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बिलीरुबिन का उत्पादन पुरानी सेल्स का नयी सेल्स से रिप्लेसमेंट होने के बायप्रोडक्ट या प्रतिफल के रूप मे होता है | यकृत या लिवर बिलीरुबिन को ऐसे रूप में तोड़ देता है जिसे शरीर से बाहर निकाला जा सके | [१] ब्लड में बिलीरुबिन का बढ़ा हुआ लेवल (हाइपर बिलिरुबिनेमिया) के कारण पीलिया (jaundice- स्किन और आँखों का सफ़ेद हिस्सा पीला हो जाना) हो जाता है और यह लिवर प्रॉब्लम का संकेत देता है | [२] अधिकाँश नवजातों को उनके जीवन के शुरूआती सप्ताह में पीलिया होता है | [३] वयस्कों में भी लिवर कंडीशन के कारण बिलीरुबिन का लेवल बढ़ सकता है | [४] बिलीरुबिन के लिए बच्चों और वयस्कों के इलाज़ अलग-अलग होते हैं | बच्चों और वयस्कों में बिलीरुबिन के कारणों और इफेक्ट्स के बारे में ज्यादा जानकारी होने से आप बेहतर तरीके से इसकी पहचान कर पाएंगे और इस कंडीशन का सही इलाज कर सकेंगे |

विधि 1
विधि 1 का 2:

नवजातों में बिलीरुबिन का लेवल कम करें

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  1. अपने नवजात के लिए हाइपरबिलिरुबिनेमिया होने के रिस्क फैक्टर का अंदाजा लगायें: बिलीरुबिन को हाई लेवल तक पहुंचाने वाले फैक्टर्स आनुवंशिक, एनवायरनमेंट या दूसरी हेल्थ कंडीशन से सम्बंधित हो सकते हैं |
    • समय से पहले पैदा हुए बच्चों में बिलीरुबिन प्रोसेस होने की क्षमता बहुत कम होती है क्योंकि उनके लिवर पूरी तरह से डेवलप नहीं होते | [५]
    • जिन बच्चों का ब्लड टाइप उनकी माँ के ब्लड टाइप से इनकम्पेटिबल होता है, जिसे ABO इनकम्पेटिबिलिटी भी कहा जाता है, वे अपने ब्लड में बिलीरुबिन के हाई लेवल के साथ ही पैदा हो सकते हैं |
    • अगर बच्चे को जन्म के दौरान काफी ज्यादा चोट (bruised) लगी हो तो लाल रक्त कणिकाओं के टूटने के कारण बिलीरुबिन का लेवल बढ़ सकता है | [६]
    • बच्चों में "ब्रैस्ट मिल्क से पीलिया" डेवलप होने के दो कारण होते हैं: माँ के दूध में मौजूद कुछ ख़ास प्रोटीन या बच्चे के द्वारा पर्याप्त दूध न पीना जिससे डिहाइड्रेशन हो जाता है | [७]
    • कुछ बच्चों में लीवर, ब्लड या एंजाइम प्रोबलें या दूसरी ऐसी मेडिकल प्रॉब्लम होती हैं जिनके कारण बिलीरुबिन बढ़ सकता है | इसके अलावा, बच्चों में इन्फेक्शन होने के कारण भी बिलीरुबिन बढ़ सकता है | [८]
  2. डॉक्टर बच्चे को पीलिया होने पर दिन में 12 बार तक दूध पिलाने की सिफारिश कर सकते हैं | [९]
    • पकड़ने और चूसने की परेशानियों के कारण नवजात ब्रेस्ट मिल्क कम ही पी पाते हैं इसलिए किसी स्तनपान परामर्शदाता की मदद लें जो माँ को उनके बच्चे को स्तनपान कराने की ट्रेनिंग दे सकें | [१०]
    • बच्चे के ज्यादा से ज्यादा बार स्तनपान करने से उसके बोवेल मूवमेंट बढ़ जाते हैं जिससे बिलीरुबिन बाहर निकल जाता है | [११]
    • अगर स्तनपान बढाने पर भी बिलीरुबिन का लेवल कम न हो तो पीडियाट्रिशियन बच्चे को डाइट में फार्मूला मिल्क या ब्रेस्ट से निचोड़ा गया दूध पिलाने के लिए कह सकते हैं | [१२]
