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सभी लोग, यहाँ तक कि सबसे आश्वस्त लोग भी कभी कभी परेशानी, व्यग्रता और असमंजस की स्थिति महसूस करते हैं। मगर आश्वस्त लोगों को पता होता है कि इन क्षणों का सामना कैसे किया जाये और वे इस परेशानी जनित ऊर्जा का उपयोग भी अपने लाभ के लिए कर लेते हैं। आश्वस्त होने का प्रभामंडल, सकारात्मक ध्यान आकृष्ट करता है और नए अवसरों को जन्म देता है। यदि आप आश्वस्त नहीं भी महसूस करते हैं तो, “तब तक ढोंग करो, जब तक हो न जाओ” वाला दृष्टिकोण आपको तुरंत ही कुछ लाभ प्रदान कर सकता है, जिसको, बाद में, वास्तविक आत्मविश्वास सहायता प्रदान कर सकता है। हालांकि हर समय आत्मविश्वास बनाए रखना शायद संभव नहीं हो पाएगा, आप तब इसको कर पाने में सक्षम हो पाते हैं, जब इसकी वास्तव में आवश्यकता होती है, जैसे कि नौकरी के साक्षात्कार के समय, कोई प्रस्तुति करते समय, सामाजिक बातचीत में या एक आश्वस्त जीवन शैली के दौरान।

विधि 1
विधि 1 का 4:

आश्वस्त हाव भाव का उपयोग

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  1. कल्पना करिए कि आत्मविश्वास विहीन व्यक्ति कैसा दिखता होगा: शायद उसका सिर नीचे की ओर होगा, कमर झुकी होगी, वह कम से कम जगह में सिकुड़ने की कोशिश कर रही होगी और आँखें नहीं मिलाएगी। यह मुद्रा आत्मसमर्पण और व्यग्रता से सम्बद्ध होती है। [१] यह हाव भाव इस संदेश को भेजते और सुदृढ़ करते हैं कि आप परेशान हैं, समर्पित हैं और आपमें आत्म विश्वास की कमी है। शरीर की मुद्रा को बदलने से दूसरों पर पड़ने वाला आपका प्रभाव बदलेगा, आपके प्रति उनका व्यवहार बदलेगा और अंततः अपने बारे में आपका दृष्टिकोण बदलेगा।
    • यदि आप इन तकनीकों का परीक्षण सबके सामने नहीं करना चाहते हैं, तब तक इनका अभ्यास दर्पण के सामने करिए या स्वयं को फिल्म करिए, जब तक कि आप थोड़ा आश्वस्त न महसूस करने लगें। आप किसी अच्छे मित्र के सामने भी अभ्यास करके उसका फीडबैक प्राप्त कर सकते हैं।
  2. कंधे पीछे की ओर करके सीधे रख कर चलिये और खड़े होइए। अपनी ठोढ़ी सीधी और चेहरा सामने की ओर रखिए। चाहे आपको लगता नहीं भी हो, तब भी ऐसे चलिये, जैसे कि दुनिया आपकी मुट्ठी में है।
    • कल्पना करिए कि आप सिर पर बंधी एक रस्सी के सहारे टंगे हैं। [२] किसी एक स्थिर बिन्दु पर निगाहें टिकी रख कर अपने सिर को परेशानी में इधर उधर घूमने देने से बचाइये। सिर को इधर उधर हिलाने के स्थान पर दृष्टि को किसी बिन्दु पर केन्द्रित करिए।
  3. व्यग्र व्यक्ति आम तौर पर अपना वज़न एक पैर से दूसरे पैर पर डालते रहते हैं, बेचैन रहते हैं या पैर ज़मीन पर थपथपाते रहते हैं। अपने पैर कमर की चौड़ाई तक फैला करके खड़े रहने का प्रयास करिए। अपना वज़न दोनों पैरों पर डालिए। [३] पैरों का संतुलन बनाए रखने से और पैर जमा कर रखने से आपको इधर उधर हिलते रहने की आवश्यकता नहीं महसूस होगी।
