्स इंट्राओकुलर प्रैशर को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि, ऐसे फूड्स, जो ट्रान्स फेट्स में हाइ होते है, वो ओमेगा-3 को सही ढ़ंग से अपना काम करने से रोक देते हैं, जो भी आइ प्रैशर को बढ़ा देता है।
    • एक रिजल्ट के तौर पर, ट्रान्स फेट्स से भरपूर फूड्स के इनटेक को लिमिट करना एक अच्छा आइडिया होता है। इन फूड्स में: प्रोसेस्ड या बेक्ड फूड्स, आइस क्रीम और माइक्रोवेव पॉपकॉर्न शामिल हैं। [६]
  6. ब्लूबेरी और बिल्बेरी जैसी डार्क कलर बेरी आँखों की नर्व्स और मसल्स तक न्यूट्रीएंट्स को लेकर जाने वाली कैपलेरी (केशिकाओं) को मजबूत बनाकर, आँखों की पूरी हैल्थ को इंप्रूव करने में मदद करती हैं। ऐसा डार्क कलर बेरी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स के द्वारा ब्लड वेसल्स को मजबूती देने के तथ्य की वजह से हुआ करता है। ये ब्लड वेसल हेमरिज को और डैमेज होने के चांस को रोक लेता है। [७]
    • दिनभर में कम से कम एक पोर्शन डार्क-कलर की बेरी का जरूर खाएँ।
    • अल्फा लिपोइक एसिड (Alpha-lipoic acid/ALA) एक एंटीऑक्सीडेंट है और ये कई तरह के आइ डिसऑर्डर को रोकने और उन्हें ट्रीट करने के लिए यूज किया जाता है, जिसमें ग्लॉकोमा और बढ़ा हुआ आइ प्रैशर शामिल है। इसके 75mg डोज़ को आमतौर पर दिन में दो बार लिया जाता है। [८]
    • बिलबेरी को आमतौर पर देखने की शक्ति (visual acuity) को बढ़ाने और डीजनरेटिव आइ डिसीज, जिसमें ओकुलर हाइपरटेंशन भी शामिल है, का सामना करने के लिए यूज किया जाता है। बिलबेरी और फ़ीक्नोजेनल (pycnogenol, पिंक बार्क एक्सट्रेक्ट) से बने हुए एक खास प्रोडक्ट के ऊपर की गई स्टडी के मुताबिक, उससे क्लीनिकली आइ प्रैशर में कमी पाई गई। [९]
    • ग्रेपसीड एक्सट्रेक्ट एक एंटीऑक्सीडेंट है और इसे ग्लेयर (glare) की वजह से होने वाले आइ स्ट्रेस को सफलतापूर्वक कम करने के लिए यूज किया जाता है। ग्रेपसीड एक्सट्रेक्ट को आमतौर पर एजिंग के लक्षणों का सामना करने और नाइट विजन को ठीक करने के लिए यूज किया जाता है। [१०]
  7. मारिजुआना (Marijuana) को खाकर, सब्लिंग्युली (जीभ के नीचे से), केपस्यूल, टेबलेट्स के फॉर्म में और वेपर्स के तौर पर ऑइल से लिया जा सकता है। 2006 की एक स्टडी में, मारिजुआना के मुख्य घटक में से एक, टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC), जिसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव हैं, को जब 5 मिलीग्राम सब्लिंग्युली लिया गया, तब उस से आइ प्रैशर में कुछ वक़्त के लिए कमी देखी गई, लेकिन कैनबिडिओल (cannabidiol) नाम का दूसरा घटक, जिसमें मनोवैज्ञानिक प्रभाव नहीं होता है, ने आइ प्रैशर को कम नहीं किया। [११] [१२]
विधि 2
विधि 2 का 4:

सर्जरी कराना

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  1. समझ लें, कि आखिर क्यों सर्जरी कराना जरूरी हो सकता है: [१३] अगर हाइ प्रैशर बना रहता है, तो ये ओप्टिक नर्व को डैमेज कर सकता है, जिसकी वजह से ग्लॉकोमा नाम की आँखों की तकलीफ हो सकती है। [१४] वक़्त के साथ, ग्लॉकोमा की वजह से विजन लॉस (देखने की क्षमता खत्म) हो सकता है। [१५] ग्लॉकोमा को अक्सर ही आइ ड्रॉप्स और ओरल मेडिकेशन्स के कोंबिनेशन का यूज करके ट्रीट किया जाता है। हालांकि, अगर ये सब काम नहीं आते हैं, तो फिर आँखों के प्रैशर को कम करने के लिए एक सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है।
    • ग्लॉकोमा के लिए की जाने वाली सर्जरी से आँखों के अंदर के फ्लुइड के फ़्लो को इम्प्रूव करने में मदद मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप आइ प्रैशर भी कम हो जाता है। कभी-कभी, ग्लॉकोमा को ट्रीट करने के लिए और आइ प्रैशर कम करने में सिर्फ एक अकेली सर्जरी से कुछ नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में, फॉलो-अप (follow-up) सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
    • ग्लॉकोमा को ट्रीट करने के लिए कई तरह की सर्जरी मौजूद हैं, जो पूरी तरह से आपकी स्थिति की गंभीरता पर डिपेंड करती हैं।
  2. डॉक्टर से ड्रेनेज इम्प्लांट्स (drainage implants) के बारे में पूछें: ड्रेनेज इम्प्लांट्स को अक्सर ही बच्चों में और एडवान्स ग्लॉकोमा वाले लोगों के हाइ आइ प्रैशर को ट्रीट करने के लिए यूज किया जाता है। इस प्रोसीजर के दौरान, फ्लुइड के ड्रेनेज की सुविधा के लिए, आँखों में एक छोटी सी ट्यूब इन्सर्ट की जाती है। जैसे ही फ्लुइड ड्रेन हो जाता है, आइ प्रैशर भी कम हो जाता है।
  3. ट्रेबेक्यूलोप्लास्टी (Trabeculoplasty) एक तरह की लेजर सर्जरी है, जिसमें आँखों में मौजूद ड्रेनेज की केनल्स (नलियों) को खोलकर, एक्सट्रा फ्लुइड को ड्रेन होने देने के लिए, हाइ-एनर्जी लेजर बीम का यूज किया जाता है। सर्जरी के बाद, प्रोसीजर के सक्सेसफुल होने की पुष्टि करने के लिए, बार-बार आइ प्रैशर को चेक किया जाता है।
    • आईरिडोटोमी (iridotomy) एक और तरह की सर्जरी है। इस तरह की प्रोसीजर को ऐसे लोगों के ऊपर किया जाता है, जिनकी आँखों के ड्रेनेज एंगल्स बहुत सँकरे होते हैं। इस प्रोसीजर के दौरान, फ्लुइड के ड्रेनेज को आने देने के लिए, आइरिस के ऊपरी हिस्से में एक छोटा सा होल किया जाता है।
    • अगर लेजर आईरिडोटोमी काम नहीं करती है, तो पेरिफेरल आईरिडोटोमी (peripheral iridotomy) की जा सकती है। इस प्रोसेस में फ्लुइड ड्रेनेज को इम्प्रूव करने के चलते आइरिस के छोटे से हिस्से को निकाला जाता है। इस तरह की सर्जरी एकदम बहुत कम ही की जाती है।
  4. इस बात से भी अवगत रहें, कि आपको शायद फिल्टरिंग (filtering) सर्जरी की जरूरत भी हो सकती है: ट्रेबेकलेक्टमी (Trabeculectomy) एक तरह की सर्जिकल प्रोसीजर है, जिसे किसी भी आइ ड्रॉप्स या लेजर सर्जरी के अनसक्सेसफुल होने की स्थिति में, ट्रीटमेंट के एकदम आखिर में यूज किया जाता है।
    • इस प्रोसीजर में, एक सर्जन स्क्लेरा (आँख के व्हाइट पार्ट) में एक ओपनिंग तैयार करता है और फिर कॉर्निया के बेस में से टिशू के एक छोटे से पीस को हटा देता है। ये फ्लुइड को बहुत आराम से आँखों से बहने देता है, जिसकी वजह से प्रैशर में कमी आ जाती है।
    • इस प्रोसीजर को पहले एक आँख में और फिर जरूरत पड़ने पर कुछ हफ्तों के बाद दूसरी आँख में रिपीट किया जाता है। जैसे कि ओपनिंग फिर से ब्लॉक्ड या बंद हो सकती है, इसलिए इस प्रोसीजर को लेने के बाद भी कुछ और एडीशनल प्रोसीजर को करने की जरूरत पड़ सकती है।
विधि 3
विधि 3 का 4:

रिलैक्सिंग एक्सर्साइज़ करना

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  1. हर 3 से 4 सेकंड्स में ब्लिंक (पलकें झपकने) करने की प्रैक्टिस करें: लोगों को कंप्यूटर पर काम करते वक़्त, टीवी देखते वक़्त या फिर वीडियो गेम्स खेलते वक़्त ब्लिंक नहीं करने की आदत होती है। इसकी वजह से आँखों पर बहुत ज्यादा तनाव बन जाता है।
    • आप एक या दो मिनट के पीरियड के दौरान, अपनी आँखों को हर 3 से 4 सेकंड तक ब्लिंक करने की कोशिश करके, अपनी आँखों को रिलैक्स और रिफ्रेश कर सकते हैं। जरूरत हो, तो अपने लिए वक़्त का ध्यान रखने के लिए वॉच का यूज कर लें।
    • ये आपकी आँखों के जरा से प्रैशर को कम कर के, उन्हें न्यू इन्फोर्मेशन प्रोसेस करने के लिए तैयार कर देगा।
  2. अपनी आँखों को अपने हाँथों की हथेलियों से कवर करें: अपनी आँखों को अपनी हथेलियों से कवर करने की वजह से आपकी आँखों के साथ-साथ आपका मन भी रिलैक्स हो जाता है, जिससे स्ट्रेस चला जाता है और आप बेझिझक ब्लिंक कर सकते हैं।
    • अपनी उँगलियों को अपने माथे के सामने रखते हुए और अपने हाँथ की हील को अपने चीकबोन्स पर जमाकर, अपने राइट हैंड को अपनी राइट आइ (दाँई आँख) पर रखें। ऐसा करते वक़्त ज्यादा प्रैशर अप्लाई मत करें।
    • पूरे वक़्त तक आराम से ब्लिंक करते रहकर, अपने हाँथों को 30 सेकंड्स के लिए अपनी जगह पर रखें। अपनी आँखों से हाँथ हटा लें, फिर अपनी बाँई आँख को कवर करने के लिए बाँये हाँथ का यूज करें और रिपीट करें।
  3. ये एक्सर्साइज़ आपकी आइ मसल को स्ट्रेंथ देने में और फ्लेक्सिबिलिटी को बढ़ाकर, उन्हें किसी भी चोट और हाइ प्रैशर से बचाए रखने में मदद करेगी।
    • अपने सामने दीवार पर नंबर एट (8) को, उसकी साइड पर टर्न होता हुआ इमेजिन करें। अपने सिर को हिलाए बिना, इस 8 नंबर को बनाने के लिए अपनी आँखों का यूज करें। इसे एक या दो मिनट तक करना जारी रखें।
    • अगर आपको साइड में टर्न हुए 8 नंबर को इमेजिन करने में परेशानी हो रही है, इसे असल में एक पेपर के पीस में ड्रॉ करके और फिर दीवार पर लटकाकर देखें। आप इसे अपनी आँखों से भी तैयार कर सकते हैं।
  4. अपनी आँखों को दोनों ही पास के और दूर के ऑब्जेक्ट्स पर फोकस करने की प्रैक्टिस करें: ये एक्सर्साइज़ आपकी आइ मसल को मजबूती देने में मदद करेगी और आपके पूरे विजन को इम्प्रूव करेगी।
    • बैठने के लिए बिना किसी डिसट्रेक्शन वाली एक आरामदायक जगह की तलाश करें। अपने अंगूठे को करीब 10 inches (25.4 cm) अपने चेहरे के सामने रखें और अपनी आँखों के फोकस को उसी पर रखें।
    • अपने अंगूठे पर कुछ पाँच से 10 सेकंड्स के लिए फोकस रखें, फिर अपने फोकस को अपने आप से करीब 10 to 20 feet (3.0 to 6.1 m) दूर मौजूद किसी दूसरे ऑब्जेक्ट पर फोकस कर लें। एक या दो मिनट तक के लिए अपने फोकस को बदलते हुए एक बार अपने अंगूठे और फिर एक बार दूर रखे ऑब्जेक्ट पर रखना जारी रखें।
  5. ये एक्सर्साइज़ आपकी फोकसिंग स्किल्स को इम्प्रूव करती है और साथ ही ये आपकी आँख की मसल को भी मजबूती देती है।
    • अपने हाँथ को सीधे अपने सामने स्ट्रेच कर लें, फिर अपने अंगूठे को पकड़ें। अपनी दोनों ही आँखों का फोकस इस अंगूठे पर रखें, फिर धीरे-धीरे अपने अंगूठे को तब तक अपनी ओर मूव करते जाएँ, जब तक कि ये आपके चेहरे से करीब तीन इंच की दूरी पर न आ जाए।
    • अपनी दोनों आँखों का सारा फोकस हमेशा इसी पर बनाए रखते हुए, अपने अंगूठे को फिर से अपने से दूर मूव करें। कुछ एक या दो मिनट के लिए अपने फोकस को अपने मूव होते हुए अंगूठे पर बनाए रखना जारी रखें।
  6. ये टेक्निक आइ प्रैशर को कम करने में भी मदद करती हैं। [१६] बायोफीडबैक हार्ट रेट, ब्लड प्रैशर और बॉडी टेम्परेचर जैसे आपकी नॉर्मल बॉडी की प्रोसेस पर कंट्रोल करना सिखाता है। [१७] एक बायोफीडबैक थेरेपिस्ट आपको प्रोपर टेक्निक सिखाएँगे, ताकि आप फिर खुद से भी प्रैक्टिस करना शुरू कर सकें।
विधि 4
विधि 4 का 4:

ओकुलर हाइपरटेंशन को समझना

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  1. समझें, आखिर किस तरह से हाइ आइ प्रैशर को डाइग्नोज किया जाता है: जैसे कि हाइ आइ प्रैशर (जिसे मेडिकली ओकुलर हाइपरटेंशन के नाम से जाना जाता है) की वजह से आँखें लाला होने या आँखों में दर्द होने जैसे कोई भी नजर आने वाले लक्षण नहीं दिखते हैं, इस वजह से इसे डाइग्नोज कर पाना मुश्किल होता है। सिर्फ विज्युअल एग्जामिनेशन अकेले से डाइग्नोज नहीं किया जा सकता है, इसलिए आपको आपकी आँखों को किसी आइ स्पेशलिस्ट से एगजामिन कराना होगा। वो ओकुलर हाइपरटेंशन की पहचान करने के लिए कई तरह की मेथड्स को कम्बाइन करके यूज करेंगे।
    • टोनोमेट्री (Tonometry) इस प्रोसेस का यूज आँखों के इंट्राओकुलर प्रैशर को मेजर करने के लिए और प्रैशर के नॉर्मल लिमिट के अंदर होने का पता लगाने के लिए यूज किया जाता है। आँखों को पहले नम्ब किया जाता है और फिर प्रैशर के लेवल को पता करने के लिए, स्पेशलिस्ट की मदद से एक ऑरेंज डाइ इन्सर्ट किया जाता है। आँखों में प्रैशर अप्लाई करके, आँखों के प्रैशर को मापने के लिए एक मशीन का यूज किया जाता है। [१८]
    • 21mmHg या इससे ज्यादा की रीडिंग का मतलब आमतौर पर ओकुलर हाइपरटेंशन की उपस्थिती होता है। हालांकि, सिर या आँखों की चोट, या कॉर्निया के पीछे ब्लड के जमने जैसी दूसरी कंडीशन भी इस रीडिंग को प्रभावित कर सकती है।
    • एयर पफ़ (Air puff) इस प्रोसीजर के साथ, पेशेंट को स्पेशलिस्ट के द्वारा उसकी आँखों पर रौशनी डालते वक़्त, सीधे एक ऐपरैटस (apparatus) पर देखते रहने को कहा जाता है। वो ऐपरैटस फिर आंखो में सीधे एक क्विक पफ़ भेजता है। एक स्पेशल मशीन फिर आँखों में पड़ने वाली एयर की वजह से लाइट पर पड़ने वाले रिफ्लेक्शन के जरिए आइ प्रैशर रीड कर लेती है।
  2. ओकुलर हाइपरटेंशन बढ़ती उम्र के साथ-साथ दूसरे फ़ैक्टर्स से भी जुड़ा हुआ होता है। काफी सारे फ़ैक्टर्स ओकुलर हाइपरटेंशन के पीछे की वजह होते हैं, जिनमें ये शामिल हैं: [१९]