  3. पीडियाट्रिशियन से फोटोथेरेपी कराने के लिए पूछें: फोटोथेरेपी में नवजात को ब्लू-ग्रीन स्पेक्ट्रम में लाइट में रखा जाता है | [१३] प्रकाश तरंगे बच्चे के शरीर और ब्लड में से होकर गुजरती हैं जहाँ बिलीरुबिन ऐसे मटेरियल में बदल जाता है जिससे बच्चे का शरीर उसे बाहर निकालने के काबिल हो जाता है | [१४]
    • नवजात की आँखों को लाइट से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सॉफ्ट आई पैचेज पहनाये जायेंगे | इस थेरेपी के दौरना उन्हें डायपर पहनाये जा सकते हैं |
    • नवजातों को फोटोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स के रूप में ढीला, बार-बार और संभवतः हरा सा मलत्याग होगा | यह नॉर्मल है और ट्रीटमेंट ख़त्म होने पर बंद हो जायेगा | [१५]
    • हालाँकि डायरेक्ट धूप से भी बिलीरुबिन लेवल को कम करने में मदद मिल सकती है लेकिन इलाज़ के रूप में इसकी सिफारिश नहीं की जाती | धूप में रखने के दौरान बच्चे के शरीर के तापमान और धूप के एक्सपोज़र के लेवल दोनों को ही नापना और कण्ट्रोल करना बहुत मुश्किल होता है | [१६]
  4. बिलीब्लैंकेट एक एडवांस्ड, फाइबर-ऑप्टिक बेस्ड फोटोथेरपी ट्रीटमेंट है | [१७]
    • बिलीब्लैंकेट में फाइबर-ऑप्टिक मटेरियल बुने होते हैं और इसमें नवजात को रखकर डायरेक्ट प्रकाश में पूरी तरह से एक्सपोज़ किया जाता है | इसमें रखकर बच्चे को पकड़ा जा सकता है और इलाज में कोई बाधा पहुंचाए बिना बच्चे की देखभाल की जा सकती है | [१८]
    • बिलीब्लैंकेट के कारण बच्चे की स्किन लाल से या ब्लीच हुई जैसी दिखाई दे सकती है लेकिन यह ट्रीटमेंट का मुख्य पार्ट है जो बिलीरुबिन लेवल कम होने पर ठीक हो जायेगा | [१९]
  5. अगर पीलिया किसी इन्फेक्शन या दूसरी मेडिकल प्रॉब्लम जैसे लाल रक्त कणिकाओं के बहुत ज्यादा टूटने के कारण हुआ है तो डॉक्टर मेडिकेशन या ब्लड ट्रांस्फ्यूजन जैसे दूसरे ट्रीटमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं |
विधि 2
विधि 2 का 2:

वयस्कों में बिलीरुबिन लेवल कम करें

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  1. वयस्कों में बिलीरुबिन लेवल को बढाने वाली कंडीशन पहचानकर अपनी हेल्थ का अंदाजा लगायें: बिलीरुबिन प्रोडक्शन सिस्टम इन तीन में से किसी एक पॉइंट पर सही तरीके से नहीं चल पाता: बिलीरुबिन प्रोडक्शन के पहले, दौरान और बाद में | इनमे से प्रत्येक परेशानी के कारण इनसे सम्बंधित निम्नलिखित कंडीशन बन जाती है:
    • वयस्कों में "विसंयुग्मित पीलिया (unconjugated jaundice)" डेवलप हो सकता है जो बिलीरुबिन प्रोड्यूस होने के पहले होने वाली परेशानी है | यह अधिकतर खून के बड़े थक्कों या फिर से अब्सोर्बशन होने या हेमोलायटिक एनीमिया (hemolytic anemia) के कारण होता है | [२०]
    • बिलितुबिं के प्रोडक्शन के दौरान भी वयस्कों में हेपेटाइटिस और Epstein-Barr जैसे वायरस, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर और अल्कोहल या एसीटामिनोफेन (acetaminophen), ओरल कंट्रासेप्टिव्स और स्टेरॉयड जैसी विशेष दवाये बहुत ज्यादा मात्रा में लेने से हेपेटाइटिस डेवलप हो सकता है | [२१]