    • बैठे रहने पर भी अपना संतुलन बनाए ही रखिए। अगर आपके पैर मुड़े होंगे या आप उन्हें ज़मीन पर थपथपाते होंगे तब आप व्यग्र ही दिखेंगे।
  4. अपनी कुर्सी पर झुके रहने की और अपनी बाँहों को अपने बगल में दबा कर रखने की तीव्र इच्छा से लड़िए। उसके स्थान पर थोड़ा चौड़े हो कर जगह घेरिए। इसको पावर पोज़िंग कहते हैं। अध्ययन से पता चला है कि जो लोग साक्षात्कार से पहले पावर पोज़ करते हैं उन्हें लगता भी है और होता भी है कि उनमें आत्म विश्वास बढ़ जाता है। [४] परीक्षण के लिए ये कुछ सीधे सादे पावर पोज हैं:
    • जब आप बैठें तब कुर्सी पर पीछे की ओर टेक लगाइये। यदि उपलब्ध हो तो हत्थों का उपयोग करिए।
    • पैरों को कंधे की चौड़ाई तक फैला कर खड़े होइए और अपने हाथ कूल्हों पर रखिए।
    • दीवारों का टेक लगाइये, उन पर झुकिए मत। इससे अवचेतन रूप से लगेगा कि दीवार या कमरा आपकी संपत्ति है। [५]
  5. यदि आपको किसी का ध्यान आकृष्ट करना है तब उसके कंधों को स्पर्श करिए। आपको स्पर्श की उपयुक्तता की जांच करने के लिए, स्थिति और परिस्थिति की आवश्यकता का जायज़ा लेना होगा। जैसे कि यदि आप किसी व्यक्ति को केवल उसका नाम ले कर बुला सकती हैं तब शारीरिक स्पर्श शायद कुछ अधिक ही माना जा सकता है। परंतु यदि आप किसी भीड़ भाड़ और कोलाहल युक्त स्थान पर हों तब किसी का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उसके कंधे को हल्के से छूने से उसका ध्यान आपकी ओर आकृष्ट हो सकता है।
    • ध्यान रखिए कि स्पर्श कोमल ही होना चाहिए। बहुत अधिक दबाव डालना शांत और आश्वस्त होने के स्थान पर ज़बरदस्ती जैसा लग सकता है।
  6. जब आप खड़े या बैठे हों तब अपने हाथों को अधिकतर स्थिर ही रखिए। विश्वस्त परिस्थितियों में आपके चेहरे और शरीर को दूसरों की ओर मुखातिब होना चाहिए न कि उनकी ओर से बंद होना चाहिए। यहाँ पर कुछ सुझाव हैं: [६] [७]
    • अपने हाथों को अपने सिर या पीठ के पीछे बाँधिए।
    • अपने हाथ अपनी जेब में डाल लीजिये मगर अपने अंगूठे बाहर ही रहने दीजिये।
    • अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को जोड़ कर ऊपर की ओर करिए और अपनी कोहनियों को मेज़ पर रखिए। यह बहुत ही निश्चयात्मक स्थिति होती है और इसका उपयोग समझौता वार्ता, साक्षात्कार तथा मीटिंगों में किया जाता है।
  7. यह आपकी सभ्यता पर निर्भर करता है कि क्या आप प्रत्येक शब्द को हाथ की मुद्राओं से स्पष्ट करने से व्यग्र या ऊर्जावान दिखते हैं। इसके स्थान पर कभी कभार नियंत्रित मुद्राएँ प्रदर्शित करने का निश्चय कीजिये। अपनी बाँहों को अपनी कमर की ऊंचाई पर ही रखिए और अपने समस्त हाव भाव उसी स्थान पर सीमित रखिए। इससे आप अधिक विश्वसनीय प्रतीत होंगे। [८]