    • एक्वीअस (aqueous) का ज्यादा प्रोडक्शन: एक्वीअस ह्यूमर (aqueous humor) आँखों में बनने वाला ट्रांसपरेंट लिक्विड होता है। ये ट्रेबक्यूलर मेश्वर्क (trabecular meshwork) के जरिए आँखों से निकलता है। अगर एक्वीअस ह्यूमर (aqueous humor) ज्यादा बनता है, तो आइ प्रैशर भी बढ़ना शुरू हो जाता है।
    • अपर्याप्त एक्वीअस (aqueous) ड्रेनेज: एक्वीअस का अपर्याप्त ड्रेनेज भी आइ प्रैशर को बढ़ा देता है।
    • कुछ तरह की दवाइयाँ: कुछ खास तरह की दवाइयाँ (जैसे कि स्टेरोइड्स) भी हाइपरटेंशन पैदा करते हैं, खासतौर पर ऐसे लोगों में, जिनमें पहले से ही रिस्क फ़ैक्टर्स मौजूद हों।
    • आइ ट्रामा: आँखों में हुआ कोई भी इन्फेक्शन एक्वीअस (aqueous) के प्रोडक्शन और आँखों से होने वाले ड्रेनेज के बैलेंस पर असर डालता है, जिसकी वजह से आइ प्रैशर बढ़ जाता है। [२०]
    • दूसरी आँखों की समस्याएँ। ओकुलर हाइपरटेंशन आमतौर पर, स्यूडो एक्सफोलिएशन सिंड्रोम, कॉर्नियल आर्कस और डिप्रेशन सिंड्रोम के साथ भी जुड़ा हुआ होता है।
  3. अपने आप को ओकुलर हाइपरटेंशन के रिस्क फ़ैक्टर्स से अवगत रखें: किसी को भी हाइ आइ प्रैशर हो सकता है, लेकिन स्टडीज़ के मुताबिक, दिए हुए ग्रुप को लोगों में इसके होने का रिस्क ज्यादा रहता है:
    • आफ्रिकन-अमेरिकन।
    • 40 की उम्र से ज्यादा के लोग।
    • ओकुलर हाइपरटेंशन और ग्लॉकोमा की फैमिली हिस्ट्री वाले लोग।
    • ऐसे लोग जिनका सेंट्रल कॉर्नियल थिकनेस मेजरमेंट्स कम हो। [५]

चेतावनी

  • आपके ओमेगा-3 फेटी एसिड्स के इनटेक को बढ़ाने के लिए रिकमेंड की हुई कुछ फिश में मर्करी का लेवल कम होता है, लेकिन इसकी लिमिटेड सर्विंग्स से किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। हालांकि, प्रेग्नेंट वुमन या ऐसी लेडीज जो कंसीव करना चाहती हैं, उनके लिए कुछ खास तरह की सावधानियाँ बरती जाना चाहिए। उन्हें किंग मैकरेल (mackerel), टाइलफिश (tilefish), स्वोर्डफिश (swordfish) और शार्क को अवॉइड करने की सलाह दी जाती है।
  • अगर आप आपके इंट्राओकुलर प्रैशर के लिए पहले से ही ड्रॉप ले रहे हैं, तो फिर आपको आपके आइ स्पेशलिस्ट (ophthalmologist) से सलाह किए बिना उसे बंद नहीं करना चाहिए।

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रेफरेन्स

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