    • अगर वयस्कों में बिलीरुबिन प्रोडक्शन के बाद होने वाली परेशानी के कारण पीलिया होता है तो यह प्रॉब्लम गाल ब्लैडर या पैंक्रियास में देखने मिलती है | [२२]
  2. अगर आपको पीलिया हो तो आपको बिलीरुबिन लेवल चेक करवाना पड़ेगा | पीलिया सीरियस हेल्थ इशू का संकेत हो सकता है | आमतौर पर, डॉक्टर आपके पीलिया के कारणों को खोजने और उनका इलाज़ करने पर काम करेंगे और वे पीलिया के कॉम्प्लिकेश्न्स का भी इलाज करेंगे | आमतौर पर पीलिया खुद ठीक नहीं होता | कई बार मेडिकेशन देने से खुजली में आराम मिल जाता है जो पीलिया का कॉमन लक्षण है | [२३] [२४]
    • पीलिया के साथ दूसरे लक्षण भी देखे जाते हैं जिनसे डॉक्टर पीलिया के कारण का अंदाजा लगा सकते है:
      • कम समय के लिए होने वाले पीलिया में, जो इन्फेक्शन के कारण होता है, कंपकपी, बुखार, पेटदर्द या फ्लू-जैसे लक्षण हो सकते हैं |
      • कोलेस्टेसिस (cholestasis – पित्त या बाइल का प्रवाह बाधित हो जाना) से होने वाले पीलिया में खुजली, वज़न बढ़ना, यूरिन का रंग डार्क होना या मल (stool) का रंग हल्का होने जैसे लक्षण हो सकते हैं | [२५]
  3. बिलीरुबिन के हाई लेवल से प्रभावित व्यक्ति का पता लगना आम बात है: कई ऐसी असामान्य मेडिकल कंडीशन होती हैं जिनमे बिलीरुबिन बढ़ सकता है और पीलिया हो सकता है |
    • गिल्बर्ट सिंड्रोम (Gilbert syndrome) एक जेनेटिक लिवर डिसऑर्डर है | इसमें रोगी में उन लिवर एंजाइम की मात्रा कम हो जाती है जो बिलीरुबिन को तोड़ने के लिए जरुरी होते हैं | हालाँकि यह कंडीशन जन्म से ही उपस्थित होती है लेकिन युवा किशोरावस्था होने तक पीलिया, थकान, कमजोरी और पेट की परेशानी जैसे लक्षण नहीं दिखाई देते | [२६]
    • क्रिग्लर- नज्जर (Crigler-Najjar) डिजीज बहुत ही कम देखी जाने वाली कंडीशन है जिसके कारण एंजाइम की कमी होती है | इस डिजीज के दो प्रकार होते हैं; सबसे कॉमन टाइप को Arias' syndrome कहा जाता है जिसका इलाज किया जा सकता है इसलिए रोगी नॉर्मल या नार्मल जैसी जिन्दगी जी सकते हैं | [२७]
    • सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia) या दूसरे ब्लड डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को पीलिया होने की रिस्क सबसे ज्यादा होती है |
  4. अल्कोहल के उपभोग को सीमित रखें | अल्कोहल लिवर को डैमेज कर सकता है जिसके कारण बिलीरुबिन लेवल बढ़ सकता है इसलिए रोज़ के लिए सिफारिश योग्य मात्रा (अपनी उम्र के आधार पर एक से दो ड्रिंक प्रति दिन) में ही लें | कुछ लोगों को अल्कोहल पूरी तरह से छोड़ने की सलाह भी दी जा सकती है | अल्कोहल लिवर को तीन तरीको से डैमेज कर सकता है:
    • लिवर की कोशिकोओं में अतिरिक्त फैट जमा करके अल्कोहल लिवर को डैमेज कर सकता है | इस कंडीशन को फैटी लिवर डिजीज कहा जाता है | इस कंडीशन से ग्रसित कई लोगों को कोई भी लक्षण अनुभव नहीं होते लेकिन जिन लोगों को अनुभव होते हैं, उन्हें परेशानी और थकान लगती है | [२८]