    • सामाजिक परिप्रेक्ष्य में, ढीली और खुली हुई हथेली का प्रयोग करिए। कसा हुआ हाथ या बंधी हुई मुट्ठी अत्यंत आक्रामक तथा हावी होने की भावना का प्रदर्शन करता है, जो कि आम तौर पर राजनीतिज्ञों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
    • अपनी कोहनियों को अपने बगल में ही रखिए। अपने शरीर को ढांपने से बचाने के लिए अपनी हाथों से मुद्राएँ शरीर के एक ओर को ही करिए।
विधि 2
विधि 2 का 4:

विश्वास भरे सामाजिक संबंध बनाना

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  1. जब आप बातें कर रहे हों या जब दूसरा व्यक्ति बातें कर रहा हो तब नज़रों का मिलाना विश्वास और रुचि का संकेत होता है। कभी भी न तो अपने फ़ोन की जांच करिए, न फ़र्श की ओर देखिये और न ही कमरे को देखते रहिए। इससे आप कठोर, परेशान या असहज करने वाले भी लग सकते हैं। [९] कम से कम आधी बात चीत के दौरान आँखें मिलाये रहिए। [१०]
    • शुरुआत करने के लिए, किसी व्यक्ति से सबसे पहले नज़रें मिलाने का प्रयास इसलिए करिए जैसे आप उसकी आँखों का रंग पहचानने का प्रयास कर रहे हैं। [११]
  2. मज़बूती से हाथ मिलाने से आप तुरंत ही विश्वासी और स्वयं से आश्वस्त प्रतीत होने लगते हैं। जब आप किसी की ओर बढ़ें, तब अपना हाथ मिलाने के लिए आगे की ओर बढ़ाइए। दूसरे व्यक्ति का हाथ मज़बूती से पकड़िए परंतु इतना भी नहीं कि पीड़ादायक हो। दो या तीन सेकंडों के लिए ऊपर नीचे थोड़ा सा हिलाइए, फिर छोड़ दीजिये। [१२]
    • यदि आपकी हथेली पसीने से भीगी हो तब, अपने जेब में एक टिशू रखिए। हाथ आगे बढ़ाने से पहले उसे पोछ लीजिये।
    • कभी भी ढीला ढाला या “मरी मछली जैसे” हाथ मत मिलाइए। इससे आप कमज़ोर ही दिखेंगे। [१३]
  3. यदि बोलने की जल्दी में आप शब्दों को गड-मड कर देते हैं, तब थोड़े धीमे हो जाइए। बोलने से पहले एक या दो सेकंड रुकने से आपको अपने उत्तर की योजना बनाने का समय मिल जाता है, जिससे आप अधिक सहज और विश्वस्त दिखने लगते हैं। [१४]
    • जब आप धीमे हो जाते हैं, तब आपकी आवाज़ भी गहरी हो जाती है जिससे आप अधिक विश्वस्त और परिस्थिति को अपने नियंत्रण में किए हुये लगते हैं। [१५]
  4. मुस्कुराने से आप तुरंत ही जोशीले, मित्रवत, एवं सुलभ प्रतीत होने लगते हैं। अध्ययन से पता चला है कि लोग उन व्यक्तियों को याद रखते हैं, जो उन्हें देख कर मुस्कुराते हैं। [१६] यदि आपको स्वाभाविक मुस्कान बनाए रखने में कठिनाई होती है, तो बस थोड़ा सा मुस्कुराइए और फिर वापस तटस्थ मुद्रा बना लीजिये।
    • उचित समय पर, विश्वास के प्रदर्शन और उसको बढ़ाने के लिए हास्य, एक और अच्छा तरीक़ा है। लगातार खिलखिलाने से बचिए क्योंकि यह परेशानी और घमंडीपन का द्योतक हो सकता है। [१७]
  5. यदि आप स्वयं को, छोटी छोटी बातों तक पर क्षमा मांगते हुये पाते हैं, तब इस चक्र से बाहर आइये। आप अधिक विश्वासी होना और वैसा ही व्यवहार करना भी सीख जाएँगे। [१८] अपने घनिष्ठ मित्रों को बताइये कि आप इस पर काम कर रहे हैं। जब आप उनमें से किसी एक से अनावश्यक रूप से क्षमा मांग चुकिए तब उनसे कहिए “रुको, नहीं, मुझे क्षमा याचना करने की आवश्यकता नहीं है!” यदि आप इस संबंध में उनसे हंसी मज़ाक कर सकते हैं तो इससे आपका यह भय समाप्त हो जाएगा कि कहीं आप उनका अपमान तो नहीं कर बैठे हैं।
    • वहीं दूसरी ओर, सराहना को शालीनता से स्वीकार करिए। जब कोई व्यक्ति आपकी प्रशंसा करे, तो मुस्कुराहट के साथ “धन्यवाद” कहिए। प्रत्युत्तर में स्वयं को कम न दिखाइये, अथवा अपनी उपलब्धियों को नकारिए मत (“यह तो कुछ भी नहीं था”)।
  6. दूसरों का सम्मान करके आप यह प्रदर्शित करते हैं कि आप एक व्यक्ति की तरह उनका मूल्यांकन करते हैं और आप जो भी हैं उसी में आश्वस्त हैं। किसी और के बारे में गपशप करने से अच्छा है कि इस नाटकीयता से बचा जाये। इससे स्पष्ट होता है कि आप जो भी हैं उसी में सहज हैं। [१९]
    • संभावना यही है कि अन्य लोग भी आपका सम्मान करना सीख जाएँगे और प्रेरित हो जाएँगे। लोग भी शायद आपको नाटकीय और तनावपूर्ण स्थितियों में खींचना बंद कर देंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि आप उसमें उलझेंगे नहीं।
  7. किसी सामाजिक उत्सव या पार्टी में जा कर इन तकनीकों का अभ्यास करिए। याद रखिए कि आपको जाकर उस समूह में सभी लोगों से मित्रता नहीं कर लेनी है। यदि आप एक शाम के लिए केवल एक व्यक्ति को भी व्यस्त कर पाते हैं, तब आपको इसे एक विजय मानना चाहिए। यदि आपको बाहर जाकर इसका अभ्यास करने में असहज प्रतीत होता है, और आप इसके स्थान पर, घर पर ही अभ्यास करना चाहते हैं, तब आपको किसी मित्र की सहायता लेनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए यदि आप किसी साक्षात्कार या प्रस्तुति की तैयारी कर रहे हों, तब आपको अपने मित्र से साक्षात्कार लेने वाला या दर्शक बनने को कहना चाहिए। यदि आपको सहज लगे तो उस मित्र को प्रस्तुति के लिए साथ ले जाइए। इससे आपको, कमरे में उपस्थित अन्य लोगों के स्थान पर, अपने विश्वस्त, अपने मित्र पर ध्यान केन्द्रित करने में सहायता मिलेगी।
विधि 3
विधि 3 का 4:

विश्वस्त जीवन शैली विकसित करना

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  1. अपना सर्वश्रेष्ठ रूप प्रदर्शित करिए और वैसा ही महसूस करिए: आपके भले के लिए आवश्यक है कि आप अपना खूब ध्यान रखें। आपकी साफ सफाई, पोशाक, और स्वास्थ्य सभी कुछ ध्यान देने योग्य है, विशेषकर तब, जब आप किसी नौकरी के साक्षात्कार या डेट पर प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हों। आपका दिखावा और प्रथम प्रभाव बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। तेज़ तर्रार दिखने से आपको लाभ होता है और दूसरे भी आप पर अधिक ध्यान देते हैं। आप एक ही झलक में अच्छे और विश्वासपूर्ण दिखते हैं।