    • लिवर में स्कारिंग और इंफ्लेमेशन करके डैमेज का सकता है | ये लक्षण अल्कोहलिक हेपेटाइटिस का संकेत दे सकते हैं | इसके अतिरिक्त उल्टियाँ, पेटदर्द और बुखार भी हो सकते हैं | अल्कोहल हेपेटाइटिस कभी-अक्भी अल्कोहल छोड़ने पर रिवर्स भी हो सकती है | [२९] यह वायरल हेपेटाइटिस या ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के कारण भी हो सकते हैं |
    • लीवर के फंक्शन में बाधा डाल सकता है | लिवर सिरोसिस में लीवर की सीवियर स्कारिंग हो जाती है और खाना पचाने और रक्त से हानिकारक चीज़ें हटाने की क्षमता बाधित हो जाती है | [३०]
  5. स्टडीज से पता चलता है कि अल्कोहल लेने की अपेक्षा मोटापा लीवर को बहुत ज्यादा डैमेज कर सकता है | [३१] बच्चों में भी मोटापे के कारण फैटी लिवर हो सकता है |
    • हाई फाइबर वाले फूड्स विशेषरूप से लिवर के लिए अच्छे होते हैं जिनमे फल, सब्जियां और साबुत अनाज शामिल हैं | [३२]
    • कुछ फूड्स विशेषरूप से लिवर डैमेज का कारण बनते हैं जिनमे उच्च वसा, शुगर या नमक वाले फूड्स शामिल हैं | इसके अलावा, तले हुए फूड्स और कच्ची या कम पकी हुई शेलफिश भी लीवर डैमेज कर सकती हैं | [३३]
  6. हेपेटाइटिस A, B, और C ये सभी वायरस होते हैं जो लिवर पर नकारात्मक प्रभाव होते हैं | इस डिजीज से बचने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतें:
    • हर किसी को जन्म के बाद जल्दी ही हेपेटाइटिस B वैक्सीनेशन लेने की सिफारिश की जाती है | हेपेटाइटिस A वैक्सीनेशन की सिफारिश कुछ हाई रिस्क वाले लोगों या हाई-रिस्क एरिया में ट्रेवल करने वाले लोगों के लिए भी की जाती है |
    • अगर आप दुनिया में ऐसे हिस्सों में ट्रेवल करते हैं जहाँ हेपेटाइटिस होने की दर बहुत ज्यादा है तो ट्रेवल करने से पहले ही वैक्सीनेशन कराएँ |
    • हेपेटाइटिस आमतौर पर इंट्रावेनस ड्रग के इस्तेमाल और असुरक्षित सेक्स जैसे रिस्की कामों से भी हो सकता है | [३४]
  7. बाज़ार में मिलने वाली दर्द निवारक दवाओं और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली, एंटीबायोटिक्स और एनाबोलिक स्टेरॉयड डॉक्टर की लिखी दवाओं जैसी कुछ दवाओं से सावधान रहें क्योंकि इनके कारण टॉक्सिक हेपेटाइटिस हो सकता है | अगर आपको ली जा रही दवाओं के बारे में यह पता न हो कि वे लिवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं या नहीं तो डॉक्टर से पूछें |
    • कुछ अल्टरनेटिव दवाओं के बारे में माना जाता है कि उनके लीवर की हेल्थ और सच में लिवर डैमेज से सम्बंधित फंक्शन्स में सुधार आता है | कोई भी वैकल्पिक दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लें | आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कुछ कॉमन हर्ब्स जो लीवर डैमेज कर सकती हैं, उनमे शामिल है-ग्रीन टी [३५] , कावा, कोम्फ्रे (comfrey), अमरबेल (mistletoe), झाड़ (Chaparral) और skullcap | [३६]
    • लिवर ही दवाओं को तोड़ने के लिए जिम्मेदार होता है और इस प्रोसेस के दौरान इसके डैमेज होने की संभावना होती है | बाजार में मिलने वाली दवाओं में एसीटामिनोफेन (Acetaminophen) सबसे कॉमन दवा है जिसके इस्तेमाल से लिवर डैमेज हो सकता है | [३७]

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