    • प्रतिदिन कुछ समय अपनी साफ सफाई पर लगाइये। जब भी आवश्यक हो तब नहाइये, ब्रश करिए तथा डीयोडरंट लगाइये।
    • कपड़े ऐसे पहनिए जिनको पहनने से आपको अच्छा लगे और आप अच्छे दिखें। ऐसी पोशाक पहनने से जिसमें आप सहज और विश्रांत महसूस करें, आपके आत्मविश्वास को प्रोत्साहन मिलेगा।
  2. विश्वासपूर्ण तरीके से व्यवहार करने से आप आत्मविश्वास से भरपूर दिखेंगे, मगर आपके लिए स्वयं का मूल्य एक व्यक्ति के रूप में पहचान पाना भी महत्वपूर्ण है। इससे आपको वास्तव में विश्वास प्राप्त होगा। आप एक विशेष, गुणवान व्यक्ति हैं और ऐसे बहुत से लोग हैं जो आपको प्रसन्न देखना चाहते हैं। यदि आप यह करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब अपनी उपलब्धियों की एक सूची बना लीजिये। अपने को बधाई देने में संकोच मत करिए। [२०]
    • स्वयं से और दूसरों से ईमानदार रहिए। जब लोगों को पता चलगा कि आप स्वयं पर विश्वास करने में सक्षम हैं और आप अपने कृत्यों का उत्तरदायित्व स्वीकार कर रहे हैं तब वे आपको और भी पसंद करेंगे। उनके द्वारा आप पर विश्वास करने की और भरोसा करने की संभावना भी बढ़ जाएगी।
  3. जिन लोगों में विश्वास की कमी होती है वे अक्सर गलतियाँ करने से या गलत समझे जाने से डरते हैं। जब आपके मस्तिष्क में परेशानी उठे तब गहरी सांस लीजिये और स्वयं को बताइये कि, “ मैं यह कर सकता हूँ। मेरा भय तर्कसंगत नहीं है।“ भूल या असफलता को स्वीकार करिए मगर उसी पर ध्यान मत लगाए रखिए।
    • जब आप कुछ विश्वास विकसित कर लें तब ऐसा कुछ करिए जिसके बारे में आप बहुत चिंतित रहते हों। अनेक लोगों के लिए, किसी बड़े समूह में प्रश्न पूछना या किसी चीज़ के संबंध में अपनी अज्ञानता स्वीकार करना, ऐसी परिस्थिति बना सकता है।
  4. यदि आपमें विश्वास की कमी होगी तब आप जीवन की उन नकारात्मक घटनाओं पर ही ध्यान केन्द्रित करते रहेंगे जिनसे आपके जीवन को यह रूप मिला है। इनको भूल न समझ कर असफलताएँ समझिए। इसके स्थान पर इनको ऐसा कुछ समझिए जिनसे आप ऐसा कुछ सीख सकते हैं, जिससे आपका चरित्र और आत्मविश्वास विकसित हो सके। याद रखिए कि प्रत्येक भूल यह सीखने का अवसर होती है कि अगली बार कैसे सुधार किया जा सकता है। [२१]
    • स्वयं को उन अन्य अवसरों की याद दिलाइये जब आप सफल हुये थे। हर कोई, चाहे वह जितना भी आत्मविश्वास से परिपूर्ण और प्रस्तुति योग्य क्यों न हो, गलतियाँ तो करता ही है। अंततोगत्वा वास्तव में फर्क इसी बात से पड़ता है कि आप उनका सामना कैसे करते हैं।
  5. तनावपूर्ण विचारों को कागज पर उतारने से (उनको दिमाग में तैरते रहने देने के स्थान पर) तनाव में कमी होती है, और लेखन की प्रक्रिया आपको चीजों को दूसरे नज़रिये से देखने का अवसर भी प्रदान करती है। [२२] लेखन शुरू करने के लिए एक सूची बनाने का प्रयास करिए, “वे चीज़ें जिन पर मुझे गर्व है और जिनकी मुझे तब याद करनी है जब में परेशान हूँ।“ (यह सबसे सरलता से तब लिखा जाता है जब आप अच्छी मनोदशा में होते हैं।) इस प्रकार की चीज़ें सदैव ही सत्य होती हैं, मगर जब हम बुरी, परेशान या कुछ कम विश्वास वाली मनोस्थिति में होते हैं तब हमारा रुख उन्हें नज़रअंदाज़ कर देने का होता है। इस प्रकार की सूची तैयार रखने से आपको यह याद रखने में सहायता मिलती है कि आपके पास ऐसी चीज़ें हैं जिनके कारण आपका स्वयं पर विश्वास बना है।
    • जैसे कि, आप इस प्रकार की चीज़ें सम्मिलित कर सकती हैं, ”गर्व है कि मैं गिटार बजा सकता हूँ,“ “गर्व है कि मैं पर्वतारोही हूँ,” “गर्व है कि मैं अपने मित्रों को उनके दुखी होने पर हंसा सकता हूँ।“
  6. स्वयं से आत्म विश्वास बढ़ाने वाले प्रश्न पूछिये: विश्वस्त महसूस करने का सबसे बड़ा स्त्रोत तो आपके अंदर ही है। जब भी आपको विश्वास में कमी लग रही हो, तब स्वयं से पूछिये: मेरे पास ऐसा क्या है जो औरों के पास नहीं है? वह क्या है जो मुझे समाज में कुछ योगदान देने वाला सदस्य बनाता है? मेरी चुनौतियाँ क्या हैं और मैं कैसे सुधर सकता हूँ? मुझे अपना मूल्य कैसे समझ में आयेगा? स्वयं को याद दिलाइए कि यह सोचना अवास्तविक होगा कि आप हर समय सम्पूर्ण ही होंगे।
    • जैसे कि यदि आप स्वयं को किसी साक्षात्कार से पहले परेशान होता हुआ पाएँ, तब साक्षात्कार के लिए जाने से पहले पाँच मिनट का समय निकालिए और इन तनाव प्रबंधन व विश्वास निर्माण करने वाली तकनीकों में से कुछ का प्रयास करिए। स्वयं को याद दिलाइए कि आप तैयार हैं और आपका साक्षात्कार किसी कारण से ही हो रहा है। अपनी बाहों को ऊपर की ओर चौड़ाई में फैलाइए और तब उन्हें अपने कूल्हों पर रखिए। अपने शरीर को ढीला करने के लिए थोड़ा झटकिए और गहरी सांस लीजिये। ज़ोर से सांस बाहर निकालिए और स्वयं को याद दिलाइए कि आप यह कर सकते हैं।
विधि 4
विधि 4 का 4:

भय का सामना करना

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  1. समझिए कि कैसे भय आपके विश्वास को प्रभावित करता है: कभी कभी लोग अपने बारे में कुछ अधिक ही समझ बैठते हैं और चिंता करते हैं कि वे कुछ गलत कर रहे हैं जिससे अन्य लोग उनके बारे में अच्छा नहीं समझेंगे। हर कोई समय समय पर भयभीत या परेशान होता ही है और यह सामान्य बात है। परंतु यदि आप इस बिन्दु तक भयभीत हैं कि उससे आपका दैनिक जीवन तथा लोगों से व्यवहार प्रभावित होता है, तब शायद यही समय है जब आपको इनमें से कुछ भयों का सामना करना चाहिए। [२३]
  2. आपका शरीर आपको क्या बता रहा है? क्या आपका दिल तेज़ी से धड़क रहा है? क्या आपको पसीना आ रहा है? ये सब वे शारीरिक स्वचालित अथवा अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ हैं, जो हमें क्रिया के लिए तैयार करती हैं (जैसे लड़ो या भागो), परंतु कभी कभी ये शारीरिक अनुभूतियाँ भय तथा चिंता उत्पन्न कर सकती हैं। आपका शरीर कैसा महसूस कर रहा है?
    • स्वयं से पूछिए कि, “इस परिस्थिति के बारे में वह क्या है जो मुझे परेशान और भयभीत कर रहा है?” शायद आप इस बात से चिंतित हैं कि इस शानदार रात्रि-भोज में आप गलत जगह बैठ जाएँगे या आप कुछ गलत बात कह बैठेंगे तथा फिर आपको शर्मिंदगी होगी।
  3. तय करिए कि क्या यह भय आपकी किसी प्रकार से सहायता कर रहा है, या यह आपको कुछ करने से, या जीवन जीने से रोक रहा है। कुछ और चीज़ें जो आप पूछ सकते हैं, वे हैं:
    • मैं क्या होने से डर रहा हूँ?
    • क्या मैं निश्चित हूँ कि ऐसा होगा ही? कितना निश्चित?
    • क्या यह पहले कभी हुआ है? पहले जब यह हुआ था, तब उसका परिणाम क्या हुआ था?
    • सबसे बुरा क्या हो सकता है?
    • इसमें सबसे अच्छी बात क्या हो सकती है (जिससे कि यदि मैं प्रयास नहीं करूंगा तब मैं चूक जाऊंगा)?
    • क्या यह पल मेरे शेष जीवन को प्रभावित करेगा?
    • क्या मेरी अपेक्षाएँ और विश्वास वास्तविक हैं?
    • यदि मेरी मित्र मेरे स्थान पर होती, तब मैं उसे क्या सलाह देता?
  4. गहरी सांसें लेना महत्त्वपूर्ण हो सकता है और आपकी परेशानी को नियंत्रण में रखने में सहायता भी कर सकता है। गहरी सांसें लेने से आपकी हृदय गति कम हो जाती है। यदि आप कर सकते हों, तब अपना हाथ अपने पेट पर रखकर गहरी सांसें लेने का प्रयास करिए ताकि केवल पेट पर रखा आपका हाथ हिले और आपका सीना नहीं।
    • इसको पेट से सांस लेना (“Diaphragmatic Breathing”) कहते हैं। गहरी सांसें लेने से आपको सहज होने में तथा परेशानी कम करने में सहायता मिलती है। [२४]
  5. अनेक बार हम तब परेशान और व्यग्र होते हैं, जब हम महसूस करते हैं कि नियंत्रण हमारे हाथ में नहीं है। यदि आप व्यग्रता उत्पन्न करने वाली स्थिति में जा रहे हों, तब उसके पहले कुछ मिनट निकाल कर ध्यान करिए या उस स्थिति में जाने से पहले लिखिए। इस प्रकार आप शुरुआत करते समय शांत स्थिति में होंगे। [२५]
    • यदि आपको लगातार परेशान करने वाले ऐसे विचार आते रहें जिनसे आपकी व्यग्रता बढ़े, तब आपको ऐसा महसूस होगा कि आपका कोई नियंत्रण है ही नहीं। ध्यान करने और सावधान रहने से आप लगातार परेशान करने वाले विचार को स्वीकृत कर पाते हैं और फिर उसे जाने दे सकते हैं।
  6. उस विचार को लिख डालिए जिसके कारण भय और परेशानी होती है। भय के स्त्रोत का मूल्यांकन करने के लिए स्वयं से प्रश्न पूछिए। यह करने से आप अपने विचारों और भय को पहचान पाएंगे, उनके पैटर्न को जान लेंगे, और भय के संबंध में ऐसी अलग तरह से सोच पाएंगे जिससे उसको आपके मस्तिष्क से निकालने में सहायता मिल सके। [२६]
    • हालांकि आप उस पल में तो यह नहीं कर पाएंगे, परंतु बाद में उसे लिख डालिए। मुद्दा यह है कि आप यह करिए और अपने भय के स्त्रोत तक पहुंचिए।

सलाह

  • लगातार अभ्यास करिए। आप जितना अधिक करेंगे, उसमें उतनी ही महारत हासिल होगी।
  • आपको जो भी वास्तव में करना हो उससे कुछ अधिक शर्मिंदगी वाला काम करिए। आप जितना अधिक शर्मिंदा होने की आदत डाल लेंगे, वास्तव में उतनी ही कम शर्मिंदगी महसूस करेंगे।

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